संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट 4 | 22 Jan 2019

प्रस्तावना

  • दुनिया में कहीं भी निर्बाध जल आपूर्ति की गारंटी जल के उपयोगकर्त्ताओं को नहीं दी जा सकती।
  • सामाजिक-आर्थिक-पर्यावरण तथा पानी जैसे कारक एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं।
  • विकास को बढ़ावा देने वाली सभी गतिविधियाँ महत्त्वपूर्ण राजनीतिक और आर्थिक निर्णयों को भी आकार देती हैं तथा उपलब्ध पानी की मात्रा एवं गुणवत्ता पर पर्याप्त प्रभाव डालती हैं। अतः ये सभी क्षेत्र पानी के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
  • जैसे-जैसे पानी की मांग और उपलब्धता की अनिश्चितता बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे समाज में भूख और प्यास, बीमारी और उच्च मृत्यु दर, उत्पादकता और आर्थिक संकट तथा विकृत पारिस्थितिक तंत्र आदि जोखिमों की संभावना बढ़ती जाती है। ये प्रभाव जल संकट को वैश्विक चिंता के रूप में स्थापित करते हैं।
  • विश्व जल विकास रिपोर्ट (World Water Development Report 4-WWDR4) के इस चौथे संस्करण में कहा गया है कि सभी जल उपयोगकर्त्ता एक कारक के रूप में कार्य करते हैं तथा ये जल चक्र से प्रभावित होते हैं और उसे प्रभावित भी करते हैं।

जल की केंद्रीयता तथा इसके वैश्विक आयामों को पहचानना
एक क्षेत्र के रूप में जल की अवधारणा से परे:

  • पानी को एक 'सेक्टर' के रूप में समझा जाता है, लेकिन यह उससे परे है। जैसा कि जल सभी सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय गतिविधियों को तय करता है, इसके लिये जल प्रबंधन में सहयोग तथा समन्वय की आवश्यकता होती है।
  • इसके अलावा, हाइड्रोलॉजिकल चक्र कई कारकों, प्रवृत्तियों तथा अनिश्चितताओं से प्रभावित होता है जो एक संकीर्ण सेक्टोरल (क्षेत्रीय) फोकस से परे होता है।
  • जल से जुड़ी समस्याओं से निपटने के लिये जल प्रबंधन में प्रतिक्रियात्मक भूमिका की बजाय मजबूत संस्थानों द्वारा संपूर्ण अर्थव्यवस्था में हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
  • एक रूपरेखा की स्थापना, समीक्षा तथा रखरखाव में राजनीतिक नेतृत्व के महत्त्व को कम करके नहीं देखा जा सकता है।
  • सिंचाई और खाद्य उत्पादन:

♦ डाइट पैटर्न, तकनीकी परिवर्तन तथा जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य की जल उपलब्धता की भविष्यवाणी करना मुश्किल है।

  • पारिस्थितिकी तंत्र:

♦ पारिस्थितिकी तंत्र जल का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है तथा जल पारिस्थितिकी तंत्र का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। उदाहरण के लिये, भोजन, लकड़ी, दवाइयाँ और फाइबर जैसे उत्पाद जलवायु को विनियमित करते हैं तथा पौष्टिक खाद्य चक्रण, मिट्टी के निर्माण और निक्षेपण में मदद करते हैं।
♦ दुनिया भर में मानव उपभोग, विकास तथा जलवायु परिवर्तन के असतत् (unsustainable) पैटर्न से पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता खतरे में है।

  • जोखिम:

♦ जल प्रबंधन प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को कम करने में एक केंद्रीय भूमिका निभाता है। जल संग्रहण (जलाशयों, एक्वीफर रिचार्ज या अन्य साधनों के माध्यम से) सूखे के प्रभाव को कम करने और बाढ़ प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण है।

  • हरित अर्थव्यवस्था:

♦ एक संपूर्ण समाज के रूप में जल संसाधनों के संरक्षण तथा सतत् प्रबंधन में निवेश पूरी तरह से एक हरित अर्थव्यवस्था प्राप्त करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाने की अनुमति देता है जो पारिस्थितिक सीमाओं के भीतर दीर्घकालिक मानव कल्याण को आगे बढ़ाता है।

  • न्यायसम्य (इक्विटी): वैश्विक मांग और खपत में असमानताओं से निपटने के अलावा स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर असमानताओं को संबोधित करना भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि कई क्षेत्रीय जल स्रोत अपने निवासियों को समान रूप से जल वितरित करने के लिये अपर्याप्त हो सकते हैं।

नदी घाटी (बेसिन) से परे: जल प्रशासन के अंतर्राष्ट्रीय तथा वैश्विक आयाम:

  • यद्यपि जल को पूरे ग्रह में असमान रूप से वितरित किया गया है, परंतु यह वैश्विक जल चक्र का हिस्सा बनता है जो विभिन्न राज्यों से परे होने वाले कार्यों तथा घटनाओं से प्रभावित होता है।
  • अतः जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है तथा विकसित देशों के लिये यह बाध्यकारी है कि वे जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिये जल प्रशासन में सुधार तथा इन प्रभावों और प्रयासों के प्रबंधन में विकासशील देशों की सहायता करें।
  • जलवायु परिवर्तन शमन तथा अनुकूलन प्रतिक्रियाएँ एक-दूसरे से संबंधित हैं, क्योंकि कार्बन चक्र और जल चक्र अन्योन्याश्रित (interdependent) हैं।

वैश्विक नीति में जल को मान्यता देना:

  • वैश्विक नीतियाँ:

♦ एमडीजी (MDGs) जल तक एक सुव्यवस्थित पहुँच प्रदान करता है, जो शिक्षा के परिणामों में सुधार करता है (लक्ष्य 2)।
♦ UNFCCC अपने कानकुन अनुकूलन ढाँचे के माध्यम से जल तथा संबंधित घटनाओं पर बल देता है।
♦ UNCSD (Rio + 20) हरित अर्थव्यवस्था की सफलता पर बल देता है जो जल संसाधनों के सतत् प्रबंधन, जल आपूर्ति के सुरक्षित और स्थायी प्रावधान तथा पर्याप्त स्वच्छता सेवाओं पर निर्भर करता है।

जल की मांग: जल के खपत को बढ़ावा देने वाले कारक कौन से हैं?

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खाद्य और कृषि:

  • जल तथा भोजन के बीच एक सरल संबंध है। फसल और पशुधन को विकसित होने के लिये जल की आवश्यकता होती है तथा अन्य कृषि गतिविधियों में भी जल की आवश्यकता होती है।
  • कृषि, नगरपालिका तथा औद्योगिक (ऊर्जा सहित) क्षेत्रों को आवंटित कुल जल में से 70% भाग कृषि के खाते में जाता है। जल खाद्य सुरक्षा की कुंजी है।
  • कई बड़े क्षेत्रों को जल की कमी से जूझना पड़ता है, जो अरबों की संख्या में गरीबों तथा वंचितों को प्रभावित करते हैं।
  • भोजन तथा अन्य कृषि उत्पादों की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिये उपलब्ध जल संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग सुनिश्चित करने हेतु संपूर्ण कृषि उत्पादन श्रृंखला की नीति और प्रबंधन में बड़े बदलावों की आवश्यकता है।

1. कृषि में जल का उपयोग

  • विशेष रूप से पशुधन उत्पादों की बढ़ती मांग जल की मांग को बढ़ा रही है, साथ ही यह जल की गुणवत्ता को भी प्रभावित कर रहा है, जिससे जल की उपलब्धता में कमी हो रही है।
  • विश्व स्तर पर सिंचित फसल की पैदावार वर्षा आधारित कृषि में लगभग 2.7 गुना है, इसलिये सिंचाई खाद्य उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेगी।

2. मांग में वृद्धि की उम्मीद

  • विश्व की जनसंख्या 2010 में 6.9 बिलियन से 2030 में 8.3 बिलियन तथा 2050 में 9.1 बिलियन तक बढ़ने का अनुमान है (UNDESA, 2009)।
  • 2030 तक, खाद्य आपूर्ति की मांग में 50% तक की वृद्धि का अनुमान है, जबकि जलविद्युत और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों से ऊर्जा की मांग में 60% तक की वृद्धि होगी।

3. जल तथा पारिस्थितिकी तंत्र पर कृषि का प्रभाव

  • कृषि के लिये किये जा रहे जल प्रबंधन ने मीठे पानी और तटीय आर्द्रभूमि की भौतिक और रासायनिक विशेषताओं तथा पानी की गुणवत्ता और मात्रा में परिवर्तन किया है, साथ ही स्थलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष जैविक परिवर्तन भी किये हैं।

4. जनसंख्या वृद्धि तथा बदलते आहार (Diet) पैटर्न पर दबाव

  • बढ़ती जनसंख्या (एक अध्ययन के अनुसार 2050 तक 9.1 बिलियन) भूमि तथा जल पर दबाव बढ़ा रही है। साथ ही साथ, आर्थिक विकास तथा व्यक्तिगत संपत्ति, आहार स्वरुप को मुख्य रूप से स्टार्च से माँस और डेयरी की ओर स्थानांतरित कर रहे हैं, जिसमें अधिक जल की आवश्यकता होती है।
  • पशुधन उत्पादों की मांग आर्थिक विकास के साथ जुड़ी हुई है - पशुधन वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 2% से कम का योगदान देता है, परंतु यह 18% ग्रीनहाउस गैसों (GHGs) का उत्पादन करता है।
  • पशुधन उत्पादन तथा प्रसंस्करण भी जल प्रदूषण का कारण बनता है।

5. कृषि क्षेत्र में जल संसाधनों पर अन्य दबाव

  • जलवायु परिवर्तन से प्रेरित जल विज्ञान संबंधी परिवर्तन, जैसे कि गंभीर और लगातार आने वाले सूखा तथा बाढ़, दुनिया भर में सिंचाई और वर्षा आधारित कृषि को प्रभावित करते हैं।
  • कृषि GHG उत्सर्जन के माध्यम से जलवायु परिवर्तन में योगदान करती है, जो बदले में पृथ्वी के जल चक्र को प्रभावित करती है।
  • खाद्य मूल्य संकट, भूमि-उपयोग एवं भूमि अधिग्रहण तथा जैव ईंधन की मांग भी स्थानीय हाइड्रोलॉजिकल सिस्टम और GHG उत्सर्जन पर दबाव डालती है।

6. खाद्य श्रृंखला में अपशिष्ट

  • खाद्य मूल्य-श्रृंखला के हर कदम पर बर्बाद किया जा सकता है, जिसका अर्थ है कि इसका उत्पादन करने के लिये इस्तेमाल किया गया पानी भी बर्बाद हो जाता है।

7. 'वाटर-स्मार्ट' खाद्य उत्पादन

  • ऐसे नवीन प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता होगी जो फसल की पैदावार में सुधार कर सकें तथा अधिक सतत पशुधन एवं समुद्री उत्पादों का उत्पादन कर सकें।
  • कम विकसित देशों (LDCs) में कृषि विकास मुख्य रूप से छोटे शेयरधारकों के हाथों में होते है, जिनमें से अधिकांश महिलाएँ हैं। महिलाओं की भौतिक संपत्तियों की एक विस्तृत श्रृंखला तक सीमित पहुंच होती है तथा महिलाओं में उन्हें उपयोग करने हेतु कौशल की कमी होती है। मानव क्षमता एवं संस्थान एक बहुमूल्य संपत्ति हैं जिसकी आवश्यकता नीति और प्रबंधन में बड़े बदलाव के लिये होगी।
  • मूल्य श्रृंखला के सभी चरणों में जल पुनर्चक्रण पर्यावरणीय जल आवश्यकताओं को सुरक्षित रखने में मदद कर सकता है।
  • वर्चुअल वॉटर एक बड़ी भूमिका निभा सकता है क्योंकि जल से समृद्ध देश जल की कमी वाले देशों को जल एंबेडेड भोजन निर्यात करते हैं।

8. ऊर्जा के लिये पानी

  • EIA (2010) का अनुमान है कि वैश्विक ऊर्जा की खपत 2007 से 2035 तक लगभग 49% बढ़ जाएगी। ऊर्जा की खपत OECD देशों की तुलना में गैर-OECD देशों में अधिक होगी।
  • ऊर्जा के सभी रूपों को उनके जीवन चक्र के किसी-ना-किसी चरण में जल की आवश्यकता होती है, जिसमें उत्पादन, रूपांतरण, वितरण और उपयोग शामिल हैं।
  • जल के लिये ऊर्जा: जल के निष्कर्षण (सतह जल, भूजल), परिवर्तन (पीने के जल के मानकों के लिये उपचार, विलवणीकरण), जल संसाधन वितरण (नगरपालिका, औद्योगिक और कृषि आपूर्ति), रिकंडिशनिंग (अपशिष्ट जल उपचार) तथा निकासी के लिये ऊर्जा की आवश्यकता होती है। हालँकि, कुछ देश वर्तमान में जल के लिये ऊर्जा आवश्यकताओं पर शोध एवं रिपोर्ट तैयार करते हैं।

9. वाहक, जल-ऊर्जा संबंध के लिये चुनौतियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ:

  • जल एवं ऊर्जा के संबंध में जल संसाधनों का प्रावधान सुनिश्चित करना मुख्य चुनौती होगी ताकि बढ़ी हुई ऊर्जा की आपूर्ति की जा सके।
  • ऊर्जा तथा इसके प्रतिकूल अधिक कुशल एवं एकीकृत जल उपयोग को बढ़ावा देने के लिये नीति निर्माताओं की आवश्यकता है।
  • थर्मल, रासायनिक, रेडियोधर्मी या जैविक प्रदूषण का अनुप्रवाह पारिस्थितिकी प्रणालियों पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है।
  • इसी प्रकार, जहाँ जल की कमी, देशों को जल के गैर-पारंपरिक स्रोतों (उदाहरण- विलवणीकरण, खारे पानी) का उपयोग करने के लिये बाध्य करती है, वहाँ विकल्पों को आवश्यक बिजली द्वारा होने वाले जल एवं पर्यावरणीय प्रभावों के प्रति संवेदनशील होना होगा।

10. उद्योग

  • उद्योगों द्वारा सतह-जल एवं भूजल की कुल निकासी आमतौर पर उस जल की मात्रा से बहुत अधिक होती है जो वह वास्तव में खपत करते हैं।
  • बेहतर जल प्रबंधन आम तौर पर समग्र रूप से औद्योगिक जल निकासी में कमी या अपशिष्ट जल उपचार में वृद्धि परिलक्षित करता है तथा उच्च उत्पादकता एवं कम खपत और प्रवाह के निर्वहन तथा कम प्रदूषण के बीच संबंध को उजागर करता है।
  • उद्योग बाहरी कारकों- जैसे कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, पर्यावरण प्रबंधन प्रणाली (EMS), कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (CSR), बेसल कन्वेंशन आदि से दृढ़ता से प्रभावित होते हैं, जो अप्रत्यक्ष रूप से उद्योग की जल की ज़रूरतों में जटिलता एवं अनिश्चितता बढ़ा सकते हैं।
  • निस्संदेह, व्यापार एवं उद्योग स्थायी जल प्रथा अनुकूलन एवं शमन प्रौद्योगिकी में अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं।
  • उदाहरण के लिये, जल लेखांकन तकनीकों की स्थापना तथा पानी के प्रभावों को मापना किसी उद्योग को जल के उपयोग की क्षमता में वृद्धि के संभावित क्षेत्रों की अधिक आसानी से पहचान करने की अनुमति दे सकता है।

व्यापार, सरकार एवं समाज के बीच जल के जोखिम का अंतर-संबंध

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11. मानव बस्तियाँ

  • शहरीकरण एवं जनसंख्या का रुझान:- जनसंख्या में 2.9 बिलियन तक वृद्धि का अनुमान है, 2009 में 3.4 बिलियन से 2050 में 6.3 बिलियन (UN-Habitat, 2006)।
  • जनसंख्या वृद्धि और तेजी से शहरीकरण, अधिक नियमित और स्वच्छ जल आपूर्ति के लिये पारिस्थितिक तंत्र की क्षमता को कम करते हुए जल की मांग में और अधिक वृद्धि करेगा।
  • जल की आपूर्ति एवं स्वच्छता कवरेज:- पानी की निकासी, प्रदूषण तथा अपशिष्ट जल प्रबंधन जैसे शहरी क्षेत्रों के कारक वर्तमान जल संसाधनों को चुनौती देना जारी रखेंगे।
  • शहरी क्षेत्रों में जल प्रबंधन:

♦ एकीकृत शहरी जल प्रबंधन (IUWM) के माध्यम से व्यापक शहरी नियोजन में अधिक लाभ हासिल किया जा सकता है।
♦ IUWM में ताजे पानी, अपशिष्ट जल तथा झंझा-नीर का प्रबंधन शामिल है।
♦ शहरी और पेरी-अर्बन कृषि (UPA) द्वारा शहरों तथा उसके आसपास कृषि एवं पशु उत्पादों का सुरक्षित उत्पादन किया जाता है। यह भोजन की उपलब्धता को बढ़ाकर, शहरों को हरा-भरा कर एवं कचरे को रिसाइकिल करके शहरीकरण की कई समस्याओं को भी हल कर सकता है।

12. पारिस्थितिक तंत्र

  • पारिस्थितिक तंत्र पानी की उपलब्धता को कम करते हैं, जिसमें गंभीर सूखा एवं बाढ़ तथा इसकी गुणवत्ता भी शामिल है। जल प्रबंधन में अक्सर ट्रेड-ऑफ शामिल होता है तथा अक्सर पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के बीच जोखिमों का प्रायः हस्तांतरण होता है।

जल और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ:- पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं (लोगों के लिये लाभ) को विभिन्न तरीकों से वर्गीकृत किया जा सकता है। मिलेनियम इकोसिस्टम आकलन ने आज तक वैश्विक पर्यावरण की स्थिति का सबसे व्यापक मूल्यांकन किया है, तथा निम्नलिखित रूप से इकोसिस्टम सेवाओं को वर्गीकृत किया है:

सहायक सेवाएँ: अन्य सभी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के उत्पादन के लिये आवश्यक सेवाएँ। सहायक सेवाओं में मिट्टी का निर्माण, प्रकाश संश्लेषण, प्राथमिक उत्पादन, पौष्टिक खाद्य चक्रण तथा जल चक्रण शामिल हैं।

प्रोविजनिंग सेवाएँ: पारिस्थितिक तंत्र से प्राप्त होने वाले उत्पादों में खाद्य, फाइबर, ईंधन, आनुवंशिक संसाधन, जैव रासायनिक, प्राकृतिक दवाएँ, फार्मास्यूटिकल्स, सजावटी संसाधन तथा ताज़ा पानी आदि उत्पाद शामिल हैं।

विनियमन सेवाएँ: पारिस्थितिकी तंत्र प्रक्रियाओं के विनियमन से प्राप्त लाभ में वायु गुणवत्ता विनियमन, जलवायु विनियमन, जल विनियमन, कटाव विनियमन, जल शोधन, रोग विनियमन, कीट विनियमन, परागण और प्राकृतिक जोखिम विनियमन (जल उपलब्धता में चरम सीमा सहित) शामिल हैं।

सांस्कृतिक सेवाएँ: गैर-भौतिक लाभ लोगों को आध्यात्मिक संवर्द्धन, संज्ञानात्मक विकास, प्रतिबिंब, मनोरंजन और सौंदर्य अनुभवों के माध्यम से पारिस्थितिक तंत्र से प्राप्त होते हैं, जिससे परिदृश्य (वॉटरस्केप सहित) मूल्यों का ध्यान रखा जाता है।

पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के संदर्भ में जल बहुआयामी है। इसकी उपलब्धता और गुणवत्ता पारिस्थितिक तंत्र द्वारा प्रदत्त उत्पाद (सेवाएँ) हैं। लेकिन जल यह भी प्रभावित करता है कि पारिस्थितिकी तंत्र कैसे कार्य कर सकते हैं, इसलिये यह अन्य सभी पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं को कम कर देते हैं। यह लोगों को लाभ पहुँचाने के लिये पारिस्थितिक तंत्र के प्रबंधन में जल को सर्वोपरि महत्त्व देता है।

मिलेनियम इकोसिस्टम असेसमेंट (अमेरिका द्वारा अध्ययन) द्वारा यह निष्कर्ष निकाला गया कि मानव विकास दूसरों की कीमत पर कुछ सेवाओं (विशेषकर प्रोविजनिंग सेवाएँ) को बढ़ावा देने के लिये गया था। इससे सेवाओं में असंतुलन पैदा हो गया है तथा स्थिरता में कमी की दिशा में मार्ग प्रशस्त होने के संकेत मिलते है।

प्रमुख वाहकों के साथ जुड़ी अनिश्चितता एवं जोखिमों को समझना: वाहक जो सीधे पानी के तनाव एवं स्थिरता पर प्रभाव डालते हैं, वे हैं पारिस्थितिकी तंत्र, कृषि, बुनियादी ढाँचा, प्रौद्योगिकी, जनसांख्यिकी और अर्थव्यवस्था।

♦ मौलिक वाहक, प्रशासन, राजनीति, नैतिकता एवं समाज (मूल्य और न्याय संगतता), जलवायु परिवर्तन तथा सुरक्षा उनके प्रभाव को ज्यादातर निकटवर्ती वाहकों पर उनके प्रभाव के माध्यम से प्रकट करते हैं।

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जल संसाधन: परिवर्तनशीलता, भेद्यता और अनिश्चितता

हाइड्रोलॉजिकल चक्र, जल संसाधनों पर बाहरी दबाव और अनिश्चितता के स्रोत:

  • वर्षा पूरे साल तक पृथ्वी पर असमान रूप से जल पहुँचाती है। शुष्क और आर्द्र जलवायु तथा आद्र एवं सूखे मौसम के बीच काफी परिवर्तनशीलता हो सकती है। नतीजतन, मीठे जल की आपूर्ति का वितरण विभिन्न देशों तथा क्षेत्रों के बीच अनियमित हो सकता है जो वर्षभर में विभिन्न मात्रा में जल ग्रहण करते हैं।
  • जल संसाधनों की स्थिति निरंतर परिवर्तन में से एक है, जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी की जलवायु प्रणाली की प्राकृतिक परिवर्तनशीलता और उस प्रणाली के मानवजनित परिवर्तन और भूमि की सतह जिसके माध्यम से हाइड्रोलॉजिकल चक्र संशोधित होता है।
  • जल संसाधनों में विशिष्ट परिवर्तन तथा हाइड्रोलॉजिकल चक्र में माध्य सतह के प्रवाह में परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ की क्षमता में वृद्धि, बर्फ में कमी एवं पर्माफ्रॉस्ट, मिट्टी की नमी आदि शामिल हैं।

वैश्विक जलवायु तथा हाइड्रोलॉजिकल परिवर्तनशीलता के वाहक

  • वाहक जैसे कि एल नीनो-सदर्न ऑसिलेशन (ENSO), पैसिफिक डेकाडल ऑसिलेशन (PDO), नॉर्थ अटलांटिक ऑसिलेशन (NAO) तथा अटलांटिक मल्टिडेकाडल ऑसिलेशन (AMO) वैश्विक जलवायु एवं हाइड्रोलॉजिकल परिवर्तनशीलता को प्रभावित करते हैं।
  • अल नीनो-दक्षिणी दोलन उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में होने वाली एक युग्मित महासागरीय वायुमंडलीय घटना है तथा ऋतु-संबंधी से लेकर अंतराष्ट्रीय समय के पैमाने पर वैश्विक जलवायु के प्रमुख चालक हैं।
  • दुनिया भर में, विशेषकर उष्णकटिबंधीय देशों में जहाँ विश्व की ज़्यादातर जनसंख्या निवास करती है, वर्षा, तापमान, तूफान एवं उष्णकटिबंधीय चक्रवात, पारिस्थितिक तंत्र, कृषि, जल संसाधन और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर ENSO प्रभावों का व्यापक प्रलेखन मिलता है।
  • पैसिफिक डेकाडल ऑसिलेशन (पीडीओ) उत्तरी प्रशांत क्षेत्र में बड़े पैमाने पर समुद्री सतह के तापमान पैटर्न में प्रकट होता है, लेकिन इसमें उष्णकटिबंधीय पैसिफिक से भागीदारी भी शामिल है।
  • नॉर्थ अटलांटिक ऑसिलेशन (NAO) उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र में एक जलवायु वाहक है और मुख्य रूप से सर्दियों के मौसम में वायुमंडलीय विशेषता के रूप में कार्य करता है।
  • NAO को उत्तरी अटलांटिक में उपोष्णकटिबंधीय उच्च दबाव एवं उप-ध्रुवीय कम दबाव केंद्रों के स्थान तथा प्रचंडता के आधार पर परिभाषित किया जाता है। इन दबाव केंद्रों का स्थान तथा प्रचंडता जेट स्ट्रीम एवं स्टॉर्म ट्रैक्स (तूफान पटरियों) के मार्ग को प्रशस्थ करती हैं एवं परिणामस्वरूप क्षेत्रीय जलवायु तथा जल विज्ञान को आगे बढ़ाती है।

प्राकृतिक दीर्घकालिक भंडारण की भेद्यता: भूजल एवं हिमनद

  • सतह जल के विपरीत दुनिया में भूजल की भूमिका बदल रही हैं, जिसे दुनिया के कई हिस्सों में गहन रूप से विकसित किया गया है। बीसवीं शताब्दी में दुनिया भर में भूजल अमूर्तता में अभूतपूर्व 'मूक क्रांति ’देखी गई है।
  • भूजल के उपयोग ने स्थानीय एवं वैश्विक जल चक्रों, पर्यावरणीय परिस्थितियों तथा पारिस्थितिकी प्रणालियों में भी काफी बदलाव किया है।

1. भूजल: संक्रमणकाल में एक लचीला संसाधन

  • भूजल अब मानव उपभोग के लिये जल का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है तथा कूल जल का लगभग 43% भाग का प्रयोग सिंचाई में प्रभावी रूप से किया जाता है।
  • भूमिगत रूप से संग्रहीत जल अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होने के कारण, अधिकांश एक्वीफर्स में काफी बफर क्षमता होती है, जो वर्षा के बिना बहुत लंबे समय तक जल के उपलब्धता को बनाए रखती है।
  • यह लोगों को उन क्षेत्रों में जल के विश्वसनीय उपयोग में सक्षम बनाता है जो अन्यथा बहुत शुष्क होंगे यदि उनके जल की आपूर्ति केवल वर्षा या सतह जल पर निर्भर हो।
  • इसलिये, भूजल प्रणालियों की स्थिति में कोई महत्त्वपूर्ण बदलाव जैसे कि अंतर्वाह एवं बहिर्वाह, संग्रहीत जल की मात्रा, जल की गुणवत्ता आदि किसी भी भूजल प्रणाली की स्थिति की प्रमुख विशेषताएँ हैं।
  • भूजल सारग्रहण तथा भूजल के साथ अन्य मानवीय अंतःक्रियाओं की स्थिर रूप से बढ़ती हुई दर, जैसे कि भू उपयोग बदलने और प्रदूषित पदार्थों के उत्सर्जन से उत्पन्न चीजें, भूजल प्रणालियों की स्थिति को प्रभावित करते हैं।

2. भूजल: चिंता या अवसर के कारण?

  • वैश्विक भूजल निकासी दर पिछले 50 वर्षों में कम से कम तीन गुना हो गई है।
  • दुनिया भर में भूजल प्रणाली विभिन्न मानवजनित एवं प्राकृतिक कारकों से बढ़ते दबाव के अंतर्गत आ रही है।

3. ग्लेशियर:- पर्वत जल विज्ञान के अंतर्गत ग्लेशियरों की भूमिका

  • ग्लेशियर दुनिया के 'जल मीनार' हैं, जो आसपास के तराई क्षेत्रों की तुलना में बहुत अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं।
  • जल आपूर्ति में उनका योगदान विशेष महत्त्व रखता है, जहाँ तराई क्षेत्र शुष्क हैं।
  • पर्वतीय धारा प्रवाह तीन प्रमुख तत्त्वों से बना है: वर्षा, हिम के पिघलने तथा ग्लेशियर के पिघले जल से।
  • इन तत्त्वों के सापेक्ष महत्त्व, समय एवं ऊँचाई के साथ बदलते हुए, बड़े पैमाने पर तापमान तथा मौसमी वर्षा द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
  • हिमालय क्षेत्र से हिमनद पिघलने के उदाहरण हैं:-

♦ ब्रह्मपुत्र, गंगा और सिंधु के घाटी जो हिमालय तथा काराकोरम के अंतर्गत आते हैं।
♦ इन जलधाराओं पर कई लोग जल आपूर्ति के लिये निर्भर होते हैं तथा ग्लेशियर से संबंधित बाढ़ से उन्हें खतरा होता है।

  • प्रवाह में पिघले हुए ग्लेशियर के योगदान के महत्त्व को दो घटकों में विभाजित किया जा सकता है:

♦ पूर्वी हिमालय के ग्लेशियर में, पिघले हुए बर्फ की मात्रा को मानसूनी वर्षा अपने में पूरी तरह से समाहित कर लेती है, जो वार्षिक प्रवाह के 3% से कम का योगदान देती है।
♦ काराकोरम में, पिघले हुए ग्लेशियर का योगदान बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है, गर्मियों के दौरान कुछ वर्षों में वार्षिक योगदान प्रवाह का 20% से अधिक तक पहुँच जाता है।
♦ इसका योगदान ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर द्रव्यमान के संकोचन से भी प्राप्त होता है।

  • ग्लेशियर से आने वाली बाढ़:

♦ इस तरह की बाढ़ से जोखिम बढ़ रहे हैं, ऐसा अचानक ग्लेशियर द्वारा बहाकर लाए हुए मलबे से या जल के अचानक विस्थापन के साथ झील में भूस्खलन के परिणामस्वरूप हो सकता है।
♦ हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों से संबंधित अनिश्चितता तथा जोखिम से निपटने के लिये नीतिगत विकल्प जैसे कि झील के स्तर को कम करने के लिये पंप स्थापित करना अथवा अनुप्रवाह (डाउनस्ट्रीम) आबादी को सचेत करने के लिये प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली शुरू करना आदि आवश्यक है।

4. जल की गुणवत्ता

  • जल की 'गुणवत्ता' एक सापेक्ष शब्द है। ‘शुद्ध’ जल प्रकृति में नहीं बल्कि केवल प्रयोगशाला में ही पाया जाता है, तथा सभी मौजूद पदार्थ जल में उनकी सांद्रता के आधार पर प्रदूषक हो सकते हैं।
  • यहीं कारण है कि स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े पेशेवर अक्सर 'स्वच्छ' जल की अपेक्षा 'सुरक्षित' जल का प्रयोग करना पसंद करते हैं।
  • जल की उचित गुणवत्ता मानव स्वास्थ्य, पारिस्थितिक तंत्र तथा सामाजिक-आर्थिक विकास में एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
  • जल की गुणवत्ता एक वैश्विक चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि जल की गुणवत्ता में गिरावट सीधा सामाजिक, आर्थिक प्रभावों में बदल जाता है।
  • जल की गुणवत्ता स्वाभाविक रूप से पाए जाने वाले यौगिकों जैसे कि फ्लोराइड्स एवं लवणता के स्तर में वृद्धि के माध्यम से प्रभावित हो सकती है, जो कि तटीय जलक्षेत्रों में खारे पानी की घुसपैठ से हो सकता है।
  • नीति-निर्माता अनुसंधान से जुड़े हुए लोगों के समर्थन से इन समस्याओं को बेहतर रूप से पता लगाने में मदद कर सकते हैं, साथ ही उपचारात्मक समाधान भी विकसित कर सकते हैं।
  • स्वच्छ प्रौद्योगिकी, लागत-कुशल उपचार विकल्प तथा वैश्विक जल गुणवत्ता मूल्यांकन ढाँचे का विकास करना आवश्यक है।

मांग से परे:- जल के सामाजिक एवं पर्यावरणीय लाभ

जल और मानव स्वास्थ्य

  • जल संसाधन प्रबंधन में सुधार, सुरक्षित पेयजल और बुनियादी स्वच्छता तक पहुँच बढ़ाना तथा स्वच्छता को बढ़ावा देने (WaSH) से अरबों व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है। स्वास्थ्य में सुधार के लिये पानी, सफ़ाई एवं स्वच्छता का वैश्विक महत्त्व संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों (MDGs) में परिलक्षित होता है, स्पष्ट रूप से लक्ष्य 7में।

1. वाहक


वैश्विक वाहकों ने जल पर्यावरण के माध्यम से मानव स्वास्थ्य पर सबसे अधिक प्रभाव डालने की भविष्यवाणी की हैं, ये वाहक हैं:

  • जनसंख्या - बढ़ती जल मांगों तथा बढ़ते जल प्रदूषण के माध्यम से।
  • कृषि - सिंचाई के लिये जल की निकासी बढ़ाने, कृषि-पारिस्थितिक तंत्र में जल की व्यवस्था को बदलने तथा जल प्रदूषण में वृद्धि से।
  • आधारिक संरचना (इंफ्रास्ट्रक्चर) - बांधों तथा सिंचाई परियोजनाएँ अगर उचित रूप से डिज़ाइन और प्रबंधित नहीं किये जाते हैं, तो यह काली मक्खियों के लिये प्रजनन केंद्र बन सकता है जो ऑन्कोसेरिएसिस (onchocerciasis) तथा इसे फ़ैलाने वाले मच्छरों को बढ़ाते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन - जनसंख्या वृद्धि तथा भूमि उपयोग से जल संसाधनों पर वर्तमान दबावों को बढ़ाने, और चरम मौसम तथा जल-संबंधी घटना की आवृत्ति और गंभीरता को बढ़ाने के लिये भी अपेक्षित है।

2. विकल्प एवं परिणाम

  • वैश्विक वाहकों द्वारा जल-पर्यावरण गठजोड़ के माध्यम से रोग दर पर सबसे अधिक प्रभाव डालने की भविष्यवाणी की जाती है।
  • मानव स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिये कई क्षेत्रों के बीच सहयोग की आवश्यकता है, जिसमें गैर-जल एवं गैर-स्वास्थ्य क्षेत्रों से जुड़े लोग तथा हितधारक भी शामिल हैं।

पाँच प्रमुख निष्कर्ष हैं:-

  • जलवायु परिवर्तन को व्यापक रूप से एक अवसर के बजाय एक खतरे के रूप में देखा जाता है। जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने से समग्र रूप से स्वास्थ्य एवं विकास के लिये महत्त्वपूर्ण लाभ हो सकते हैं।
  • अगर वर्तमान एवं भविष्य के निवेशों को बर्बाद नहीं करना है तो नीतियों तथा नियोजनों में बड़े बदलाव की आवश्यकता है।
  • संभावित अनुकूली क्षमता उच्च है, लेकिन शायद ही कभी हासिल की जा सकती है। वर्तमान जलवायु परिवर्तनशीलता से निपटने के लिये प्रतिऱोध क्षमता को पेयजल एवं स्वच्छता प्रबंधन में एकीकृत करने की आवश्यकता है। यह भविष्य की परिवर्तनशीलता के प्रतिकूल प्रभावों को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण होगा।
  • हालाँकि क्षेत्रीय स्तरों पर जलवायु के कुछ रुझान अनिश्चित हैं, लेकिन अधिकांश क्षेत्रों में नीति एवं नियोजन में तत्काल और विवेकपूर्ण परिवर्तनों को सूचित करने के लिये पर्याप्त साधन उपलब्ध हैं।
  • हमारे ज्ञान में महत्त्वपूर्ण कमी हैं जो पहले से ही या जल्द ही प्रभावी कार्रवाई को बाधित करेंगे। प्रौद्योगिकी और बुनियादी जानकारी को पूरा करने, सरल उपकरण विकसित करने और जलवायु परिवर्तन पर क्षेत्रीय जानकारी प्रदान करने के लिये लक्षित अनुसंधान की तत्काल आवश्यकता है।

पानी और लिंग (जेंडर)

  • ग्रामीण महिलाएँ अक्सर अपनी जल की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये सामान्य जल संसाधनों जैसे छोटे जल निकायों, तालाबों एवं नदियों पर भरोसा करती हैं, लेकिन कई क्षेत्रों में ये स्रोत समाप्त हो गए हैं या भूमि उपयोग में परिवर्तन के कारण गायब हो गए हैं, अथवा राज्य या उद्योग द्वारा विकास की जरूरतों को पूरा करने या शहरी क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति के लिये विनियोजित कर लिए गए हैं ।
  • इन क्षेत्रों के साथ साझेदारी करके सरकारी निकायों में निर्णय लेने वाले, निजी क्षेत्र तथा नागरिक समाज (civil society) संभावित तालमेल और दुविधा को समझ तथा संबोधित कर सकते हैं जो स्थानीय समुदायों में पुरुषों और महिलाओं के विभिन्न समूहों तक पहुँचने से उत्पन्न होता है।
  • जल के व्यवधान का प्रबंधन करने के लिये महिलाओं की क्षमता विकसित करके, उन्हें नेतृत्व की भूमिका निभाने तथा उनकी आर्थिक स्थितियों में सुधार करने के अवसर प्रदान करना। हालाँकि, ये सफलताएँ अक्सर स्थानीय संदर्भों तक ही सीमित होती हैं, जैसे कि बड़े मुद्दे, उदाहरण- महिलाओं को पानी का अधिकार प्रदान करना।

पारिस्थितिक तंत्र स्वास्थ्य

  • पारिस्थितिक तंत्र कई लाभ प्रदान करते हैं, इनमें से कई प्रमुख सेवाएँ सीधे पानी से प्राप्त होती हैं, और पारिस्थितिकी तंत्र स्वास्थ्य के अंतर्गत बने रहते हैं, इसलिये, ये समग्र लाभ के प्रतिपादन प्रवृत्ति का संकेत देते हैं।
  • जल के कारण होने वाले प्राकृतिक खतरे बाढ़, भू-स्खलन, तूफान, सूखा आदि हैं। ये खतरे आगे चलकर गंभीर संकट पैदा करते हैं जैसे कि तटबंध और बांधों का टूटना, साथ ही ग्लेशियर झील का प्रकोप, तटीय बाढ़ आदि जिससे जल जोखिम तथा अनिश्चितता और बढ़ जाती है।

मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण तथा सूखा (DLDD)

  • DLDD से प्रभावित लोगों में दुनिया के सबसे गरीब, सबसे अधिक शोषित तथा राजनीतिक रूप से कमजोर नागरिक शामिल हैं। सिर्फ भारत में इस जनसंख्या का 26% हिस्सा निवास करता है।
  • DLDD से निपटने के उपायों में जल के क्षरण को रोकना, जुताई न करना एवं कृषि में न्यूनतम जुताई आदि शामिल हैं।

जल पर दबाव तथा जल की कमी

  • जब वार्षिक जल की आपूर्ति प्रति व्यक्ति 1,700 m3 से कम हो जाती है तो उस क्षेत्र को जल पर दबाव वाले क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • जब वार्षिक जल की आपूर्ति प्रति व्यक्ति 1,000 m3 से कम हो जाती है, तो आबादी जल की कमी का सामना करती है तथा 500 m3 से नीचे "अत्यधिक कमी" वाले क्षेत्र कहलाते हैं।
  • कई शोधकर्त्ताओं तथा एजेंसियों ने वर्षा, नदियों एवं भूजल से जल की नवीकरणीय आपूर्ति के बजाय घरेलू, औद्योगिक तथा कृषि जल की खपत को शामिल करके वाटरशेड और ग्रिड स्केल के जल के दबाव की गणना की है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रशासन के विभिन्न दृष्टिकोण जल की केंद्रीय भूमिका को पहचानने में विफल रहे हैं। क्योंकि जल को एक समग्र नीति सुधार का हिस्सा ही माना जाता है तथा कोई अलग जल नीति नहीं बनाई जाती है।
  • इसलिये, एक 'जल-नीति मसौदा या जल-नीति सुधार’ वास्तव में काम करेगा।

जल प्रबंधन, संस्थान तथा क्षमता विकास

जल प्रबंधन क्या है?


यह जल संसाधन, जल सेवाओं के प्रबंधन तथा आपूर्ति एवं मांग को संतुलित करने के लिये आवश्यक व्यापार-बंदों (Trade offs) का प्रबंधन करता है।

  • जल संसाधन प्रबंधन नदियों, झीलों तथा भूजल में पाए जाने वाले जल के प्रबंधन के बारे में बताता है। इसमें जल आवंटन, मूल्यांकन तथा प्रदूषण नियंत्रण शामिल हैं।
  • जल सेवा प्रबंधन में उपयोगकर्त्ताओं तक जल की आपूर्ति से रेटिक्यूलेशन सिस्टम का प्रबंधन तथा पुनः सुरक्षित निर्वहन के लिये अपशिष्टों को अपशिष्ट जल शोधन संयंत्र तक पहुँचाना शामिल है।
  • व्यापार-गत (Trade off) का प्रबंधन सामाजिक-आर्थिक हितों के व्यापक क्षेत्र में आवंटन तथा अधिकार समझौतों को पूरा करने वाली कई प्रशासनिक गतिविधियों से संबंध रखता है।
  • जल प्रबंधन के अन्य तरीके:

♦ नवीन भंडारण संरचना, ’हरित’ बुनियादी ढाँचा (जैसे आर्द्रभूमि), कम घुसपैठ वाले बाँध, कृषि, शहरी या औद्योगिक अपशिष्ट के लिये अपशिष्ट जल प्रबंधन।
♦ महिलाओं की जरूरतों एवं योगदान में उनकी क्षमता को पहचानकर उचित शिक्षा और जागरूकता प्रदान करना।
एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में है जो महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों की स्थिरता से समझौता किये बिना परिणामी आर्थिक एवं सामाजिक कल्याण को अधिकतम रूप से व्यवस्थित करने के लिये जल, ज़मीन और संबंधित संसाधनों के समन्वित विकास और प्रबंधन को बढ़ावा देता है।
मांगों और परिवर्तनों के माध्यम से जल प्रबंधन, जैसे कि वर्षा और अपवाह आदि के बारे में हाइड्रो-जलवायु संबंधी जानकारी तथा जनसंख्या वृद्धि, प्रवास।
♦ अनुकूली प्रबंधन, सर्वोत्तम प्रथाओं के परिणामों से सीखकर प्रबंधन नीतियों और प्रथाओं में सुधार करने की एक प्रक्रिया है।

सतत् विकास के लिये जल संस्थानों का महत्त्व

  • संस्थान खेल के 'नियम' बनाते हैं, लोगों के लिये भूमिकाओं एवं प्रक्रियाओं को परिभाषित करते हैं तथा यह निर्धारित करते हैं कि क्या उपयुक्त, वैध और उचित है।
  • जल से संबंधित संस्थान इसलिये मायने रखते हैं क्योंकि वे स्थानीय समुदाय से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक विभिन्न पैमानों पर काम करते हैं तथा जल संसाधनों एवं सेवाओं के आवंटन, वितरण, प्रबंधन, योजना, संरक्षण तथा विनियमन की देखरेख करते हैं।
  • प्रभावी संस्थान प्राकृतिक, आर्थिक, तकनीकी तथा सामाजिक अनिश्चितताओं को कम कर सकते हैं परंतु उपयुक्त संस्थानों के अभाव के कारण संसाधनों के प्रबंधन एवं सुरक्षित करने के लिये "परिवर्तन के ख़िलाफ़ संस्थागत प्रतिरोध" देखा जाता है।
  • जल संसाधन प्रबंधन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये संस्थानों के बीच समन्वय आवश्यक है,
  • स्थानीय समुदायों से लेकर राजनेताओं तक सभी हितधारक समूहों के लिये जागरूकता बढ़ाने तथा उन्हें शिक्षित करने की आवश्यकता है।
  • संस्था का एक उदाहरण:

♦ लोअर भवानी प्रोजेक्ट (तमिलनाडु) में सामाजिक शिक्षण और अनुकूली जल संसाधन प्रबंधन में जो सिखाया जाता है, वह किसानों को सर्वोत्तम प्रथाओं को सीखने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
♦ बेसिन प्रबंधन समितियाँ, जो अन्य देशों में भी अनुसरण किया जाता है, एक मंच प्रदान करता है जहाँ हितधारक समूह एक-दूसरे से संवाद कर सकते हैं।
♦ फोरम फॉर इंटीग्रेटेड रिसोर्स मैनेजमेंट (FIRM) नामीबिया के ग्रामीण क्षेत्र का एक और उदाहरण है।

अग्रिम आँकड़ों से लेकर सूचित निर्णय तक

हमें प्रभावी डेटा की आवश्यकता क्यों है?

  • व्यवस्थित डेटा संग्रह का अभाव जल संसाधनों एवं जल-उपयोग के रुझानों पर नियमित रिपोर्टिंग को बाधित करती है।
  • मात्रात्मक संकेतक समस्याओं की पहचान करना, रुझानों को ट्रैक करना, नेताओं एवं फ़िसड्डिओं (लैगार्ड) की पहचान करना तथा सर्वोत्तम प्रबंधन प्रथाओं को उजागर करना संभव बनाते हैं।
  • डेटा की कमी प्रभावी जल प्रबंधन में योजनाओं की क्षमता को सीमित कर रही है। इसलिये बेहतर डेटा उपलब्धता और गुणवत्ता, जल के बारे में बेहतर एवं अधिक संरचित जानकारी की आवश्यकता है।
  • जल आपूर्ति और स्वच्छता (WHO / UNICEF) के लिये संयुक्त निगरानी कार्यक्रम (JMP) संयुक्त राष्ट्र का आधिकारिक तंत्र है जो प्रगति के निगरानी के लिये कार्य करता है।

बेहतर निगरानी और रिपोर्टिंग पर बाध्यताएँ क्यों हैं?

  • जल का अपेक्षाकृत कम मूल्य एवं व्यापक वितरण तथा इसके उपयोग की वजह से कई संस्थागत और राजनीतिक क्षेत्रों में बाधाओं का सामना करना पड़ता है, क्योंकि जल का उत्पादन मानव निर्मित प्रक्रिया की बजाय एक प्राकृतिक प्रक्रिया है।
  • इसके अतिरिक्त, जल संसाधनों को अक्सर कई अलग-अलग राजनीतिक क्षेत्राधिकारों के बीच साझा किया जाता है तथा सूचनाओं को साझा करने में नदी के ऊर्ध्वप्रवाह और अनुप्रवाह के क्षेत्राधिकार के बीच संघर्ष होते हैं।
  • बेहतर निगरानी और रिपोर्टिंग में एक और बाधा है कि वास्तव में किस चीज की निगरानी की जानी चाहिये, इस पर समझौते की कमी है। पर्याप्त तकनीकी और वित्तीय बाधाएँ भी हैं।

डेटा और सूचना के प्रवाह में सुधार

  • जल के लिये संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था के पर्यावरणीय आर्थिक लेखांकन (SEEAW) तथा यूरोस्टेट की पहल इस संबंध में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं।
  • इस संबंध में कई अन्य पहल हैं जैसे,
  • ♦ वर्ल्ड बिज़नेस काउंसिल ऑन सस्टेनेबल डेवलपमेंट (WBCSD) ने जल के व्यवस्थित रूप से उपयोग करने तथा इसके प्रभाव पर और अधिक निगरानी रखने में मदद करने के लिये एक 'वॉटर टूल' का निर्माण किया है।
    ♦ वाटर फुटप्रिंट नेटवर्क समान रूप से व्यवसायों, उनके ग्राहकों तथा अन्य हितधारकों को उनके उत्पादों एवं संचालन जल सामग्री के बारे में अधिक जागरूक बनने के लिये प्रोत्साहित करता है।
    ♦ कुल वास्तविक अक्षय जल संसाधन (TARWRs), WWAP की एक पायलट योजना जल संसाधन उपलब्धता (एक देश, नदी बेसिन या क्षेत्र में) की मूलभूत ईकाई है।

क्षेत्रीय चुनौतियाँ, वैश्विक प्रभाव

  • क्षेत्रीय रिपोर्टों में यूरोप और उत्तरी अमेरिका, एशिया और प्रशांत, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन, अफ्रीका, अरब और पश्चिमी एशिया क्षेत्र शामिल हैं, जो यह बताता है कि दुनिया के एक हिस्से में होने वाली कार्रवाइयाँ नकारात्मक प्रभावों के साथ-साथ दूसरे हिस्से में अवसरों को कैसे पैदा कर सकती हैं।
  • उप-सहारा अफ्रीका: यह क्षेत्र अपने वार्षिक नवीकरणीय जल का बमुश्किल 5% का उपयोग करता है। फिर भी शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में, बेहतर जलापूर्ति की पहुँच अभी भी दुनिया में सबसे कम है।
  • उच्च जनसंख्या वृद्धि, गरीबी और अविकसितता प्रमुख कारक हैं जो यह प्रभावित करते हैं कि जल प्रबंधन कैसे किया जाता है।
  • अफ्रीका का लगभग 66% भाग शुष्क या अर्ध-शुष्क है तथा उप-सहारा अफ्रीका में 800 मिलियन लोगों में से 300 से अधिक लोग जल के कमी वाले वातावरण में रहते हैं।
  • उपाय:- जल पर अफ्रीकी मंत्री परिषद (AMCOW), अफ्रीकी जल सुविधा, अफ्रीकी विकास बैंक (ADB) तथा ग्रामीण जल एवं स्वच्छता आदि।
  • यूरोप और उत्तरी अमेरिका: जल का अत्यधिक दोहन, लोगों का मौसमी प्रवास, कृषि, खनन, निर्यात वस्तुओं पर निर्भरता, रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग और अनुपचारित अपशिष्ट जल का निर्वहन निरंतर दबावों को बनाए रखते हैं।
  • उपाय: संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वच्छ जल अधिनियम तथा सुरक्षित पेयजल अधिनियम, डेन्यूब एवं राइन बेसिन में यूरोपीय संघ जल फ्रेमवर्क निर्देश (WFD) जैसे नियमों का पारित होना।
  • एशिया-प्रशांत: यह क्षेत्र में दुनिया की 60% आबादी निवास करती है, लेकिन इसमें जल संसाधनों का केवल 36% हिस्सा ही अवस्थित है।
  • पानी की उपलब्धता, आवंटन और गुणवत्ता प्रमुख मुद्दे हैं। सिंचित कृषि सबसे बड़ा जल उपयोगकर्त्ता है।
  • तीव्र शहरीकरण, आर्थिक विकास, औद्योगिकीकरण तथा व्यापक कृषि विकास जल संसाधनों के प्रेरक शक्ति और दबाव हैं।
  • पंजाब में जल स्तर साल में 2 मीटर से 3 मीटर तक नीचे जा रहा है। प्रशांत क्षेत्र के छोटे द्वीप विकासशील राज्य (SIDS) उष्णकटिबंधीय चक्रवात, टाइफून तथा भूकंप जैसी आपदाओं की चपेट में हैं।
  • उपाय:- जल संसाधन प्रबंधन के लिये नीतियाँ, रणनीतियाँ, योजनाएँ और कानूनी ढाँचे जैसे कि भारत का स्वच्छता कार्यक्रम- स्वच्छ भारत, नमामि गंगे, एकीकृत नदी जल प्रबंधन परियोजनाएँ आदि भारत में किये गए उपायों के कुछ उदाहरण हैं।
  • लैटिन अमेरिका और कैरिबियन: चरम जलवायु घटनाओं, विशेष रूप से कैरिबिया में आने वाले तूफान का लंबे समय तक जल प्रबंधन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जनसांख्यिकीय परिवर्तन, आर्थिक विकास जल संसाधन पर दबाव डालते हैं।
  • उपाय: इन क्षेत्रों ने समग्र प्रशासन, नए जल कानून, जल प्राधिकरणों के निर्माण आदि में सुधार के लिये कदम उठाए हैं।
  • अरब और पश्चिमी एशिया क्षेत्र: क्षेत्रीय संघर्षों और विस्थापितों ने जल संसाधनों और सेवाओं को तनावपूर्ण बना दिया है लगभग सभी अरब देश जल की कमी, भूजल के अति-पंपिंग से खारे जल की अधिकता, मिट्टी के तापमान और शुष्कता में वृद्धि, मौसमी वर्षा पैटर्न में बदलाव आदि से पीड़ित हैं।
  • उपाय: अरब क्षेत्र में अरब जल सुरक्षा रणनीति को अपनाना, क्षमता निर्माण और जागरूकता कार्यक्रम।

क्षेत्रीयता को वैश्विकता से जोड़ना

  • यह जाँचना आवश्यक है कि क्षेत्रीय चुनौतियाँ वैश्विक जल समस्याओं से कैसे जुड़ी हुई हैं।
  • जल से जुडी चुनौतियां निर्वात में उत्पन्न नहीं होती हैं, वे परस्पर जुड़े श्रृंखलाओं के माध्यम से विभिन्न देशों तथा समुदायों को कई तरह से प्रभावित करते हैं।
  • जल की आपूर्ति के पर्यावरणीय क्षरण एवं अत्यधिक जल की निकासी के नकारात्मक प्रभाव केवल उन क्षेत्रों में ही नहीं पैदा होते हैं जहाँ ऐसी गतिविधियाँ होती हैं, परंतु ऐसे प्रभाव को दुनिया भर में महसूस किया जा सकता है।

अनिश्चितता तथा जोखिम प्रबंधन के तहत काम करना

  • जोखिम और अनिश्चितता बहुत कुछ चिन्हित करती हैं जिनसे जल प्रबंधकों तथा सामाजिक-आर्थिक नीति-निर्माताओं को निपटने की आवश्यकता है। जितना अधिक वे इन अनिश्चितताओं और जोखिमों को समझते हैं, उतना ही प्रभावी रूप से उन्हें कम करने के लिये जल प्रणालियों की योजना, डिजाइन तथा उनका प्रबंधन कर सकते हैं।

अनिश्चितता एवं जोखिम निर्णय प्रक्रिया को कैसे प्रभावित करते हैं:

  • उदाहरण के लिये, बारिश कितनी होगी तथा पूरे फ़सल मौसम में जल वितरण किस हिसाब से होगा यह जाने बिना एक किसान को बुवाई अवश्य करना चाहिए। फसल के कटाई के समय तक कितनी पैदावार होगी यह जानकारी उसे नहीं होगी।
  • वैकल्पिक रूप से, एक बढ़ता हुआ फर्म एक नई इमारत का निर्माण करना चाहती है तथा उसे एक निश्चित स्थान अवश्य चुनना चाहिये।
  • प्रबंधक हमेशा जोखिम को स्थिति को अंतर्निहित नहीं मानते हैं तथा गलत निर्णय लेने से अधिक भयावह परिणाम होते हैं।

जोखिम एवं अनिश्चितता के अंतर्गत निर्णय प्रक्रिया की सूचना देने हेतु दृष्टिकोण:

  • तूफानों, नदी या झील के स्तरों तथा तटबंध के कार्य-निष्पादन की अनिश्चितताओं को ध्यान में रखते हुए विभिन्न नदियों एवं झीलों के समानांतर लेवी (तटबंध) के पुनर्वास के आर्थिक लाभों की जाँच।
  • जल विद्युत जनरेटर/टर्बाइनों के लिये वैकल्पिक पुनर्वास योजनाओं की तुलना, जनरेटर तथा टर्बाइनों की विफलता की संभावनाओं का उपयोग करना।
  • जल की नौपरिवहन प्रणाली की जाँच एवं सुधार, जैसे कि खाड़ी अंतर-तटीय (इंट्राकोस्टल) जलमार्ग, जिसने टो यात्राओं (tow trips) एवं यात्रा के समय में ट्रैफ़िक तथा अनिश्चितता को कम किया है।
  • सॉफ्टवेयर प्रणाली का उपयोग करके बाढ़ के नुकसान का आकलन।
  • अनिश्चितता का परीक्षण करने के लिये 'परिदृश्य विश्लेषण', वैकल्पिक भविष्य की खोज के लिये 'बैककास्टिंग' (Backcasting), 'संस्थागत निर्णय प्रक्रिया', 'व्यवहारिक निर्णय प्रक्रिया' जैसी तकनीकों में सरकारी, निजी क्षेत्र तथा नागरिक समाज संगठन जैसे राज्य के बहुत सारे अंग शामिल होते हैं।
  • पारिस्थितिक तंत्र दृष्टिकोण का उपयोग पारिस्थितिकी तंत्र को लचीला बनाने, पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव कम करने, जोखिम का प्रबंधन करने, जल सुरक्षा एवं जल की गुणवत्ता बढ़ाने, मनोरंजन, वन्यजीव तथा बाढ़ नियंत्रण प्रबंधन से होने वाले लाभों को बढ़ाने के लिये किया जाता है।

जल प्रबंधन के लिये नए प्रतिमान

management

जल की उपेक्षा अनिश्चित भविष्य की ओर ले जाती है

जल में निवेश क्यों ज़रूरी है?

  • जल आधारिक संरचना आर्थिक विकास के लिये एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है, यह राष्ट्रीय आय के विकास को बढ़ावा देता है, उदाहरण:- बड़े बांधों का निर्माण।
  • जल की उपलब्धता में उतार-चढ़ाव (बाढ़ और सूखे दोनों को कम करना) के दौरान सुरक्षा प्रदान करना तथा दीर्घकालिक जलवायु प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देना।
  • यह नई आर्थिक गतिविधियों का मार्ग प्रशस्त करेगा तथा आर्थिक रूप से उत्पादक क्षेत्रों जैसे कृषि, उद्योग, जल विद्युत, नेविगेशन, मनोरंजन एवं पर्यटन तथा घरों को लाभान्वित करेगा।
  • जल पारिस्थितिकी प्रणालियों और सभी जलीय आवासों के लिये एक महत्त्वपूर्ण उत्पादक सामग्री भी बनता है, जो बदले में आर्थिक मूल्य के सेवाओं के अलावा आवश्यक जीवनरक्षक तत्त्व भी प्रदान करता है।
  • यह जलवायु में उतार-चढ़ाव के विरुद्ध एक अंतर्रोधी के रूप में कार्य करता है तथा जलवायु प्रतिरोधकक्षमता की कुंजी है।
  • जल-चक्र के लाभ:-

householdजल का मूल्यनिरूपण करना

  • सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, दाता (डोनर) समुदाय, नागरिक समाज तथा अन्य हितधारकों के निर्णयों में सुधार के लिये जल आवश्यक है।
  • यदि जल को सही अहमियत नहीं दी जाती है, तो यह जल के महत्त्व की अपर्याप्त सराहना, जल के बुनियादी ढाँचे में अपर्याप्त निवेश तथा विकास कार्यक्रमों में जल नीति को कम प्राथमिकता देने का कारण बनता है।
  • जल का मूल्यांकन विभिन्न तकनीकों एवं नीतिओं के साथ एक विविध प्रक्रिया है।
  • हालाँकि, लोगों के विभिन्न समूह अलग-अलग तरीकों से पानी को महत्त्व देते हैं।
  • ये ध्रुवीकरण का कारण बन सकता हैं जो संवाद को अवरुद्ध करता है तथा उचित प्रशासन समाधानों को अपनाने से रोकता है।
  • उदाहरण:

♦ सिंचाई के जल के उपयोग का मूल्यांकन कृषि उत्पादन या अधिशेष के रूप में किया जा सकता है।
♦ जबकि, औद्योगिक जल के मूल्यांकन में एक बड़ी समस्या है, क्योंकि जल उनकी कुल लागत का एक छोटा हिस्सा है।
♦ परिवहन के सस्ते होने से नौपरिवहन के लिये जल का मूल्य निर्धारित किया जाता है। रेलवे की तुलना में नौपरिवहन सस्ता होता है।
♦ घरेलू प्रयोग में आने वाले जल का मूल्य अपेक्षाकृत अधिक हैं, क्योंकि घरेलू जल का उपयोग वास्तव में आवश्यक ज़रूरतों जैसे कि पीने के लिये किया जाता है।

  • जल के मूल्यांकन में इन लाभों को सम्मिलित न करना अप्रभावी जल आवंटन निर्णय के लिये जिम्मेदार हो सकते हैं।
  • जल के मूल्यांकन के लाभ, अगर जल व्यापार की अनुमति एवं विनियमन किया जाता है तो यह जल के आवंटन के सामाजिक, नैतिक, सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा इक्विटी आयामों में एक आर्थिक आयाम जोड़ देगा।
  • जल आवंटन प्रणाली के चार मुख्य पहलू हैं: जल पात्रता, जल आवंटन, जल सेवा वितरण तथा जल उपयोग।

परिवर्तन से निपटने के लिये जल प्रबंधन संस्थानों में बदलाव करना

  • निर्णयकर्त्ताओं द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने के लिये जल प्रबंधन को अनिश्चितताओं से निपटना चाहिये।
  • अनुकूली प्रबंधन एक ऐसी प्रक्रिया है जो अनिश्चितताओं के दौरान नम्य निर्णय प्रक्रिया को बढ़ावा देती है।
  • अनुकूली रणनीति (एडेप्टिव स्ट्रेटेजी) जैसे कंप्यूटर एडेड प्रक्रियाओं का उपयोग, बेहतर जानकारी आदि का उपयोग जल प्रबंधन में किया जाता है।
  • अनुमान लगाने के लिये, सफल परिणामों की विश्वसनीयता के लिये, प्रणाली के प्रदर्शन की प्रबलता तथा प्रतिरोधक क्षमता वाले रणनीति बनाने के लिये भेद्यता का आकलन आवश्यक है।
  • आपातकालीन प्रबंधन एवं तैयारियों की योजना को मजबूत करना, जोखिम आधारित योजना, निरीक्षण में वृद्धि, बुनियादी ढाँचों का निरीक्षण और नियमन आदि अनुकूली प्रबंधन दृष्टिकोण के अंतर्गत आते है।

संस्थानों में सुधार की आवश्यकता क्यों है?

  • अनिश्चितता को समायोजित करने में सक्षम संस्थानों के बिना जलवायु तथा अन्य बाहरी परिवर्तन जल उपयोगकर्त्ताओं एवं जल पर निर्भर समुदायों पर लगने वाले महत्त्वपूर्ण लागत को बढ़ाएंगे।
  • संस्थानों को सुधारना की प्रक्रिया संस्थागत क्षमता को मजबूत करने, शिक्षा-उन्मुख संस्थागत प्रक्रियाओं के निर्माण, संस्थागत घाटे से निपटने तथा अनौपचारिक संस्थानों को जल प्रबंधन में शामिल करने पर ज़ोर देता है।
  • पारंपरिक जल नियोजन कठिन हो जाता है तथा जल संस्थान आमतौर पर अन्य संस्थानों से अपर्याप्त तरीके से जुड़े होते हैं।
  • भ्रष्टाचार, प्रशासन संकट का एक लक्षण है जो संचालन के लागत को बढ़ाता है इसलिये जल के प्रति सत्यनिष्ठा तथा जवाबदेही की आवश्यकता है।
  • विकासशील देशों के कई जल संस्थान वित्त की कमी (अंडर-फाइनेंसिंग) तथा घटती हुई क्षमता से ग्रस्त हैं।
  • जल की गुणवत्ता तथा भूजल प्रबंधन क्षेत्रों में एक जिम्मेदार संस्थागत व्यवस्था बहुत सीमित रूप में पाई जाती है।
  • उचित निर्णय लेने के लिये जोखिम तथा अनिश्चितता के संचार की आवश्यकता हैं तथा लोगों को स्पष्ट रूप से इसे समझना चाहिये।

संस्थानों के सुधार में शामिल हैं:

  • औपचारिक और अनौपचारिक संस्थानों के भीतर नीतियों का संरेखण तथा एकीकरण।
  • उदाहरण के लिये, यूरोपीय संघ (EU) कॉमन एग्रीकल्चर पॉलिसी (CAP), EU वाटर फ्रेमवर्क डायरेक्टिव (WFD) के लक्ष्यों को प्राप्त करने में एक लाभदायी भूमिका निभाता है।
  • जल सेवाओं के प्रभावी तथा कुशल वितरण के लिये पर्याप्त वित्तपोषण एवं उचित कार्यबल की आवश्यकता होती है।
  • प्रौद्योगिकी तथा बुनियादी ढाँचे में विकास, साथ ही वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता।
  • फ्री-राइडिंग प्रक्रिया के माध्यम से जल संसाधन संस्थान निर्धारित करते हैं कि कौन, कैसे, किस समय और कितने जल का उपयोग कर सकता है; तथा वे प्रबंधन की जिम्मेदारियाँ, टैरिफ भी निर्धारित किये हैं एवं शुल्क भी वसूल करते है।
  • एक सहयोगी प्रशासन वह हैं जहाँ सरकार, समाज तथा तकनीकी संस्थानों द्वारा एक संयुक्त प्रयास किया जाता है।
  • लक्षित संचार, अधिक आसान समझ के लिये श्रोतागण को लक्षित समूहों में विभाजित किया जा सकता है और प्रत्येक व्यक्ति तक सुचना का संचार किया जा सकता है।
  • संस्थागत सुधार के माध्यम से, संस्थागत घाटे को कम करते हुए, राष्ट्रीय स्तर पर संवाद और सहमति को बढ़ावा देना।

अधिक सतत भविष्य के लिये जल में निवेश तथा वित्तपोषण


जल में निवेश तथा वित्तपोषण क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • सभी देश, विकास के हर स्तर पर, जल के बुनियादी ढाँचे को बनाने में भारी लागत का सामना करते हैं, जो बुनियादी ढाँचे उनके 'उद्देश्य के लिये उपयुक्त' है तथा जल की चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।
  • विश्व बैंक के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, वैश्विक वित्तीय संकट ने MDGs को पूरा करने की दिशा में हो रही प्रगति को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।
  • यह सुनिश्चित करने के लिये कि सार्वजनिक व्यय दक्षता में सुधार से अतिरिक्त संसाधन प्राप्त किये जा सकते हैं, वित्तपोषण रणनीतियों में पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

जल प्रबंधन क्षेत्रों में वित्त पोषण को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है?

  • पहला कदम:- जल पर बकाया करों का बेहतर संग्रह, समायोजन, तकनीकों को बढ़ावा इत्यादि द्वारा वित्तीय आवश्यकताओं को कम से कम करना।
  • दूसरा कदम:- टैरिफ राजस्व, बजटीय आवंटन आदि को बढ़ाकर स्थायी लागत वसूली की दर में सुधार करना है।
  • तीसरा कदम:- इन राजस्व का उपयोग करके धन के पुनर्भुगतान स्रोतों जैसे कि ऋण, बांड तथा जल निवेश में इक्विटी को आकर्षित करना है।
  • वित्त का एक अन्य संभावित स्रोत जल के बिल के संग्रह की दर में सुधार करना होगा, इससे टैरिफ बढ़ाए बिना जल राजस्व में वृद्धि होगी।
  • टैरिफ द्वारा और अधिक आंतरिक राजस्व उत्पन्न करना तथा स्थानीय वित्त एवं पूंजी बाजार पर जितना संभव हो उतना भरोसा करना।

‘वाटर बॉक्स’ के बाहर जोखिमों एवं अनिश्चितताओं के प्रबंधन से भी जल प्रबंधन में लाभ कैसे हो सकता है?

  • गरीबी तथा हरित अर्थव्यवस्थाओं को कम करके, जलवायु परिवर्तन पर अनुकूल प्रतिक्रिया देकर, बेहतर एकीकृत शहरी नियोजन तथा व्यापार एवं निजी क्षेत्रों में बेहतर निर्णयों के माध्यम से, जो जल से संबंधित हैं।
  • जल से लाभ उत्पन्न करने के लिये क्षेत्रीय जोखिम का प्रबंधन, जैसे कि परिवहन क्षेत्र, स्वास्थ्य जोखिम, ऊर्जा क्षेत्र आदि। एक बार इन क्षेत्रों को टिकाऊ बनाने के बाद यह अप्रत्यक्ष रूप से जल प्रबंधन को लाभान्वित करते हैं।
  • बीमा, संधियों एवं समझौतों के माध्यम से तथा राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर बहु-क्षेत्रीय सहयोग के माध्यम से जोखिम तथा अनिश्चितताओं को कम करना।