राजस्थान ने रामगढ़ क्रेटर को भारत के पहले भू-विरासत स्थल के रूप में मान्यता दी | 18 Mar 2024

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राजस्थान सरकार ने बारां ज़िले में 165 मिलियन वर्ष पहले उल्का प्रभाव के कारण बने 3 किलोमीटर व्यास वाले रामगढ़ क्रेटर को आधिकारिक तौर पर देश के पहले भू-विरासत स्थल के रूप में मान्यता दी है।

मुख्य बिंदु:

  • रामगढ़ क्रेटर अपनी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं, जैवविविधता, स्थानीय समुदायों और समाज के लिये सांस्कृतिक तथा विरासत मूल्य के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • राज्य वेटलैंड प्राधिकरण के अनुसार, क्रेटर के अंदर स्थित पुष्कर तालाब खारे और क्षारीय जल दोनों का स्रोत है, जो क्षेत्र की सुंदरता तथा विविधता को बढ़ाता है।
    • इन झीलों को वेटलैंड (संरक्षण एवं प्रबंधन) नियम, 2017 के तहत वेटलैंड के रूप में अधिसूचित किया गया है।
  • रामगढ़ क्रेटर एक सांस्कृतिक क्षेत्र के भीतर मानवीय मूल्यों के महत्त्वपूर्ण आदान-प्रदान को प्रदर्शित करता है, जो वास्तुकला या प्रौद्योगिकी, स्मारकीय कला, नगर-योजना या परिदृश्य डिज़ाइन के विकास में परिलक्षित होता है।
    • खजुराहो में चंदेल राजवंश और उनके मंदिरों से प्रभावित भांड देव मंदिर, इस तरह के आदान-प्रदान का एक उदाहरण है।
    • उल्का प्रभाव क्रेटर पर इसका निर्माण इसकी विशिष्टता और महत्त्व को बढ़ाता है।

रामगढ़ क्रेटर

  • यह राजस्थान में बारां ज़िले के रामगढ़ गाँव के निकट स्थित विंध्य पर्वत शृंखला के कोटा पठार में 3.5 किलोमीटर व्यास का एक उल्का प्रभाव क्रेटर है।
  • इसे औपचारिक रूप से भारत में तीसरे क्रेटर के रूप में स्वीकार किया गया है, इसके व्यास का आकार भारत में पहले से ही पुष्टि किये गए दो क्रेटरों के बीच होगा, मध्य प्रदेश में ढाला (14 किमी व्यास) और महाराष्ट्र के बुलढाणा ज़िले में लोनार (1.8 किमी व्यास)।

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 जंगली जानवरों और पौधों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, उनके आवासों के प्रबंधन, जंगली जानवरों, पौधों तथा उनसे बने उत्पादों के व्यापार के विनियमन एवं नियंत्रण के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
  • यह अधिनियम उन पौधों और जानवरों की अनुसूचियों को भी सूचीबद्ध करता है जिन्हें सरकार द्वारा अलग-अलग स्तर की सुरक्षा तथा निगरानी प्रदान की जाती है।
  • वन्यजीव अधिनियम ने CITES (वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन) में भारत के प्रवेश को सरल बना दिया था।
  • इससे पहले जम्मू-कश्मीर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के दायरे में नहीं आता था। लेकिन अब पुनर्गठन अधिनियम के परिणामस्वरूप भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम जम्मू-कश्मीर पर लागू होता है।