गुरु तेग बहादुर का 350वाँ बलिदान दिवस | हरियाणा | 26 Aug 2025
            चर्चा में क्यों?  
हरियाणा विधानसभा ने सर्वसम्मति से गुरु तेग बहादुर के 350वें बलिदान दिवस पर उन्हें सम्मानित करने के लिये एक प्रस्ताव पारित किया और 25 नवंबर को कुरुक्षेत्र में एक बड़े कार्यक्रम की योजना की घोषणा की। 
- उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करते हुए नवंबर 1675 में चाँदनी चौक, दिल्ली में सर्वोच्च बलिदान दिया। 
मुख्य बिंदु
- गुरु तेग बहादुर को श्रद्धांजलि:  
- मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें कहा गया कि गुरु तेग बहादुर की आपसी सहयोग और भाईचारे की शिक्षाओं का प्रसार करना उनके बलिदान के प्रति सर्वोत्तम श्रद्धांजलि है। 
- प्रस्ताव में गुरु तेग बहादुर के अनुयायी भाई मति दास, भाई सती दास और भाई दयाला के बलिदान को भी याद किया गया, जिन्होंने अटूट विश्वास के साथ अपने प्राण त्याग दिये। 
 
- हरियाणा से संबंध:  
- गुरु तेग बहादुर ने अपनी यात्रा के दौरान हरियाणा के कई स्थानों का दौरा किया, जिनमें कुरुक्षेत्र, पेहोवा, कैथल, जींद, अंबाला, चीका और रोहतक शामिल हैं। इन स्थलों पर महत्त्वपूर्ण गुरुद्वारे स्थित हैं, जैसे कि जींद में गुरुद्वारा श्री धमतान साहिब तथा अंबाला में गुरुद्वारा श्री शीशगंज साहिब, जो उनके आशीर्वाद एवं शिक्षाओं के स्थायी प्रतीक हैं। 
 
- गुरु तेग बहादुर  
- वे 9वें सिख गुरु थे, जो अपनी शिक्षाओं, बहादुरी और बलिदान के लिये पूजनीय माने जाते हैं। 
- 21 अप्रैल, 1621 को अमृतसर में गुरु हरगोबिंद (छठे सिख गुरु) तथा माता नानकी के घर जन्मे गुरु तेग बहादुर का मूल नाम उनके तपस्वी स्वभाव के कारण त्याग मल रखा गया था। 
- भाई गुरदास से शास्त्रों में तथा बाबा बुड्ढा से युद्ध कला में प्रशिक्षण प्राप्त करके उन्होंने 13 वर्ष की आयु में ही युद्ध में अपनी विशिष्ट पहचान बना ली थी। 
- उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब में 116 भजनों का योगदान दिया, सिख शिक्षाओं का प्रसार करने के लिये व्यापक रूप से यात्रा की और चक-नानकी (अब आनंदपुर साहिब का हिस्सा) की स्थापना की। 
- वर्ष 1675 में, जबरन धर्मांतरण के खिलाफ धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर उन्हें दिल्ली में फाँसी दी गई, जिससे उन्हें “हिंद की चादर” (हिंद का रक्षक) की उपाधि मिली। 
 
सिख धर्म के दस गुरु:
| गुरु नानक देव (1469-1539)  | 
ये सिखों के पहले गुरु और सिख धर्म के संस्थापक थे। इन्होंने ‘गुरु का लंगर’ की शुरुआत की। वह बाबर के समकालीन थे। गुरु नानक देव की 550वीं जयंती पर करतारपुर कॉरिडोर को शुरू किया गया था।  | 
| गुरु अंगद (1504-1552)  | 
इन्होंने गुरुमुखी नामक नई लिपि का आविष्कार किया और ‘गुरु का लंगर’ प्रथा को लोकप्रिय बनाया।  | 
| गुरु अमर दास (1479-1574)  | 
इन्होंने आनंद कारज विवाह (Anand Karaj Marriage) समारोह की शुरुआत की। इन्होंने सिखों के बीच सती और पर्दा प्रथा जैसी कुरीतियों को समाप्त किया| ये अकबर के समकालीन थे।  | 
| गुरु राम दास (1534-1581)  | 
इन्होंने वर्ष 1577 में अकबर द्वारा दी गई ज़मीन पर अमृतसर की स्थापना की। इन्होंने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) का निर्माण शुरू किया।  | 
| गुरु अर्जुन देव (1563-1606)  | 
इन्होंने वर्ष 1604 में आदि ग्रंथ की रचना की। इन्होंने स्वर्ण मंदिर का निर्माण कार्य पूरा किया। वे शाहिदीन-दे-सरताज (Shaheeden-de-Sartaj) के रूप में प्रचलित थे। इन्हें जहाँगीर ने राजकुमार खुसरो की मदद करने के आरोप में मार दिया।  | 
| गुरु हरगोबिंद (1594-1644)  | 
इन्होंने सिख समुदाय को एक सैन्य समुदाय में बदल दिया। इन्हें "सैनिक संत" (Soldier Saint) के रूप में जाना जाता है। इन्होंने अकाल तख्त की स्थापना की और अमृतसर शहर को मज़बूत किया। इन्होंने जहाँगीर और शाहजहाँ के खिलाफ युद्ध छेड़ा।  | 
| गुरु हर राय (1630-1661)  | 
ये शांतिप्रिय व्यक्ति थे और इन्होंने अपना अधिकांश जीवन औरंगज़ेब के साथ शांति बनाए रखने तथा मिशनरी काम करने में समर्पित कर दिया।  | 
| गुरु  हरकिशन (1656-1664)  | 
ये अन्य सभी गुरुओं में सबसे कम आयु के गुरु थे और इन्हें 5 वर्ष की आयु में गुरु की उपाधि दी गई थी। इनके खिलाफ औरंगज़ेब द्वारा इस्लाम विरोधी कार्य के लिये सम्मन जारी किया गया था।  | 
| गुरु तेग बहादुर (1621-1675)  | 
इन्होंने आनंदपुर साहिब की स्थापना की।  | 
| गुरु गोबिंद सिंह (1666-1708)  | 
इन्होंने वर्ष 1699 में ‘खालसा’ नामक योद्धा समुदाय की स्थापना की। इन्होंने एक नया संस्कार "पाहुल" (Pahul) शुरू किया। ये मानव रूप में अंतिम सिख गुरु थे और इन्होंने ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को सिखों के गुरु के रूप में नामित किया।  |