पिपरहवा अवशेषों की भारत वापसी | 01 Aug 2025
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 127 वर्षों के पश्चात् भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा अवशेषों की भारत वापसी का स्वागत करते हुए इसे देश की सांस्कृतिक विरासत के लिये गौरवपूर्ण और हर्ष का क्षण बताया।
- गोदरेज इंडस्ट्रीज़ ने सरकार के साथ मिलकर औपनिवेशिक काल के दौरान विदेश ले जाए गए इन अवशेषों को सोथबी नीलामी गृह से प्राप्त करने और उन्हें भारत वापस लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके फलस्वरूप ये अवशेष नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रदर्शित किये जा सकेंगे।
मुख्य बिंदु
- पिपरहवा अवशेषों के बारे में:
- पिपरावा अवशेष, जिन्हें भगवान बुद्ध के अवशेष माना जाता है, वर्ष 1898 में विलियम क्लैक्सटन पेप्पे द्वारा उत्तर प्रदेश के पिपरहवा स्तूप में खुदाई के दौरान प्राप्त हुए थे। यह स्थान भगवान बुद्ध का जन्मस्थान प्राचीन कपिलवस्तु माना जाता है ।
- इनमें बुद्ध के अस्थि खंड, सोपस्टोन (पाषाण) पात्र, क्रिस्टल पात्र, रत्न, स्वर्णाभूषण तथा अन्य अनुष्ठानिक सामग्री सम्मिलित हैं।।
- एक पात्र पर ब्राह्मी लिपि उत्कीर्ण किया गया लेख, इन अवशेषों को प्रत्यक्ष रूप से भगवान बुद्ध से जोड़ता है, जिसमें कहा गया है कि इन्हें शाक्य वंश द्वारा समर्पित किया गया था।
- अवशेषों का कानूनी संरक्षण:
- भारत ने इन अवशेषों को ‘AA’ पुरावशेष (सबसे उच्चतम कानूनी संरक्षण स्तर) के अंतर्गत वर्गीकृत किया है।
- भारतीय कानून के अनुसार, इन अवशेषों का क्रय-विक्रय या निर्यात प्रतिबंधित है और इन्हें नीलामी या देश से बाहर ले जाना अवैध है।
- वर्ष 1899 में अधिकांश अवशेष भारतीय संग्रहालय, कोलकाता को सौंप दिये गए थे, किंतु ब्रिटिश उत्खननकर्त्ता विलियम क्लैक्सटन पेप्पे के वंशजों ने कुछ अवशेष जैसे पिपरावा अवशेष अपने पास रख लिये थे।
नोट: बुद्ध के अवशेष उनकी मृत्यु के बाद विभिन्न स्थानों पर निर्मित 9 स्तूपों में स्थापित किये गए थे, जिनमें शामिल हैं: