बुंदेलखंड का कालिंजर दुर्ग | 29 Jul 2025
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात के 124वें संस्करण में बुंदेलखंड स्थित कालिंजर किले के ऐतिहासिक महत्त्व को रेखांकित करते हुए इसे भारत की सांस्कृतिक गरिमा और स्थायित्व का प्रतीक बताया।
- प्रधानमंत्री ने नागरिकों से भारत के समृद्ध अतीत से जुड़ने और बुंदेलखंड क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये इन किलों को देखने का आग्रह किया।
प्रमुख बिंदु
- कालिंजर किला के बारे में:
- बुंदेलखंड का कालिंजर किला, उत्तर प्रदेश के बांदा ज़िले की ताराहाटी तहसील में स्थित एक प्रमुख ऐतिहासिक दुर्ग है।
- यह किला विंध्य शृंखला की पहाड़ी पर स्थित एक प्राचीन स्मारक है, जो अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व के लिये प्रसिद्ध है।
- इसमें गिरि दुर्गा (पहाड़ी किला) तथा वन दुर्गा (जंगल किला) दोनों की विशेषताएँ सम्मिलित हैं।
- वास्तुकला
- किले में सात प्रवेशद्वार हैं, जिनमें प्रमुख हैं- आलमगिरी गेट तथा गणेश गेट।
- इसमें नीलकंठ मंदिर और कनाती मस्जिद जैसी ऐतिहासिक संरचनाएँ स्थित हैं।
- किले में महल, मंदिर तथा पानी की टंकियों सहित बुंदेला वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण देखे जा सकते हैं।
- प्रसिद्ध संरचनाओं में शामिल हैं—
- नीलकंठ मंदिर, जिसमें विशाल काल भैरव मूर्ति स्थित है।
- रानी महल और वेंकट बिहारी महल।
- शेरशाह का मकबरा, हालाँकि उनके पार्थिव अवशेष बाद में सासाराम (बिहार) ले जाए गए थे।
- रक्षात्मक क्षमता
- किले की 45 मीटर ऊँची प्राचीर इसे लगभग अभेद्य बनाती थी।
- इसकी दीवारें तोपखाने के गोलों तक के आघात को सहने में सक्षम थीं, जिससे यह किला सैन्य दृष्टि से अत्यंत सशक्त माना जाता था।
- ऐतिहासिक विरासत
- यह किला गुप्त, गुर्जर-प्रतिहार, चंदेल और मुगल जैसे विभिन्न राजवंशों से जुड़ा रहा है।
- महमूद गज़नवी (1023 ई.): महमूद गज़नवी ने कालिंजर दुर्ग पर चढ़ाई की, किंतु उसकी सेनाएँ दुर्ग की सुरक्षा को भेद नहीं सकीं। असफल घेराबंदी के बाद चंदेल राजा गंडदेव ने प्रशंसात्मक कविताएँ प्रस्तुत करके शांति का प्रस्ताव रखा और अंततः किले पर पूर्ण विजय प्राप्त किये बिना ही उसने आत्मसमर्पण कर दिया गया।
- कुतुबुद्दीन ऐबक (13वीं शताब्दी के प्रारंभ में): दिल्ली सल्तनत की स्थापना के बाद, मुहम्मद गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने कालिंजर पर अधिकार कर लिया, जिससे यह दुर्ग मुस्लिम शासन में आ गया
- शेरशाह सूरी (1545 ई.): 13 मई, 1545 को कालिंजर दुर्ग की घेराबंदी के दौरान बारूद विस्फोट में शेरशाह सूरी की मृत्यु हो गई
- मुगल (1569 ई.): शेरशाह की मृत्यु के पश्चात्, अकबर के शासनकाल में 1569 ई० में मुगलों ने कालिंजर पर अधिकार किया। अकबर के नवरत्नों में से एक राजा बीरबल को यह दुर्ग जागीर स्वरूप प्रदान किया गया।
- अंग्रेज़ (1812–1817 ई.): 1812 ई० में अंग्रेज़ अधिकारी कर्नल मार्टिंडेल की घेराबंदी के बाद स्थानीय शासक दरियाव सिंह ने दुर्ग समर्पित कर दिया। इसके पश्चात् कालिंजर ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया।
- 1857 का विद्रोह: इस विद्रोह के दौरान दुर्ग की मज़बूत प्राचीरों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, परंतु 1866 ई० में इसे ध्वस्त कर दिया गया।