Sambhav-2023

दिवस- 104

प्रश्न.1 ‘न केवल प्रचुर मात्रा में ऊर्जा के स्रोत के रूप में बल्कि जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी सौर ऊर्जा का बहुत ही आशाजनक भविष्य है’। इस कथन की पुष्टि कीजिये। (250 शब्द)

प्रश्न.2 भारत ने अपने सैन्य आयुधों में काफी विविधता हासिल कर ली है लेकिन इसमें रूसी मूल के हथियारों की प्रमुख भागीदारी है। चर्चा कीजिये कि भारत किस प्रकार से अपने आक्रामक और रक्षात्मक आयुधों में आत्मनिर्भर बन सकता है? (150 शब्द)

09 Mar 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | विज्ञान-प्रौद्योगिकी

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

उत्तर: 1

हल करने का दृष्टिकोण:

  • सौर ऊर्जा का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • चर्चा कीजिये कि किस प्रकार से प्रचुर मात्रा में ऊर्जा के स्रोत के साथ जलवायु परिवर्तन से निपटने में सौर ऊर्जा का बहुत ही आशाजनक भविष्य है।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

  • सौर ऊर्जा एक आशाजनक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है जिसकी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के साथ जलवायु परिवर्तन से निपटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
  • सूर्य, ऊर्जा का प्रचुर स्रोत है और सौर प्रौद्योगिकियों के माध्यम से इसका उपयोग भविष्य के लिये एक स्थायी और स्वच्छ ऊर्जा हेतु किया जा सकता है।

मुख्य भाग:

जलवायु परिवर्तन का समाधान करने में सौर ऊर्जा का आशाजनक भविष्य होने के कई कारण हैं जैसे:

  • ऊर्जा का स्वच्छ स्रोत होना: जीवाश्म ईंधन के विपरीत सौर ऊर्जा से हानिकारक प्रदूषकों का उत्सर्जन नहीं होता है। कोयला और प्राकृतिक गैस जैसे पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की तुलना में सौर ऊर्जा का कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में काफी कम योगदान रहता है।
  • प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होना: सूर्य से ऊर्जा का स्थायी स्रोत प्राप्त होता है और सौर प्रौद्योगिकी उस सीमा तक उन्नत हो गई है जहाँ इस ऊर्जा का कुशलतापूर्वक दोहन और भंडारण किया जा सकता है। निरंतर तकनीकी प्रगति और निवेश के द्वारा सौर ऊर्जा में विश्व स्तर पर ऊर्जा का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत बनने की क्षमता है।
  • लागत-प्रभावी होना: पिछले एक दशक में सौर प्रौद्योगिकी की लागत में काफी कमी आई है जिससे यह घरों, व्यवसायों और सरकारी स्तर पर अपनाने के लिये अधिक सुलभ हो गई है। जैसे-जैसे सौर प्रौद्योगिकी की मांग बढ़ेगी वैसे ही इसकी लागत में और कमी आएगी जिससे यह और भी अधिक सुलभ हो जाएगी।
  • ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करना: जीवाश्म ईंधन के विपरीत सौर ऊर्जा मूल्य अस्थिरता या भू-राजनीतिक जोखिमों के प्रति संवेदनशील नहीं है। यह ऊर्जा का एक स्थिर और विश्वसनीय स्रोत है जिससे आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता में कमी आ सकती है।

निष्कर्ष:

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने, स्थायी और स्वच्छ ऊर्जा समाधान प्रदान करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के मामले में सौर ऊर्जा का बहुत ही आशाजनक भविष्य है। सौर ऊर्जा में निवेश करके हम एक ऐसी टिकाऊ और लचीली ऊर्जा प्रणाली विकसित कर सकते हैं जिससे पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और पूरे समाज को लाभ प्राप्त हो सके।


उत्तर: 2

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारत के शस्त्रागार के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • उन तरीकों पर चर्चा कीजिये जिनसे भारत अपने आक्रामक और रक्षात्मक शस्त्रागार में आत्मनिर्भर बन सकता है।
  • समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

  • भारत परंपरागत रूप से अपनी अधिकांश रक्षा खरीद के लिये रूस पर निर्भर रहा है लेकिन हाल के वर्षों में भारत अपने सैन्य शस्त्रागार में विविधता लाने की दिशा में कार्य कर रहा है। भारत के पास अभी भी रूसी मूल के हथियारों की प्रमुख भागीदारी है लेकिन ऐसे कई तरीके हैं जिनसे भारत अपने आक्रामक और रक्षात्मक शस्त्रागार में आत्मनिर्भर बन सकता है।

मुख्य भाग:

  • निम्नलिखित तरीकों से भारत अपने आक्रामक और रक्षात्मक शस्त्रागार में आत्मानिर्भर बन सकता है जैसे:
    • स्वदेशी आयुधों के विकास को प्रोत्साहन देना: रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के प्राथमिक तरीकों में से एक स्वदेशी रक्षा उद्योग को बढ़ावा देना है। भारत ने हाल के वर्षों में अपनी खुद की रक्षा तकनीक विकसित करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है जैसे लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस का निर्माण करना, जिसे पूरी तरह से भारत में डिज़ाइन और विकसित किया गया है। अनुसंधान और विकास में निवेश करके भारत विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है और अपनी रक्षा जरूरतों में अधिक आत्मनिर्भर बन सकता है।
    • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर बल देना: भारत के लिये रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने का एक और तरीका विदेशी आपूर्तिकर्ताओं से प्रौद्योगिकी प्राप्त करना है। भारत उन्नत रक्षा उपकरणों और प्रणालियों का उत्पादन करने के लिये आवश्यक ज्ञान और विशेषज्ञता हासिल करने हेतु विदेशी आपूर्तिकर्ताओं के साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौतों पर बल दे सकता है। इससे भारत अपनी खुद की रक्षा तकनीक का विकास करने में सक्षम होगा और इसकी विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता में भी कमी आएगी।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सार्वजनिक-निजी भागीदारी के द्वारा भारत अपने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है। निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ सहयोग करके, भारत उन्नत रक्षा उपकरणों और प्रणालियों के विकास और उत्पादन के लिये उनकी विशेषज्ञता और क्षमताओं का लाभ उठा सकता है। यह भारत में एक मजबूत रक्षा उद्योग के विकास में सहायक होगा जो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सके।
    • निर्यात को प्रोत्साहन देना: रक्षा निर्यात को बढ़ावा देकर भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है। अपने रक्षा उपकरणों और प्रणालियों को अन्य देशों को निर्यात करके, भारत राजस्व प्राप्त कर सकता है और उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकी का उत्पादन करने की अपनी क्षमता बढ़ा सकता है। यह भारत को रक्षा उद्योग में वैश्विक स्तर पर प्रमुख भागीदार बनने और विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम करने में सक्षम बनाएगा।

निष्कर्ष:

भारत अपने शस्त्रागार में विविधता लाने की दिशा में कार्य कर रहा है। आक्रामक और रक्षात्मक शस्त्रागार में आत्मानिर्भरता प्राप्त करना, रणनीतिक स्वायत्तता प्राप्त करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है। स्वदेशी आयुधों के विकास को प्रोत्साहन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर बल देने के साथ सार्वजनिक-निजी भागीदारी और निर्यात प्रोत्साहन के माध्यम से भारत विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर अपनी निर्भरता कम करने के साथ अपनी रक्षा जरूरतों में अधिक आत्मनिर्भर बन सकता है।