बिहार में ठंड और कोहरे का असर रबी फसलों पर | 06 Feb 2024

चर्चा में क्यों?

कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार, बिहार के विभिन्न ज़िलों के प्रारंभिक आकलन से संकेत मिलता है कि भीषण ठंड और कोहरे ने आलू तथा सरसों को सबसे ज़्यादा नुकसान पहुँचाया है, इसके बाद मसूर की फसल को नुकसान हुआ है। हालाँकि गेहूँ की फसल को कोई खास नुकसान होने की खबर नहीं है।

  • मुख्य बिंदु:
  • विभिन्न ज़िलों में कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) के वैज्ञानिकों ने कई दिनों तक चली शीत लहर और शीत दिवस की स्थिति के कारण रबी फसलों के नुकसान की पुष्टि की है।
    • उन्होंने विशेष रूप से बदलती जलवायु के साथ देर से बुआई से उपज और उत्पादन पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों पर प्रकाश डाला।
    • देर से बोई गई आलू की फसल को 25 से 40% तक नुकसान हुआ, जबकि जल्दी बोई गई आलू की फसल को 15% नुकसान हुआ। सरसों की फसल को भी 10 से 15 प्रतिशत तक नुकसान हुआ है।
  • किसानों के सामने चुनौती यह है कि वे दिसंबर तक धान की कटाई करते हैं और फिर दिसंबर के मध्य या जनवरी की शुरुआत में सरसों तथा आलू सहित रबी फसलों की बुआई शुरू करते हैं, जिससे उन्हें गंभीर ठंड की स्थिति का सामना करना पड़ता है।
  • लंबे समय तक ठंड रहने और दिन में धूप कम होने से रबी की फसल प्रभावित हुई है। इन स्थितियों ने फसलों के विकास, फूल आने और उपज बनाने की प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव डाला है, जिससे आलू में झुलसा रोग की व्यापक रिपोर्टें सामने आई हैं। हालाँकि गेहूँ की फसलें काफी हद तक अप्रभावित हैं।

कृषि विज्ञान केंद्र (KVK)

  • यह राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली (National Agricultural Research System- NARS) का अभिन्न अंग है। पहला KVK वर्ष 1974 में पुद्दुचेरी में स्थापित किया गया था।
  • KVK का अधिदेश इसके अनुप्रयोग और क्षमता विकास के लिये प्रौद्योगिकी मूल्यांकन तथा प्रदर्शन है।
  • इसका उद्देश्य प्रौद्योगिकी मूल्यांकन, शोधन और प्रदर्शनों के माध्यम से कृषि तथा संबद्ध उद्यमों में स्थान विशिष्ट प्रौद्योगिकी मॉड्यूल का मूल्यांकन करना है।
  • KVK भी गुणवत्तापूर्ण तकनीकी उत्पादों जैसे- बीज, रोपण सामग्री, पशुधन आदि का उत्पादन करते हैं और इसे किसानों को उपलब्ध कराते हैं।
  • KVK योजना भारत सरकार द्वारा 100% वित्तपोषित है और कृषि विश्वविद्यालयों, ICAR संस्थानों, संबंधित सरकारी विभागों तथा कृषि में काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों (NGO) द्वारा स्वीकृत हैं।