लॉर्ड कर्ज़न के अधीन सुधार और प्रशासन | 19 May 2021

लॉर्ड कर्ज़न के बारे में :

  • जॉर्ज नथानिएल कर्ज़न (11 जनवरी, 1859- 20 मार्च, 1925) का जन्म केडलस्टन हॉल (Kedleston Hall) में हुआ, जो इंग्लैंड के एक ब्रिटिश राजनेता और विदेश सचिव थे, जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान ब्रिटिश नीति निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • लॉर्ड कर्ज़न ने लॉर्ड एल्गिन के कार्यकाल के उपरांत पदभार ग्रहण किया तथा कर्ज़न वर्ष 1899 से 1905 तक ब्रिटिश भारत के वायसराय रहे।
      • वह 39 वर्ष की आयु में भारत के सबसे कम उम्र के वायसराय बने।
    • कर्ज़न वायसराय पद के सर्वाधिक विवादास्पद और परिणामी धारकों में से एक थे।
  • गवर्नर जनरल और वायसराय के रूप में पदभार ग्रहण करने से पूर्व कर्ज़न ने भारत (चार बार) सीलोन, अफगानिस्तान, चीन, पर्शिया, तुर्किस्तान, जापान और कोरिया का दौरा किया था।
    • लॉर्ड कर्ज़न के अतिरिक्त भारत के किसी अन्य गवर्नर जनरल के पास पूर्वी देशों के बारे में इतना विस्तृत अनुभव और विचार नहीं था। 
  • भारत के संदर्भ में कर्ज़न के विचार:
    • लॉर्ड कर्ज़न एक निरंकुश शासक या कट्टर नस्लवादी थे और यह भारत में ब्रिटेन के "सभ्यता मिशन" के प्रति आश्वस्त थे।
    • उन्होंने भारतीयों को "चरित्र, ईमानदारी और क्षमता में असाधारण हीनता या कमी " के रूप में वर्णित किया।

कर्ज़न की विदेश नीतियाँ

  • उत्तर-पश्चिम सीमांत नीति: कर्ज़न ने अपने पूर्ववर्तियों शासकों के विपरीत उत्तर-पश्चिम में ब्रिटिश कब्ज़े वाले क्षेत्रों के एकीकरण, शक्ति और सुरक्षा की नीति का अनुसरण करना शुरू कर दिया।
    • उन्होंने चित्राल को ब्रिटिश नियंत्रण में रखा और पेशावर और चित्राल को जोड़ने वाली एक सड़क का निर्माण किया, जिससे चित्राल की सुरक्षा की व्यवस्था की गई।
    • खैबर दर्रा, खुर घाटी, वज़ीरिस्तान आदि ऐसे स्थान थे जहाँ ब्रिटिश सैनिक  पूर्ववर्ती शासकों द्वारा तैनात किये गए थे। लॉर्ड कर्ज़न ने उन्हें वापस बुला लिया, जिससे आदिवासी लोगों के प्रति भेदभाव दूर हो गया।
    • उत्तर-पश्चिम क्षेत्रों में शांति स्थापित करते हुए कर्ज़न की उत्तर-पश्चिमी सीमांत नीति ने एक भारी लागत को कम किया। 
  • अफगान नीति: मध्य एशिया और फारस की खाड़ी क्षेत्र में रूसी विस्तार के डर से लॉर्ड कर्ज़न की अफगान नीति को राजनीतिक और आर्थिक हितों से जोड़ा गया था।
    • शुरुआती दौर से ही अफगानों और अंग्रेज़ों के बीच संबंधों में दरार आ गई थी।
    • अब्दुर रहमान (तत्कालीन अफगान अमीर) और अंग्रेज़ों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे, जिसके तहत बाद में अफगानिस्तान को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये प्रतिबद्ध किया गया था, इस प्रकार किसी  भी तरह के अफगान संबंधी तनाव से ब्रिटिश शासकों ने स्वयं को सुरक्षित किया।
  • पर्शिया के प्रति नीति: ब्रिटिश हित के लिये यह अनिवार्य था कि वह फारस की खाड़ी क्षेत्र में ब्रिटिश प्रभाव बनाए रखे क्योंकि रूस, फ्राँस, तुर्की आदि उस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे ।
    • उस क्षेत्र में ब्रिटिश प्रभाव को सुरक्षित करने के लिये वर्ष 1903 में लॉर्ड कर्ज़न व्यक्तिगत रूप से फारस की खाड़ी क्षेत्र में गए और वहाँ ब्रिटिश हितों की रक्षा हेतु कड़े कदम उठाए। 
  • तिब्बत के साथ संबंध: लॉर्ड कर्ज़न की तिब्बत नीति भी इस क्षेत्र में रूसी प्रभुत्व के डर से प्रभावित थी।
    • वर्ष 1890 में तिब्बतियों ने अंग्रेज़ों के साथ एक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये थे, लेकिन जब तक लॉर्ड कर्ज़न ने भारत का वायसराय पद संभाला , तब तक तिब्बत और ब्रिटिश भारत के बीच व्यापार संबंध पूरी तरह से समाप्त हो चुका  था।
    • लॉर्ड कर्ज़न के प्रयासों ने  इन दोनों के बीच व्यापार संबंधों को पुनर्जीवित किया था जिसके तहत तिब्बत अंग्रेज़ों को भारी क्षतिपूर्ति देने के लिये सहमत हुआ।

विभिन्न क्षेत्रों में सुधार

  • कर्ज़न एक मज़बूत केंद्रीकृत सरकार और शक्तिशाली नौकरशाही में विश्वास रखते थे।
  • कलकत्ता कॉरपोरेशन एक्ट 1899: इस अधिनियम ने निर्वाचित विधायिकाओं की संख्या को कम कर दिया और भारतीयों को स्वशासन से वंचित करने के लिये मनोनीत अधिकारियों की संख्या में वृद्धि की।
    • इसके विरोध में कॉरपोरेशन के 28 सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया और बाद में  यह अंग्रेज़ों और एंग्लो-इंडियन के बहुमत के साथ एक सरकारी विभाग बन गया।
  • आर्थिक:  वर्ष 1899 में ब्रिटिश मुद्रा को भारत में कानूनी निविदा घोषित किया गया और एक पाउंड को पन्द्रह रुपए के बराबर घोषित किया गया था।
    • कर्ज़न  द्वारा नमक-कर की दर को कम किया गया। जिसने नमक-कर की दर को  ढाई रुपए प्रति मन (एक मन लगभग 37 किलो के बराबर) से घटाकर एक-तिहाई रुपए प्रति मन (Maund) कर दिया।
    •  500 रुपए से अधिक की वार्षिक आय वाले लोगों ने टैक्स चुकाया। इसके अतिरिक्त आयकर दाताओं को भी छूट मिली।
    • केंद्र सरकार ने प्रांतों की वार्षिक बचत को अपने कब्ज़े में ले लिया जिसने  प्रांतों को बचत के लिये किसी भी प्रकार का प्रस्ताव नहीं रखा ।
      • कर्ज़न ने वित्तीय विकेंद्रीकरण की नीति का समर्थन किया और इस प्रचलन को समाप्त कर दिया।
  • अकाल: कर्ज़न के भारत आगमन के दौरान भारत में भीषण अकाल की स्थिति थी जिसने दक्षिण, मध्य और पश्चिमी भारत के व्यापक क्षेत्रों को प्रभावित किया। कर्ज़न ने प्रभावित लोगों को यथासंभव राहत सुविधाएँ प्रदान कीं।
    • लोगों को भुगतान के आधार पर काम दिया जाता था और किसानों को राजस्व के भुगतान से छूट दी जाती थी।
    • 1900 तक जब अकाल समाप्त हो गया, कर्ज़न ने अकाल के कारणों की जाँच के लिये एक आयोग नियुक्त किया और आयोग ने  निवारक उपायों का सुझाव दिया, जिन्हें बाद में संज्ञान में लाया गया।
  • कृषि: वर्ष 1904 में सहकारी क्रेडिट सोसायटी अधिनियम पारित किया गया था जिसका उद्देश्य जमा और ऋण के माध्यम से लोगों को सोसायटी निर्माण के लिये प्रेरित करना था, जिसमें मुख्य रूप से कृषक वर्ग को साहूकारों (जो साहूकार आमतौर पर अत्यधिक ब्याज दर वसूलते थे) के चंगुल से बचाने के लिये अपनाया गया था।
    • वर्ष 1900 में पंजाब भूमि अलगाव अधिनियम पारित किया गया था, जिसमें किसानों द्वारा उनके ऋणों के भुगतान नहीं किये जाने पर  साहूकारों को हस्तांतरित की जाने वाली भूमि पर रोक लगा दी थी।
    • कर्ज़न ने राजस्व प्रशासन में सुधार करने का प्रयास किया जिसके लिये उन्होंने इस संदर्भ में तीन सिद्धांत निर्धारित किये।
      • सर्वप्रथम, राजस्व को उत्तरोत्तर यानी धीरे-धीरे बढ़ाया जाना था।
      • द्वितीय, राजस्व एकत्रित करने के दौरान कृषि या कृषक को किसी भी तरह का नुकसान न पहुँचे इसका पूरा ध्यान रखा जाना था।
      • तृतीय, सूखे या किसी अन्य जटिल परिस्थिति में कृषक वर्गों  की तत्काल मदद की जानी थी।
  • रेलवे: कर्ज़न ने भारत में रेलवे की सुविधाओं में सुधार करने और रेलवे को सरकार के लिये लाभदायक बनाने का भी फैसला किया।
    •  वर्ष 1901 में कर्ज़न ने सर रॉबर्ट्सन की अध्यक्षता में एक रेलवे आयोग नियुक्त किया। आयोग ने दो वर्ष बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और इस रिपोर्ट में दी गई सिफारिशों को कर्ज़न द्वारा स्वीकार कर लिया गया।
    • रेलवे लाइनों का विस्तार किया गया, रेलवे विभाग को समाप्त कर दिया गया और रेलवे के प्रबंधन को लोक निर्माण विभाग से हटा कर तीन सदस्यों वाले रेलवे बोर्ड को सौंप दिया गया।
    • रेलवे विभाग या बोर्ड का गठन व्यावसायिक आधार पर किया गया था, जिसका प्राथमिक उद्देश्य लाभ अर्जित करना था।
  • शिक्षा : वर्ष 1901 में कर्ज़न ने शिमला में एक शिक्षा सम्मेलन का आयोजन किया, उसके बाद 1902 में विश्वविद्यालय आयोग का गठन किया।
    • इस आयोग की अनुशंसाओं पर आधारित भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 1904 पारित किया गया।
    • गुरुदास बनर्जी जो कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश और आयोग के सदस्य थे उन्होंने रिपोर्ट के प्रति अपनी असहमति प्रकट की और भारतीय जनता ने इस अधिनियम का तिरस्कार किया लेकिन इन सबका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
    • इस अधिनियम का उद्देश्य विश्वविद्यालयों की निगरानी सरकार के अधीन की जानी थी, अतंत: इसने अपने उद्देश्य की पूर्ति की।
  • सेना: वर्ष 1902 में कमांडर-इन-चीफ के रूप में लॉर्ड किचनर (Lord Kitchener) भारत आया और उसने सेना में कई आवश्यक सुधार किये।
    • भारतीय सेना को दो कमानों (उत्तरी कमान और दक्षिणी कमान) में विभाजित किया गया था।
      • सेना के प्रत्येक डिवीज़न में तीन ब्रिगेड्स थे जिनमें दो भारतीय बटालियन और एक अंग्रेज़ी बटालियन शामिल थी।
    • भारत में सैन्य हथियार (बंदूकें, बारूद और राइफल) निर्माण के लिये कारखाने स्थापित किये गए थे जिसके कारण सेना के पास आधुनिक हथियार मौजूद थे।
    • सैनिकों के दक्षता संवर्द्धन के लिये प्रत्येक बटालियन को 'द किचनर टेस्ट' नामक एक महत्त्वपूर्ण प्रशिक्षण से गुज़रना पड़ता था।
  • न्यायतंत्र: न्यायपालिका क्षेत्र में न्यायिक सुधारों के तहत कई कार्य किये गए जैसे-  कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि की गई, उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन में वृद्धि की गई तथा भारतीय नागरिक प्रक्रिया संहिता को संशोधित किया गया।
  • स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904: इस अधिनियम ने एक निदेशक के अधीन एक पुरातत्त्व विभाग की स्थापना की।
    • इस विभाग को ऐतिहासिक स्मारकों की मरम्मत, जीर्णोद्धार और संरक्षण की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी।
    • लॉर्ड कर्ज़न ने स्थानीय शासकों को अपने प्रतिनिधित्व वाले राज्यों में इसी तरह के उपाय अपनाने के लिये कहा और दुर्लभ वस्तुओं के सुरक्षित संरक्षण के लिये प्रांतीय सरकारों से संग्रहालय खोलने का आग्रह किया।

बंगाल का विभाजन

  • 1905 में अविभाजित बंगाल प्रेसीडेंसी का विभाजन कर्ज़न की सर्वाधिक आलोचनात्मक नीतियों में से एक था, जिससे न केवल बंगाल में बल्कि पूरे भारत में व्यापक विरोध शुरू हो गया और इस घटना ने स्वतंत्रता आंदोलन को गति प्रदान की ।

बंगाल के विभाजन में कर्ज़न की भूमिका:

  •  बंगाल लगभग 8 करोड़ की जनसंख्या के साथ भारत का सबसे अधिक आबादी वाला प्रांत था।
  • इसमें वर्तमान भारतीय राज्यों में पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्से, ओडिशा और असम तथा वर्तमान बांग्लादेश शामिल थे।
  • कर्ज़न ने जुलाई 1905 में बंगाल प्रेसीडेंसी के विभाजन की घोषणा की।
    • 3.1 करोड़ की आबादी के साथ 3:2 के अनुपात में हिंदू-मुस्लिम सहित पूर्वी बंगाल और असम के एक नए प्रांत की घोषणा की गई।
    • पश्चिमी बंगाल प्रांत में सर्वाधिक हिंदू थे।
  • हालाँकि अंग्रेज़ों ने दावा किया कि विभाजन बड़े क्षेत्र के प्रशासन को सुविधाजनक बनाने के लिये था, बंगाल कॉन्ग्रेस और देशभक्त भारतीयों के लिये यह स्पष्ट था कि कर्ज़न का वास्तविक उद्देश्य प्रांत में साक्षर वर्ग की तेजी से बढ़ती राजनीतिक आवाज को कुचलना और भड़काना था। उनके खिलाफ धार्मिक संघर्ष और विरोध को उत्पन्न करना था।
    • हालाँकि विभाजन का विरोध केवल इसी वर्ग तक सीमित नहीं रहा।

विभाजन का प्रभाव:

  • विभाजन ने पूरे भारत में भारी आक्रोश और शत्रुता को जन्म दिया तथा कॉन्ग्रेस के सभी वर्गों (नरमपंथियों और कट्टरपंथियों) ने इसका विरोध किया।
  • इस घटना ने एक संघर्ष को जन्म दिया जिसे स्वदेशी आंदोलन के रूप में जाना जाने लगा जिसका सर्वाधिक प्रभाव बंगाल में था, लेकिन अन्य जगहों पर भी इसका प्रभाव था, उदाहरण के लिये डेल्टाई आंध्र में इसे वंदेमातरम आंदोलन के रूप में जाना जाता था।
    • यह विरोध ब्रिटिश वस्तुओं (विशेष रूप से वस्त्रों) का बहिष्कार करने और स्वदेशी वस्तुओं को बढ़ावा देने के लिये  किया गया था।
    • अपनी देशभक्ति को रेखांकित करने और उपनिवेशवादियों को चुनौती देने के लिये वंदे मातरम गाते हुए प्रदर्शनकारियों के साथ विरोध प्रदर्शन किया।
      • पूरे बंगाल में कई हज़ार स्वयंसेवकों के साथ कई समितियाँ उभरीं।
  • रवींद्रनाथ टैगोर ने कई स्थानों पर प्रदर्शन का नेतृत्त्व किया और उन्होंने कई देशभक्ति के गीतों की रचना की जिसमें सबसे प्रसिद्ध 'अमर सोनार बांग्ला' (माई गोल्डन बंगाल) था, जो अब बांग्लादेश का राष्ट्रगान है।
    • देशभक्ति गीतों और बंगाली राष्ट्रवाद के संदेश को जात्रा या लोकप्रिय थिएटर में प्रदर्शित किया जाता था।

विरोध का प्रभाव:

  • वर्ष 1905 में कर्ज़न भारत छोड़कर ब्रिटेन चले गए, लेकिन यह आंदोलन कई वर्षों तक चलता रहा।
    • अंतत:  वर्ष 1911 में बढ़ते विरोध के कारण लॉर्ड हार्डिंग द्वारा बंगाल विभाजन को रद्द करने की घोषणा की।
  • आंदोलन के दौरान स्वदेशी आंदोलन का महत्त्व काफी बढ़ गया था, बाद में यह आंदोलन राष्ट्रव्यापी स्तर पर पहुँच गया।
    • बंगाल विभाजन और कर्ज़न के क्रूर व्यवहार ने राष्ट्रीय आंदोलन और कॉन्ग्रेस को एक ज्वलंत आंदोलन की ओर मोड़ दिया।

निष्कर्ष 

  • डेनिस जुड (Denis Judd) द्वारा लिखित 'लायन एंड द टाइगर' (Lion and the Tiger) पुस्तक में उन्होंने "द राइज़ एंड फॉल ऑफ द ब्रिटिश राज, 1600-1947" (The Rise and Fall of the British Raj, 1600-1947) के बारे में लिखा था।
    • कर्ज़न ने भारत को स्थायी रूप से ब्रिटिश राज के अधीन रहने उम्मीद  की थी। विडंबना यह है कि उनके द्वारा किये गए बंगाल विभाजन और उसके बाद हुए भारी बहिष्कार या विरोध ने कॉन्ग्रेस को पुनर्जीवित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • कर्ज़न, जिन्होंने 1900 के दशक में कॉन्ग्रेस को 'इसके पतन के लिये  लड़खड़ाहट या डगमगानेवाले' के रूप में संबोधित किया, अंततः  भारत को कॉन्ग्रेस के साथ अपने इतिहास में उस समय की तुलना में अधिक सक्रिय और प्रभावी बना दिया।
  • कर्ज़न एक निरंकुश शासक था, उसके कार्यों के कारण भारतीयों में काफी नाराज़गी थी, फिर भी उसकी दक्षता, उद्यम और अभियान या पहल के दृष्टिकोण से उसे कुशल शासक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि वह ब्रिटिश भारत के सर्वश्रेष्ठ गवर्नर जनरलों में से एक थे।