नगरी दुबराज को मिला जीआई टैग | 30 Nov 2021

चर्चा में क्यों?

29 नवंबर, 2021 को ग्वालियर में आयोजित जियोग्राफिकल इंडिकेशन कमेटी की बैठक में छत्तीसगढ़ के धमतरी विकास खंड के नगरी के धान की ‘नगरी दुबराज’किस्म को जीआई टैग देने के लिये अनुमोदन किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • ‘नगरी दुबराज’छत्तीसगढ़ राज्य की दूसरी फसल है, जिसे जियोग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री टैग, यानी जीआई टैग मिला है। इसके पहले जीरा फूल धान की किस्म के लिये प्रदेश को जीआई टैग मिल चुका है।
  • चेन्नई द्वारा गठित कमेटी में भारत के 10 विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा जाँचा और परखा गया तथा नगरी दुबराज की नगरी में उत्पत्ति होने का प्रमाण स्वीकार कर लिया गया है। जल्द ही इसका प्रमाण-पत्र भी मिल जाएगा। 
  • ज्ञातव्य है कि अक्टूबर 2021 में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर ने जीआई टैग के लिये नगरी दुबराज का प्रस्ताव भेजा था। 
  • नगरी दुबराज को छत्तीसगढ़ में बासमती भी कहा जाता है, क्योंकि छत्तीसगढ़ के पारंपरिक भोज कार्यक्रमों सुगंधित चावल के रूप में इस चावल का प्रयोग किया जाता है।
  • नगरी दुबराज की उत्पत्ति सिहावा के श्रृंगी ऋषि आश्रम क्षेत्र से मानी गई है। इसका वर्णन वाल्मीकि रामायण में भी किया गया है। विभिन्न शोध पत्रों में भी दुबराज का स्रोत नगरी सिहावा को ही बताया गया है।
  • नगरी दुबराज से निकलने वाला चावल बहुत ही सुगंधित है। यह पूर्णरूप से देशी किस्म है और इसके दाने छोटे हैं। इसका चावल पकने के बाद खाने में बेहद नरम है। एक एकड़ में अधिकतम छह क्विंटल तक उपज मिलती है। धान की ऊँचाई कम और 125 दिन में पकने की अवधि है।
  • वर्ल्ड इंटलैक्चुअल प्रॉपर्टी आर्गनाइज़ेशन (विपो) के अनुसार  जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग एक प्रकार का लेबल होता है, जिसमें किसी खास फसल, प्राकृतिक या कृत्रिम उत्पाद को विशेष भौगोलिक पहचान दी जाती है। यह बौद्धिक संपदा का अधिकार माना जाता है। 
  • उल्लेखनीय है कि भारतीय संसद ने सन् 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स’लागू किया था। इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य, व्यक्ति या संगठन इत्यादि को दे दिया जाता है।