असुरक्षित, हाशिये पर स्थित एवं उपेक्षित समूह / समुदाय | 01 Sep 2020

ऐसे समूह जो शारीरिक अथवा भावनात्मक क्षति की दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील होते हैं या समाज में अपेक्षाकृत कम लाभ की स्थिति में होते हैं, उन्हें असुरक्षित वर्ग के अंतर्गत शामिल किया जाता है। जैसे प्रवासी, नि:शक्त व्यक्ति आदि।

  • यूरोपीय संघ के अनुसार, वे समूह जो आम जनता की तुलना में अधिक गरीबी और सामाजिक बहिष्कार के शिकार होते हैं, असुरक्षित समूह कहलाते हैं।
  • हाशिये पर स्थित समूह से तात्पर्य एक ऐसे समूह से है जो सामाजिक रूप से बहिष्कृत है तथा जिसे समाज की मुख्यधारा से हाशिये पर धकेल दिया जाता है। सामान्यतः ऐसे समूहों के हितों की अनदेखी की जाती हैं। ऐसे समूह संसाधनों तक पहुंच सुनिश्चित करने तथा सामाजिक जीवन में सहभागिता हेतु संघर्षरत रहते हैं। ये प्राय: अल्पसंख्यक समूह के अंतर्गत आते हैं।
  • उपेक्षित समूह के अंतर्गत वे लोग आते हैं जिनकी प्रत्याभूत अधिकारों तक स्वतंत्रत पहुँच सुनिश्चित नहीं होती। सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक दशाओं के परिप्रेक्ष्य में इनकी परिभाषा बदलती रहती है। लिंग, प्रजाति, जन्म, समुदाय अथवा धर्म के आधार पर पक्षपात का सामना कर रहे लोगों को इसमें शामिल किया जाता है।
  • सामान्यतः असुरक्षित, उपेक्षित एवं हाशिये पर स्थित समूहों के साथ होने वाला भेदभावपूर्ण व्यवहार अक्सर उनके अपमान उत्पीड़न एवं उन्हें डराने धमकाने के रूप में देखने को मिलता है और ऐसे व्यवहार को सामाजिक एवं राजनीतिक आर्थिक परंपराओं तथा सांस्कृतिक कार्य से अनुचित समर्थन भी प्राप्त होता है।

कौन हैं असुरक्षित , हाशिये पर स्थित और अपेक्षित वर्ग/ समुदाय-

  • महिलाएँ और बालिका शिशु: महिलाएँ एवं बालिकाएँ संपूर्ण विश्व में  उपेक्षित समूह के अंतर्गत आती हैं। हालाँकि विकसित देशों की महिलाओं की तुलना में विकासशील देशों की महिलाएँ भेदभाव, यौन शोषण, हिंसा, बलात्कार, कम वेतन, निर्धनता जैसी सामाजिक एवं सांस्कृतिक कुप्रथाओं के कारण अधिक असुरक्षित हैं।
  • बच्चे: गरीबी, कुपोषण जैसी अनेक समस्याओं के कारण बच्चे असुरक्षित व उपेक्षित समूह में आते हैं। वर्तमान में बच्चे बाल-श्रम, यौन शोषण जैसी समस्याओं का भी सामना कर रहे हैं।
  • प्रवासी श्रमिक: संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, प्रवासी श्रमिक वह व्यक्ति है जो उस देश की वैतनिक गतिविधियों में संलग्न है अथवा संलग्न रहा है जहां का वह नागरिक नहीं होता। विश्व के अलग-अलग हिस्सों में प्रवासी श्रमिक शब्द के अलग-अलग अर्थ हैं । इनका संबंध अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय दोनों तरह के प्रवासियों से है।
  • शरणार्थी : जो अपने देश से किसी दूसरे देश में अस्थायी शरण हेतु पलायन कर जाते हैं, शरणार्थी कहलाते हैं। इस पलायन का कारण अकाल, गृह-युद्ध, धार्मिक भेदभाव, महामारी  आदि कुछ भी हो सकता है। ये मानवाधिकार से वंचित होते हैं।
  • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक: ऐसे लोग जो किसी देश की बहुसंख्यक जनता के समूह का हिस्सा नहीं हैं, उस देश के संदर्भ में अल्पसंख्यक कहलाएंगे। जातीय, सांस्कृतिक, धार्मिक, भाषायी, राजनीतिक, लैंगिक आदि के संदर्भ में इनका वर्गीकरण किया जाता है।
  • नि:शक्तजन : संयुक्त राष्ट्र की घोषणा के अनुसार ऐसा व्यक्ति जो जन्मजात रूप से शारीरिक अथवा मानसिक क्षमता के चलते पूर्ण या आंशिक तौर पर व्यक्तिगत या सामाजिक जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं, उसे नि:शक्त माना जा सकता है।
  • वृद्ध: 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्ति को सम्मानित वृद्ध माना जाता है। जैसे- जैसे व्यक्तियों की शारीरिक सक्रियता कम होती जाती है वैसे वैसे उनकी असुरक्षा भी बढ़ती जाती है। परिवारिक, सामाजिक तथा अन्य स्तरों पर उनके अधिकारों का हनन किया जाता है।
  • आदिवासी लोग : ये वो सामाजिक समुदाय राज्य के विकास के पूर्व अस्तित्व में थे। इनकी अलग और विशिष्ट संस्कृति होती है जिसका संरक्षण आवश्यक है किंतु पूंजीवादी वर्ग द्वारा शोषण व राज्य की उदासीनता के कारण ही ये वर्ग हाशिये पर स्थित व उपेक्षित वर्ग में शामिल होते हैं ।
  • आंतरिक रूप से विस्थापित लोग: ये वे लोग हैं जिन्हें देश के अंदर सशस्त्र संघर्ष, हिंसा की स्थिति, मानव अधिकारों के उल्लंघन और मानवीय अथवा प्राकृतिक आपदा के परिणामस्वरूप उत्पन्न परिस्थितियों के चलते देश के ही अंदर रहते हुए अपना आवास स्थल छोड़ना पड़ता है।
  • एलजीबीटी समुदाय: अपनी भिन्न लैंगिक उन्मुखता और विशिष्ट यौन प्राथमिकता के कारण ये समूह प्राय: समाज द्वारा अवमानना एवं उपेक्षा के शिकार होते हैं। परिणामस्वदर समाज में उनकी संरचनात्मक सहभागिता में कमी आती है।
  • अनुसूचित जाति और जनजाति: वेदों में अंतिम वर्ण के अंतर्गत अनुसूचित जाति के लोगों को रखा गया है। इन्हें पीढ़ियों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है, इसलिये ये असुरक्षित व उपेक्षित समूह में आते हैं। इसी प्रकार जनजाति समुदाय मानव विकास सूचकांक, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आय जैसे मापदंडों पर पिछड़े हुए होते हैं ।
  • वेश्यावृत्ति में सम्मिलित महिलाएँ: इस वर्ग में सम्मिलित महिलाएँ सामाजिक शोषण की शिकार होती हैं। कानून-नियमों के अभाव में यह वर्ग उपेक्षित, हाशिये पर स्थित एवं असुरक्षित समुदाय में सम्मिलित है।
  • एचआईवी पॉजिटिव/ एड्स संक्रमित: एचआईवी संक्रमित व्यक्ति पूरे विश्व में सामाजिक रुप से बहिष्कृत होते हैं। इस बीमारी से बच्चों पर सर्वाधिक बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि ऐसे बच्चों को समाज शिक्षा के मूल अधिकारों तक से वंचित कर देता है।
  • खानाबदोश या यायावर : इन लोगों के पास अपना कोई स्थायी पेशा या जीविका उपार्जन के उचित साधन नहीं होते हैं। वे जीवन जीने के लिये एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में घूमते रहते हैं। फलस्वरूप उनके लिए अपने अधिकार प्राप्त करना अत्यंत दुष्कर हो जाता है।

असुरक्षित, हाशिये पर स्थित तथा उपेक्षित समूह के साथ होने वाला संरचनात्मक भेदभाव-

  • रोजगार के अवसरों का अभाव
  • शिक्षा का अभाव
  • राष्ट्रीय संसाधनों तक पहुँच का अभाव
  • खाद्य-साधनों का अभाव
  • निर्धनता की स्थिति
  • मानवाधिकारों का उल्लंघन
  • सामाजिक सुरक्षा का अभाव
  • पौष्टिक भोजन और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव

ऊपर बताए गए वर्गों के अतिरिक्त भी समाज में कुछ ऐसे समूह हैं जिन्हें असुरक्षित, उपेक्षित व हाशिये पर स्थित समुदाय में शामिल किया जाता है। जैसे- मैला ढोने वाले, कूड़ा उठाने वाले, झुग्गी में रहने वाले, सफाई कर्मचारी, एकल अभिभावक, भारतीय जेलों में बंद श्रीलंकाई शरणार्थी, सजा काट चुके व्यक्ति आदि।