राजस्थान में बाल विवाह की दर में कमी | 29 Sep 2025
चर्चा में क्यों?
राजस्थान, जिसे कभी बाल विवाह का केंद्र माना जाता था, में बाल विवाह के मामलों में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है, जहाँ लड़कों में मामले 67% और लड़कियों में 66% घटे हैं, यह जानकारी न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा में जारी एक अध्ययन में दी गई है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- “टिपिंग पॉइंट टू ज़ीरो: एविडेंस टुवर्ड्स ए चाइल्ड मैरिज फ्री इंडिया” शीर्षक वाला यह अध्ययन 250 से अधिक बाल संरक्षण संगठनों के नेटवर्क, जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन (JRC) द्वारा राजस्थान बाल अधिकार निदेशालय के सहयोग से वर्ष 2022 और 2024 के बीच पाँच राज्यों में किया गया था। इस पहल को भारत सरकार और विभिन्न नागरिक समाज संगठनों का भी समर्थन प्राप्त था।
- रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया है कि बाल विवाह को कम करने में जागरूकता अभियान सबसे प्रभावी साधन रहे, जिसे राजस्थान में 99% उत्तरदाताओं ने अत्यंत महत्त्वपूर्ण बताया।
- यह भी उल्लेख किया गया है कि 82% उत्तरदाताओं ने गिरफ्तारी और मुकदमेबाज़ी को इस प्रथा को रोकने में दूसरे सबसे प्रभावशाली कारक के रूप में माना।
- इन सुधारों के बावजूद, अध्ययन यह रेखांकित करता है कि कमज़ोर वित्तीय स्थिति (91%), सांस्कृतिक और पारंपरिक प्रथाएँ (45%), तथा यह विश्वास कि कम उम्र में विवाह करने से “पवित्रता” सुनिश्चित होती है (45%) बाल विवाह के स्थायी प्रेरक कारक बने हुए हैं।
- रिपोर्ट की सिफारिशें: रिपोर्ट बाल विवाह संबंधी कानूनों के कड़े प्रवर्तन, बेहतर रिपोर्टिंग तंत्र, अनिवार्य विवाह पंजीकरण, और बाल विवाह मुक्त भारत पोर्टल के संबंध में ग्राम स्तर पर जागरूकता सुनिश्चित करने का आह्वान करती है।
- इसमें देश भर में सामूहिक कार्रवाई के लिये बाल विवाह विरोधी राष्ट्रीय दिवस घोषित करने की भी सिफारिश की गई है।
बाल विवाह
- परिचय: UNICEF बाल विवाह को मानवाधिकार उल्लंघन मानता है क्योंकि इसका लड़कियों और लड़कों दोनों के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- सतत् विकास लक्ष्य 5.3 के अनुसार, बाल विवाह का उन्मूलन सतत् विकास लक्ष्य 5 को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक लैंगिक समानता और महिलाओं तथा लड़कियों के सशक्तीकरण को सुनिश्चित करना है।
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वर्ष 2022 तक विश्वभर में 5 में से 1 युवती (19%) का विवाह बचपन में ही हो गया था।
- वैधानिक ढाँचा: भारत ने वर्ष 2006 में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम पारित किया, जिसके तहत पुरुषों के लिये विवाह की कानूनी आयु 21 वर्ष और महिलाओं के लिये 18 वर्ष निर्धारित की गई।
- बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम की धारा 16 राज्य सरकारों को विशिष्ट क्षेत्रों के लिये 'बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी (CMPO)' नियुक्त करने की अनुमति देती है।
- बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी (CMPO) बाल विवाह को रोकने, अभियोग के लिये साक्ष्य एकत्र करने, ऐसे विवाहों को बढ़ावा देने या सहायता करने के विरुद्ध परामर्श देने, इनके हानिकारक प्रभावों के प्रति जागरूकता का प्रसार करने, और समुदायों को संवेदनशील बनाने के कार्यों के लिये ज़िम्मेदार होते हैं।
- बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम की धारा 16 राज्य सरकारों को विशिष्ट क्षेत्रों के लिये 'बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी (CMPO)' नियुक्त करने की अनुमति देती है।