बफर में सफर योजना | उत्तर प्रदेश | 28 May 2025
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश वन एवं वन्यजीव विभाग ने 'बफर में सफर योजना' नाम से एक नई इकोटूरिज़्म पहल शुरू की है।
मुख्य बिंदु
बफर में सफर योजना
- योजना के उद्देश्य:
- इस योजना का प्राथमिक लक्ष्य बाघ अभ्यारण्यों के बफर क्षेत्रों में सतत् और पर्यावरण अनुकूल पर्यटन को बढ़ावा देना है।
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इस पहल का उद्देश्य स्थानीय समुदायों को पर्यटन क्षेत्र में प्रशिक्षण और रोज़गार के अवसर प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाना है।
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इसका उद्देश्य समुदाय के नेतृत्व में जैवविविधता के संरक्षण को प्रोत्साहित करके वन्यजीव संरक्षण प्रयासों को दृढ़ करना भी है।
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महत्त्व:
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इस पहल से उत्तर प्रदेश के भारत में अग्रणी इकोटूरिज़्म गंतव्य बनने के लक्ष्य में महत्त्वपूर्ण योगदान मिलने की आशा है।
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पर्यटन, संरक्षण और स्थानीय रोज़गार को संयोजित करने का एकीकृत दृष्टिकोण, आर्थिक विकास के साथ पारिस्थितिक स्थिरता को संतुलित करने के इच्छुक अन्य राज्यों के लिये भी एक मॉडल के रूप में कार्य कर सकता है
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कार्यान्वयन क्षेत्र:
- प्रमुख बाघ अभयारण्य और बफर ज़ोन:
- विशेष पारिस्थितिक स्थल
- प्रवासी पक्षियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण पर्यावास स्थल, सेमराई झील को इकोटूरिज़्म सर्किट के एक भाग के रूप में विकसित किया जा रहा है।
- इससे पक्षी प्रेमियों को अन्वेषण के नए अवसर प्राप्त होंगे।
- पर्यटन अवसंरचना विकास:
- दुधवा टाइगर रिज़र्व में आगंतुकों की सहभागिता बढ़ाने के लिये एक आधुनिक सूचना केंद्र स्थापित किया गया है।
- यह केंद्र क्षेत्र के वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के संबंध में शैक्षिक जानकारी प्रदान करेगा, साथ ही संरक्षण प्रयासों के संबंध में विस्तृत जानकारी भी प्रदान करेगा।
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान
- यह भारत-नेपाल सीमा के निकट उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में स्थित है।
- इसे 1977 में एक राष्ट्रीय उद्यान (1958 से वन्यजीव अभयारण्य) के रूप में स्थापित किया गया था।
- वन्यजीव एवं पारिस्थितिकी तंत्र:
- बंगाल टाइगर, तेंदुए, हाथी, भालू और 450 से अधिक पक्षी प्रजातियों का निवास स्थान।
- घास के मैदान, दलदल और घने वन जैसे विविध पारिस्थितिकी तंत्र की विशेषताएँ।
- संरक्षण एवं पारिस्थितिकी पर्यटन:
- निवास स्थान की पुनर्स्थापना और बारहसिंगा जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों के पुनः प्रवेश के लिये जाना जाता है।
- स्थानीय समुदायों को सहयोग देने और पर्यावरण को संरक्षित करने के लिये इको-पर्यटन को प्रोत्साहन देना।
पीलीभीत टाइगर रिज़र्व
- सितंबर 2008 में इसे प्रोजेक्ट टाइगर पहल के तहत भारत का 45वाँ टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया।
- भूगोल:
- पीलीभीत टाइगर रिज़र्व की उत्तरी सीमा भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है, जो एक प्राकृतिक अंतर्राष्ट्रीय सीमा प्रदान करती है।
- दक्षिणी सीमा शारदा और खकरा नदियों द्वारा निर्धारित होती है, जो इस क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता और जल संसाधनों में योगदान देती हैं।
- पारिस्थितिक महत्त्व:
- यह तराई पारिस्थितिकी तंत्र का एक प्रमुख उदाहरण है, जो अपने खुले घास के मैदानों, साल के वनों, जल निकायों और समृद्ध जैव विविधता के लिये जाना जाता है
- तराई क्षेत्र के लिये विशिष्ट अद्वितीय पारिस्थितिक और व्यवहारिक बाघ अनुकूलन के लिये भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा मान्यता प्राप्त
- वनस्पति और जीव: प्रमुख वन्यजीवों में बाघ, दलदली हिरण, बंगाल फ्लोरिकन, हॉग हिरण, तेंदुए और समृद्ध शिकार आधार (चीतल, सांभर, जंगली सूअर, नीलगाय आदि) शामिल हैं।
कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य
- उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में स्थित कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य लगभग 400 वर्ग किमी. में विस्तृत है और घाघरा नदी के किनारे स्थित है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1975 में हुई थी और वर्ष 2008 में इसे टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया, यह दुधवा टाइगर रिज़र्व का एक प्रमुख हिस्सा है।
- जैवविविधता:
- बंगाल टाइगर, भारतीय हाथी, तेंदुआ, भालू और लुप्तप्राय गंगा डॉल्फिन का निवास स्थान।
- समृद्ध शिकार आधार में हॉग हिरण, दलदल हिरण, और अधिक शामिल हैं।
- यह 350 से अधिक पक्षी प्रजातियों का घर है, जिनमें भारतीय स्कीमर, ऑस्प्रे, ग्रेट हॉर्नबिल और किंगफिशर शामिल हैं।
- अभयारण्य में घने साल के वन के साथ-साथ सागौन, जामुन और औषधीय पौधे भी हैं।