करमा उत्सव | 06 Sep 2025

चर्चा में क्यों?

झारखंड के मुख्यमंत्री ने राँची में आयोजित करमा उत्सव समारोह में भाग लिया।

मुख्य बिंदु 

करमा (करम) उत्सव के बारे में:

  • भौगोलिक और सामुदायिक पहुँच: 
  • समय और तिथि: 
    • पारंपरिक रूप से यह उत्सव भाद्रपद/भादो (अगस्त–सितंबर) मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि (ग्यारहवें दिन) को मनाया जाता है।
  • मुख्य प्रतीक और देवता: 
    • इस उत्सव का नाम करम वृक्ष के नाम पर रखा गया है। इस वृक्ष को पारंपरिक रूप से करम देवता या करमसनी, जो शक्ति, यौवन और जीवनशक्ति के देवता माने जाते हैं, के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। 
  • अनुष्ठान और औपचारिक प्रथाएँ:
    • तैयारी: उत्सव से लगभग एक सप्ताह पूर्व युवतियाँ नदी से स्वच्छ रेत लाकर उसमें सात प्रकार के अनाज बोती हैं।
    • मुख्य समारोह: उत्सव के दिन करम वृक्ष की एक शाखा आँगन या ‘अखरा’ में लगाई जाती है।
    • पूजा: श्रद्धालु जवा (गुड़हल) के फूल अर्पित करते हैं और ‘पाहन’ (जनजातीय पुजारी) करम राजा या करम देवता की पूजा करते हैं।
    • उत्सव: पूजा के बाद पारंपरिक करम गीतों के साथ सामूहिक नृत्य और गायन होता है।
    • समापन: करम शाखा को नदी या तालाब में विसर्जित करने के साथ इस उत्सव का समापन होता है तथा जवा को श्रद्धालुओं के बीच वितरित किया जाता है।
  • कृषि संबंधी महत्त्व:
    • इस उत्सव की उत्पत्ति जनजातीय समुदायों द्वारा कृषि की शुरुआत से जुड़ी हुई है।
    • उरांव/कुरुख समुदाय ने कृषि चक्र के अनुरूप सांस्कृतिक परंपराओं को संयोजित करते हुए करमा उत्सव को धान/अनाज का उत्सव रूप में मनाना आरंभ किया।
    • उत्सव के बाद प्रायः खेतों में साल या भेलुआ के पेड़ों की शाखाएँ लगाई जाती हैं, इस विश्वास के साथ कि करम देवता उनकी फसलों की रक्षा करेंगे।.
    • चिरचिट्टी (भूसा फूल) और सिंदवार (पवित्र वृक्ष) के तने धान के खेतों में लगाए जाते हैं, जो प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में कार्य करते हैं।
    • अनुष्ठान के दौरान पाहन (पुजारी) अच्छी फसल के लिये प्रार्थना करता है।