अक्तूबर 2022 | 31 Oct 2022

PRS के प्रमुख हाइलाइट्स

  इलेक्ट्रॉनिक्स और IT  

IT नियम, 2021

सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 में संशोधनों को अधिसूचित किया। 2021 के नियम मध्यस्थों हेतु तीसरे पक्ष की सामग्री के दायित्व से छूट का दावा करने व उचित परिश्रम आवश्यकताओं को निर्दिष्ट करते हैं। मध्यस्थों ऐसी संस्थाएँ हैं जो अन्य व्यक्तियों की ओर से डेटा संग्रहीत या संचारित करती हैं।

प्रस्तावित संशोधनों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • मध्यस्थों की बाध्यताएँ: 2021 के नियमों में मध्यस्थों से अपेक्षित है कि वे अपनी सेवाओं के एक्सेस या उपयोग के नियमों और विनियमों, गोपनीयता नीति और उपयोगकर्त्ता समझौतों को प्रकाशित करना आवश्यक है। संशोधनों में यह कहा गया है कि ये विवरण अंग्रेजी या संविधान की आठवीं अनुसूची में निर्दिष्ट किसी अन्य भाषा में उपलब्ध कराए जाने चाहिये। 2021 के नियम उन सामग्री के प्रकारों पर प्रतिबंध निर्दिष्ट करते हैं जिन्हें उपयोगकर्त्ताओं को बनाने, अपलोड करने या साझा करने की अनुमति है। नियमों में मध्यस्थों को इन प्रतिबंधों के बारे में उपयोगकर्त्ताओं को सूचित करने की आवश्यकता होती है।
  • संशोधनों में यह जोड़ा गया है कि मध्यस्थों को:
    • नियमों और विनियमों, गोपनीयता नीति और उपयोगकर्ता समझौते का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिये।
    • उपयोगकर्त्ताओं को निषिद्ध सामग्री बनाने, अपलोड करने या साझा करने से रोकने के लिये उचित प्रयास करने चाहिये।
  • शिकायत अधिकारियों को फैसलों के खिलाफ अपील की व्यवस्था: 2021 के नियमों में मध्यस्थों से अपेक्षित है कि वे शिकायत अधिकारियों को नियुक्त करेंगे ताकि नियमों के उल्लंघनों से संबंधित शिकायतों को दूर किया जा सके। संशोधन शिकायत अधिकारियों के निर्णयों के खिलाफ अपील के लिये एक व्यवस्था प्रदान करते हैं। केंद्र सरकार शिकायत अधिकारियों के फैसलों के खिलाफ अपील की सुनवाई हेतु एक या एक से अधिक शिकायत अपील समितियाँ स्थापित करेगी। समिति में एक अध्यक्ष और दो अन्य सदस्य होंगे जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा एक अधिसूचना के माध्यम से नियुक्त किया जाएगा। समिति से 30 दिनों के भीतर सभी अपीलों को सर्वोत्तम प्रयास के आधार पर निपटाने की उम्मीद की जाएगी।
  • प्रतिबंधित कंटेंट को जल्द हटाना: नियमों के अनुसार मध्यस्थों को 24 घंटे के भीतर नियमों के उल्लंघन से संबंधित शिकायतों को स्वीकार करना होगा और 15 दिनों के भीतर उन्हें निपटाना होगा। संशोधन में कहा गया है कि निर्दिष्ट प्रतिबंधित सामग्री को हटाने के संबंध में शिकायतों को 72 घंटों के भीतर दूर किया जाना चाहिये।

  वित्त  

प्रस्तावित डिजिटल रुपया

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) जल्द ही विशिष्ट उपयोग के लिये ई-रुपए, या सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) या डिजिटल रुपए को व्यापक रुप से शुरु करेगा।

CBDC एक केंद्रीय बैंक द्वारा जारी लीगल टेंडर का डिजिटल रूप है। यह वर्तमान में मुद्रा के उपलब्ध रूपों के बीच एक अतिरिक्त विकल्प प्रदान करेगा। CBDC की प्रमुख विशेषताओं में शामिल हैं:

  • CBDC की आवश्यकता: RBI के अनुसार, CBDC जारी करने के कई फायदे हैं। जैसे:
    • भौतिक नकद प्रबंधन से जुड़ी लागतों में कमी।
    • जनता को संबद्ध जोखिमों के बिना निजी वर्चुअल करंसी का विकल्प प्रदान करना।
    • वाणिज्यिक बैंकिंग प्रणाली के बाहर भुगतान और मुख्य भुगतान सेवाओं के प्रावधान में लचीलापन बढ़ाना।
    • सीमा पारीय भुगतानों को तात्कालिक बनाते हए नवाचार को बढ़ावा देना और (v) ऑफ़लाइन लेनदेन के माध्यम से वित्तीय समावेश को सहयोग देना।
  • डिज़ाइन: CBDC को दो समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
    • सामान्य प्रयोजन या खुदरा (CBDC-R)
    • थोक (CBDC-W)।

CBDC-R का उपयोग सभी निजी क्षेत्र, गैर-वित्तीय उपभोक्ताओं और व्यवसायों द्वारा संभावित रूप से किया जा सकता है। CBDC-W को वित्तीय संस्थानों द्वारा प्रतिबंधित पहुँच के लिये डिज़ाइन किया गया है ताकि बैंकों के बीच भुगतान में सुधार आए। भारतीय रिज़र्व बैंक CBDC तक पहुँच को सुविधाजनक बनाने हेतु एक अप्रत्यक्ष मॉडल पर विचार कर रहा है जो भारत की आवश्यकता के अनुकूल हो। इस मॉडल के तहत, व्यक्ति अपने CBDC को किसी बैंक या सेवा प्रदाता के खाते/वॉलेट में रखेंगे। मांग पर CBDC प्रदान करने का दायित्व मध्यस्थों का होगा और केंद्रीय बैंक मध्यस्थों के थोक मध्यस्थों बैलेंस पर नजर रखेगा।

  • प्रौद्योगिकी शामिल: CBDC को लागू करने के लिये इंफ्रास्ट्रक्चर एक पारंपरिक केंद्रीय नियंत्रित डेटाबेस या एक वितरित लेजर पर आधारित हो सकता है। पारंपरिक डेटाबेस में डेटा को संग्रहीत किया जाता है जिसे एक केंद्रीय इकाई द्वारा नियंत्रित किया जाता है। वितरित लेजर सिस्टम में डेटाबेस को संयुक्त रूप से कई संस्थाओं द्वारा विकेंद्रीकृत तरीके से प्रबंधित किया जाता है।
  • विशेषताएँ: CBDC ब्याज़ और गैर-ब्याज़ वाले दोनों प्रकार के इंस्ट्रूमेंट्स हो सकते हैं। RBI का कहना है कि भौतिक नकदी पर कोई ब्याज़ नहीं होता है, इसलिये गैर- ब्याज़ वाले CBDC की पेशकश करना तर्कसंगत होगा। RBI के अनुसार, छोटे मूल्य के लेनदेन, जैसे कि भौतिक नकदी से जुड़े लेनदेन के लिये उचित एनॉयमिटी (गुमनामी), CBDC-R हेतु एक वांछनीय विकल्प हो सकता है।

परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों के लिये विनियामक ढाँचा

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (ARC) के लिये विनियामक ढाँचे में संशोधन किया है।

  • गवर्नेंस: ARC के बोर्ड का अध्यक्ष एक स्वतंत्र निदेशक होगा। बोर्ड की बैठकों में भाग लेने वाले कम-से-कम आधे निदेशक भी स्वतंत्र निदेशक होंगे। प्रबंध निदेशक, मुख्य कार्यकारी अधिकारी और पूर्णकालिक निदेशकों को एक बार में अधिकतम पाँच वर्ष के लिये नियुक्त किया जाएगा। उन्हें फिर से नियुक्त किया जा सकता है लेकिन एक पदाधिकारी को लगातार 15 वर्ष से अधिक समय तक किसी पद पर नहीं रहना चाहियेे। कोई व्यक्ति 70 वर्ष की आयु से अधिक होने पर इन पदों पर नहीं रह सकता।
  • बोर्ड की समितियाँं: ARC के बोर्ड को निम्नलिखित का गठन करना होगा:
    • एक ऑडिट समिति।
    • एक नामांकन और पारिश्रमिक समिति।
  • ऑडिट समिति में केवल गैर-कार्यकारी निदेशक शामिल होंगे।
    • यह समय-समय पर परिसंपत्ति अधिग्रहण और पुनर्निर्माण उपायों के लिये आंतरिक नियंत्रण प्रणाली की समीक्षा करेगी। नामांकन और पारिश्रमिक समिति कंपनी अधिनियम, 2013 में निर्दिष्ट कार्यों का निर्वहन करेगी जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
      • निदेशक बनने के लिये योग्य व्यक्तियों की पहचान करना।
      • निदेशकों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करना।
      • निदेशकों और अन्य कर्मचारियों के लिये पारिश्रमिक से संबंधित नीति।
  • समाधान आवेदकों के रूप में ARC: प्रतिभूतिकरण, परिसंपत्ति पुनर्निर्माण या वित्तीय परिसंपत्तियों के प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण और सुरक्षा ब्याज़ अधिनियम, 2002 के तहत निर्दिष्ट किसी भी अन्य व्यवसाय को छोड़कर, ARC, RBI  के पूर्व अनुमोदन के बिना कोई दूसरा कारोबार नहीं कर सकतीं। समाधान (Resolution) आवेदक एक इकाई है जो कॉर्पोरेट दिवालियापन के समाधान के लिये बोली लगाती है। RBI ने अब ARC को कुछ शर्तों के अधीन एक समाधान आवेदक का काम करने की अनुमति दे दी है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
    • ARC के पास 1,000 करोड़ रुपए का न्यूनतम शुद्ध स्वामित्व वाला फंड होना चाहिये।
    • एक समाधान आवेदक की भूमिका के संबंध में एक बोर्ड-अनुमोदित नीति होनी चाहिये।
    • समाधान योजना की मंजूरी के पाँच वर्षों तक ARC कॉरपोरेट देनदार पर नियंत्रण नहीं रखेगी।

  वाणिज्य  

स्टार्टअप के लिये क्रेडिट गारंटी योजना (CGSS)

उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT), वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने स्टार्टअप के लिये क्रेडिट गारंटी योजना को अधिसूचित किया है। यह योजना पात्र स्टार्टअप कोे वित्तपोषित करने के क्रम में सदस्य संस्थानों द्वारा दिये गए ऋण को क्रेडिट गारंटी प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई है। यह योजना स्टार्ट-अप्स को बंधक -मुक्त आवश्यक ऋण निधि प्रदान करने में मदद करेगी।

इसकी मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • पात्र उधारकर्त्ता: योजना के तहत उधार लेने के लिये स्टार्टअप को कुछ शर्तों को पूरा करना होगा। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
    • स्टार्टअप्स को DPIIT द्वारा मान्यता प्राप्त होना चाहिये।
    • स्टार्टअप्स को एक स्थिर राजस्व स्ट्रीम तक पहुँच गया हो।
    • स्टार्टअप किसी भी उधार/निवेश इकाई के साथ डीफ़ॉल्ट नहीं किया हो और उसे एक गैर-निष्पादित परिसंपत्ति के रूप में वर्गीकृत नहीं होना चाहिये।
  • गारंटी कवर: इस योजना के तहत ऋण निम्नलिखित के तहत प्रदान किया जा सकता है:
    • लेनदेन-आधारित गारंटी कवर।
    • अंब्रेला-आधारित गारंटी कवर।

वित्तीय संस्थानों द्वारा एकल पात्र उधारकर्ता आधार पर लेनदेन-आधारित गारंटी कवर प्राप्त किया जाएगा। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड के साथ पंजीकृत उद्यम ऋण निधियों को अम्ब्रेला-आधारित गारंटी कवर प्रदान किया जाएगा। फ्रेमवर्क के तहत प्रति उधारकर्त्ता 10 करोड़ रुप तक की अधिकतम गारंटी प्रदान की जा सकती है।

  • निगरानी तंत्र: इस योजना का संचालन राष्ट्रीय ऋण गारंटी ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड (National Credit Guarantee Trustee Company Limited-NCGTC) द्वारा किया जाएगा। DPIIT एक प्रबंधन समिति और एक जोखिम मूल्यांकन समिति का गठन करेगा। प्रबंधन समिति योजना के मामलों की देखरेख करेगी। इसे योजना के प्रदर्शन की समीक्षा करने और उसके मापदंडों, जिसमें गारंटी कवरेज की सीमा शामिल है, में संशोधन करने का अधिकार होगा। जोखिम मूल्यांकन समिति हितों के टकराव सहित योजना के समग्र जोखिम मानकों का आकलन करेगी।

  पूर्वोत्तर  

पूर्वोत्तर क्षेत्र हेतु प्रधानमंत्री की विकास पहल (पीएम-डिवाइन)

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक नई योजना, पूर्वोत्तर क्षेत्र हेतु प्रधानमंत्री विकास पहल (पीएम-डिवाइन/PM-DevINE) को मंज़ूरी दी। पूर्वोत्तर क्षेत्र (NER) में विकास अंतराल को दूर करने के लिये केंद्रीय बजट 2022-23 में पीएम-डिवाइन की घोषणा की गई थी।

इस योजना के उद्देश्यों में निम्नलिखित शामिल हैं::

  • पीएम गति शक्ति में सम्मिलित रूप से बुनियादी ढाँचे को निधि देना।
  • एनईआर द्वारा महसूस की गई ज़रूरतों के आधार पर सामाजिक विकास परियोजनाओं का समर्थन करना।
  • युवाओं और महिलाओं के लिये आजीविका संबंधी कार्यों को सक्षम करना।
  • विभिन्न क्षेत्रों में विकास अंतराल को कम करना।

यह 100% केंद्रीय वित्तपोषण के साथ केंद्रीय क्षेत्र की योजना है। पीएम-डिवाइन योजना में वर्ष 2022-23 से 2025-26 (15वें वित्त आयोग की अवधि के शेष वर्षों) तक चार साल की अवधि में 6,600 करोड़ रुपए का परिव्यय होगा। यह योजना पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास मंत्रालय द्वारा पूर्वोत्तर परिषद या केंद्रीय मंत्रालयों/एजेंसियों के माध्यम से लागू की जाएगी।


  ऊर्जा  

ऊर्जा बचत प्रमाणपत्रों का मूल्य निर्धारण

केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (CERC) ने सार्वजनिक प्रतिक्रिया के लिये CERC (ऊर्जा बचत प्रमाणपत्रों में लेनदेन के लिये नियम और शर्तें) विनियम, 2016 में मसौदा संशोधन जारी किया। विनियम ऊर्जा बाज़ार में हस्तांतरणीय और बिक्री योग्य ऊर्जा बचत प्रमाणपत्र (ESC) के व्यापार के बारे में विवरण प्रदान करते हैं।ESCs उन अधिसूचित उद्योगों को ऊर्जा दक्षता ब्यूरो द्वारा जारी किये गए व्यापार योग्य उपकरण हैं जिन्होंने अपने ऊर्जा-बचत लक्ष्यों को पार कर लिया है। इन प्रमाणपत्रों का आदान-प्रदान पावर एक्सचेंज में उन कंपनियों के साथ किया जाता है जिन्होंने लक्ष्य पूरे नहीं किये हैं। संशोधनों में कहा गया है कि ESC की न्यूनतम कीमत खपत की गई ऊर्जा के बराबर एक मीट्रिक टन तेल की कीमत के 10% पर तय की जाएगी।केंद्र सरकार हर प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (PAT) चक्र के लिये इस कीमत को अधिसूचित करेगी। PAT योजना बड़े ऊर्जा-गहन उद्योगों में ऊर्जा की खपत को कम करने के लिये एक बाज़ार-आधारित अनुपालन तंत्र है। PAT योजना के तहत, तीन वर्ष के चक्र के लिये निर्दिष्ट उपभोक्ताओं को विशिष्ट ऊर्जा बचत लक्ष्यों में कटौती सौंपी जाती है।

राष्ट्रीय रीपावरिंग नीति 2022

नवीन एवं अक्षय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy- MNRE) ने पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये मसौदा राष्ट्रीय रीपावरिंग नीति, 2022 को जारी किया है। विंड टर्बाइन रीपावरिंग का तात्पर्य पुरानी इकाइयों को नए, कुशल और शक्तिशाली टर्बाइन (या घटकों) के साथ बदलने (या अपग्रेड करने) से है। मसौदा नीति 2016 में जारी रीपावरिंग नीति का स्थान लेने का प्रयास करती है।  पवन ऊर्जा की कुल स्थापित क्षमता मार्च 2014 में 21 गीगावाट (GW) से बढ़कर मार्च 2022 में 40GW हो चुकी है। मसौदा नीति का उद्देश्य छोटी क्षमता वाले पुराने और अकुशल विंड टर्बाइन्स (2MW से कम के) को उच्च क्षमता वाले टर्बाइन्स से बदलना है ताकि पवन ऊर्जा क्षेत्र की क्षमता को बढ़ाया जा सके। मसौदा नीति के अनुसार, ऐसी छोटी क्षमता वाले टर्बाइन्स में भारत की रीपावरिंग क्षमता 25 GW है।

2022 की नीति के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

  • परियोजना क्षेत्र के प्रति वर्ग किलोमीटर ऊर्जा आउटपुट (किलोवॉट घंटे में मापा जाता है) को बढ़ाकर पवन ऊर्जा स्रोतों का अधिकतम उपयोग करना।
  • नई ऑफशोर विंड टर्बाइन तकनीकों की तैनाती।

मंत्रालय को इस नीति के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने और समय-समय पर इसमें संशोधन करने का अधिकार है।

नीति की मुख्य विशेषताएँ हैं:

  • पुरानी विंड टर्बाइन्स की रीपावरिंग: रीपावरिंग के लिये पात्र विंड टर्बाइन्स में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • 2 MW से कम रेटेड क्षमता वाली विंड टर्बाइन्स
    • अपनी डिजाइन लाइफ को पूरा करने वाली विंड टर्बाइन्स
    • किसी एक क्षेत्र में कुछ शर्तों को पूरा करने वाली टर्बाइन्स की श्रृंखला, जैसे परियोजना की 90% से अधिक की क्षमता का इस्तेमाल।
  • कार्यान्वयन संरचना: पवन ऊर्जा को बढ़ावा देने वाली संबंधित राज्य नोडल एजेसियों या केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त केंद्रीय नोडल एजेंसी द्वारा रीपावरिंग परियोजनाओं को लागू किया जाएगा। नीति की घोषणा के एक महीने के भीतर मंत्रालय संयुक्त सचिव (पवन) की अध्यक्षता में एक निगरानी और सलाहकार समिति का गठन करेगा। समिति में भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (IREDA), राज्य और केंद्रीय नोडल एजेंसियों के सदस्य और स्वतंत्र पवन-ऊर्जा विशेषज्ञ शामिल होंगे।
  • प्रोत्साहन: IREDA नई पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये उपलब्ध ब्याज दर के अतिरिक्त 0.25% की अतिरिक्त ब्याज़ दर छूट प्रदान करेगा। वर्तमान में उपलब्ध ब्याज दरें विभिन्न ग्रेड्स से भिन्न होती हैं और 8.5%-9.5% की सीमा के भीतर होती हैं। केंद्र और राज्य सरकारें इन परियोजनाओं को सहयोग देने के लिये अतिरिक्त वित्तीय प्रोत्साहनों पर भी विचार कर सकती हैं।

  पर्यावरण  

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सरसों

हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत कार्य करने वाली आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) ने आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सरसों के व्यावसायिक रिलीज़ से पहले बीज उत्पादन को मंज़ूरी दी है।

इसमें वाणिज्यिक स्तर पर जारी से पहले सरसों की हाइब्रिड किस्म DMH-11 का उत्पादन और परीक्षण शामिल है। परीक्षण भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के दिशानिर्देशों और अन्य मौजूदा नियमों और विनियमों के अनुसार किया जाएगा। GEAC ने कुछ विशिष्ट जीन्स वाली आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सरसों की पेरेंटल लाइन्स को जारी करने का सुझाव दिया है ताकि नई पेरेंटल लाइन्स और हाइब्रिड्स को विकसित किया जा सके। ये मंजूरी कुछ शर्तों के अधीन दी गई है। उदाहरण के लिये DMH-11 का व्यावसायिक उपयोग बीज अधिनियम, 1966 के अधीन होगा। पर्यावरणीय अनुमोदन चार वर्षों के लिये वैध होगा, जिसके बाद अनुपालन रिपोर्ट के आधार पर इसे एक बार में दो वर्षों के लिये नवीनीकृत किया जा सकता है।

GEAC ने यह भी कहा कि यह जानने के लिये कि आनुवंशिक रूप से संशोधित सरसों का मधुमक्खियों और दूसरे पॉलिनेटर्स पर क्या असर होता है, दो वर्ष तक फील्ड स्टडी की जानी चाहिए। यह अध्ययन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की देखरेख में किया जा सकता है। विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के बाद ये सुझाव दिये गए हैं जिसमें कहा गया है कि जेनेटिकली इंजीनियर्ड सरसों द्वारा पॉलिनेटर्स पर प्रतिकूल प्रभाव डालने की आशंका नहीं है।


  मीडिया एवं प्रसारण  

FM रेडियो नीति के दिशा-निर्देशों में संशोधन

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने 'निजी एजेंसियों के माध्यम से FM रेडियो प्रसारण सेवाओं का विस्तार (चरण-III)' पर नीतिगत दिशा-निर्देशों में कुछ संशोधनों को अधिसूचित किया है। प्रमुख परिवर्तनों में शामिल हैं:

  • कुल चैनल्स में शेयर की सीमा: पहले दिशानिर्देशों में यह प्रावधान था कि एक सेवा प्रदाता देश में आबंटित कुल चैनल्स में 15% से अधिक को होल्ड नहीं कर सकता। यह सीमा हटा दी गई है।
  • FM चैनल चलाने की पात्रता: पहले C और D श्रेणी वाले शहरों में नीलामी के लिये न्यूनतम निवल संपत्ति की आवश्यकता 1.5 करोड़ रुपये थी। इसे घटाकर एक करोड़ रुपए कर दिया गया है। श्रेणी C और D शहर क्रमशः 3-10 लाख और 1-3 लाख की आबादी वाले हैं।
  • कंपनी का पुनर्गठन: दिशा-निर्देशों के तहत होल्डिंग कंपनी या उसी प्रबंधन की सहायक कंपनियों के बीच FM रेडियो अनुमतियों के पुनर्गठन के लिये पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की मंज़ूरी लेनी होगी। पहले सभी आबंटित चैनलों के चालू होने की तारीख से तीन वर्षों के भीतर ही पुनर्गठन की अनुमति मिलती थी। इस समय सीमा को हटा दिया गया है।

  सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण  

अनुसूचित जाति के लिये समिति

केंद्र सरकार ने अनुसूचित जातियों की स्थिति की समीक्षा के लिये एक आयोग को नियुक्त किया है।  आयोग के संदर्भ की शर्तों में निम्नलिखित की समीक्षा शामिल है:

  • नए व्यक्तियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने के मामले, जो ऐतिहासिक रूप से दावा करते हैं कि वे अनुसूचित जाति से हैं, लेकिन उन्हें धर्म परिवर्तन कर लिया है,
  • नए व्यक्तियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने से मौजूदा अनुसूचित जातियों पर असर
  • दूसरे धर्म में परिवर्तन करने पर अनुसूचित जाति के व्यक्तियों के रीति-रिवाजों, परंपराओं आदि में बदलाव।