मध्य प्रदेश में मिला असामान्य टाइटेनोसॉरिड डायनासोर का अंडा | 15 Jun 2022

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में मध्य प्रदेश के धार ज़िले के बाग इलाके में पहली बार भारतीय शोधकर्त्ताओं की एक टीम ने अंडे के भीतर अंडे (egg-in-egg) या असामान्य टाइटेनोसॉरिड डायनासोर अंडे (abnormal Titanosaurid dinosaur egg) की खोज की है। 

प्रमुख बिंदु 

  • इस खोज को नेचर ग्रुप जर्नल-साइंटिफिक रिपोर्ट्स के नवीनतम अंक में प्रकाशित किया गया था। इस अध्ययन का शीर्षक है- ‘फर्स्ट ओवम-इन-ओवो पैथोलॉजिकल टाइटेनोसॉरिड एग थ्रोस लाइट ऑन रिप्रोडक्टिव बायोलॉजी ऑफ सॉरोपॉड डायनासोर(First ovum-in-ovo pathological titanosaurid egg throws light on the reproductive biology of sauropod dinosaurs)।  
  • शोधकर्त्ताओं ने हाल ही में बाग शहर के निकट पड़लिया गाँव के पास बड़ी संख्या में टाइटेनोसॉरिड सॉरोपॉड घोंसलों का दस्तावेज़ीकरण किया था। इन घोंसलों का अध्ययन करते हुए शोधकर्त्ताओं ने एक असामान्य डायनासोर के अंडे सहित 10 अंडों से युक्त एक सॉरोपॉड डायनासोर के घोंसले की खोज की है।  
  • असामान्य अंडे में दो निरंतर और गोलाकार अंडे के खोल की परतें हैं, जो एक विस्तृत अंतराल से अलग होती हैं, जो ओवम-इन-ओवो (दूसरे अंडे के अंदर एक अंडा) पक्षियों की विकृति की याद दिलाती हैं।  
  • एक ही घोंसले में पैथोलॉजिकल अंडे और आसन्न अंडे की सूक्ष्म संरचना इसकी पहचान टाइटेनोसॉरिड सॉरोपॉड डायनासोर से करती है।  
  • यह भारत में पहली अंडे-में-अंडे की असामान्य जीवाश्म अंडे की खोज है। इससे पहले भारत में कभी भी डायनासोर, छिपकली, कछुए और मगरमच्छ सहित अन्य सरीसृपों के अंडे-में-अंडे का असामान्य जीवाश्म अंडा नहीं पाया गया है।  
  • इस क्षेत्र में प्रमुख लेखक डॉ. हर्ष धीमान (भूविज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय) द्वारा पीएचडी फील्डवर्क के दौरान पैथोलॉजिकल अंडे की खोज की गई थी। धीमान के अलावा, टीम में विशाल वर्मा (हायर सेकेंडरी स्कूल, बकानेर, धार ज़िला) और संबंधित लेखक प्रो. गुंटुपल्ली वी.आर. प्रसाद (भूविज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय) शामिल थे।  
  • डॉ. हर्ष धीमान ने कहा कि टाइटेनोसॉरिड घोंसले से ओवम-इन-ओवो अंडे की खोज इस संभावना को खोलती है कि सॉरोपॉड डायनासोर में मगरमच्छ या पक्षियों के समान एक डिंबवाहिनी आकारिकी थी और वे पक्षियों की अंडे देने वाली विशेषता के एक तरीके के लिये अनुकूलित हो सकते थे।  
  • प्रो. गुंटुपल्ली वी.आर. प्रसाद ने कहा कि यह खोज इस बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी सामने लाती है कि क्या डायनासोर के पास कछुओं और छिपकलियों या उनके निकटतम मगरमच्छों और पक्षियों के समान प्रजनन जीव विज्ञान था।  
  • पहले यह सुझाव दिया गया था कि मगरमच्छों और पक्षियों के खंडित प्रजननपथ के विपरीत डायनासोर का प्रजनन कार्य कछुओं और अन्य सरीसृपों (अखंडित डिंबवाहिनी-unsegmented oviduct) के समान होता है।  
  • मगरमच्छ हालाँकि कछुओं और अन्य सरीसृपों की तरह सभी अंडों को एक साथ ओव्यूलेट करते और छोड़ते हैं, पक्षियों के अनुक्रमिक ओव्यूलेशन के विपरीत, जो एक बार में एक अंडा देते हैं।  
  • नई खोज से पता चलता है कि मध्य और पश्चिमी भारत में डायनासोर के जीवाश्मों के लिये काफी संभावनाएँ हैं, जो डायनासोर प्रजातियों की विविधता और उनके घोंसले के व्यवहार एवं प्रजनन जीव विज्ञान पर महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान कर सकते हैं।