Sambhav-2023

दिवस- 74

प्रश्न.1 वनाग्नि के क्या कारण हैं। इसकी रोकथाम के उपायों का उल्लेख कीजिये। (250 शब्द)

प्रश्न.2 ऐसा कहा जाता है कि प्राकृतिक आपदाएँ न केवल भौतिक और आर्थिक संसाधनों बल्कि मानव समाज को भी नष्ट कर देती हैं। उपयुक्त उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

02 Feb 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

उत्तर 1:

हल करने का दृष्टिकोण:

  • वनाग्नि का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • वनाग्नि के विभिन्न कारणों तथा वनाग्नि से निपटने के उपायों का विवरण दीजिये।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

  • वनाग्नि एक प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदा है इसमें पेड़-पौधे और अन्य जीवों को नुकसान होता है।
  • वनाग्नि से पारिस्थितिकी तंत्र और वन्यजीव को नुकसान होने के साथ ही मानव समुदायों और संपत्ति को भी नुकसान पहुँच सकता है।
  • इससे बड़ी मात्रा में कार्बन का वायुमंडल में उत्सर्जन हो सकता है जिससे ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है।

मुख्य भाग:

  • वनाग्नि के विभिन्न कारण हो सकते हैं, जिसमें बिजली गिरने जैसे प्राकृतिक कारण और मानव गतिविधियाँ जैसे आगजनी, कैम्पफायर और वनों की कटाई शामिल हैं। मौसम की स्थिति जैसे शुष्क और तेज़ हवाएँ भी जंगल की आग के प्रसार में योगदान कर सकती हैं।
  • प्राकृतिक कारण: बिजली गिरना, ज्वालामुखीय गतिविधि और कार्बनिक पदार्थों का स्वत: दहन इसके प्राकृतिक कारण हैं।
    • बिजली गिरना: जंगल में आग लगने का एक आम कारण बिजली का गिरना है। जब जंगल में किसी पेड़ या अन्य ज्वलनशील सामग्री पर बिजली गिरती है तो यह आग को प्रज्वलित कर सकती है (विशेष रूप से शुष्क परिस्थितियों में)।
    • ज्वालामुखी गतिविधि: ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान निकलने वाली गर्म राख, लावा और चट्टानों से जंगलों में आग लग सकती है।
    • स्वतःस्फूर्त दहन: जंगलों में जैविक पदार्थ (जैसे कि गिरी हुई पत्तियाँ और शाखाएँ) माइक्रोबियल गतिविधि के कारण गर्मी के परिणामस्वरूप अनायास जल सकते हैं।
  • मानवीय कारण: आगजनी, कैम्पफायर, आतिशबाजी और सिगरेट जंगल की आग के सामान्य मानव-जनित स्रोत हैं।
    • आग लगाना: विकास कार्यों हेतु भूमि को खाली करने के क्रम में लोग जंगलों में आग लगा सकते हैं।
    • कैम्प फायर: कैम्प फायर को ठीक से न बुझाने के कारण इससे आसानी से जंगल में आग लग सकती है।
    • आतिशबाज़ी: शुष्क, जंगली इलाकों में पटाखों के इस्तेमाल से आग लग सकती है।
    • धूम्रपान: सिगरेट को लापरवाही से फेंकने से जंगल में आग लग सकती है।
    • कृषि गतिविधियाँ: कृषि या वन प्रबंधन के लिये लगाई जाने वाली नियंत्रित आग, जंगल की आग का कारण बन सकती है।
  • यांत्रिक कारण: बिजली के उपकरण और वाहन की चिंगारी से वन क्षेत्रों में आग लगा सकती है।
    • उपकरण की खराबी: बिजली के उपकरण, वाहन और मशीनरी जैसे उपकरणों से निकलने वाली चिंगारी से जंगल में आग लग सकती है।
    • ट्रेनों की चिंगारी: ट्रेनों से निकलने वाली चिंगारी से सूखी वनस्पति जलने से जंगलों में आग लग सकती है।
    • बिजली की लाइनें: बिजली की लाइनों का ठीक से रखरखाव न करने से जंगलों में आग लग सकती है।
  • मौसमी कारण: सूखा, तेज़ हवाएँ और शुष्क परिस्थितियाँ जंगलों को आग के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकती हैं और आग को फैलाने में मदद कर सकती हैं।
    • सूखा: सूखे की स्थिति, जंगलों को आग के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकती है और यह आग के तेजी से फैलने के जोखिम को बढ़ा सकती है।
    • तेज़ हवाएँ: तेज़ हवाओं से जंगल के अन्य क्षेत्रों में आग फैल सकती है।
    • शुष्क परिस्थितियाँ: अत्यधिक गर्मी और शुष्क पवनें, जंगल में वनस्पति और पेड़ों को अत्यधिक ज्वलनशील बना सकती है जिससे आग लगना और फैलना आसान हो जाता है।
  • कृषि और वनीकरण गतिविधियाँ: कृषि या वन प्रबंधन के लिये लगाई जाने वाली नियंत्रित आग, जंगल की आग का कारण बन सकती है।
    • नियंत्रित आग लगाना: भूमि को साफ करने और मृत वनस्पति को हटाने के लिये कृषि और वानिकी प्रबंधन में नियंत्रित आग लगाने से जंगल में आग लग सकती है।
    • वनों की कटाई: कृषि या अन्य उद्देश्यों के लिये भूमि साफ करने से सूखी, ज्वलनशील वनस्पति शेष बच सकती है जिससे आग लगा सकती है।
    • अनियोजित भूमि प्रबंधन पद्धतियाँ: अनियोजित भूमि प्रबंधन पद्धतियाँ जैसे कि सूखी वनस्पतियों को ठीक से साफ नहीं करना या जंगलों में मलबा छोड़ने से जंगल की आग का जोखिम बढ़ सकता है।
  • जंगल की आग को रोकने के लिये कई उपाय किये जा सकते हैं जैसे:
    • जागरूकता बढ़ाना: लोगों को जंगल की आग के कारणों के बारे में शिक्षित करने और उन्हें आग को रोकने के लिये कदम उठाने के महत्त्व के बारे में शिक्षित करने से मानवीय गतिविधियों के कारण होने वाली आग की प्रवृत्ति को कम करने में मदद मिल सकती है।
    • आग से बचाव की योजना: जंगल की आग को रोकने के लिये योजना और तैयारी महत्त्वपूर्ण हैं। इसमें अग्नि-रोकथाम योजनाएँ विकसित करना, आग प्रतिरोधी परिदृश्य बनाना और आग के जोखिम को कम करने के लिये वनों का प्रबंधन करना शामिल है।
    • आग प्रतिरोधी अवसंरचना: जैसे- आग प्रतिरोधी निर्माण सामग्री के उपयोग को बढ़ावा देने और मानव वस्ती के चारो ओर आग रोकने के लिये परिदृश्य बनाने से जंगल की आग के फैलने के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
    • अग्निशामक और अग्निशमन उपकरण: अग्निशामकों को उचित प्रशिक्षण देने और उन्हें आवश्यक उपकरण और संसाधन प्रदान करने से जंगल की आग को रोकने और नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।
    • शुरुआती पहचान के साथ तीव्र प्रतिक्रिया करना: धूम्रपान अलार्म और निगरानी प्रणाली जैसी प्रणाली को शुरू करने से जंगल की आग का तुरंत पता लगाने और उस पर प्रतिक्रिया करने में मदद मिल सकती है, जिससे इसके प्रसार और क्षति को कम किया जा सकता है।
    • वन प्रबंधन: उचित वन प्रबंधन प्रथाओं को लागू करने जैसे आग प्रतिरोधी पौधों को लगाना और मृत वनस्पतियों को साफ करने से जंगल की आग के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।

निष्कर्ष:

जंगल की आग का पारिस्थितिकी तंत्र, वन्य जीव और मानव समुदायों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है। इसके विभिन्न कारण होते हैं जिनमें प्राकृतिक कारण, मानवीय गतिविधियाँ और मौसम की स्थिति शामिल है। जंगल की आग को रोकने और नियंत्रित करने के लिये समन्वित प्रयास और प्रभावी उपायों के कार्यान्वयन की आवश्यकता होती है जिसमें जागरूकता बढ़ाना, आग से बचाव की योजना बनाना, आग प्रतिरोधी अवसंरचना का निर्माण करना, उचित रूप से प्रशिक्षित अग्निशामक तैयार करना, शुरुआती पहचान के साथ तीव्र प्रतिक्रिया करना और प्रभावी वन प्रबंधन करना शामिल है। इन उपायों को अपनाकर हम अपने वनों की रक्षा करने के साथ जंगल की आग से होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं।


उत्तर 2:

हल करने का दृष्टिकोण:

  • प्राकृतिक आपदा का संक्षिप्त परिचय लिखिये।
  • प्राकृतिक आपदाओं के विभिन्न प्रभावों के बारे में विवरण दीजिये।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

  • तूफान, भूकंप, बाढ़ और जंगल की आग जैसी प्राकृतिक आपदाओं से जन-धन पर गहरा और विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है।
  • इन घटनाओं से व्यापक क्षति हो सकती है, आवश्यक सेवाएँ बाधित हो सकती हैं तथा इसके परिणामस्वरूप जीवन और संपत्ति का नुकसान हो सकता है।
  • प्राकृतिक आपदाएँ विश्व में कहीं भी हो सकती हैं लेकिन उनका गंभीर प्रभाव उन क्षेत्रों में विशेष रूप से हो सकता है जो गरीबी, पर्यावरणीय क्षरण और कमजोर बुनियादी ढाँचे जैसे कारकों से ग्रसित हैं।
  • प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव व्यापक हो सकते हैं जिनमें भौतिक, आर्थिक और सामाजिक परिणाम शामिल हैं जो दीर्घकालिक रह सकते हैं।

मुख्य भाग:

  • प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव व्यापक और दीर्घकालीन हो सकता है। प्रभावित समुदायों पर इसका भौतिक, आर्थिक और सामाजिक प्रभाव पड़ सकता है।
  • भौतिक प्रभाव:
    • प्राकृतिक आपदाएँ इमारतों, बुनियादी ढाँचे और घरों को व्यापक नुकसान पहुँचा सकती हैं। इनके परिणामस्वरूप जन-धन की हानि हो सकती है।
      • जीवन की हानि: प्राकृतिक आपदाओं में डूबने, इमारत गिरने, भूस्खलन और अन्य प्रत्यक्ष प्रभावों के कारण जीवन की हानि हो सकती है।
      • चोट: प्राकृतिक आपदा के दौरान मलबा गिरने, करंट लगने और अन्य शारीरिक खतरों के कारण लोग घायल हो सकते हैं।
      • विस्थापन: प्राकृतिक आपदाओं के कारण लोगों को अस्थायी या स्थायी रूप से अपने घरों से विस्थापित होना पड़ सकता है।
      • बुनियादी ढाँचे का विनाश: प्राकृतिक आपदाएँ इमारतों, सड़कों, पुलों और अन्य बुनियादी ढाँचे को व्यापक नुकसान पहुँचा सकती हैं।
      • पर्यावरण क्षरण: प्राकृतिक आपदाओं के परिणामस्वरूप मिट्टी का क्षरण, वनों की कटाई और जल तथा वायु प्रदूषण हो सकता है।
      • स्वास्थ्य संबंधी खतरे: प्राकृतिक आपदाओं से खतरनाक रसायनों और प्रदूषकों के उत्पन्न होने से बीमारियों का प्रसार हो सकता है।
  • आर्थिक प्रभाव:
    • प्राकृतिक आपदाओं का आर्थिक प्रभाव दीर्घकालिक हो सकता है। कुछ प्रमुख आर्थिक प्रभावों में शामिल हैं:
      • आय और रोज़गार का नुकसान: प्राकृतिक आपदाएँ व्यापार और वाणिज्य को बाधित कर सकती हैं जिससे प्रभावित समुदायों के लिये आय और रोजगार का नुकसान हो सकता है।
      • संपत्ति का विनाश: प्राकृतिक आपदाएँ घरों, व्यवसायों और अन्य संपत्तियों को व्यापक नुकसान पहुँचा सकती हैं, जिससे महत्त्वपूर्ण आर्थिक नुकसान हो सकता है।
      • आर्थिक विकास में कमी: प्राकृतिक आपदाओं का स्थानीय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
      • सरकारी खर्च में वृद्धि: प्राकृतिक आपदा के बाद अवसंरचना पुनर्निर्माण की लागत के कारण सरकारी संसाधनों पर दबाव पड़ने के साथ सरकारी खर्च में वृद्धि होने से संभावित वित्तीय बाधाएँ आ सकती हैं।
      • बीमा के दावे और लागत: बीमाकर्ताओं और पॉलिसीधारकों द्वारा दावों के किये जाने के क्रम में बीमा उद्योग प्राकृतिक आपदाओं से व्यापक रूप से प्रभावित हो सकता है।
      • मुद्रास्फीति: आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, मुद्रास्फीति और अन्य आर्थिक कारकों की वजह से प्राकृतिक आपदाओं द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि हो सकती है।
  • सामाजिक प्रभाव:
    • प्राकृतिक आपदाओं का सामाजिक प्रभाव दूरगामी और दीर्घकालिक हो सकता है। कुछ प्रमुख सामाजिक प्रभावों में शामिल हैं:
      • मनोवैज्ञानिक तनाव और आघात: प्राकृतिक आपदाएँ प्रभावित व्यक्तियों और समुदायों के लिये मनोवैज्ञानिक तनाव और आघात का कारण बन सकती हैं, जिससे दीर्घकालिक मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं।
      • विस्थापन होना: प्राकृतिक आपदाओं का परिणाम प्रभावित समुदायों के विस्थापन के रूप में सामने आ सकता है, जिससे सामुदायिक सामंजस्य और सहायक नेटवर्क का नुकसान हो सकता है।
      • सामाजिक असमानता: प्राकृतिक आपदाएँ सामाजिक असमानता को बढ़ा सकती हैं (विशेष रूप से कमजोर आबादी जैसे कि बुजुर्ग, विकलांग और कम आय वाले समुदायों के लिये)।
      • सामाजिक व्यवस्थाओं का विघटन: प्राकृतिक आपदाएँ स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और आपातकालीन सेवाओं सहित सामाजिक व्यवस्थाओं को बाधित कर सकती हैं, जिससे सामाजिक सामंजस्य में विखराव हो सकते हैं।
      • सामुदायिक पुनर्निर्माण: प्राकृतिक आपदा के बाद पुनर्निर्माण की प्रक्रिया से समुदायों के एक साथ आने से सामाजिक और सामुदायिक विकास के अवसर प्राप्त हो सकते हैं।
  • प्राकृतिक आपदाओं के उदाहरण:
    • वर्ष 2004 में हिंद महासागर के भूकंप और सुनामी।
    • 26 दिसंबर, 2004 को हिंद महासागर में 9.1 तीव्रता का भूकंप आया था जिसके कारण विनाशकारी सुनामी आई थी जिसने भारत सहित 14 देशों को प्रभावित किया था।
    • इससे भारत में 10,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी और हजारों लोग अपने घरों से विस्थापित हुए थे।
    • वर्ष 2013 में उत्तर भारत में आई बाढ़ से गंगा, यमुना और अन्य नदियों में बाढ़ आने से उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में व्यापक क्षति हुई थी।
    • इस आपदा के परिणामस्वरूप हजारों लोगों की मृत्यु हुई थी और 100,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए थे।
    • इससे सड़कों, पुलों और घरों सहित बुनियादी ढाँचे को भी काफी नुकसान पहुँचा था जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था बाधित हुई थी।

निष्कर्ष:

प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिये सरकारों, संगठनों और समुदायों के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि वे संभावित घटनाओं की योजना बनाने और लागू करने के लिये मिलकर कार्य करें तथा प्रभावित लोगों को सहायता प्रदान करें। इसमें प्रभावी आपदा प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति रणनीतियों को लागू करना, आपदा जोखिम में कमी लाने हेतु निवेश करना तथा भेद्यता और असमानता के मूल कारणों को दूर करना शामिल है। अंततः सामंजस्य से हम प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम कर सकते हैं और प्रभावित समुदायों के पुनर्विकास के साथ अवसंरचना पुनर्निर्माण में सहायता कर सकते हैं।