डीपीटी/टीडी टीकाकरण अभियान का शुभारंभ | 17 Aug 2022

चर्चा में क्यों?

16 अगस्त, 2022 को मध्य प्रदेश के लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी ने भोपाल के कमला नेहरू कन्या स्कूल सभागार में डीपीटी/टीडी टीकाकरण अभियान के राज्यस्तरीय कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इसके साथ ही उन्होंने अभियान पर केंद्रित पोस्टर का विमोचन भी किया।

प्रमुख बिंदु

  • डीपीटी, टिटनेस और डिप्थीरिया जैसी जानलेवा बीमारी से बचाने के लिये यह टीकाकरण अभियान 31 अगस्त तक चलेगा।
  • स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी ने कहा कि मध्य प्रदेश डिप्थीरिया उन्मूलन में अग्रणी राज्यों में से एक है। डीपीटी और टीडी के टीके 36 लाख किशोर-किशोरियों को लगाए जाएंगे। टीका 5 से 6 वर्ष, 10 वर्ष और 16 वर्ष के बच्चों को लगाया जाना है। स्कूल और आँगनबाड़ी केंद्रों में नि:शुल्क टीके लगाए जाएंगे।
  • स्वास्थ्य मंत्री ने जन-प्रतिनिधियों, शिक्षकों और पालकों से अभियान में शत-प्रतिशत बच्चों का टीकाकरण करवाने में सहयोग करने की अपील की।
  • डीपीटी (डीटीपी और DTwP भी) संयोजित टीकों की एक श्रेणी को संदर्भित करता है, जो मनुष्यों को होने वाले तीन संक्रामक रोगों (डिप्थीरिया, पर्टुसिस (काली खांसी) और टिटनेस) से बचाव के लिये दिये जाते हैं।
  • ' D ' का मतलब डिप्थीरिया, ' T ' का मतलब टिटनेस और ' P ' का मतलब पर्टुसिस है। ये तीनों बैक्टीरिया से होने वाली गंभीर बीमारियाँ हैं। डिप्थीरिया और पर्टुसिस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलती हैं, जबकि टिटनेस कट और घावों के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है।
  • टीडी टीका टिटनेस और डिप्थीरिया से बचाव के लिये दिया जाता है। यह केवल 7 वर्ष और उससे अधिक उम्र के बच्चों, किशोरों और वयस्कों के लिये दिया जाता है। टीडी आमतौर पर हर 10 साल में बूस्टर खुराक के रूप में दिया जाता है, या गंभीर या गंदे घाव या जलने की स्थिति में 5 साल बाद दिया जाता है।
  • ज्ञातव्य है कि डिप्थीरिया एक गंभीर बैक्टीरियल संक्रमण होता है, जो नाक और गले की श्लेष्मा झिल्ली को प्रभावित करता है। यह एक छाले के रूप में दिखाई देता है और गले में सूजन आना, गले में दर्द होना, कुछ खाने-पीने में दर्द होना, इसके लक्षण हैं। इस संक्रमण से बचने के लिये टीका बहुत ज़रूरी है।
  • टिटनेस आमतौर पर पूरे शरीर में मांसपेशियों के दर्दनाक कसने का कारण बनता है। टिटनेस के कारण जबड़ा बंद हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप पीड़ित अपना मुँह नहीं खोल सकता और न ही निगल सकता है।
  • पर्टुसिस (काली खांसी) गंभीर खांसी का कारण बनता है। इससे शिशुओं के लिये खाना, पीना या सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। पर्टुसिस से निमोनिया, आक्षेप, मस्तिष्क क्षति और मृत्यु हो सकती है।