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किसानों की आय को दोगुना करना : नीति आयोग की रिपोर्ट | 15 Jan 2019 | कृषि

संदर्भ


भारत में कृषि क्षेत्रक के विकास के लिये पूर्ववर्ती कार्यनीति ने मुख्यतया कृषि उत्पादन को बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा को सुधारने पर ज़ोर दिया। इस कार्यनीति में निम्नलिखित मुद्दों को शामिल किया गया था-

(a) बेहतर प्रौद्योगिकी और किस्मों के माध्यम से उत्पादकता को बढ़ाना तथा गुणवत्तापूर्ण बीज, उर्वरक, सिंचाई और कृषि रसायनों के उपयोग को बढ़ावा देना।
(b) कुछ फसलों के लिये लाभकारी कीमतों तथा कृषि संबंधी निवेश सामग्री पर सब्सिडियों के रूप में प्रोत्साहन ढाँचा तैयार करना।
(c) कृषि में और कृषि के लिये सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा देना।
(d) इससे संबद्ध संस्थाओं को सुविधा प्रदान करना।

किसानों की आय में विगत वृद्धि


यह विडंबना है कि CSO द्वारा किसानों की आय के अनुमान प्रकाशित नहीं किये जाते हैं, हालाँकि कृषि के लिये समय श्रृंखला और क्षेत्रकीय आय के अद्यतन अनुमान, राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी में उपलब्ध हैं। तथापि, NSSO ने अपने राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षणों नामत: ‘किसानों की स्थिति का आकलन 2003’ और ‘कृषि परिवारों की स्थिति का आकलन 2013’ के आधार पर किसानों की आय के स्रोतों और अनुमानों का सृजन करना है।

SAS के अनुसार

किसानों की आय में वृद्धि के स्रोत


किसानों की वास्तविक आय को 2015-16 के आधार वर्ष की तुलना में 2022-23 तक दोगुना करने के लिये किसानों की आय में 10.41 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर अपेक्षित है। इसका अर्थ यह है कि कृषि आय की वर्तमान और पूर्व में हासिल की गई वृद्धि दर को तेज़ी से बढ़ाना होगा। अत: कृषि क्षेत्रक के अंदर और बाहर किसानों की आय को बढ़ाने के सभी संभावित स्रोतों का सदुपयोग करने के लिये सशक्त उपायों की ज़रूरत होगी। कृषक क्षेत्रक के अंतर्गत प्रचालनरत, वृद्धि के प्रमुख स्रोत निम्नानुसार हैं:

(a) कृषि क्षेत्रक के अंतर्गत आय को बढ़ाने के स्रोत


कृषि उत्पादकता में वृद्धि

सकल कारक उत्पादकता में सुधार

उच्च मूल्य वाली फसलों में विविधीकरण

फसल गहनता में वृद्धि


भारत में फसल उगाने के दो मुख्य मौसम हैं नामत: खरीफ और रबी जिसकी वजह से एक ही भूखंड पर एक वर्ष में दो फसलों की खेती करना संभव हो जाता है। सिंचाई और नई प्रौद्योगिकियों की उपलब्धता के फलस्वरूप खरीफ के मुख्य मौसम और रबी के मुख्य मौसम के बाद अल्पावधि फसलों को उगाना संभव हो गया है।

कृषि क्षेत्र से इतर आय वृद्धि के स्रोत


किसानों के लिये व्यापार की शर्तों को बेहतर बनाना

किसानों या कृषि क्षेत्र की वास्तविक आय का आकलन करने के लिये विभिन्न अस्फीति कारकों का उपयोग किया गया है। इनमें से कुछ है- किसानों द्वार प्रदत्त मूल्यों का सूचकांक, आगम मूल्यों का सूचकांक और गैर-कृषि वस्तुओं के थोक मूल्यों का सूचकांक आदि।

जोतदारों को गैर-कृषि और सहायक कार्यों में लगाना


ग्रामीण क्षेत्रों में कुल कार्यबल का 64 प्रतिशत हिस्सा कृषि क्षेत्र में लगा हुआ है और कुल ग्रामीण निवल घरेलू उत्पाद में 39 प्रतिशत योगदान करता है (तालिका)। इससे पता चलता है कि कार्यबल कृषि पर एक सीमा से अधिक निर्भर है क्योंकि रोज़गार के अन्य विकल्प नहीं हैं। इससे कृषि और गैर-कृषि क्षेत्र के बीच प्रति श्रमिक उत्पादकता में व्यापक अंतर का भी पता चलता है।

2011-12 के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और गैर-कृषि क्षेत्रों में श्रमिक उत्पादकता

♦ खासकर विनिर्माण क्षेत्रकों में कौशल और विनिर्दिष्ट शिक्षा स्तर की अपेक्षा;
♦ औद्योगिक इकाइयों का ग्रामीण बस्तियों से दूर होना;
♦ भावी श्रमिकों के लिये उत्पादक रोज़गार सुनिश्चित करने के लिहाज से गैर-कृषि क्षेत्र की क्षमता का सीमित होना।

किसानों की आय बढ़ाने की कार्यनीति


उत्पादन और आय में वृद्धि के स्रोतों को चार श्रेणियों में रखा जा सकता है:

  1. अवसंरचना सहित विकास पहलें
  2. प्रौद्योगिकी
  3. नीतियाँ
  4. सांस्थानिक तंत्र।

(1) विकास पहलें

उत्पादन बढ़ाने और लागत को कम करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में शुरू की गई कुछ विकास पहलों में शामिल हैं:

♦ धानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
♦ मृदा स्वास्थ्य कार्ड
♦ परंपरागत कृषि विकास योजना।

(2) प्रौद्योगिकी और नवप्रवर्तन


उत्पादकता और कृषक आय में संधारणीय वृद्धि के लिये हरित क्रांति के समय से ही भारतीय कृषि में प्रधान रही इनपुट बहुल प्रौद्योगिकियों की जगह नए विकल्प को अपनाने की आवश्यकता है।

(3) नीतियाँ


भारत ने 1991 में नई आर्थिक नीति के तहत व्यापक आर्थिक सुधारों को अपनाया। इन सुधारों में उदारीकरण, विनियमन और निजी क्षेत्र से अत्यधिक नियंत्रण तथा प्रतिबंधों को समाप्त करना शामिल है जिनसे आर्थिक क्रियाकलापों में निजी क्षेत्र की सहभागिता के लिये बड़ी अनुकूल परिस्थितियाँ पैदा हुईं। इन परिवर्तनों के प्रत्युत्तर में संघ सरकार ने वर्ष 2002 से कृषि क्षेत्र में कई सुधार किये। इनमें शामिल हैं:

किंतु कृषि संबंधी नीतिगत परिदृश्य में अधिक परिवर्तन परिलक्षित नहीं हुआ क्योंकि कृषि क्षेत्र में सुधार यत्र-तत्र, छिटपुट और आंशिक ही रहा।

कृषि क्षेत्र में अपेक्षित सुधारों की अनदेखी के कारण कृषि क्षेत्र और गैर-कृषि क्षेत्रों के बीच गंभीर असमानता उत्पन्न हुई है।

इस तुलना से पता चलता है कि बाज़ार सुधारों के अभाव में, कृषि दर कम रही और यह क्षेत्र गैर-कृषि क्षेत्रक की वृद्धि दर के मुकाबले पिछड़ गया।

यह विडंबना ही है कि कई राज्यों में कटाई के बाद कई फसलों की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम है। इससे पता चलता है कि किसानों का न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक कीमत दिलाना सुनिश्चित करने के लिये प्रतिस्पर्द्धी बाज़ारों अथवा अन्य तंत्र की कितनी आवश्यकता है।

(4) सांस्थानिक तंत्र

क्या किये जाने की आवश्यकता है?

विकास पहलें

तालिका: किसानों की आय दुगुनी करने के लिये विकास पहलों के आधार स्तर और लक्ष्य

स्रोत आधार स्तर और वर्ष लक्ष्य 2022-23
स्तरीय बीज : मिलियन टन 3.03 (2014-15) 7.97
उर्वरक : मिलियन टन 25.58 (2014-15) 36.24
सिंचाई : मिलियन हेक्टेयर 92.58 (2012.13) 110.40
कृषि प्रयोजन के लिये बिजली : 000 GWH 147.48 (2012-13) 307.39
एक से अधिक फसल के अंतर्गत: प्रतिशत 40.00 (2012-13) 53.00
फलों और सब्जियों के अंतर्गत क्षेत्रफल : मिलियन हेक्टेयर 16.75 (2013-14) 26.38
उच्च उत्पादक किस्मों वाले क्षेत्रफल : : 69.3 (2014-15) 90.0


हरित क्रांति के 50 वर्ष के बाद भी अनाज की फसल वाले कुल क्षेत्रफल के केवल 69 प्रतिशत में उच्च उत्पादक किस्मों का उपयोग हो रहा है। चावल जैसी महत्त्वपूर्ण फसलों में देश के केवल 62 प्रतिशत क्षेत्रफल में उच्च उत्पादक किस्मों का उपयोग होता है- इसके बावजूद कि कुछ राज्य एचवाईवी के अंतर्गत 100 प्रतिशत कवरेज दर्शा रहे हैं। कम कवरेज वाले राज्यों में प्रमाणित बीज की बेहतर आपूर्ति के साथ पारंपरिक किस्मों वाले क्षेत्रो में उच्च उत्पादक किस्मों का उपयोग किया जा सकता है।

पशुधन उत्पादकता


देश में पशुधन की उत्पादकता बेहद कम है। पशुधन उत्पादकता बढ़ाने के लिये नस्ल संवर्द्धन, बेहतर चारा और पोषाहार, पशु स्वास्थ्य तथा बेहतर झुंड समूहबद्धता आवश्यक है। विकास पहलों के लिहाज से 2022-23 तक निम्नांकित लक्ष्यों के सुझाव दिये जाते हैं:

संवर्द्धित प्रौद्योगिकियों का सृजन और प्रसार

नीतियाँ और सुधार


भारतीय कृषि की संभाव्यता का उपयोग करने और किसानों की आय बढ़ाने की राह में सबसे बड़ी बाधा है- संगठित निजी क्षेत्र की कृषि में कम भागीदारी होना।

A. कृषि विपणन: ई-नैम नामक एक नई पहल शुरू की गई है ताकि राज्य कृषि वस्तुओं के लिये ई-व्यापार मंचों को अपना सकें। इसमें इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म का उपयोग कर देश भर की APMC मंडियों का एकीकरण करना शामिल है।

तालिका : कृषि क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के सुधारों की सूची

1. सांस्थानिक सुधार : 1.1 से 1.7 तक के लिये प्रावधान करना
1.1 निजी मंडी
1.2 प्रत्यक्ष विपणन
1.3 अनुबंध कृषि
1.4 ई-ट्रेडिंग
1.5 एकल बिंदु लेवी
1.6 किसानों द्वारा उपभोक्ताओं को सीधी बिक्री
1.7 एकल व्यापारिक लाइसेंस
2. फलों और सब्जियों का विशेष प्रतिपादन : APMC से अनधिसूचित करना
3. ई-NAM में भागीदारी

B. भूमि पट्टा: नीति आयोग द्वारा प्रस्तावित मॉडल भूमि पट्टा कानून के आधार पर भूमि पट्टा कानून को अधिनियमित करना।

C. निजी भूमि पर वानिकी: वृक्षों की कटाई और ढुलाई पर लगे प्रतिबंधों को हटाना। पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार इमारती लकड़ी और काष्ठ आधारित उद्योग को अनुमति देना।

उत्पादकों के लिये मूल्य प्रोत्साहन


पिछले पाँच दशकों का अनुभव दर्शाता है कि कृषि विकास पर मूल्यों का गंभीर प्रभाव पड़ता है और वे किसानों की आय के महत्त्वपूर्ण निर्धारक हैं।

भरोसेमंद कृषि निवेश को प्रोत्साहन

आधुनिक प्रणालियों और पद्धतियों के उपयोग की दृष्टि से हमारी कृषि में पूंजी और ज्ञान की कमी रही है। आधुनिक फर्मों के साथ संविदा कृषि के किसानों को इनपुट और उन्नत प्रौद्योगिकी, कौशल अंतरण, गारंटीकृत और लाभकारी मूल्यों और भरोसेमंद बाज़ार तक पहुँच का प्रावधान करने में मदद मिलती है।

मूल्य संवर्द्धन को प्रोत्साहन


अनौपचारिक या परंपरागत आपूर्ति शृंखलाएँ भारत में कृषि की विशेषताएँ हैं जो स्थानीय मध्यस्थ व्यक्तियों और उसके बाद लघु स्थानीय भंडारों को उत्पाद उपलब्ध कराती हैं। औपचारिक मूल्य संवर्द्धन उसी उत्पाद को सामान्यत: बेहतर अथवा अधिक समान गुणवत्ता में, अधिक वाणिज्यिक फर्मों- थोक विक्रेताओं, सुपर बाज़ारों या निर्यातकों को उपलब्ध करवा सकते हैं। लघु उत्पादकों को घरेलू और निर्यातोन्मुखी दोनों प्रकार के अधिक आधुनिक मूल्य संवर्धन में समेकित करने के लिये मार्ग खोजने की आवश्यकता है।

उत्पादकों के संगठनों को प्रोत्साहन

उत्पादन को प्रसंस्करण से जोड़ना

आगे की राह

निष्कर्ष