Sambhav-2023

दिवस- 67

प्रश्न.1 वायुमंडलीय परिसंचरण के त्रि-कोशिकीय मॉडल की चर्चा करते हुए इसके लिये उत्तरदायी बलों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

प्रश्न.2 वर्षण से आप क्या समझते हैं। वर्षा के वैश्विक वितरण का वर्णन कीजिये। (250 शब्द)

25 Jan 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

उत्तर 1:

हल करने का दृष्टिकोण:

  • वायुमंडलीय परिसंचरण के त्रि-कोशिकीय मॉडल को बताते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिये।
  • इसके लिये उत्तरदायी बलों की चर्चा कीजिये।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

  • वायुमंडलीय परिसंचरण का त्रि-कोशिकीय मॉडल, वायुमंडलीय परिसंचरण के सामान्य प्रतिरूप और विश्व के मौसम प्रतिरूप को समझाने में सहायक है।
  • वायुमंडलीय परिसंचरण का त्रि-कोशिकीय मॉडल, वायुमंडल में बड़े पैमाने पर होने वाले परिसंचरण प्रतिरूप का वर्णन करने वाला एक वैचारिक मॉडल है। इसमें तीन अलग-अलग कोश (क्षेत्र) होते हैं: हैडली कोश, फैरल कोश और ध्रुवीय कोश।

मुख्य भाग:

  • हैडली कोश: इस कोश का विस्तार दोनों गोलार्द्धो में 10°–30° अक्षांशों के बीच तक होता है। यह एक ताप जनित कोश है विषुवत रेखा पर अत्यधिक ऊष्मा के कारण पवनें गर्म होकर ऊपर उठती हैं तथा 30° अक्षांश पर इनका अवतलन होता है इसमें 30° अक्षांश पर उच्च वायुदाब और विषुवत रेखा पर निम्न वायुदाब का विकास होता है।
  • फैरल कोश: इस कोश का विस्तार दोनों गोलार्द्धो में लगभग 30°–60° अक्षांश तक होता है। इसमें 60° अक्षांश पर धरातलीय पवनें पृथ्वी के घूर्णन के कारण ऊपर उठती हैं तथा 30° अक्षांश पर इनका अवतलन होता है।
  • इसमें 60° अक्षांश पर निम्न वायुदाब और 30° अक्षांश पर उच्च वायुदाब का विकास होता है।
  • ध्रुवीय कोश: यह दोनों गोलार्द्धो में लगभग 60°–90° अक्षांशों तक विस्तृत पेटी है। यह ताप जनित पेटी है जो कि सर्दियों में अधिक शक्तिशाली होती है।
  • इसमें 60° अक्षांश पर निम्न वायुदाब और ध्रुवों पर उच्च वायुदाब का विकास होता है।

इसके लिये उत्तरदायी बल:

  • वायुमंडलीय परिसंचरण के त्रि-कोशिकीय मॉडल हेतु विभिन्न बल जैसे- कोरिओलिस बल, दाब प्रवणता बल और तापीय बल उत्तरदायी होते हैं।
  • कोरिओलिस बल: कोरिओलिस बल, पृथ्वी के घूर्णन के कारण होता है, जिसके कारण पवनें उत्तरी गोलार्ध में दाईं ओर तथा दक्षिणी गोलार्ध में बाईं ओर विक्षेपित हो जाती हैं।
  • इसके कारण हैडली कोश में पवनें पश्चिम की ओर बहती हैं और फैरल तथा ध्रुवीय कोश में पूर्व की ओर बहती हैं।
  • दाब प्रवणता बल:
    • दाब प्रवणता बल, वायुदाब में अंतर के कारण उत्पन्न होता है।
    • दाब को बराबर करने के क्रम में पवनें उच्च दाब वाले क्षेत्रों से कम दाब वाले क्षेत्रों की और प्रवाहित होती हैं।
    • इसके कारण हैडली कोश में पवनें भूमध्य रेखा के पास ऊपर उठती हैं और लगभग 30 डिग्री अक्षांश पर इनका अवतलन होता है तथा फैरल कोश में पवनें लगभग 60 डिग्री अक्षांश पर ऊपर उठती हैं और लगभग 30 डिग्री अक्षांश पर इनका अवतलन होता है।
  • तापीय बल:
    • यह सूर्य द्वारा पृथ्वी की सतह के असमान ऊष्मण के कारण उत्पन्न होता है।
    • भूमध्य रेखा पर सूर्य का प्रकाश प्रत्यक्ष पड़ता है और इसलिये यह क्षेत्र सबसे गर्म होता है।
  • ध्रुव:
    • यह सबसे ठंडा क्षेत्र होता है और यहाँ पर पवनों का अवतलन होता है।
    • ये सभी बल भूमध्य रेखा के पास हैडली कोश, हैडली और ध्रुवीय कोश के बीच स्थित फैरल कोश एवं ध्रुवों पर स्थित ध्रुवीय कोश के बीच वायुमंडलीय परिसंचरण के त्रि-कोशिकीय मॉडल को संचालित करने में भूमिका निभाते हैं।
    • यह मॉडल वायुमंडलीय परिसंचरण और मौसम के सामान्य प्रतिरूप को समझाने में सहायक हैं।

निष्कर्ष:

वायुमंडलीय परिसंचरण का त्रि-कोशिकीय मॉडल भूमध्य रेखा और ध्रुवों के पास पृथ्वी के ताप में अंतर, कोरिओलिस प्रभाव और ध्रुवों के पास पृथ्वी की सतह के ठंडा होने से संचालित होता है। ये बल पृथ्वी के वायुमंडल में बड़े पैमाने पर परिसंचरण प्रतिरूप हेतु उत्तरदायी होते हैं, जिसका मौसम प्रतिरूप और जलवायु पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।


उत्तर 2:

हल करने का दृष्टिकोण:

  • वर्षण के बारे में बताते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
  • वर्षा के वैश्विक वितरण का वर्णन कीजिये।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

वर्षण का तात्पर्य जल की बूंदों या बर्फ के क्रिस्टल का वायुमंडल से पृथ्वी की सतह पर गिरना है। इसमें वर्षा और ओलावृष्टि शामिल हो सकते हैं।

  • संवहनीय वर्षा:
    • इसमें गर्म, आर्द्र वायु ऊपर उठती है और ठंडी होती है, जिससे गरज के साथ भारी वर्षा होती है।
    • इस प्रकार की वर्षा संवहन के कारण होती है ।
    • जैसे ही गर्म, आर्द्र वायु ऊपर उठती है, यह ठंडी हो जाती है और यह संघनित होकर बादल निर्माण करती है जिससे अंततः वर्षा होती है।
    • यह विषुवतीय क्षेत्र तथा खासकर उत्तरी गोलार्ध के महाद्वीपों के भीतरी भागों में प्रायः होती है।
  • पर्वतीय वर्षा:
    • जब संतृप्त वायु की संहति पर्वतीय ढाल पर आती है, तब यह ऊपर उठने के लिये बाध्य हो जाती है तथा जैसे ही यह ऊपर की ओर उठती है, यह फैलती है जिससे तापमान गिर जाता है तथा आर्द्रता संघनित हो जाती है।
    • इस प्रकार की वर्षा का मुख्य गुण यह है कि पवनाभिमुख ढाल पर सबसे अधिक वर्षा होती है और प्रतिपवन ढाल सूखे तथा वर्षा विहीन रहते हैं।
    • इस प्रकार की वर्षा पहाड़ी क्षेत्रों में सामान्य है और इससे नदियों, झीलों और झरनों का निर्माण हो सकता है।
  • चक्रवातीय वर्षा या फ्रंटल वर्षा:
    • यह वर्षा तब होती है जब शीत वाताग्र एक ऊष्ण वाताग्र से टकराता है जिससे गर्म, आर्द्र वायु ऊपर उठती है और वर्षा होती है।
    • वाताग्र दो अलग-अलग वायु संहति को अलग करने वाली सीमा होता है और इन वायु संहति के संचलन के परिणामस्वरूप शीत एवं ऊष्ण वाताग्र बनते हैं।
    • इस प्रकार की वर्षा कई घंटों तक मध्यम से भारी हो सकती है।
    • यह वर्षा मुख्यतः उपोष्णकटिबंधीय चक्रवातों से संबंधित होती है।

मुख्य भाग:

  • वर्षा का विश्व वितरण अत्यधिक परिवर्तनशील है। कुछ क्षेत्रों जैसे कि उष्णकटिबंधीय वर्षावन में वर्ष भर उच्च वर्षा होती है।
  • भूमध्य रेखा के पास के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उच्च वर्षा होती है क्योंकि इन क्षेत्रों में गर्म, आर्द्र पवनें ऊपर उठती है और ठंडी होती है, जिससे बादल बनते हैं और वर्षा होती है।
  • यही कारण है कि उष्णकटिबंधीय वर्षावन जैसे कि दक्षिण अमेरिका में अमेज़न वर्षावन और अफ्रीका में कांगो वर्षावन, पृथ्वी पर सबसे अधिक वर्षा वाले स्थानों में शामिल हैं।
  • इसके विपरीत रेगिस्तान और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में बहुत कम वर्षा होती है।
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि इन क्षेत्रों में वायु गर्म और शुष्क होती है, जिससे बादलों का निर्माण मुश्किल होने के साथ वर्षा नहीं होती है।
      • कम वर्षा वाले रेगिस्तानी क्षेत्रों के उदाहरणों में अफ्रीका का सहारा रेगिस्तान और दक्षिण अमेरिका का अटाकामा रेगिस्तान शामिल हैं।
  • इन दो चरम सीमाओं के बीच कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं जो मध्यम स्तर की वर्षा प्राप्त करते हैं, जैसे कि सवाना घास के मैदान।
  • इन क्षेत्रों में वनस्पति के विकास हेतु पर्याप्त वर्षा होती है लेकिन इतनी नहीं होती है कि यह मानव और पशु जीवन के लिये बाधक बन जाए।
  • मानसून पवनें, व्यापारिक पवनें और महासागरीय धाराएँ भी वर्षा के वितरण में प्रमुख भूमिका निभाती हैं।
  • उदाहरण के लिये मानसून पवनों से कुछ क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में वर्षा होती है ।

निष्कर्ष:

वर्षण का तात्पर्य जल की बूंदों या बर्फ के क्रिस्टल का वायुमंडल से पृथ्वी की सतह पर गिरना है। वर्षा का विश्व वितरण परिवर्तनशील है और यह तापमान, दाब, वायु के प्रवाह प्रतिरूप जैसे विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है। मानसून पवनें, व्यापारिक पवनें और महासागरीय धाराएँ भी वर्षा के वितरण में भूमिका निभाती हैं। मौसम के प्रतिरूप को समझने और भविष्य में होने वाले जलवायु परिवर्तन की भविष्यवाणी करने के लिये इन कारकों को समझना महत्त्वपूर्ण है।