सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व को मिला ‘अर्थ नेटवेस्ट ग्रुप अर्थ हीरोज़ पुरस्कार’ | जैव विविधता और पर्यावरण | 29 Jul 2021
              
            चर्चा में क्यों ?
28 जुलाई, 2021 को मध्य प्रदेश के सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व (Satpura Tiger Reserve) को सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन के लिये अर्थ गार्जियन श्रेणी में नेटवेस्ट ग्रुप अर्थ हीरोज़ (Earth Natwest Group Earth Heroes) पुरस्कार मिला।
- उल्लेखनीय है कि सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व को विश्व धरोहर की संभावित सूची में भी शामिल किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व के विषय में
- मध्यप्रदेश के होशंगाबाद ज़िले में स्थित सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व 2130 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह दक्कन बायो-जियोग्राफिक क्षेत्र का हिस्सा है।
- इसे वर्ष 2000 में स्थापित किया गया था तथा यह नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित है।
- सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व में तीन संरक्षित क्षेत्र शामिल हैं:
- सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान,
- बोरी अभयारण्य, और
- पचमढ़ी अभयारण्य।
 
 
- देनवा नदी:
- देनवा नदी पार्क का मुख्य जल स्रोत है। यह मध्य प्रदेश में होशंगाबाद ज़िले के दक्षिण-पूर्वी भाग से निकलती है और रानीपुर के दक्षिण में तवा नदी में मिलने से पहले पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर बहती है।
 
- जैवविविधता:
- जंतु: ये वन परिक्षेत्र बाघ सहित कई लुप्तप्राय प्रजातियों को आवास प्रदान करते हैं। यहाँ पाई जाने वाली अन्य प्रमुख प्रजातियों में ब्लैक बक, तेंदुआ, ढोल, भारतीय गौर, मालाबार विशालकाय गिलहरी, स्लॉथ बियर शामिल हैं।
- देश के बाघों की संख्या का 17 प्रतिशत और बाघ आवास का 12 प्रतिशत क्षेत्र सतपुड़ा में ही आता है। यह देश का सर्वाधिक समृद्ध जैवविविधता वाला क्षेत्र है।
 
- पक्षी: यहाँ पक्षियों की 300 से अधिक प्रजातियाँ देखी जा सकती हैं जिनमें मालाबार पाइड हॉर्नबिल, मालाबार व्हिसलिंग थ्रश और मध्य प्रदेश के राज्य पक्षी शाही पैराडाइज फ्लाईकैचर (स्थानीय नाम शाही बुलबुल/दूध राज) के साथ-साथ कई प्रवासी पक्षी जैसे इंडियन स्किमर, ब्लैक-बेल्लीड टर्न, बार-हेडेड गीज़ आदि शामिल हैं।
- वनस्पति: हिमालय क्षेत्र की 26 और नीलगिरि वनों में पाई जाने वाली 42 वनस्पति प्रजातियाँ सतपुड़ा वन क्षेत्र में भी पाई जाती हैं। इसलिये विशाल पश्चिमी घाट की तरह इसे उत्तरी घाट का नाम भी दिया गया है।
- सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व को भारत के मध्य क्षेत्र के ईको-सिस्टम की आत्मा कहा जाता है। यहाँ अकाई वट, जंगली चमेली जैसी वनस्पतियाँ हैं, जो अन्यत्र नहीं मिलतीं।
 
 
- पुरातात्त्विक महत्त्व: 1500 से 10,000 साल पुराने चित्रों के साथ 50 से अधिक शैलाश्रयों की उपस्थिति। उनमें से कुछ हाथी, शेर, बाघ, साही और पैंगोलिन के बहुत ही दुर्लभ चित्रण हैं।