राजस्थान में राइफल और मशीन गन निर्माण | राजस्थान | 03 Jun 2025
चर्चा में क्यों?
'मेक इन इंडिया' और 'राइज़िंग राजस्थान' पहल के अंतर्गत, राजस्थान को 1,500 करोड़ रुपए से अधिक की रक्षा परियोजनाओं के लिये स्वीकृति प्राप्त हुई है।
- यह राज्य के रक्षा विनिर्माण क्षेत्र के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है, जो राजस्थान को भारत के रक्षा उत्पादन व निर्यात में एक प्रमुख भागीदार के रूप में स्थापित करता है।
मुख्य बिंदु
- रक्षा विनिर्माण में राजस्थान की भूमिका:
- जोधपुर और जयपुर जैसे स्थानों पर गन के पुर्ज़ों का निर्माण किया जाएगा, जबकि बोरानाड़ा (जोधपुर) स्थित एक विशेषीकृत इकाई में बैरल का निर्माण किया जाएगा, जिससे विकेंद्रीकृत व अधोसंरचना-आधारित प्रणाली के माध्यम से आपूर्ति शृंखला की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
- एक प्रमुख चुनौती गोला-बारूद भंडारण के लिये सुरक्षा मानकों का पालन करना है, जिसके अनुसार ऐसी इकाइयाँ आवासीय क्षेत्रों से 8–10 किमी की दूरी पर होनी चाहिये; इसके लिये सरकार से उपयुक्त भूमि आवंटन की माँग की जा रही है।
- उन्नत हथियार प्रणालियाँ निर्माणाधीन
- सैन्य-ग्रेड स्नाइपर राइफल: यह पूरी तरह स्वदेशी हथियार 2.4 किमी तक की दूरी पर सब-मिनट ऑफ एंगल (MOA) सटीकता के साथ लॉन्ग-रेंज प्रिसीजन के लिये डिज़ाइन किया गया है और विविध पर्यावरणीय परिस्थितियों में विश्वसनीय प्रदर्शन सुनिश्चित करता है।
- मल्टी-बैरल मशीन गन: यह प्रति मिनट 6,000 राउंड की फायरिंग दर, 1,000 गज की रेंज और 15,000 राउंड प्रति बेल्ट क्षमता से लैस है। भविष्य में इसे C-RAM (काउंटर रॉकेट, आर्टिलरी और मोर्टार) तथा एंटी-एयरक्राफ्ट के लिये उन्नत किया जाएगा।
- भारत की रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र के लिये महत्त्व
- ‘मेक इन इंडिया’ के साथ समन्वय: यह पहल रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता की भारत की परिकल्पना को साकार करती है, जिसमें पूरी तरह स्वदेशी और अत्याधुनिक हथियार प्रणालियों का निर्माण किया जा रहा है।
- विकेंद्रीकृत उत्पादन: कई विनिर्माण केंद्रों के माध्यम से जोखिम में कमी, सुरक्षा में सुधार तथा क्षेत्रीय औद्योगिक अधोसंरचना का लाभ लेकर आपूर्ति शृंखला की लचीलापन और स्थायित्व सुनिश्चित किया जा रहा है।
- डिफेंस स्टार्ट-अप्स को बढ़ावा: इस परियोजना में रक्षा स्टार्टअप्स की भागीदारी से नवाचार और निजी क्षेत्र की सक्रिय भूमिका को बल मिल रहा है।
- निर्यात की संभावना: टोगो और थाईलैंड जैसे देशों से मिली प्रारंभिक रुचि, भारत को वैश्विक रक्षा आपूर्तिकर्त्ता बनाने की दिशा में सशक्त निर्यात संभावनाओं का संकेत देती है।
- मौजूदा रक्षा उत्पादन का पूरक: उत्तर प्रदेश में ब्रह्मोस मिसाइल निर्माण की सफलता के बाद राजस्थान द्वारा छोटे हथियारों के निर्माण में प्रवेश, भारत की रक्षा उत्पादन क्षमताओं को विविधता प्रदान करता है।
ब्रह्मोस मिसाइल
- ब्रह्मोस मिसाइल जिसकी रेंज 290 किमी. है, भारत-रूस का एक संयुक्त उद्यम है और यह मैक 2.8 (ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना) की शीर्ष गति के साथ दुनिया की सबसे तेज़ क्रूज़ मिसाइल है।
- ब्रह्मोस का नाम ब्रह्मपुत्र (भारत) और मोस्कवा (रूस) नदियों के नाम पर रखा गया है।
- यह दो चरणों वाली मिसाइल (पहले चरण में ठोस प्रणोदक इंजन और दूसरे चरण में तरल रैमजेट) है।
- यह एक मल्टीप्लेटफॉर्म मिसाइल है यानी इसे ज़मीन, हवा और समुद्र से लॉन्च किया जा सकता है तथा सटीकता के साथ बहु-क्षमता वाली मिसाइल है जो मौसम की स्थिति के बावजूद दिन और रात दोनों समय काम करती है।
- यह "फायर एंड फॉरगेट्स" सिद्धांत पर काम करती है यानी लॉन्च के बाद इसे मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं है।
- वियतनाम, संयुक्त अरब अमीरात और इंडोनेशिया ब्रह्मोस मिसाइल के अन्य संभावित ग्राहकों में से हैं।

'मेक इन इंडिया' पहल
- परिचय: इस अभियान को निवेश को सुविधाजनक बनाने, नवाचार एवं कौशल विकास को बढ़ावा देने, बौद्धिक संपदा की रक्षा करने तथा सर्वश्रेष्ठ विनिर्माण बुनियादी ढाँचे का निर्माण करने के लिये शुरू किया गया था।
- उद्देश्य:
- विनिर्माण क्षेत्र की संवृद्धि दर को बढ़ाकर 12-14% प्रतिवर्ष करना।
- वर्ष 2022 तक (संशोधित तिथि 2025) विनिर्माण से संबंधित 100 मिलियन अतिरिक्त रोज़गार सृजित करना।
- वर्ष 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान बढ़ाकर 25% करना।
- 'मेक इन इंडिया' के स्तंभ:
- नई प्रक्रियाएँ: इसके तहत 'व्यापार करने में सुलभता' को उद्यमशीलता के लिये महत्त्वपूर्ण माने जाने के साथ स्टार्टअप्स और स्थापित उद्यमों के लिये कारोबारी माहौल में सुधार के उपायों को लागू किया गया।
- नवीन बुनियादी ढाँचा: सरकार ने विश्व स्तरीय बुनियादी ढाँचा बनाने के लिये औद्योगिक गलियारों एवं स्मार्ट शहरों के विकास को प्राथमिकता दी।
- इसके तहत सुव्यवस्थित पंजीकरण प्रणालियों और बेहतर बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) संबंधी बुनियादी ढाँचे के माध्यम से नवाचार और अनुसंधान को भी बढ़ावा दिया गया।
- मेक इन इंडिया 2.0: वर्तमान में चल रहा "मेक इन इंडिया 2.0" चरण (जिसमें 27 क्षेत्र शामिल हैं) इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के साथ वैश्विक विनिर्माण क्षेत्र में एक प्रमुख पहलू के रूप में भारत की भूमिका को मज़बूत कर रहा है।