वर्ष 2070 तक बिहार का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पाँच गुना बढ़ जाएगा | बिहार | 18 Mar 2024
चर्चा में क्यों?
'क्लाइमेट रेजिलिएंट एंड लो-कार्बन डेवलपमेंट पाथवे' रिपोर्ट के अनुसार, बिहार का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन वर्ष 2070 तक 5.2 गुना बढ़ने का अनुमान है, जब भारत ने शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल करने का लक्ष्य रखा है।
मुख्य बिंदु:
- यह निष्कर्ष संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के सहयोग से बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (BSPCB) द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में थे।
- बिहार सरकार ने फरवरी 2021 में जलवायु लचीले और कम कार्बन विकास मार्ग के लिये रणनीति तैयार करने की प्रक्रिया शुरू की थी।
- मसौदा रिपोर्ट में कहा गया है कि:
- वर्ष 2018 में राष्ट्रीय उत्सर्जन में बिहार का योगदान भारत के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग 3.3% है, जो राष्ट्रीय जनसंख्या में इसकी हिस्सेदारी (8.8%) से कम है, जबकि वर्ष 2005 और वर्ष 2013 के बीच यह दोगुना हो गया था।
- वर्ष 2018 में कुल 69% योगदान के साथ ऊर्जा क्षेत्र ग्रीनहाउस गैसों का उच्चतम उत्सर्जक था, इसके बाद कृषि, वन और अन्य भूमि उपयोग 24%, अपशिष्ट प्रबंधन 5% एवं औद्योगिक प्रसंस्करण व उत्पाद उपयोग 2% था।
- यदि वर्तमान प्रवृत्ति जारी रहती है, तो वर्ष 2020 और वर्ष 2070 के बीच राज्य का उत्सर्जन 5.2 गुना बढ़ने का अनुमान है।
- ऊर्जा क्षेत्र उच्चतम उत्सर्जक बना रहेगा, जिसका कुल उत्सर्जन में 93% योगदान होने का अनुमान है। इसके बाद निर्माण (6%), परिवहन (5%) और उद्योग (5%) का स्थान आता है।
- उत्सर्जन में विद्युत क्षेत्र का प्रभुत्व विद्युत उत्पादन के लिये कोयले पर निरंतर निर्भरता के कारण है।
- चूँकि अधिकांश उत्सर्जन विद्युत क्षेत्र से होता है, इसलिये बिहार को भारत के शुद्ध शून्य वर्ष 2070 लक्ष्य के अनुरूप रहने के लिये वर्ष 2030 के बाद नए थर्मल पावर प्लांट खोलने से बचना होगा।
- इसलिये, राज्य को नवीकरणीय ऊर्जा संपन्न राज्यों के साथ दीर्घकालिक स्वच्छ ऊर्जा विद्युत खरीद समझौते को सुरक्षित करने की आवश्यकता होगी।
- इसके अलावा, राज्य को छत पर सौर पैनल, फ्लोटिंग सोलर, कृषि-फोटोवोल्टिक्स और नवीकरणीय ऊर्जा के अन्य विकेंद्रीकृत रूपों जैसे विकल्पों पर सक्रिय रूप से विचार करने की आवश्यकता होगी।
- साथ ही, उद्योग, परिवहन और रियल एस्टेट के अंतिम उपयोग वाले क्षेत्रों को विद्युतीकृत करने की आवश्यकता होगी ताकि नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग के माध्यम से उनसे होने वाले उत्सर्जन को कम किया जा सके।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)
- यह 5 जून 1972 को स्थापित एक अग्रणी वैश्विक पर्यावरण प्राधिकरण है।
- यह वैश्विक पर्यावरण एजेंडा निर्धारित करता है, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर सतत् विकास को बढ़ावा देता है और वैश्विक पर्यावरण संरक्षण के लिये एक आधिकारिक वकील के रूप में कार्य करता है।
शुद्ध शून्य उत्सर्जन:
- इसे कार्बन तटस्थता के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ यह नहीं है कि कोई देश अपने उत्सर्जन को शून्य पर लाएगा।
- बल्कि, यह एक ऐसा देश है जिसमें किसी देश के उत्सर्जन की भरपाई वातावरण से ग्रीनहाउस गैसों के अवशोषण और हटाने से होती है।
- 70 से अधिक देशों ने सदी के मध्य तक यानी वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य बनने का दावा किया है।
- भारत ने COP-26 शिखर सम्मेलन के सम्मेलन में वर्ष 2070 तक अपने उत्सर्जन को शुद्ध शून्य करने का वादा किया है।