CCI ने लैंको अमरकंटक पावर लिमिटेड के 100% अधिग्रहण को मंज़ूरी दी | 27 Mar 2024

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) ने अडानी पावर लिमिटेड द्वारा लैंको अमरकंटक पावर लिमिटेड के 100% अधिग्रहण को मंज़ूरी दे दी है।

मुख्य बिंदु:

  • अडानी पावर लिमिटेड (अधिग्रहणकर्त्ता), अडानी समूह का एक हिस्सा जो भारत के कानूनों के तहत निगमित कंपनी है।
    • यह भारत में ताप विद्युत उत्पादन के व्यवसाय में लगी हुई है
    • यह गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और मध्य प्रदेश सहित भारत के कई राज्यों में ताप विद्युत संयंत्र संचालित करती है।
    • अडानी समूह एक वैश्विक एकीकृत बुनियादी ढाँचा कंपनी है, जो प्रमुख उद्योग क्षेत्रों संसाधनों, लॉजिस्टिक्स और ऊर्जा में कारोबार करती है।
  • लैंको समूह का एक हिस्सा लैंको अमरकंटक पावर लिमिटेड (लक्ष्य) भारत में ताप विद्युत उत्पादन के व्यवसाय में लगा हुआ है।
    • यह वर्तमान में दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 (IBC) के तहत कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) से गुज़र रहा है।
    • प्रस्तावित संयोजन अधिग्रहणकर्त्ता द्वारा लक्ष्य की 100% इक्विटी शेयर पूंजी के अधिग्रहण से संबंधित है।

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI)

  • भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग एक सांविधिक निकाय है जो प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के उद्देश्यों को लागू करने के लिये उत्तरदायी है। इसका विधिवत गठन मार्च 2009 में किया गया था।
  • राघवन समिति की सिफारिशों के आधार पर एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम (MRTP Act), 1969 को निरस्त कर इसे प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है।

दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016

  • इसे भारत के आर्थिक इतिहास में सबसे बड़े शोधन अक्षमता सुधारों में से एक माना जाता है।
  • इसे ऐसे व्यक्तियों की संपत्ति के मूल्य को अधिकतम करने के लिये समयबद्ध तरीके से कॉर्पोरेट व्यक्तियों, साझेदारी फर्मों और व्यक्तियों के पुनर्गठन तथा शोधन अक्षमता समाधान के लिये अधिनियमित किया गया था।

कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP)

  • भारत में CIRP, IBC द्वारा शासित एक समयबद्ध प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य अपनी संपत्ति के मूल्य को अधिकतम करते हुए कॉर्पोरेट देनदार के वित्तीय संकट को हल करना है।
  • इस प्रक्रिया का प्राथमिक उद्देश्य वित्तीय रूप से संकटग्रस्त कंपनी का पुनरुद्धार सुनिश्चित करना है और ऐसे मामलों में जहाँ कंपनी का पुनरुद्धार संभव नहीं है, यह संकटग्रस्त कंपनी की संपत्ति का व्यवस्थित परिसमापन सुनिश्चित करता है जिसे कॉर्पोरेट देनदार घोषित किया गया है।