सतत‍् पर्यटन रिपोर्ट | 26 Jun 2019

प्रस्तावना

  • पृथ्वी की सतह के लगभग 27% भाग में पर्वतीय क्षेत्र विस्तारित है। ये पहाड़ों एवं अनुप्रवाह क्षेत्र में रह रहे करोड़ों लोगों के जीवन-यापन का आधार हैं।
  • पहाड़ी समुदायों एवं अनुप्रवाह क्षेत्र में रह रही आबादी के लिये संभावित रूप से दूरगामी एवं विनाशकारी परिणामों के साथ पहाड़ों को जलवायु परिवर्तन, भूमि क्षरण, अत्यधिक दोहन तथा प्राकृतिक आपदाओं से खतरा है।
  • इसके संदर्भ में मुख्य चुनौती नए एवं स्थायी अवसरों की पहचान करना है जो उच्चभूमि एवं तराई में रहने वाले दोनों तरह के समुदायों को लाभान्वित करते हैं तथा पर्वतीय पारिस्थितिक तंत्र के क्षरण के बिना गरीबी उन्मूलन में मदद करते हैं।
  • जैसा कि हम जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन ने हिमालय क्षेत्र को प्रभावित किया है, इसलिये सिकुड़ते ग्लेशियर, बढ़ते तापमान, पानी की कमी, बदलते मानसूनी पैटर्न तथा गंभीर आपदाओं की आवृत्ति के रूप में चेतावनी के संकेत स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं।
  • भारतीय हिमालयी क्षेत्र (Indian Himalayan Range – IHR) पश्चिम में सिंधु नदी से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी तक फैला हुआ है। पर्वत श्रृंखलाएँ एवं नदी-नालियाँ, सीमा-पार संबद्धता साझा करती हैं। छह देश हिंदू कुश हिमालयी क्षेत्र में भारत के साथ सीमाएँ साझा करते हैं।
  • IHR में तीर्थयात्रा के अलावा आधुनिक पर्यटन (जिसे सामूहिक पर्यटन भी कहा जाता है) जो बड़े पैमाने पर दर्शनीय स्थलों की यात्रा एवं प्रमुख पर्यटन केंद्रों तक ही सीमित है, हिमालय की पारिस्थितिकी तथा पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के साथ-साथ स्थानीय सामाजिक संरचनाओं पर भी गंभीर प्रभाव डाल रहा है।
  • पर्यटन हिमालय क्षेत्र के विकास के लिये मुख्य कारकों में से एक है तथा भविष्य में विकास के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है लेकिन यह केवल तभी संभव होगा जब इसे स्थिरता के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए विकसित एवं कार्यान्वित किया जाए।
  • यह रिपोर्ट ‘भारतीय हिमालयी क्षेत्र में स्थायी पर्यटन’ के विकास के लिये एक कार्य-उन्मुख मार्ग को प्रस्तुत करती है, जो क्षेत्र की पारिस्थितिकी तथा सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखते हुए आजीविका के अवसरों को बढ़ा सकती है एवं इस क्षेत्र को आर्थिक रूप से सुदृढ़ कर सकती है।

पृष्ठभूमि

भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) में पर्यटन

  • भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) में पिछले कुछ दशकों में निरंतर पर्यटन में विकास हुआ है एवं विविधता भी आई है। वर्ष 2013 से 2023 के दौरान 7.9% औसत वार्षिक दर से पर्यटन के बढ़ने की संभावना है।
  • स्थानीय पर्वतीय लोगों के लिये पर्यटन का अर्थ आर्थिक तथा व्यावसायिक अवसर एवं नौकरियाँ हैं तथा राज्य सरकारों एवं निजी उद्यमियों के लिये यह राजस्व और लाभ का स्रोत हैं।
  • योजना आयोग की 11वीं पंचवर्षीय योजना में "पर्यटन देश का सबसे बड़ा सेवा उद्योग है। इसका महत्त्व आर्थिक विकास तथा रोज़गार सृजन के साधन के रूप में है। विशेषत: दूरस्थ एवं पिछड़े क्षेत्रों के लिये (उदाहरण के तौर पर IHR में)।
  • इसके अलावा 12वीं पंचवर्षीय योजना स्पष्ट रूप से समावेशी विकास के लिये आर्थिक रूप से सुभेद्य क्षेत्र में पर्यटन को मान्यता देती है।
  • सतत् विकास लक्ष्य संख्या 8 एवं 12 पहाड़ों में पर्यटन को एक लक्ष्य के रूप में शामिल करता है:
    • सतत् विकास लक्ष्य संख्या 8: "निरंतर, समावेशी एवं सतत् आर्थिक विकास" के प्रसार पर केंद्रित है ताकि वर्ष 2030 तक स्थायी पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये नीतियों को बेहतर ढंग से तैयार और कार्यान्वित किया जा सके। इससे रोज़गार सृजन के साथ-साथ स्थानीय संस्कृति और उत्पादों को भी बढ़ावा मिलेगा।
    • सतत् विकास लक्ष्य संख्या 12 "स्थायी उत्पादन एवं खपत पैटर्न को सुनिश्चित करने से संबंधित है। इसका उद‍देश्य सतत् पर्यटन के लिये सतत् विकास प्रभावों की निगरानी हेतु उपकरण विकसित करना एवं उनका उपयोग करना है ताकि रोज़गार का सृजन हो तथा स्थानीय संस्कृति एवं उत्पादों को बढ़ावा मिले।
  • 7 अप्रैल 2017 को NITI Aayog ने कुछ प्रमुख राष्ट्रीय संस्थानों एवं अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत पर्वत विकास केंद्र (International Centre for Integrated Mountain Development- ICIMOD) के सहयोग से "भारतीय हिमालयी क्षेत्र के पहाड़ों के सतत् विकास (IHR)" के लिये एक कार्य-योजना प्रस्तुत की, जिसमें "IHR में सतत् पर्यटन" को एक प्रमुख विषय के रूप में चुना गया।

पर्यटन क्षेत्र के रुझान तथा विकास प्रतिमान

प्राकृतिक आपदाओं एवं राजनीतिक अशांति के बावजूद कई दशकों से IHR में पर्यटन लगातार बढ़ता जा रहा है।

पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा की गई विभिन्न पहलें

  • 163 देशों के नागरिकों के लिये पर्यटक, चिकित्सा तथा व्यवसाय तीन श्रेणियों के तहत ई-वीज़ा सुविधा।
  • विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर वर्ष 2017-18 के लिये ग्लोबल मीडिया अभियान का संचालन।
  • भारत में विश्व धरोहर स्थलों को बढ़ावा देने के लिये 'द हेरिटेज ट्रेल' की शुरुआत।
  • "पर्यटन पर्व" को तीन घटकों के साथ आयोजित करना।
    • देखो अपना देश: अपने देश की यात्रा करने हेतु भारतीयों को प्रोत्साहित करना;
    • सभी के लिये पर्यटन: देश के सभी राज्यों में पर्यटन कार्यक्रमों का संचालन करना;
    • पर्यटन एवं शासन: विभिन्न विषयों पर हितधारकों के साथ संवादमूलक सत्र एवं कार्यशालाओं का आयोजन करना।
  • स्वदेश दर्शन योजना के तहत 15 विषयगत सर्किट में से कुछ IHR से संबंधित हैं। जैसे- पूर्वोत्तर (NE) भारत सर्किट, हिमालयन सर्किट तथा आध्यात्मिक सर्किट।
  • 2017 में चिह्नित तीर्थ स्थलों के समग्र विकास के उद्देश्य से पर्यटन मंत्रालय द्वारा ‘प्रसाद’ (पिलग्रिमेज़ रेजुवेनेशन एंड स्प्रीचुअल, हेरिटेज ऑगमेंटेशन ड्राइव) यानी ‘तीर्थयात्रा कायाकल्प एवं आध्यात्मिक संवर्धन मुहिम’ पर राष्ट्रीय मिशन शुरू किया गया, किंतु योजनाबद्ध बजट में केवल तीन पर्वतीय राज्यों (जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल तथा उत्तराखंड) का उल्लेख किया गया है।

राज्य की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का योगदान

  • व्यापार, होटल एवं रेस्तरां को सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) में योगदान देने वाला कारक माना जाता है। RBI के आँकड़ों के अनुसार, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, असम और मेघालय जैसे राज्यों में सकल घरेलू उत्पाद में 10% से अधिक पर्यटन का योगदान रहा है। सबसे कम योगदान अरुणाचल प्रदेश (3-4%), सिक्किम (2-3%) और नागालैंड (3-4%) जैसे राज्यों में है।

संभावित प्रतिक्रिया

  • सिक्किम को छोड़कर सभी पर्वतीय राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद (GSDP) में पर्यटन का योगदान कम हो रहा हैं। यह भी स्पष्ट है कि सकल राज्य घरेलू उत्पाद में योगदान इस क्षेत्र में प्राथमिकता निवेश का आधार नहीं बनता है। इसके साथ यह भी माना जा सकता है कि पर्यटन को बढ़ावा देना मुख्य रूप से निजी क्षेत्र के हाथों में है क्योंकि पर्यटक अभी भी आते हैं तथा उन्हें ज़्यादातर सेवाएँ निजी क्षेत्रों से प्राप्त होती हैं।

अपशिष्ट निर्माण पर बहस

  • IHR में पर्यटकों की बढ़ती संख्या के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों की अति-दोहन, खाद्य असुरक्षा, बीमारी, अनियोजित शहरीकरण, भीड़ बढ़ने से यातायात की असुविधा, स्वदेशी संस्कृति की हानि जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • उपलब्ध आँकड़ों (2009-2012) के अनुसार, IHR राज्य नगर निगम प्रति दिन 22,372 मीट्रिक टन ठोस कचरे का संचय कर रहे हैं। यह तर्कसंगत है कि 2017 के लिये ये आँकड़े काफी बढ़ गए हैं। इसके अनुसार, IHR में पर्यटकों की संख्या भी बढ़ी है किंतु अपशिष्ट संग्रह, अलगाव, निपटान एवं पुनर्चक्रण को ठीक से व्यवस्थित नहीं किया जाता है।

अच्छी प्रथाएँ एवं उदाहरण:

  • धर्मशाला शहर में "वेस्ट वारियर्स" (Waste Warriors) को अप-स्केल और आउट-स्केल के जरिये एक सावधानीपूर्वक योजना के साथ बैक-अप की आवश्यकता है।
  • सिक्किम इकोटूरिज़्म उत्पादों एवं बुनियादी ढाँचे, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन अवधारणाओं एवं क्षमता निर्माण के प्रयासों को बढ़ावा देने के लिये एक आदर्श राज्य है लेकिन इसे बड़े पैमाने पर पर्यटन, मानव-वन्यजीव संघर्ष, भूस्खलन, तथा जलवायु परिवर्तन प्रेरित आग के उभरते एवं खतरनाक पहलुओं द्वारा चुनौती दी जाती है।

वनों की स्थिति

  • IHR राज्यों में वन क्षेत्रों का सिकुड़ना एक चिंता का विषय है क्योंकि अधिकांश पर्यटक/तीर्थ स्थल वन भूमि के भीतर या उसके आस-पास स्थित हैं।
  • पर्यटन का विकास अनुचित रूप से वनों की कटाई को बढ़ावा दे सकता है। उदाहरण के लिये उत्तराखंड में पर्यटन का राज्य जी.डी.पी. (SGDP) में सबसे अधिक योगदान है, लेकिन इसके विपरीत राज्य में दो साल के अंदर वन क्षेत्र में 268 वर्ग किमी. की कमी आई है।
  • पूर्वोत्तर भारत में वनावरण का संकुचन आम बात है तथा बहुत हद तक स्थानांतरण कृषि के कारण भी ऐसा होता है।
  • वनीकरण के प्रयासों के कारण प्रायः एकल कृषि, जम्मू-कश्मीर (450 sq.km), पश्चिम बंगाल (23 sq.km) तथा मणिपुर (4 sq.km) में सकारात्मक परिवर्तन देखे गए हैं, जबकि प्राकृतिक वन आच्छादन तथा घने चंदवा वनों (Canopy Forest) में उच्च दर से गिरावट देखने को मिली है।
  • राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) ने शेर सिंह बनाम हिमांचल प्रदेश (2014) के मामले में उत्तर-पश्चिमी हिमालय के प्रमुख पर्यटन स्थलों पर पर्यटन के दुष्प्रभावों को स्वीकार किया जैसे कि वन आच्छादित क्षेत्र की हानि, बढ़ते ठोस अपशिष्ट, जंगल की आग, आदि।
  • हाल ही में जारी ISFR (India State of Forest Report), 2017 न केवल अधिकांश उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के राज्यों में वन आच्छादित क्षेत्र की हानि से अवगत कराती है बल्कि यह भी दर्शाती है कि वन आच्छादित क्षेत्र की हानि एक गंभीर है स्थिति को इंगित करती है (जैसे- मिज़ोरम, नागालैंड, त्रिपुरा तथा मेघालय में)। वन आच्छादित क्षेत्र का नुकसान स्थानांतरित कृषि प्रथाओं के कारण भी होता है।

पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (EPI) 2014

  • 2014 में वैश्विक स्तर पर भारत 178 देशों में 155 वें स्थान पर था। इसलिये यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भले ही राज्यों के पास बेहतर समावेशी नीतियाँ एवं कार्यक्रम मौजूद हों, लेकिन ज़मीनी-स्तर पर उनका कार्यान्वयन एवं परिणाम ही महत्त्वपूर्ण होते है।

विश्व बैंक का सर्वेक्षण 2015, ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस तथा पर्यावरण अनुपालन’

  • IHR राज्यों में से कोई भी राज्य टूरिज़्म से संबंधित शीर्ष 10 में शामिल नहीं है। यह इंगित करता है कि पर्यटन व्यवसाय के लिये भारतीय हिमालय क्षेत्रों में पर्यावरण आवश्यक रूप से अनुकूल नहीं है तथा IHR की सुभेद्यता के बावजूद, पर्यावरणीय मूल्यों से समझौता किया जा रहा है।

ICIMOD द्वारा संचालित हिंदू कुश हिमालय निगरानी एवं आकलन कार्यक्रम (HIMAP), 2018

  • सुशासन को अपनाकर, आपदा जोखिम को कम कर जलवायु में परिवर्तन के प्रति अनुकूलन हेतु साक्ष्य आधारित उपायों से हिंदूकुश हिमालय की समृद्धि सुनिश्चित करना इसका मुख्य उद‍देश्य है।
  • वर्ष 2080 तक HKH क्षेत्रों में समृद्धि हेतु राज्य और गैर-राज्य कार्यकर्त्ताओं की सम्मिलित भागीदारी आवश्यक है।

सहायक नीतियों एवं योजनाओं का विश्लेषण

ब्रंटलैंड कमीशन की रिपोर्ट (1987)

  • सतत् विकास संवादों में सामूहिक पर्यटन एवं पर्यावरणीय गिरावट के समाधान के रूप में स्थायी पर्यटन पर व्यापक रूप से बहस हुई है।
  • रियो पृथ्वी सम्मेलन (1992) ने जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन तथा मरुस्थलीकरण का सामना करने हेतु बाध्यकारी समझौतों द्वारा इसमें एक और अध्याय जोड़ा।
  • यह समझने के लिये कि ये 12 हिमालयी राज्य सतत् पर्यटन को बनाए रखने में कितने सक्षम हैं, बारह मुख्य क्षेत्रों (सतत् पर्यटन रणनीति के लिये यूनेस्को परीक्षण सूची मसौदा द्वारा निर्धारित) का मूल्यांकन किया गया। ये 12 क्षेत्र हैं:

(1) आपदा प्रबंधन (2) प्रदूषण नियंत्रण (3) आगंतुक प्रबंधन (4) पर्यटक यातायात प्रबंधन (5) संकट प्रबंधन (6) अपशिष्ट प्रबंधन (7) प्राकृतिक संसाधन एवं पारिस्थितिकी प्रबंधन (8) गुणवत्ता मानक/नियंत्रण तंत्र (9) पर्यटन उद्यम विकास प्रशासन (10) ऊर्जा (11) लैंगिक आधार, तथा (12) विपणन एवं ब्रांडिंग।

उपर्युक्त 12 मानकों के आधार पर IHR में पर्यटन का आकलन:

  • IHR के अधिकांश राज्यों में इन मापदंडों को नीतियों या योजनाओं के निर्माण में बहुत कम महत्त्व दिया जाता है।
  • उत्तर-पूर्व क्षेत्र में सिक्किम को छोड़कर केवल पश्चिमी हिमालयी राज्यों में ही विस्तृत तथा समावेशी नीतियाँ एवं योजनाएँ हैं।
  • इसी प्रकार नगालैंड एवं पश्चिम बंगाल की पर्यटन नीतियों में उपरोक्त संकेतकों को बहुत ही मामूली महत्त्व दिया गया है।
  • आमतौर पर सभी IHR राज्यों की औद्योगिक नीति में अन्य क्षेत्रीय नीतियों एवं योजनाओं के साथ सहयोगात्मक तत्त्वों का अभाव है।
  • यह देखना उत्साहजनक है कि अपशिष्ट प्रबंधन, विपणन एवं ब्रांडिंग तथा पर्यटन उद्यम विकास (प्रशासन) का बड़े पैमाने पर प्रतिनिधित्व किया जाता है।

IHR राज्यों की नीतियाँ सतत् पर्यटन संकेतक (UNWTO) क्षेत्रों के साथ मेल खाती हैं

  • संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन (United World Nations Tourism Organization- UNWTO) ने ‘पर्यटन स्थलों के लिये सतत् विकास के संकेतक: एक गाइडबुक’ में 13 प्रमुख सतत् पर्यटन संकेतकों के साथ प्रकाशित किया।

(1) मेज़बान समुदायों की सुख-समृद्धि (2) सांस्कृतिक संपत्ति कायम रखना (3) पर्यटन में सामुदायिक भागीदारी (4) पर्यटकों की संतुष्टि (5) स्वास्थ्य एवं सुरक्षा (6) पर्यटन से आर्थिक लाभ प्राप्त करना (7) मूल्यवान प्राकृतिक संपत्ति का संरक्षण (8) दुर्लभ प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन (9) पर्यटन गतिविधियों के प्रभावों को सीमित करना (10) पर्यटन गतिविधियों एवं स्तरों को नियंत्रित करना (11) गंतव्य नियोजन एवं नियंत्रण (12) उत्पादों एवं सेवाओं की डिज़ाइनिंग (13) पर्यटन संचालन एवं सेवाओं की स्थिरता।

पर्यटन क्षेत्र के अवसर एवं प्रतिमान

  • अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन से प्राप्त राजस्व के मामले में भारत 1.62% की हिस्सेदारी के साथ दुनिया में 15वें स्थान पर है। वर्ष 2015 में भारत में 8.03 मिलियन विदेशी पर्यटकों का आगमन हुआ था, जो वर्ष 2014 की तुलना में 4.5% अधिक है।
  • आर्थिक सर्वेक्षण 2018 के अनुसार, यह क्षेत्र रत्नों, आभूषणों तथा परिधानों के बाद तीसरा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा अर्जक है।
  • भारत का लक्ष्य पर्यटन के माध्यम से 100 मिलियन नौकरियों का सृजन करना है तथा अगले पाँच वर्षों में सालाना 40 मिलियन विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करना है। वर्तमान में प्रतिवर्ष 14.4 मिलियन अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक भारत आते हैं।
  • हालाँकि IHR में पर्यावरण की भेद्यता (उदाहरण- वनों की कटाई पर प्रतिबंध) के कारण पर्यटन निजी क्षेत्र के लिये निवेश के बहुत अनुकूल नहीं है।

पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये सरकार की पहल

  • कर प्रोत्साहन: पूरे भारत में 2-सितारा श्रेणी में नए होटल स्थापित करने के लिये आयकर अधिनियम की धारा 35 AD के तहत निवेश से संबंधित कटौती का प्रावधान जोड़ा गया है। भूमि को छोड़कर किसी प्रकार के पूंजी निवेश पर 100% कटौती की व्यवस्था की गई है।
  • राज्य द्वारा प्रोत्साहन: राज्य सरकारों द्वारा प्रस्तावित प्रोत्साहन में भूमि की लागत में सब्सिडी, स्टांप शुल्क में छूट, भूमि की बिक्री/पट्टे पर छूट, बिजली शुल्क कर प्रोत्साहन, ब्याज पर ऋण की रियायती दर, निवेश सब्सिडी/कर प्रोत्साहन, पिछड़े क्षेत्रों में सब्सिडी तथा मेगा परियोजनाओं के लिये विशेष प्रोत्साहन पैकेज शामिल हैं। उत्तर-पूर्व, जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड आदि विशेष क्षेत्रों में परियोजनाएँ स्थापित करने के लिये प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है।
  • पर्यटन मंत्रालय द्वारा प्रोत्साहन: ऐसी परियोजनाओं में सहायता प्रदान करना जिससे अधिक राजस्व की प्राप्ति हो। जैसे- बुनियादी ढाँचे के विकास में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) को समर्थन देना; सेवा प्रदाता की क्षमता निर्माण के लिये योजनाएँ, आदि।
  • 'स्वच्छ पर्यटन' (Swachh Paryatan) नामक एक मोबाइल एप्लिकेशन वर्ष 2016 में शुरू की गई, जो नागरिकों को देश भर के विभिन्न पर्यटन स्थलों पर स्वच्छता के किसी भी मुद्दों पर रिपोर्ट करने की सुविधा देती है।
  • पर्यटन मंत्रालय ने वर्ष 2016 में 12 भाषाओं में 24x7 टोल फ्री बहु-भाषीय (Multi-lingual) पर्यटक हेल्पलाइन शुरू की।

सीमा-पार पर्यटन के स्वरुप (Trans-Boundary Tourism Aspects)

  • IHR तथा इसके पड़ोसी देशों में जीवन स्तर में सुधार, पारंपरिक सीमा-पार तीर्थयात्रियों (जैसे तिब्बत में कैलाश, नेपाल में मुक्तिनाथ, उत्तराखंड में चार धाम, भारत) तथा पड़ोसी देशों से पर्यटकों की निरंतर बढ़ती संख्या के गवाह हैं। इसलिये IHR के पास एक स्पष्ट सीमा-पार तथा मज़बूत अंतर-राज्यीय समन्वय होना चाहिये क्योंकि आगंतुक एवं पर्यटन भागीदार (दक्षिण एशिया) पर्यटन के मानकों की अलग समझ, नाज़ुक सामाजिक, पारिस्थितिक और सांस्कृतिक संदर्भों एवं संवेदनशीलता के बारे में जागरूकता के साथ सीमा-पार से यात्रा कर रहे हैं।
  • IHR स्थल सीमा-पार संरक्षित क्षेत्रों को जोड़ने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं (उदाहरण के लिये, भारत, नेपाल तथा भूटान के बीच 19 संरक्षित क्षेत्रों के साथ कैलाश एवं कंचनजंगा के भारत-नेपाल सीमा पर Askot-ANCA)।
  • "IHR में सीमा पार सर्किट" (Cross-Border Circuits in IHR) पर्यटन स्थलों के लिये एक आकर्षक योजना है

सांस्कृतिक प्रतिमान पर निर्माण

  • दुनिया में कहीं भी किसी अन्य पर्वत श्रृंखला ने लोगों के जीवन को इस तरह प्रभावित नहीं किया है और न ही किसी राष्ट्र की नियति को आकार दिया है, जैसा कि हिमालय का संबंध भारत से है। अपनी भौतिक एवं प्राकृतिक भव्यता तथा सांस्कृतिक, सौंदर्यपरकता एवं पवित्र विरासत मूल्यों के अलावा, ये पहाड़ एशिया के वाटर टॉवर्स (Asia’s Water Towers) हैं तथा इन्हें ‘ तीसरे ध्रुव’ (Third Pole) के रूप में भी जाना जाता है।

IHR के संदर्भ में कुछ प्रमुख समस्याएँ:

  • सामाजिक-जनसांख्यिकीय समस्याएँ: आर्थिक अवसरों का निरंतर अभाव, सामान्य विकास प्रतिमान (जैसे कि भारत के मैदानी इलाकों के लिये) को अपनाना और स्थानीय समुदायों तक संसाधनों की अपर्याप्त पहुँच ने नकारात्मक प्रोत्साहन को बढ़ावा दिया है। परिणामस्वरूप उत्तराखंड के गाँवों से युवाओं एवं पुरुषों का पलायन हुआ तथा इस समय मुख्य रूप से महिलाएँ घरों में रहती हैं। इससे पहाड़ों में सामूहिकता का सांस्कृतिक एवं सामाजिक ताना-बाना नष्ट हुआ है।
  • प्रबंधन में गिरावट: पर्यटन एवं प्रौद्योगिकियों (सड़क और बुनियादी ढाँचे, विनिर्माण) सहित प्रबंधन अवधारणाओं को अपनाए जाने (जो कि मैदानी इलाकों के लिये उपयुक्त हैं) से पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का ह्रास हुआ है तथा मानव-वन्यजीव संघर्ष, जंगल में लगने वाली आग, झरनों के सूखने एवं भूमि संचय के साथ भूमि के क्षरण जैसी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।
  • सुरक्षा एवं राष्ट्रीय संप्रभुता: चूँकि प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक विरासत का तेज़ी से ह्रास हो रहा है, इसलिये सीमावर्ती एवं दूरदराज़ के क्षेत्रों से शहरी केंद्रों के हरे चरागाहों तक निर्वासन हो रहा है। इस प्रकार 60 मिलियन की शेष आबादी में सामाजिक जनसांख्यिकीय अलगाव की भावना आ रही है। इस प्रकार सीमाओं पर स्थिति की संवेदनशीलता (Sensitiveness of Situation) दिखाई दे रही है क्योंकि अवैध व्यापार, वन्यजीवों की तस्करी आदि बढ़ रही है तथा सांस्कृतिक संबंधों से सीमा-पार जुड़ाव आगे चलकर अंतर-देशीय ध्रुवीकरण की ओर अग्रसर हो रहा है।
  • सामंजस्य की कमी: जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, IHR में किये गए विकास निवेश और हस्तक्षेप सामंजस्यपूर्ण तरीके से नहीं किये जा रहें हैं, इसलिये योजना एवं कार्यान्वयन संस्थानों तथा नेटवर्क के बीच ताल-मेल की कमी बनी हुई है जो अक्सर पर्यटन के विकास पथ को अस्थिर मॉडल की ओर ले जाती है।

IHR के उपरोक्त परिदृश्य को देखते हुए IHR की प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है जिसके लिये सरकार निम्नलिखित प्रयासों का अनुसरण कर रही है:

  • पर्यटन सेवाओं को उपलब्ध कराने में प्राचीन ज्ञान एवं समझ का समावेश, संगीत नाटक अकादमी (SNA), संस्कृति मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संगठन, देश के विभिन्न हिस्सों में राष्ट्रीय स्तर के त्योहारों का आयोजन करके देश की लोक-कला एवं जनजातीय प्रदर्शन कलाओं तथा कठपुतली परंपराओं पर काम कर रहा है।
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान की तर्ज पर देश के विभिन्न राज्यों के त्योहारों, लोक कलाओं तथा जनजातीय प्रदर्शन कला परंपराओं को प्रदर्शित करते हुए "एक भारत श्रेष्ठ भारत" पहल भी IHR में पर्यटन के लिये विरासत मूल्य को जोड़ने का एक अभिनव तरीका है।

सर्वोत्तम प्रथाएँ

WTO द्वारा 'पर्यटन को और अधिक सतत् बनाने' हेतु दिशा निर्देश (WTO & UNEP, 2005):

(Making Tourism More Sustainable)

  • स्थायी अथवा सतत‍् पर्यटन (Sustainable Tourism) में आगंतुकों, उद्योग, पर्यावरण तथा मेज़बान समुदायों की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए वर्तमान एवं भविष्य के आर्थिक, सामाजिक तथा पर्यावरणीय प्रभावों का पूरा ध्यान रखा जाता है। यह पर्यटन का कोई विशेष रूप नहीं है बल्कि, इसमें पर्यटन के सभी प्रकारों को और अधिक सतत् बनाने का प्रयास किया जाता है।
  • इसमें पर्यावरणीय संसाधनों का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित किया जाता है जो पर्यटन विकास में एक प्रमुख तत्त्व है, इसमें आवश्यक पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को बनाए रखा जाता है तथा इससे प्राकृतिक संसाधनों एवं जैव-विविधता के संरक्षण में मदद मिलती हैं।
  • इसके लिये ज़रूरी है कि मेज़बान समुदायों की सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता का सम्मान किया जाए, उनकी निर्मित एवं जीवित सांस्कृतिक विरासत एवं पारंपरिक मूल्यों का संरक्षण किया जाए तथा अंतर-सांस्कृतिक समझ एवं सहिष्णुता को बढ़ाने में योगदान दिया जाए।
  • व्यवहार्य एवं दीर्घकालिक आर्थिक संचालन सुनिश्चित करना; सभी हितधारकों को सामाजिक-आर्थिक लाभ का न्यायसंगत वितरण; मेज़बान समुदायों के लिये स्थिर रोज़गार एवं आय-अर्जित करने के अवसर तथा सामाजिक सेवाएँ तथा गरीबी उन्मूलन में योगदान करना, आदि इसके प्रमुख उद‍्देश्य है।

UNEP की रिपोर्ट ‘हरित अर्थव्यवस्था में पर्यटन’ (WTO एवं UNEP, 2012):

(Tourism in the Green Economy)

  • यह रिपोर्ट ‘ग्रीन टूरिज़्म’ में निवेश को प्रोत्साहित करती है। साथ ही इस तरह के निवेश को कैसे जुटाना है, इस पर मार्गदर्शन प्रदान करता है।
  • यह वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में क्षेत्र के योगदान, आवासीय जल के उपयोग की तुलना में जल की अत्यधिक खपत, अनुपचारित जल के निर्वहन, कचरे का उत्पादन, स्थानीय स्थलीय एवं समुद्री जैव-विविधता को नुकसान तथा स्थानीय संस्कृतियों, निर्मित विरासत एवं परंपराओं के अस्तित्व को होने वाले खतरे सहित पर्यटन के विकास की चुनौतियों पर प्रकाश डालती है।

TERI एवं मेट्रो इकोनॉमिका (2013)

(TERI and Metroeconomica)

  • यह एक विशेष ‘पर्यटक कर’ (Tourist Tax) की शुरूआत का सुझाव देता है। यह आगंतुकों को उच्च गुणवत्ता वाली पर्यावरणीय सेवाओं के प्रावधान के लिये सेवा शुल्क के रूप में एक मामूली राशि एकत्र/जमा करने का सुझाव प्रस्तुत करता है।

IHR में अनुशंसित संपोषणीय आवश्यकताएँ

ग्लोबल सस्टेनेबल टूरिज्म काउंसिल (Global Sustainable Tourism Council)

  • (एक गंतव्य के लिये)
    • सतत‍् गंतव्य रणनीति: यह पर्यावरण, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, गुणवत्ता, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा तथा सौंदर्य संबंधी मुद्दों पर विचार करती है तथा इसे सार्वजनिक भागीदारी के साथ विकसित किया गया है।
    • गंतव्य प्रबंधन: यह पर्यावरणीय, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक मुद्दों के प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदारियों, निरीक्षण एवं कार्यान्वयन क्षमता को परिभाषित करती है।
    • निगरानी: यह गंतव्य की निगरानी, ​​सार्वजनिक रूप से रिपोर्टिंग करने तथा पर्यावरण, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, पर्यटन एवं मानव अधिकारों के मुद्दों पर प्रतिक्रिया करने के लिये एक प्रणाली है।
    • जलवायु परिवर्तन अनुकूलन: इसके अंतर्गत जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिमों एवं अवसरों की पहचान की जाती है तथा जलवायु परिवर्तन अनुकूलन रणनीतियों को प्रोत्साहित किया जाता है।
    • संपत्ति अधिग्रहण: इसमें संपत्ति अधिग्रहण से जुड़े कानून और नियम निहित हैं, ये नियम-कानून सांप्रदायिक एवं स्वदेशी अधिकारों का पालन करते हैं, सार्वजनिक परामर्श सुनिश्चित करते हैं, तथा पूर्व सूचित सहमति और/या उचित मुआवजे के बिना पुनर्वास को अधिकृत नहीं करते हैं।
    • संकट एवं आपातकालीन प्रबंधन: पर्यटन गंतव्य के पास संकट एवं आपातकालीन योजना है जो गंतव्य के लिये उपयुक्त है।
    • संवेदनशील वातावरण का संरक्षण: पर्यटन गंतव्य में पर्यटन के पर्यावरणीय प्रभावों पर नज़र रखने, निवास स्थान, प्रजाति और पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण एवं आक्रामक प्रजातियों के समावेशन को रोकने के लिये एक प्रणाली है।
    • ठोस अपशिष्ट में कमी: पर्यटन गंतव्यों में ठोस कचरे को कम करने, उसका पुन: उपयोग करने तथा पुनर्चक्रण करने के लिये उद्यमों को प्रोत्साहित करने हेतु एक प्रणाली।
  • (होटल तथा टूर ऑपरेटरों के लिये)
    • कानूनी अनुपालन: संगठन सभी स्थानीय, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों एवं विनियमों का अनुपालन करता है तथा इससे संबद्ध अन्य पहलुओं में स्वास्थ्य, सुरक्षा, श्रम एवं पर्यावरणीय पहलू भी इसमें शामिल हैं।
    • प्रभाव एवं अखंडता: पुरातात्त्विक एवं सांस्कृतिक विरासत तथा पवित्र स्थलों की अखंडता को संरक्षित किया गया है।
    • शोषण एवं उत्पीड़न: संगठन ने विशेष रूप से बच्चों, किशोरों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों एवं अन्य कमज़ोर समूहों के साथ वाणिज्यिक, यौन अथवा किसी अन्य प्रकार के शोषण या उत्पीड़न के खिलाफ एक नीति लागू की है।

IHR क्षेत्र में स्थायी पर्यटन तथा संबंधित कार्यों के लिये अनुकूलित उद्देश्य:

  • आर्थिक व्यवहार्यता: पर्यटन स्थलों तथा उद्यमों की व्यवहार्यता एवं प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करने हेतु, ताकि वे दीर्घकालिक रूप से देश को समृद्धि को बनाए रखने एवं लाभ पहुँचाने में सक्षम हों।
  • रोज़गार की गुणवत्ता एवं सामाजिक न्याय: मानकीकृत कौशल एवं उद्यमिता विकास, वेतन का स्तर, सेवा की शर्तों को शामिल करते हुए पर्यटन द्वारा निर्मित तथा समर्थित स्थानीय नौकरियों तक सभी की पहुँच को सुनिश्चित करना एवं लिंग, विकलांगता या अन्य तरीकों से भेदभाव की रोकथाम करना।
  • संतोषजनक सेवा: लिंग, विकलांगता या अन्य तरीकों से भेदभाव के बिना सभी पर्यटकों के लिये एक सुरक्षित, संतोषजनक सेवा सुनिश्चित करना।
  • सामुदायिक हित: स्थानीय समुदायों में जीवन की गुणवत्ता को बनाए रखने, उसे और मज़बूत बनाने के लिये सामाजिक संरचनाओं एवं संसाधनों, सुविधाओं तथा जीवन समर्थन प्रणालियों तक पहुँच सहित किसी भी प्रकार के सामाजिक क्षरण या शोषण से बचाव का प्रावधान करता है।
  • सांस्कृतिक समृद्धि, एकीकरण तथा आपसी समझ: ऐतिहासिक धरोहरों, प्रमाणिक संस्कृति, परंपराओं और मेजबान समुदायों की विशिष्टता का सम्मान करना तथा उसमें वृद्धि करना।
  • भौतिक अखंडता: IHR की गुणवत्ता को बनाए रखना एवं उसमें वृद्धि करना, ग्रामीण एवं दूरस्थ दोनों प्रकार के क्षेत्रों को पर्यावरणीय क्षति से सुरक्षित रखना। इसमें कैरिंग कैपेसिटी मैनेजमेंट, आधरभूत संरचना, पारिस्थितिकी की लेबलिंग तथा अपशिष्ट प्रबंधन आदि शामिल हैं।
  • पहाड़ की जैव विविधता: पुराने समय में ग्रामीण परिदृश्यों की गुणवत्ता एवं वे पर्यटन से कैसे प्रभावित हैं, इस पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाता था। हालाँकि ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में मानव निर्मित, प्राकृतिक वातावरण की अखंडता तथा सौंदर्य गुणवत्ता के लिये समान चिंता होनी चाहिये।
  • संसाधन दक्षता: पर्यटन सुविधाओं तथा सेवाओं के विकास एवं संचालन में दुर्लभ एवं गैर-नवीकरणीय संसाधनों के उपयोग को कम करना।
  • पर्यावरणीय शुचिता: पर्यटन उद्यमों एवं पर्यटकों द्वारा फैलाए जाने वाले वायु, जल तथा भूमि प्रदूषण एवं कचरे के उत्पादन को कम करना।
  • निगरानी मानक एवं मूल्यांकन: समयबद्ध सुधारात्मक नीति एवं अभ्यास क्रियाओं के संबंध में पहल करने के लिये परिवर्तन एवं प्रदर्शन की माप हेतु इको-लेबलिंग मानकों को डिज़ाइन तथा कार्यान्वित करना।

प्रभाव के लिये कार्रवाई

राज्यों के लिये कार्यसूची:

  • संस्थान एवं प्रक्रियाएँ: उत्पाद विकास, मानकों, प्रमाणीकरण तथा दिशा-निर्देशों सहित पर्यटन एवं संबंधित सूचना के प्रमुख पहलुओं के निर्माण, विपणन और संवर्द्धन के प्रमुख पहलुओं की देखरेख के लिये पर्यटन विभागों के भीतर अलग-अलग विभाग बनाना।
  • क्षमता निर्माण: सभी प्रमुख सेवा प्रदाताओं तथा उत्पादकों सहित विभिन्न भागीदारों एवं क्षेत्रों के IHR विशिष्ट जागरूकता और संवेदीकरण पैकेज को डिज़ाइन एवं वितरित करना, एक सक्रिय मीडिया अभियान तथा मौजूदा यात्रा संबंधी वेबसाइटों एवं पर्यटन सूचना केंद्रों के माध्यम से इस जानकारी को आगे बढ़ाना।
  • अनुसंधान/विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी: निकट भविष्य में पर्यटकों का एक विस्तृत सर्वेक्षण किया जाना चाहिये कि वे किस प्रकार की सेवा की मांग कर रहे हैं तथा अंतर क्षेत्रों की पहचान करें। उद्यमिता तथा संबंधित कौशल विस्तार को व्यापक बनाने के लिये नए अवसरों एवं प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना।
  • वित्त एवं बाज़ार: उद्यमशीलता तथा स्टार्ट-अप्स के लिये बाजार/राज्य के साधन (जैसे- साहसिक पर्यटन, खेल उपकरण, अपशिष्ट प्रबंधन प्रौद्योगिकियाँ) को ऋण एवं कम ब्याज वाले ऋण तक पहुँच की सुविधा देकर प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • नियोजन, कार्यान्वयन एवं निगरानी: सभी IHR राज्यों को पर्यटन से संबंधित योजनाओं तथा निवेशों को परिकल्पित करने के लिये राज्य विकास मॉडल से जोड़ना होगा जो लक्षित निजी क्षेत्र के निवेश को एकीकृत करते हैं। पर्यटकों की संतुष्टि की निगरानी तथा सार्वजनिक रूप से रिपोर्टिंग करने के लिये एक प्रणाली तैयार करनी चाहिये।
  • नीति एवं नियम: सभी प्रमुख सेवा प्रदाताओं को प्रतिकूल प्रभावों को कम करने तथा स्थानीय लाभों एवं आगंतुक पूर्ति को अधिकतम करने के लिये स्वदेशी समुदायों तथा सांस्कृतिक या ऐतिहासिक रूप से संवेदनशील स्थलों की यात्रा के प्रबंधन और संवर्द्धन के लिये अंतर्राष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय मानक व्यवहारों एवं स्थानीय रूप से सहमत निर्देशों संवर्द्धन के अनुरूप तैयार किया जाना चाहिये।

सारांश

  • वर्ल्ड ट्रैवल एंड टूरिज़्म काउंसिल (WTTC) द्वारा सतत् पर्यटन के लिये उल्लिखित प्रमुख सिद्धांतों के आधार पर कई कार्य प्रस्तावित किये गए हैं तथा इन कार्यों के कार्यान्वयन से IHR में सतत् पर्यटन संभव हो सकता है।
  • इसके लिये मौजूदा राष्ट्रीय और राज्य वित्त पोषण सुविधाओं तक बेहतर पहुँच सुनिश्चित की जानी चाहिये ताकि समयबद्ध तरीके से कार्यों को कार्यान्वित किया जा सके।
  • व्यावसायिक क्षेत्र में प्रमुख साझेदारों के रूप में स्थानीय हितधारकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा समावेशी पर्यटन व्यवसाय में निवेश करने के लिये उन्हें सक्षम बनाने संबंधी स्थितियाँ बनाई जानी चाहिये।
  • IHR में मौजूदा संस्थागत तथा शासन परिदृश्य को दीर्घकालिक रूप से IHR के विकास की संभावनाओं के लिये अद्यतन एवं उन्मुख करने की ज़रुरत है।
  • क्षमता विकास कार्यक्रमों की आवश्यकता है जो न केवल सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र के भविष्य के नीति-निर्माताओं एवं पेशेवरों का उल्लेख करते हैं बल्कि स्थायी पर्यटन के माध्यम से स्थानीय अर्थव्यवस्था तथा उद्यमिता के मार्ग को भी सक्षम बनाते हैं।
  • यदि यहाँ सुझाई गई कार्रवाईयों की सूची को वर्तमान पर्यटन विकास योजनाओं में शामिल एवं कार्यान्वित किया जाता है, तो संभावना है कि वे IHR के संरक्षण एवं विकास में योगदान करेंगी।
  • ऐसी कार्यान्वयन रणनीतियाँ IHR राज्यों के अनुसार होनी चाहिये तथा व्यावसायिक योजनाओं पर आधारित होनी चाहिये जो स्पष्ट रूप से इको-लेबलिंग मापदंडों, निवेश योजनाओं तथा निगरानी एवं मूल्यांकन से संबंधित हो।
  • यहाँ यह महत्त्वपूर्ण है कि जलवायु परिवर्तन के शमन एवं अनुकूलन की क्रियाएँ राज्यीय, राष्ट्रीय नीतियों एवं रणनीतिक योजनाओं में परिलक्षित हों एवं IHR में सतत् पर्यटन में निवेश को प्रभावित करती हों।