शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का 98 वर्ष की अवस्था में निधन | 12 Sep 2022

चर्चा में क्यों? 

11 सितंबर, 2022 को हिंदुओं के सबसे बड़े धर्म गुरु तथा द्वारका-शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर ज़िले के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में 98 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।

प्रमुख बिंदु

  • स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के सिवनी ज़िले में जबलपुर के पास दिघोरी गाँव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
  • विदित है कि ‘शंकराचार्य’हिंदू धर्म के चार पीठों के सबसे बड़े महंत होते हैं। जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी दो मठों (द्वारका एवं ज्योतिर्मठ) के शंकराचार्य थे। माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था।
  • नौ वर्ष की उम्र में उन्होंने घर का त्याग कर धर्म यात्राएँ प्रारंभ कर दी थीं। इस दौरान वह काशी पहुँचे और यहाँ उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांग और शास्त्रों की शिक्षा ली।
  • जब 1942 में गांधी जी ने अंग्रेज़ों भारत छोड़ो का नारा दिया तो ये भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और 19 साल की उम्र में ‘क्रांतिकारी साधु’के रूप में प्रसिद्ध हुए। इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में नौ महीने और अपने गृह राज्य मध्य प्रदेश की जेल में छह महीने की सज़ा भी काटी।
  • वे करपात्री महाराज के राजनीतिक दल ‘राम राज्य परिषद’के अध्यक्ष भी थे। 1940 में वे दंडी संन्यासी बनाए गए और 1981 में उन्हें ‘शंकराचार्य’ की उपाधि मिली। 1950 में इन्होंने शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती से दंड-संन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती नाम से जाने जाने लगे।
  • शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती स्वतंत्रता सेनानी, रामसेतु रक्षक, गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करवाने वाले तथा राम जन्मभूमि के लिये लंबा संघर्ष करने वाले, गोरक्षा आंदोलन के प्रथम सत्याग्रही, रामराज्य परिषद के प्रथम अध्यक्ष, पाखंडवाद के प्रबल विरोधी रहे थे।