बिहार लोक सेवा आयोग - रणनीति | 12 Apr 2023

रणनीति की आवश्यकता क्यों?

  • बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा में सफलता सुनिश्चित करने के लिये उसकी प्रकृति के अनुरूप उचित एवं गतिशील रणनीति बनाने की आवश्यकता है। यह वह प्रथम चरण है, जिससे आपकी आधी सफलता सुनिश्चित हो जाती है।

  • यह परीक्षा सामान्यत: तीन चरणों (प्रारंभिक, मुख्य एवं साक्षात्कार) में आयोजित की जाती है, जिसमें प्रत्येक अगले चरण में पहुँचने के लिये उससे पूर्व के चरण में सफल होना आवश्यक है।

  • इन तीनों चरणों की परीक्षा की प्रकृति एक-दूसरे से भिन्न होती है। अत: प्रत्येक चरण में सफलता सुनिश्चित करने के लिये अलग-अलग रणनीति बनाने की आवश्यकता है।

प्रारम्भिक परीक्षा की रणनीति : 

  • किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्धा में विजेता वही होता है, जिसने अपनी तैयारी शुरूआत से की हो। इस दृष्टि से अभ्यर्थियों के लिये उचित होगा कि वे सर्वप्रथम प्रारंभिक परीक्षा के पाठ्यक्रम का अध्ययन करें एवं उसके समस्त भाग एवं पहलुओं को ध्यान में रखते हुए सुविधा एवं रुचि के अनुसार वरीयता क्रम निर्धारित करें।
  • तत्पश्चात् विगत 5 से 10 वर्षों में प्रारंभिक परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों का सूक्ष्म अवलोकन करें और उन बिंदुओं तथा शीर्षकों पर ज़्यादा ध्यान दें, जिनसे विगत वर्षों में प्रश्न पूछने की प्रवृत्ति ज़्यादा रही है।

  • इस अवलोकन से यह अंदाजा लगाना आसान हो जाएगा कि परीक्षा के अनुरूप किन खंडों पर अपनी अवधारणात्मक एवं तथ्यात्मक जानकारी मज़बूत करनी है।

  • अन्य राज्य लोक सेवा आयोगों की भाँति बिहार लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा में भी प्रश्नों की प्रकृति वस्तुनिष्ठ (बहुविकल्पीय) प्रकार की होती है। अत: इसमें तथ्यों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। जैसे- ‘मौर्य वंश’ का वास्तविक संस्थापक कौन था?, कौन-सी नदी ‘बिहार के शोक’ के नाम से जानी जाती है?, ‘रिकेट्स’ नामक रोग किस विटामिन की कमी से होता है? इत्यादि।

  • इन प्रश्नों को याद रखने और हल करने का सबसे आसान तरीका है कि विषय की तथ्यात्मक जानकारी से संबंधित संक्षिप्त नोट्स बना लिये जाएँ और उसका नियमित अध्ययन किया जाए। जैसे- एक प्रश्न पूछा गया कि भारतीय संविधान का कौन-सा भाग पंचायती राज व्यवस्था से संबंधित है? तो आपको भारतीय संविधान के समस्त 22 भागों के प्रमुख शीर्षकों की एक सूची तैयार कर लेनी चाहिये।

  • बिहार राज्य विशेष के संदर्भ में ऐतिहासिक घटनाक्रम, स्वतंत्रता संग्राम में बिहार की भूमिका और भूगोल विषय में भारत एवं बिहार के भूगोल का विशेष ध्यान रखना चाहिये। इसी प्रकार प्रारंभिक परीक्षा के पूरे पाठ्यक्रम का बिहार राज्य के संदर्भ में अध्ययन करना लाभदायक रहता है।

  • करेंट अफेयर्स के प्रश्नों की प्रकृति और संख्या को ध्यान में रखते हुए आप नियमित रूप से दृष्टि वेबसाइट पर उपलब्ध करेंट अफेयर्स के बिंदुओं का अध्ययन कर सकते हैं। इसके अलावा इस खंड की तैयारी के लिये मानक मासिक पत्रिका ‘बिहार करेंट अफेयर्स’ और ‘दृष्टि करेंट अफेयर्स टुडे’ का अध्ययन करना लाभदायक सिद्ध होगा।

  • प्रारंभिक परीक्षा तिथि से सामान्यत: 15 -20 दिन पूर्व प्रैक्टिस पेपर्स एवं विगत वर्षों में प्रारंभिक परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों को निर्धारित समय सीमा (सामान्यत: दो घंटे) के अंदर हल करने का प्रयास करना लाभदायक होता है। इन प्रश्नों को हल करने से जहाँ विषय की समझ विकसित होती है, वहीं इन परीक्षाओं में दोहराव (रिपीट) वाले प्रश्नों को हल करना आसान हो जाता है।

  • बी.पी.एस.सी. की प्रारंभिक परीक्षा में नेगेटिव मार्किंग (एक चौथाई – ¼ अंक) का प्रावधान होने के कारण किसी भी प्रश्न को अनुमान के आधार पर हल करने का प्रयास न करें। जिन प्रश्नों के उत्तर पूरी तरह से ज्ञात हों उनको पहले हल करें। जिन प्रश्नों पर शंका हो उन्हें बाद में हल करने का प्रयास करें।

मुख्य परीक्षा की रणनीति :

  • बी.पी.एस.सी. की मुख्य परीक्षा की प्रकृति वर्णनात्मक एवं वस्तुनिष्ठ (वैकल्पिक) होने के कारण इसकी तैयारी की रणनीति प्रारंभिक परीक्षा से अलग होती है।

  • प्रारंभिक परीक्षा की प्रकृति जहाँ क्वालिफाइंग होती है, वहीं मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन और निबंध में प्राप्त अंकों को अंतिम मेधा सूची में जोड़ा जाता है। अत: परीक्षा का यह चरण अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं निर्णायक होता है।

  • सामान्य हिंदी का प्रश्नपत्र केवल क्वालिफाइंग (कम से कम 30 अंक प्राप्त करना अनिवार्य) होता है, लेकिन परिणाम की दृष्टि से इस परीक्षा में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि इसमें असफल होने वाले अभ्यर्थियों की शेष प्रश्नपत्र की उत्तर-पुस्तिका का मूल्यांकन ही नहीं किया जाता है। इसी तरह वैकल्पिक विषय को भी क्वालिफाइंग कर दिया गया है।

  • सामान्य हिंदी में क्वालिफाइंग अंक प्राप्त करने के लिये हिंदी के व्याकरण (उपसर्ग, प्रत्यय, विलोम इत्यादि) की समझ, संक्षिप्त सार, अपठित गद्यांश इत्यादि की अच्छी जानकारी आवश्यक है। इसके लिये हिंदी की स्तरीय पुस्तकें जैसे- वासुदेवनंदन, हरदेव बाहरी द्वारा लिखित पुस्तकों का अध्ययन लाभदायक रहेगा। इसके अतिरिक्त दृष्टि पब्लिकेशंस की ‘सामान्य हिन्दी एवं निबंध’ पुस्तक का अध्ययन भी लाभदायक होगा।

  • सामान्य अध्ययन के प्रथम प्रश्नपत्र के पाठ्यक्रम में भारत का आधुनिक इतिहास और भारतीय संस्कृति, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व का वर्तमान घटनाक्रम, सांख्यिकी विश्लेषण, आरेखन और चित्रण इत्यादि शामिल हैं।

  • भारत का आधुनिक इतिहास और भारतीय संस्कृति तथा राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के वर्तमान घटनाक्रम का अध्ययन बिहार राज्य विशेष के संदर्भ में करना प्रासंगिक है, क्योंकि इनसे संबंधित ज़्यादातर प्रश्न बिहार से जुड़े हुए होते हैं, जैसे- 1857 के विद्रोह में बिहार की भूमिका का वर्णन कीजिये? चंपारण सत्याग्रह, संथाल विद्रोह, मुंडा विद्रोह, भारत छोड़ो आंदोलन इत्यादि में बिहार की भूमिका से संबंधित प्रश्न अक्सर पूछे जाते रहे हैं।

  • राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के वर्तमान घटनाक्रम के अध्ययन के लिये इस खंड से संबंधित प्रारंभिक परीक्षा के लिये अपनाई गई रणनीति का विस्तृत अध्ययन लाभदायक रहेगा।

  • सांख्यिकीय विश्लेषण, आरेखन और चित्रण में विगत वषों में पूछे गए प्रश्नों का प्रतिदिन अभ्यास करना लाभदायक रहेगा। इसके लिये एन.सी.ई.आर.टी. की पुस्तक के साथ-साथ दृष्टि पब्लिेकशंस की बीपीएससी मेंस सक्सेज सीरीज की पुस्तक ‘विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा सांख्यिकी विश्लेषण, आरेखण और चित्रण’ की सहायता ली जा सकती है।

  • सामान्य अध्ययन के द्वितीय प्रश्नपत्र के पाठ्यक्रम में भारतीय राजव्यवस्था, भारतीय अर्थव्यवस्था और भारत का भूगोल, भारत के विकास में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका और प्रभाव शामिल है।

  • इस प्रश्नपत्र के भी संपूर्ण पाठ्यक्रम का अध्ययन बिहार राज्य विशेष के संदर्भ में करना प्रासंगिक है, क्योंकि इनसे संबंधित ज़्यादातर प्रश्न बिहार से जुड़े हुए होते हैं। साथ ही तकनीक की उपयोगिता से संबंधित अनुप्रयोगात्मक प्रश्न भी पूछे जाते हैं। जैसे- भारत के संदर्भ में सुदूर संवेदी उपग्रह की उपयोगिता का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। 4जी, 5जी तकनीक क्या है? दैनिक जीवन में इनकी क्या उपयोगिता है? इत्यादि।

  • चूँकि अब वैकल्पिक विषय को क्वालिफाइंग कर दिया गया है अतः संबंधित विषय के स्तरीय किताबों का अध्ययन करके बिंदुवार नोट्स एवं प्रश्नों की सिनोप्सिस तैयार करना लाभदायक होगा। इससे आप मुख्य परीक्षा के दौरान संपूर्ण पाठ्यक्रम का त्वरित अध्ययन कर सकते हैं।

  • लेखन शैली एवं तारतम्यता का विकास निरंतर अभ्यास से आता है, जिसके लिये विषय की व्यापक समझ अनिवार्य है।

अंतिम क्षणों की रणनीति :

  • परीक्षा से 4-5 दिन पहले कुछ भी नया खंड या टॉपिक पढ़ने से बचें, बल्कि आत्मविश्वास बनाए रखते हुए जो टॉपिक अब तक आपने पढ़ा है, उसी का रिवीज़न करें व लेखन अभ्यास जारी रखें।

  • प्रश्नपत्र के जिस खंड पर आपकी पकड़ मज़बूत हो, उसी खंड के प्रश्नों को पहले हल करने का प्रयास करें। इससे आपको मनोवैज्ञानिक सपोर्ट व सकारात्मक माहौल मिलेगा।

  • प्रश्नों का उत्तर देते समय महत्त्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित करना न भूलें। इस क्रम में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि अति महत्त्वपूर्ण तथ्यों को ही रेखांकित करना है। इस क्रम में आयोग द्वारा जारी दिशा-निर्देश का भी ध्यान रखें।

साक्षात्कार की रणनीति :

  • साक्षात्कार किसी भी परीक्षा का अंतिम एवं महत्त्वपूर्ण चरण होता है। इसमें न तो प्रारंभिक परीक्षा की तरह सही उत्तर के लिये विकल्प दिये जाते हैं और न ही मुख्य परीक्षा के प्रश्नपत्रों की तरह प्रश्नों को हल करने की सुविधा होती है।

  • अंकों की दृष्टि से कम, लेकिन अंतिम चयन एवं पद निर्धारण में इसका विशेष योगदान होता है।

  • साक्षात्कार में किसी भी प्रश्न के लिये दिये गए उत्तर पर प्रति-प्रश्न पूछे जाने की संभावना भी बनी रहती है। आपके द्वारा दिये गए किसी भी गलत या हल्के उत्तर का निगेटिव मार्क़िग जैसा ही प्रभाव पड़ने की संभावना भी बनी रहती है। किसी भी उम्मीदवार के लिये साक्षात्कार के चरण की सबसे मुश्किल बात यह होती है कि प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा के विपरीत इसके लिये कोई निश्चित पाठ्यक्रम निर्धारित नहीं है। यही वजह है कि साक्षात्कार के दौरान पूछे जाने वाले प्रश्नों का दायरा बहुत व्यापक होता है। अत: उम्मीदवारों को यह सवाल बार-बार परेशान करता है कि इतने कठिन चरण की तैयारी कैसे की जाए, क्या पढ़ा जाए और क्या नहीं? सिर्फ पढ़ा जाए या किताबों से बाहर भी झाँका जाए? आत्मविश्वास कैसे बढ़ाया जाए? ऐसा व्यक्तित्व कैसे गढ़ा जाए कि सिर्फ आधे-एक घंटे के भीतर हम इंटरव्यू पैनल के सदस्यों को प्रभावित कर पाने में सफल हो जाएँ?

  • इसके लिये सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि इंटरव्यू बोर्ड के सदस्य आखिर किस आधार पर उम्मीदवारों का मूल्यांकन करते हैं? क्या यह शरीर की बनावट और ड्रेसिंग सेंस से तय होता है? क्या सदस्य उम्मीदवार की भाषा-शैली और हाव-भाव से उसका मूल्यांकन करते हैं? क्या अंकों का सीधा संबंध उम्मीदवार के उत्तरों की गुणवत्ता से होता है? क्या जीवन और विभिन्न मुद्दों के प्रति उम्मीदवार का नज़रिया इसमें केंद्रीय भूमिका निभाता है? इन सभी प्रश्नों के उचित जवाब देने एवं साक्षात्कार की सटीक तैयारी करने हेतु BPCS के ‘साक्षात्कार की रणनीति’ पर चर्चा की जा रही है।

  • मुख्य परीक्षा में चयनित अभ्यर्थियों (सामान्यत: विज्ञप्ति में वर्णित कुल रिक्तियों की संख्या का लगभग 3 गुना) को सामान्यत: एक माह पश्चात् आयोग के समक्ष साक्षात्कार के लिये उपस्थित होना होता है।

  • वर्तमान संशोधन के अनुसार बी.पी.एस.सी. में साक्षात्कार के लिये 120 अंक निर्धारित हैं (पूर्व में 150 अंक निर्धारित था)। अंतिम चयन मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार में प्राप्त कुल अंकों के आधार पर तैयार मेरिट लिस्ट के आधार पर होता है।

साक्षात्कार की तैयारी क्यों आवश्यक है?:

  • सामान्यत: साक्षात्कार के लिये निर्धारित पैनल/बोर्ड में एक अध्यक्ष और 3-4 सदस्य होते हैं (पुरुष एवं महिला दोनों हो सकते हैं)। यह कह सकते हैं कि साक्षात्कार बोर्ड में उम्मीदवारों के ज्ञान, अभिव्यक्ति एवं भाषा-शैली, हाव-भाव, ड्रेसिंग सेंस, उत्तरों की गुणवत्ता एवं जीवन और विभिन्न मुद्दों के प्रति उनके निष्पक्ष नज़रिये का संयुक्त रूप से प्रभाव पड़ता है, जो कि परीक्षा में उनके अंतिम चयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालाँकि, यह दावा करना कठिन है कि इन सभी तत्त्वों का अनुपात क्या होगा? प्राय: हर उम्मीदवार के मामले में इनका अनुपात अलग-अलग हो सकता है। संभव है कि कोई उम्मीदवार तथ्यों में कमज़ोर हो, दिखने में कम आकर्षक हो पर अपने सुलझे हुए दृष्टिकोण की बदौलत बोर्ड पर ठीक-ठाक प्रभाव कायम करने में सफल हो जाए। इसी तरह यह भी संभव है कि कोई उम्मीदवार अपने आकर्षक चेहरे, प्रभावी ड्रेसिंग कौशल तथा जादुई अभिव्यक्ति, सामर्थ्य के सहारे अपनी ज्ञान संबंधी कमियों को एक हद तक ढकने में कामयाब हो जाए।

  • मुख्य परीक्षा देने के बाद परीक्षार्थियों को यह उम्मीद बनी रहती है कि उन्हें साक्षात्कार देने का अवसर अवश्य प्राप्त होगा। उनमें से कुछ मुख्य परीक्षा के तुरंत बाद ही साक्षात्कार की तैयारी शुरू कर देते हैं, जबकि कुछ मुख्य परीक्षा के परिणाम का इंतज़ार करते हैं और परीक्षा में सफल होने पर ही इंटरव्यू के बारे में सोचना शुरू करते हैं। वैसे तो व्यक्तित्व निर्माण के लिये कोई समय निर्धारित नहीं किया जा सकता, फिर भी यदि परीक्षा को ध्यान में रखते हुए इसकी मांग के अनुसार शुरू से ही इसका अभ्यास (छद्म साक्षात्कार) किया जाए तो साक्षात्कार के दिन स्वयं को सहज रखने में आसानी रहती है।

  • सामान्यत: यह देखा जाता है कि अंतिम परिणाम में सिर्फ 1 अंक के अंतर से भी कई बार 10 या उससे अधिक रैंक का फर्क पड़ जाता है। इसलिये परीक्षा के इस चरण में भी यदि अभ्यर्थी व्यवस्थित तैयारी करता है तो अपने स्तर पर सामान्यत: मिलने वाले अंकों की तुलना में कुछ अंकों का इजाफा अवश्य कर लेता है।

साक्षात्कार की तैयारी हेतु रणनीति के विविध पक्ष:

साक्षात्कार की तैयारी हेतु रणनीति को मोटे तौर पर कुल 4 भागों में बाँटकर देख सकते हैं-

  • ज्ञान पक्ष:

    • सबसे पहले उन विषयों की सूची बना लीजिये, जो आपके बायोडाटा में दिखाई पड़ते हैं। इन विषयों में आपका वैकल्पिक विषय तो है ही, साथ ही सामान्य अध्ययन के प्रमुख खंड, आपकी अकादमिक पृष्ठभूमि के विषय, आपकी रुचियाँ, आपका गृह राज्य, गृह जनपद आदि सभी शामिल हैं।

    • अपने बायोडाटा को बोर्ड सदस्य की निगाह से कई बार पढ़िये और सोचिये कि उनकी नज़र किन शब्दों पर टिक सकती है? ऐसे सभी शब्दों को रेखांकित कर लीजिये और मानकर चलिये कि आपको उन सभी पर किसी-न-किसी मात्रा में तैयारी करने की ज़रूरत है। इसके बाद एक-एक करके विभिन्न विषयों को उठाइये और पूछे जा सकने वाले संभावित प्रश्नों की सूची बनाइये।

    • सामान्यत: इस सूची को तीन भागों में बाँटकर तैयार किया जा सकता है- 1. अत्यधिक संभावित प्रश्न, 2. सामान्य संभावित प्रश्न, 3. कम संभावित प्रश्न। बेहतर होगा कि आप इन प्रश्नों की सूची बनाने में स्वयं के विवेक के साथ-साथ अपने उन साथियों को भी शामिल कर लें, जो आपके साथ इंटरव्यू की तैयारी कर रहे हैं और आपके विषय या क्षेत्र उनके बायोडाटा में भी शामिल हैं।

    • अभ्यर्थियों को अपने वैकल्पिक विषय पर भी बहुआयामी दृष्टिकोण के साथ मज़बूत पकड़ रखनी होगी, क्योंकि साक्षात्कार में इस क्षेत्र से काफी सवाल पूछे जाते हैं, विशेषत: जब आपने वैकल्पिक विषय चुनते वक्त अपने स्नातक के विषय को छोड़कर अन्य स्ट्रीम के विषय को चुना हो। साथ ही आपकी अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय घटनाक्रम के साथ-साथ बिहार की समसामयिक घटनाओं पर भी अच्छी पकड़ होनी चाहिये और उम्मीदवार को इन सिविल सेवाओं तथा संबंधित पदों के बारे में स्पष्ट जानकारी होनी चाहिये।

  • दृष्टिकोण पक्ष: आयोग उम्मीदवारों से अपेक्षा रखता है कि किसी भी विषय पर उनका दृष्टिकोण एकतरफा न होकर संतुलित तथा प्रगतिशील हो। इसलिये आपको दिन-प्रतिदिन की चर्चाओं में उठने वाले विवादास्पद मुद्दों के दोनों पक्षों को गहराई से देखने का अभ्यास करते रहना चाहिये। आपके उत्तरों से यह भाव स्पष्ट होना चाहिये कि आप किसी भी विषय पर निर्णय करने से पहले अपनी तर्क बुद्धि का सही उपयोग करते हैं, किसी के बहकावे या उकसावे में नहीं आते। इसके लिये विवादास्पद मुद्दों पर भी आपको अभ्यास करते रहने की निरंतर ज़रूरत होती है।

  • अभिव्यक्ति पक्ष:

    • सरल भाषा में इसका अर्थ है कि उम्मीदवार अपनी बातों को इंटरव्यू बोर्ड के सामने कितनी प्रभावशीलता के साथ प्रस्तुत करता है। उसकी शब्दावली, उच्चारण, उतार-चढ़ाव, शारीरिक अभिव्यक्तियाँ आदि वे पक्ष हैं, जो समग्र रूप में उसकी अभिव्यक्ति शैली को परिभाषित करते हैं।

    • अभिव्यक्ति कौशल की भूमिका साक्षात्कार में ज़्यादा होती है। बहुत अच्छी अभिव्यक्तिगत क्षमता आपको 20-25% तक का फायदा पहुँचा सकती है।

    • अगर उम्मीदवार अपने क्षेत्र से संबंधित या एकदम सरल प्रश्नों के उत्तर न दे पाए तो बोर्ड के सदस्यों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना भी बनी रहती है।

    • सबसे अधिक महत्त्व होता है उम्मीदवार के नज़रिये का अर्थात् किसी मुद्दे पर वह कितने व्यापक और संतुलित तरीके से सोच पाता है, किसी नई और तात्कालिक समस्या को सुलझाने के लिये सही एवं त्वरित निर्णय कर पाता है या नहीं, मुद्दे के व्यावहारिक और सैद्धांतिक पक्षों तथा उनके अंतर्संबंधों को कितनी गहराई से समझ पाता है, इत्यादि।

    • इसके अलावा बोर्ड के समक्ष अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के दौरान आत्मविश्वास के साथ-साथ आई कॉन्टेक्ट बनाए रखना चाहिये और प्रश्नों का सीधा उत्तर देना चाहिये। जिन प्रश्नों का उत्तर आपको नहीं पता, आप शालीनता से सॉरी भी बोल सकते हैं। अत: बेहतर होगा कि तैयारी के शुरुआती चरण से ही इसका अभ्यास करते रहें और मुख्य परीक्षा के तुरंत बाद इस दिशा में गंभीर प्रयास शुरू कर दें।

  • वेशभूषा आदि की तैयारी:

    • एक औपचारिक बैठक के लिये व्यक्ति की जैसी वेशभूषा होनी चाहिये, वैसी ही वेशभूषा इंटरव्यू में अपेक्षित होती है। हालाँकि, आप अपनी सहजता का ध्यान रखें।

    • इंटरव्यू में पुरुष उम्मीदवारों के लिये बेहतर होगा कि वे पूरी बाँहों की औपचारिक (Formal) दिखने वाली कमीज़ (Shirt) पहनें और वैसी ही औपचारिक (Formal) पैंट या ट्राउजर्स को प्राथमिकता दें।

    • कोट-पैंट, ब्लेजर या सूट भी एक विकल्प है, जो सर्दी के मौसम में पहना जा सकता है। अगर आप सहज हैं तो सूट के साथ टाई लगानी चाहिये। फुटवियर का भी विशेष ध्यान रखें। भड़कीलेपन से बचें। अगर सहज हैं तो लेदर शूज़ का ही प्रयोग करें (सैंडिल भी एक विकल्प है)।

    • महिला उम्मीदवार एक बार सूट के विकल्प पर विचार कर सकती हैं, हालाँकि बेहतर यही रहेगा कि वह साड़ी पहनें। सर्दी के मौसम में साड़ी के साथ ब्लेजर का भी उपयोग किया जा सकता है।

साक्षात्कार की तैयारी कैसे करें?

  • वैसे तो साक्षात्कार की तैयारी परीक्षा के प्रत्येक स्तर पर स्वयं होती रहती है, बस ज़रूरत होती है तो बोर्ड के समक्ष ज्ञान और दृष्टिकोण के पक्ष के साथ-साथ अभिव्यक्ति पक्ष एवं वेश-भूषा के संतुलित होने की। अत: इन्हें भी मॉक इंटरव्यू (छद्म साक्षात्कार) द्वारा नि:संदेह बेहतर किया जा सकता है। इसके लिये उम्मीदवार स्वयं ही अपने तीन-चार मित्रों (यदि संभव हो तो साक्षात्कार देने वाले) के साथ ग्रुप डिस्कशन के माध्यम से अपनी तैयारी के सभी पक्षों का सटीक विश्लेषण कर सकते हैं। इसके अलावा वास्तविक साक्षात्कार के दिन आप सहज एवं आत्मविश्वास से युक्त हों, उसके लिये आप दृष्टि संस्थान द्वारा आयोजित ऑनलाइन/ऑफलाइन मॉक इंटरव्यू में भाग ले सकते हैं, जिसे वास्तविक साक्षात्कार जैसे वातावरण में आयोजित किया जाता है। साथ ही अभ्यर्थी के इंटरव्यू की रिकॉर्डिंग को देखकर उन्हें उनकी कमज़ोरियों की पहचान कराते हुए उन्हें दूर करने हेतु महत्त्वपूर्ण सलाह/सुझाव दिया जाता है।

  • दृष्टि मॉक इंटरव्यू के पश्चात् प्रत्येक अभ्यर्थी से उसके इंटरव्यू के संदर्भ में व्यक्तिगत चर्चा की जाती है, जिसमें उनके मज़बूत और कमज़ोर पक्षों को बताया जाता है तथा उन कमज़ोरियों को दूर करने के उपाय भी सुझाए जाते हैं। दृष्टि मॉक टेस्ट इंटरव्यू में इस बात का विशेष अभ्यास करवाया जाता है कि विवादास्पद मुद्दों पर अभ्यर्थी का निष्कर्ष संतुलित, प्रगतिशील तथा समावेशी हो। अत: यह प्रक्रिया निश्चित तौर पर बोर्ड के समक्ष जाने से पहले आपके आत्मविश्वास को बढ़ाने में सहायता करेगी।

  • अंत में राज्य की प्रतिष्ठित परीक्षा के आखिरी चरण में नर्वस होना स्वाभाविक है, फिर भी ऐसी स्थिति में खुद पर विश्वास बनाए रखिये, स्वयं को रिफ्रेश रखने के लिये संगीत, खेल गतिविधियों में भाग लेने के साथ सामाजिक सरोकार वाली फिल्में भी देख सकते हैं। इसके अलावा एकाग्रता बनाए रखने के लिये मेडिटेशन और योग का सहारा भी ले सकते हैं।