राजस्थान में धर्मांतरण विरोधी कानून लागू | 11 Oct 2025

चर्चा में क्यों?  

राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने राजस्थान विधानसभा द्वारा सितंबर 2025 में पारित राजस्थान गैरकानूनी धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2025 को मंज़ूरी दे दी है। 

  • राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 2017 में जारी किये गए दिशा-निर्देशों के अनुसार, धर्मांतरण केवल वयस्कों के लिये ही संभव हैं, जिसमें ज़िला मजिस्ट्रेट को पूर्व सूचना देना और आशय की सार्वजनिक घोषणा करना अनिवार्य है। 

अधिनियम के मुख्य प्रावधान 

  • विवाह के लिये पूर्व सूचना: पुरोहित या धर्मगुरु को अंतर-धार्मिक विवाह संपन्न कराने से कम से कम दो महीने पहले ज़िला प्रशासन को सूचित करना अनिवार्य है। 
    • व्यक्तियों को अपनी शादी से कम से कम तीन महीने पहले ज़िला मजिस्ट्रेट को सूचित करना आवश्यक है।
  • उल्लंघन पर दंड: 
    • इन आवश्यकताओं का पालन न करने पर ज़बरन धर्मांतरण के लिये दंड हो सकता है, जिसमें 7 से 14 वर्ष तक की कारावास और ₹5 लाख से प्रारंभ होने वाला ज़ुर्माना शामिल है। 
    • संरक्षित समूहों (जैसे महिलाएँ, नाबालिग, अनुसूचित जाति/जनजाति) के पीड़ितों के मामले में दंड में वृद्धि होगी, जिसमें 20 वर्ष तक की जेल और कम से कम ₹10 लाख तक का जुर्माना शामिल है। 
    • सामूहिक धर्मांतरण के मामलों में अपराधियों को आजीवन कारावास और कम से कम ₹25 लाख का ज़ुर्माना लगाया जा सकता है। 
    • पुनरावर्ती अपराधियों को आजीवन कारावास और ₹50 लाख तक का ज़ुर्मानाभी भुगतना पड़ सकता है।
  • न्यायालय संबंधी प्रावधान: कानून के अनुसार, सभी अपराध संज्ञेय, गैर-जमानती होंगे और सत्र न्यायालय में विचारणीय होंगे। 
  • धर्मांतरण के लिये शून्य/अमान्य विवाह: केवल धर्मांतरण के उद्देश्य से किये गए विवाह को शून्य घोषित किया जाएगा और ऐसे विवाहों से पहले या बाद में किये गए धर्मांतरण को अवैध माना जाएगा। 
  • छूट: अपने "पारंपरिक धर्म (Ancestral Religion)" में लौटने वाले व्यक्तियों को कानून के प्रावधानों से छूट दी गई है। 
  • अन्य राज्यों में समान कानून: राजस्थान उन राज्यों में शामिल हो गया है, जैसे उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश, जिन्होंने ज़बरन धर्मांतरण को रोकने के लिये समान कानून पारित किये हैं।

धार्मिक विश्वास से संबंधित संवैधानिक प्रावधान 

  • अनुच्छेद 25: यह अनुच्छेद अंतःकरण की स्वतंत्रता (Freedom of Conscience) और धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचारित करने का अधिकार सुनिश्चित करता है, बशर्ते कि यह सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अनुरूप हो। 
  • अनुच्छेद 26: यह अनुच्छेद प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार प्रदान करता है, बशर्ते कि यह सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अनुरूप हो। 
  • अनुच्छेद 27-30: ये अनुच्छेद धार्मिक प्रथाओं में आर्थिक योगदान करने, धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने और धार्मिक उद्देश्यों के लिये शैक्षणिक संस्थाएँ स्थापित और संचालित करने की स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं।