Sambhav-2023

दिवस- 101

प्रश्न.1 UNFCCC और इसके तहत होने वाले समझौते, बिना कोई ठोस परिणाम प्राप्त होने वाले समझौतों का प्रतीक बन गए हैं। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

प्रश्न.2 पृथ्वी का कोई भी भाग प्राकृतिक आपदा-रोधी नहीं है। चर्चा कीजिये कि आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन (CDRI) किस प्रकार से आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे हेतु म्यूचुअल हब और स्पोक मॉडल के रूप में कार्य कर सकता है? (250 शब्द)

06 Mar 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | पर्यावरण

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

उत्तर: 1

हल करने का दृष्टिकोण:

  • यूएनएफसीसीसी के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • चर्चा कीजिये कि इसके समझौतों के ठोस परिणाम प्राप्त क्यों नहीं हुए हैं।
  • समग्र निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) वर्ष 1992 में वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लक्ष्य के साथ 197 देशों द्वारा हस्ताक्षरित एक संधि है। UNFCCC के तहत वर्ष 2015 में अपनाए गए पेरिस समझौते का उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर (Pre-Industrial level) से 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखने का लक्ष्य रखा गया था।

मुख्य भाग:

ऐसे समझौतों के कोई ठोस परिणाम प्राप्त क्यों नहीं हुए हैं:

  • इन समझौतों के तहत निर्धारित लक्ष्यों के बावजूद यह सच है कि वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की दिशा में प्रगति काफी धीमी और असमान रही है। कई देशों ने उत्सर्जन कम करने की अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं किया है तथा इसके साथ ही पेरिस समझौते के तहत निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने के लिये किये जाने वाले प्रयास भी पर्याप्त नहीं हैं।
  • इसका एक प्रमुख कारण राजनीतिक इच्छाशक्ति और नेतृत्व की कमी है। कई देश जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई करने के लिये अनिच्छुक रहे हैं क्योंकि उन्हें यह डर है कि इससे उनकी अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान होगा। इसके अतिरिक्त कई शक्तिशाली हित समूहों (जैसे कि जीवाश्म ईंधन उद्योग) ने मजबूत जलवायु नीतियों के खिलाफ दृष्टिकोण रखा है।
  • इसमें धीमी प्रगति होने का एक अन्य कारण इस मुद्दे की जटिलता है। जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है जिसके लिये सभी देशों के समन्वित प्रयास की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये ऊर्जा प्रणालियों, परिवहन, कृषि एवं अन्य क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता होती है और ये परिवर्तन महंगे साबित हो सकते हैं।
  • इन चुनौतियों के बावजूद कुछ सकारात्मक विकास हुए हैं। कई देशों ने उत्सर्जन को कम करने के लिये महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किये हैं और नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को भी लागत-प्रतिस्पर्धी बनाने की कोशिश की है। हालाँकि यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन के खतरे को दूर करने के लिये और अधिक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। UNFCCC तथा पेरिस समझौते के तहत निर्धारित लक्ष्यों को सभी देशों और क्षेत्रों की प्रतिबद्धता एवं ठोस प्रयासों के बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

UNFCCC और पेरिस समझौते द्वारा जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक कार्रवाई हेतु रूपरेखा प्रदान की गई है लेकिन लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में इनकी प्रगति धीमी और असमान रही है। राजनीतिक इच्छाशक्ति और नेतृत्व की कमी के साथ इस मुद्दे की जटिलता से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिये बहुत कुछ किये जाने की आवश्यकता है। अगर हमें जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभावों से बचना है तो इन समझौतों के तहत निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में कार्य करना होगा।


उत्तर: 2

हल करने का दृष्टिकोण:

  • प्राकृतिक आपदाओं का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के विकास में आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन (CDRI) की प्रभावशीलता के बारे में चर्चा कीजिये।
  • समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, तूफान, भूकंप और वनाग्नि से बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचने के साथ जन-धन की हानि होती है। नतीजतन इन आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिये आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता है। आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन (CDRI) को आपदा-अनुकूल बुनियादी ढाँचे के विकास को बढ़ावा देने के लिये देशों और संगठनों की वैश्विक साझेदारी के रूप में वर्ष 2019 में अपनाया गया था।

मुख्य भाग:

CDRI विभिन्न प्रकार से आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये म्यूचुअल हब और स्पोक मॉडल के रूप में कार्य कर सकता है:

  • यह आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये सर्वोत्तम प्रथाओं को विकसित करने और लागू करने के लिये अपने सदस्यों के बीच ज्ञान साझा करने एवं सहयोग की सुविधा प्रदान करने में सहायक है। इसमें अवसंरचना नियोजन, डिज़ाइन और निर्माण को बेहतर बनाने के लिये डेटा, टूल्स और टेक्नोलॉजी साझा करना शामिल हो सकता है।
  • CDRI आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के विकास के क्रम में बुनियादी ढाँचे के योजनाकारों और इंजीनियरों के कौशल सुधार हेतु क्षमता निर्माण एवं प्रशिक्षण के लिये एक मंच के रूप में कार्य कर सकता है। इसमें विशेषज्ञता साझा करने और स्थानीय क्षमता का निर्माण करने के लिये कार्यशालाओं, प्रशिक्षण कार्यक्रमों और तकनीकी आदान-प्रदान करना शामिल हो सकता है।
  • इससे आपदा-प्रतिरोधी अवसंरचना मानकों को अपनाने को प्रोत्साहन मिल सकता है जिससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि अवसंरचना परियोजनाओं को प्राकृतिक आपदाओं को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन और विकसित किया गया है। इसमें आपदा-प्रतिरोधी अवसंरचना नीतियों और विनियमों को विकसित करने और लागू करने के लिये राष्ट्रीय एवं स्थानीय सरकारों के साथ कार्य करना शामिल हो सकता है।
  • CDRI से आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिये अभिनव वित्तपोषण तंत्र के विकास को प्रोत्साहन मिल सकता है। इसमें बहुपक्षीय विकास बैंकों, निजी क्षेत्र के निवेशकों और अन्य हितधारकों के साथ काम करना शामिल हो सकता है ताकि बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये वित्तपोषण जुटाया जा सके जिसमें आपदा अनुकूलन शामिल हो।
  • यह नीति निर्माताओं, हितधारकों और आम लोगों के बीच इस मुद्दे के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के साथ आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के विकास हेतु एक वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में कार्य कर सकता है। इसमें आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देने के लिये अनुसंधान करना, रिपोर्ट तैयार करना और सार्वजनिक आउटरीच एवं शिक्षा जैसी गतिविधियों में संलग्न होना शामिल हो सकता है।

निष्कर्ष:

CDRI ज्ञान साझा करने, क्षमता निर्माण करने , मानक स्थापित करने, नवोन्मेषी वित्त पोषण और वैश्विक पक्षसमर्थन की सुविधा प्रदान करके आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये एक पारस्परिक हब और स्पोक मॉडल के रूप में कार्य कर सकता है। समन्वय के साथ CDRI सदस्य ऐसे बुनियादी ढाँचे के विकास को बढ़ावा दे सकते हैं जो प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अनुकूल हो और विश्व भर के लोगों और समुदायों पर इन आपदाओं के प्रभाव को कम करने में सहायक हो।