जुलाई 2019 | 27 Aug 2019

पीआरएस की प्रमुख हाइलाइट्स

  • केंद्रीय बजट 2019-2020
  • विधि और न्याय
    • आधार एवं अन्य कानून (संशोधन) बिल, 2019
    • सूचना का अधिकार (संशोधन) बिल, 2019
    • इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर बिल, 2019
    • मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) बिल, 2019
    • आर्बिट्रेशन और कंसीलियेशन (संशोधन) बिल, 2019
    • डीएनए टेक्नोलॉजी (प्रयोग और लागू होना) रेगुलेशन बिल, 2019
    • ट्रांसजेंडर (अधिकारों का संरक्षण) बिल, 2019
    • उपभोक्ता संरक्षण बिल, 2019
    • रिपीलिंग और संशोधन बिल, 2019
    • कैबिनेट ने मध्यस्थता पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किये
  • गृह मामले
    • गैर कानूनी गतिविधि (निवारण) संशोधन बिल, 2019
    • जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) बिल, 2019
    • मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) बिल
    • राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (संशोधन) बिल, 2019
    • असम समझौते पर समिति का गठन
    • जम्मू और कश्मीर आरक्षण (दूसरा संशोधन) बिल, 2019
  • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण
    • इंडियन मेडिकल काउंसिल (संशोधन) बिल, 2019
    • राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन बिल, 2019
    • सेरोगेसी (रेगुलेशन) बिल, 2019
    • होम्योपैथी सेंट्रल काउंसिल (संशोधन) बिल, 2019
    • डेंटिस्ट (संशोधन) बिल, 2019
  • वित्त
    • अनरेगुलेटेड डिपॉज़िट स्कीम्स पर प्रतिबंध बिल, 2019
    • वर्चुअल करेंसी पर रिपोर्ट
    • चिट फंड्स (संशोधन) बिल, 2019
    • नए कर कानून का मसौदा तैयार करने वाले कार्यबल की अवधि बढ़ाई
  • श्रम और रोज़गार
    • कोड ऑन वेजेज़, 2019
    • व्यवसायगत सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थितियाँ संहिता, 2019
    • व्यापारियों और दुकानदारों के लिये स्वैच्छिक पेंशन योजना अधिसूचित
  • कॉरपोरेट मामले
    • कंपनी (संशोधन) बिल, 2019
    • इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (संशोधन) बिल, 2019
  • सड़क परिवहन और राजमार्ग
    • मोटर वाहन (संशोधन) बिल, 2019
  • महिला एवं बाल विकास
    • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) बिल, 2019
  • शिक्षा
    • केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान (शिक्षकों के कैडर में आरक्षण) बिल, 2019
    • केंद्रीय विश्विद्यालय (संशोधन) बिल, 2019
  • आवास और शहरी मामले
    • सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्ज़ा करने वालों की बेदखली) संशोधन, बिल, 2019
    • मसौदा मॉडल टेनेन्सी एक्ट, 2019
    • शहरी जल संरक्षण के लिये दिशा निर्देश
  • नागरिक उड्डयन
    • भारतीय एयरपोर्ट्स इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी (संशोधन) बिल, 2019
  • जल शक्ति
    • अंतर राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) बिल, 2019
    • बांध सुरक्षा बिल, 2019
  • संस्कृति
    • जलियाँवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) बिल, 2019
  • कृषि
    • कृषि का कायापलट और कपब्लिक फीडबैक के लिये नेशनल रिसोर्स एफिशिएंसी सानों की आय बढ़ाने के उपायों पर चर्चा के लिये मुख्यमंत्रियों की समिति बनाई गई
    • चीनी का 40 लाख मीट्रिक टन का बफर स्टॉक
    • सल्फर आधारित उर्वरकों के लिये सब्सिडी में बढ़ोतरी को मंज़ूरी
  • वाणिज्य और उद्योग
    • राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान (संशोधन) बिल, 2019
  • पर्यावरण
    • पॉलिसी
  • रक्षा
    • रक्षा क्षेत्र में एमएसएमई को बढ़ावा देने के लिये योजना
  • ग्रामीण विकास
    • प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना –III की शुरुआत

केंद्रीय बजट 2019-20

2019-20 के लिये केंद्रीय बजट को संसद द्वारा पारित किया गया। बजट की मुख्य झलकियों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • सरकार ने वर्ष 2019-20 में 27,86,349 करोड़ रुपए के व्यय का प्रस्ताव रखा है जो कि वर्ष 2018-19 के संशोधित अनुमान से 13.4% अधिक है।
  • प्राप्तियों (शुद्ध उधारियों के अतिरिक्त) के 14.2% से बढ़कर 20,82,589 करोड़ रुपए होने की उम्मीद है।
  • वर्ष 2019-20 में नॉमिनल GDP के 12% की दर से बढ़ने का अनुमान है। राजस्व घाटा GDP के 2.3% पर लक्षित है जो कि वर्ष 2018-19 के संशोधित अनुमान से 2.2% अधिक है। राजकोषीय घाटा GDP के 3.3% पर लक्षित है जो कि वर्ष 2018-19 के संशोधित अनुमान से 3.4% कम है।

बजट के मुख्य नीतिगत प्रस्तावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • बैंकिंग और वित्त: सरकार की योजना है कि NBFCs को दिये गए धन के लिये सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को आंशिक रूप से गारंटी (नुकसान के पहले 10% के लिये) प्रदान की जाए। इसके अतिरिक्त सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिये 70,000 करोड़ रुपए प्रदान किये जाएंगे।
  • उधारियाँ: वर्तमान में सरकार का सकल ऋण कार्यक्रम पूरी तरह से घरेलू ऋण के माध्यम से वित्तपोषित है। सरकार की योजना है कि वह विदेश में अपनी उधारी का एक हिस्सा विदेशी मुद्रा में जुटाए।
  • आधारभूत संरचना (Infrastructure): अगले पाँच वर्षों में इंफ्रास्ट्रक्चर में 100 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया जाएगा। वर्ष 2018 से 2030 के दौरान 50 लाख करोड़ रुपए के निवेश को आकर्षित करने हेतु रेलवे के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी का लाभ उठाया जाएगा।

मुख्य कर परिवर्तनों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • आयकर पर सरचार्ज (Surcharge on Income Tax): पहले एक करोड़ रुपए से अधिक कमाने वाले व्यक्तियों की आय पर 15% का सरचार्ज लगता था। दो करोड़ रुपए और पाँच करोड़ रुपए के बीच की आय वाले व्यक्तियों के लिये आयकर पर सरचार्ज 25% तक बढ़ा दिया गया है और पाँच करोड़ रुपए से अधिक आय वाले व्यक्तियों के लिये सरचार्ज 37% तक बढ़ा दिया गया है।
  • निगम कर (Corporation Tax): वर्तमान में 250 करोड़ रुपए से कम वार्षिक कारोबार वाली कंपनियाँ 25% की दर से निगम आयकर का भुगतान करती हैं। इस सीमा को बढ़ाकर 400 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
  • सड़क और इंफ्रास्ट्रक्चर सेस (Road and Infrastructure Cess): पेट्रोल और हाई स्पीड डीज़ल पर सड़क और इंफ्रास्ट्रक्चर सेस में एक रुपए प्रति लीटर की वृद्धि की गई है। इन उत्पादों के लिये उत्पाद शुल्क में एक रुपए प्रति लीटर की वृद्धि की गई है।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये कर में छूट (Tax Exemptions for Electric Vehicles): इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने हेतु लिये गए ऋण पर चुकाए जाने वाले ब्याज में 1,50,000 रुपए तक की कर कटौती प्रदान की जाएगी। यह कटौती वित्तीय वर्ष 2019-20 और वित्तीय वर्ष 2022-23 के बीच स्वीकृत ऋण पर लागू होगी।

कर कानूनों में परिवर्तन के अतिरिक्त फाइनांस बिल (Finance Bill), 2019 SEBI एक्ट, RBI एक्ट और पेमेंट तथा सेटेलमेंट सिस्टम्स एक्ट (Payment and Settlement Systems Act) जैसे अनेक अन्य कानूनों में परिवर्तन करता है। इन परिवर्तनों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया एक्ट, 1992 (Securities and Exchange Board of India Act): सेबी के जनरल फंड द्वारा किये जाने वाले खर्चे की सूची में पूंजीगत व्यय को शामिल करने के लिये एक्ट को संशोधित किया गया है। इसके अतिरिक्त बिल एक आरक्षित निधि बनाने के लिये एक्ट में संशोधन करता है जिसे जनरल फंड के वार्षिक अधिशेष के 25% के साथ जमा किया जाएगा। शेष राशि भारत के समेकित कोष में हस्तांतरित हो जाएगी।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक एक्ट (Reserve Bank of India Act), 1934: आरबीआई को एनबीएफसी के प्रबंधन से संबंधित उपाय करने में सक्षम बनाने के लिये एक्ट में संशोधन किया गया है। इनमें उनकी न्यूनतम शुद्ध मूल्य की शर्त में परिवर्तन, रेज़ोल्यूशन योजनाओं को तैयार करना, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स का सुपरसेशन तथा निदेशकों को हटाना शामिल हैं।
  • पेमेंट और सेटेलमेंट सिस्टम्स एक्ट (Payment and Settlement Systems Act), 2007: इस एक्ट को संशोधित किया गया है ताकि कोई भी बैंक या पेमेंट सिस्टम प्रोवाइडर अपने ग्राहकों से इलेक्ट्रॉनिक तरीके से भुगतान करने पर शुल्क न वसूल सके।

विधि और न्याय

आधार एवं अन्य कानून (संशोधन) बिल, 2019

Aadhaar and Other Laws (Amendment) Bill, 2019

आधार एवं अन्य कानून (संशोधन) बिल, 2019 संसद में पारित हो गया है। यह बिल 2 मार्च, 2019 को जारी अध्यादेश का स्थान लेता है। बिल आधार (वित्तीय एवं अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) एक्ट [Aadhaar (Targeted Delivery of Financial and Other Subsidies, Benefits and Services) Act], 2016, भारतीय टेलीग्राफ एक्ट, 1885 और धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) निवारण एक्ट (Prevention of Money Laundering Act), 2002 में संशोधन करता है। आधार एक्ट यूनीक आइडेंटिटी नंबर्स, आधार नंबर्स के ज़रिये भारत में निवास करने वाले व्यक्तियों को सबसिडी और लाभ के लक्षित वितरण का प्रावधान करता है।

सूचना का अधिकार (संशोधन) बिल, 2019

Right to Information (Amendment) Bill, 2019

सूचना का अधिकार (संशोधन) बिल, 2019 संसद में पारित हो गया। यह बिल सूचना का अधिकार एक्ट, 2005 में संशोधन करता है।

इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर बिल, 2019

New Delhi International Arbitration Centre Bill, 2019

नई दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय आरबिट्रेशन सेंटर बिल, 2019 संसद में पारित हो गया। यह बिल भारत में आरबिट्रेशन के बेहतर प्रबंधन के लिये एक स्वायत्त और स्वतंत्र संस्थान स्थापित करने का प्रयास करता है। बिल के प्रावधान 2 मार्च, 2019 से लागू होंगे।

मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) बिल, 2019

Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Bill, 2019

मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) बिल, 2019 संसद में पारित हो गया। यह बिल 21 फरवरी, 2019 को जारी अध्यादेश का स्थान लेता है।

आर्बिट्रेशन और कंसीलियेशन (संशोधन) बिल, 2019

Arbitration and Conciliation (Amendment) Bill, 2019

आर्बिट्रेशन और कंसीलियेशन (संशोधन) बिल, 2019 को राज्यसभा में पारित किया गया। यह बिल आर्बिट्रेशन और कंसीलियेशन एक्ट (Arbitration and Conciliation Act), 1996 में संशोधन करता है। एक्ट में घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय आर्बिट्रेशन से संबंधित प्रावधान हैं तथा यह सुलह प्रक्रिया को संचालित करने से संबंधित कानून को स्पष्ट करता है।

DNA टेक्नोलॉजी (प्रयोग और लागू होना) रेगुलेशन बिल, 2019

DNA Technology (Use and Application) Regulation Bill, 2019

DNA टेक्नोलॉजी (प्रयोग और लागू होना) रेगुलेशन बिल [DNA Technology (Use and Application) Regulation Bill], 2019 लोकसभा में पेश किया गया। इस बिल में कुछ लोगों की पहचान स्थापित करने हेतु DNA टेक्नोलॉजी के प्रयोग के रेगुलेशन का प्रावधान है।

ट्रांसजेंडर (अधिकारों का संरक्षण) बिल, 2019

Transgender (Protection of Rights) Bill, 2019

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) बिल, 2019 लोकसभा में 19 जुलाई, 2019 को पेश किया गया।

उपभोक्ता संरक्षण बिल, 2019

Consumer Protection Bill, 2019

उपभोक्ता संरक्षण बिल, 2019 लोकसभा में पारित किया गया। बिल उपभोक्ता संरक्षण एक्ट, 1986 का स्थान लेता है।

रिपीलिंग और संशोधन बिल, 2019

Repealing and Amending Bill, 2019

रिपीलिंग और संशोधन बिल, 2019 लोकसभा में पारित हो गया। बिल 58 एक्ट्स को पूरी तरह से रद्द करता है और दो अन्य कानूनों में संशोधन करता है। बिल की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • कुछ कानूनों को पूरी तरह से रद्द करना: बिल पहली अनुसूची में सूचीबद्ध 58 कानूनों को रद्द करता है। इनमें 12 मूल एक्ट्स और 46 संशोधन एक्ट्स हैं। रद्द होने वाले मूल एक्ट्स में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) बीड़ी श्रमिक कल्याण निधि (Beedi Workers Welfare Fund Act), 1976 और (ii) म्यूनिसिपल टैक्सेशन एक्ट (Municipal Taxation Act) 1881। उल्लेखनीय है कि संशोधन एक्ट्स को रद्द करने का बहुत अधिक असर नहीं होगा, चूँकि संशोधन एक्ट्स को पहले ही मूल एक्ट्स में शामिल किया जा चुका है।
  • कुछ कानूनों में संशोधन: बिल दो एक्ट्स में मामूली संशोधन करता है। इसमें कुछ शब्दों को बदला गया है। ये एक्ट हैं: (i) इनकम टैक्स एक्ट (Income Tax Act), 1961 और (ii) इंडियन इंस्टीट्यूट्स ऑफ मैनेजमेंट एक्ट (India Institutes of Management Act), 2017।

कैबिनेट ने मध्यस्थता पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किये

केंद्रीय कैबिनेट ने मध्यस्थता के परिणामस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय सेटेलमेंट एग्रीमेंट्स पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (United Nations Convention on International Settlement Agreements) पर हस्ताक्षर को मंज़ूरी दी। कन्वेंशन मध्यस्थता पर एक अंतर्राष्ट्रीय फ्रेमवर्क प्रदान करने का प्रयास करता है जिससे यह सुनिश्चित हो कि मध्यस्थता के ज़रिये किया गया समझौता सभी पक्षों को लिये बाध्यकारी और लागू करने योग्य हो। प्रेस रिलीज़ के अनुसार, कन्वेंशन के प्रावधान वैकल्पिक विवाद निवारण प्रणाली, जैसे-आर्बिट्रेशन, कंसीलियेशन और मध्यस्थता को मज़बूत करने का प्रयास करते हैं।


गृह मामले

गैर-कानूनी गतिविधि (निवारण) संशोधन बिल, 2019

Unlawful Activities (Prevention) Amendment Bill, 2019

गैर-कानूनी गतिविधि (निवारण) संशोधन बिल, 2019 लोकसभा में पारित हो गया। यह बिल गैर-कानूनी गतिविधि (निवारण) एक्ट, 1967 में संशोधन करता है। एक्ट आतंकवादी गतिविधियों पर काबू पाने के लिये विशेष प्रक्रियाओं का प्रावधान करता है।

जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) बिल, 2019

Jammu and Kashmir Reservation (Amendment) Bill, 2019

जम्मू और कश्मीर आरक्षण (संशोधन) बिल, 2019 संसद में पारित हो गया। एक्ट प्रावधान करता है कि कुछ आरक्षित श्रेणियों को सरकारी पदों में नियुक्ति और पदोन्नति तथा प्रोफेशनल संस्थानों में दाखिले में आरक्षण दिया जाएगा। प्रोफेशनल संस्थानों में सरकारी मेडिकल कॉलेज, डेंटल कॉलेज और पॉलिटेक्निक्स शामिल हैं। बिल की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • नियुक्ति में आरक्षण का दायरा बढ़ा: एक्ट सामाजिक एवं शैक्षणिक स्तर पर पिछड़े वर्गों के व्यक्तियों के लिये राज्य सरकार के कुछ पदों पर नियुक्ति और पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान करता है। एक्ट के अनुसार, सामाजिक एवं शैक्षणिक स्तर पर पिछड़े वर्गों में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास रहने वाले लोग शामिल हैं। बिल में संशोधन कर इसमें अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को भी शामिल किया गया है।
  • इसके अतिरिक्त एक्ट में कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति को नियंत्रण रेखा के पास के क्षेत्र में निवास करने के आधार पर नियुक्त किया जाता है तो उसे उन क्षेत्रों में कम-से-कम सात साल तक सेवारत रहना होगा। बिल इस शर्त को अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर भी लागू करता है।
  • आरक्षण से बाहर: एक्ट कहता है कि जिस व्यक्ति की वार्षिक आय तीन लाख रुपए या राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट राशि से अधिक है, उसे सामाजिक एवं शैक्षणिक स्तर पर पिछड़े वर्गों में शामिल नहीं किया जाएगा। हालाँकि यह प्रावधान वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर लागू नहीं होगा। बिल कहता है कि अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर भी यह प्रावधान लागू नहीं होगा।

मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) बिल, 2019

Protection of Human Rights (Amendment) Bill

मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) बिल, 2019 संसद में पारित हो गया। बिल मानवाधिकार संरक्षण एक्ट, 1993 में संशोधन करता है। यह एक्ट राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission-NHRC), राज्य मानवाधिकार आयोगों (State Human Rights Commissions-SHRC) और मानवाधिकार अदालतों की स्थापना का प्रावधान करता है।

राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (संशोधन) बिल, 2019

National Investigation Agency (Amendment) Bill, 2019

राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (संशोधन) बिल, 2019 संसद में पारित हो गया। यह बिल राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) एक्ट [National Investigation Agency (NIA) Act], 2008 में संशोधन करता है। एक्ट अनुसूची में सूचीबद्ध अपराधों (अनुसूचित अपराधों) की जाँच और मुकदमेबाज़ी के लिये राष्ट्रीय स्तर की एजेंसी का प्रावधान करता है। इसके अतिरिक्त एक्ट अनुसूचित अपराधों की सुनवाई के लिये विशेष अदालत गठित करने की अनुमति देता है।

असम समझौते पर समिति का गठन

असम समझौते की धारा 6 को लागू करने के लिये उच्च स्तरीय समिति का गठन जनवरी 2019 में किया गया। उल्लेखनीय है कि इस समिति के गठन के लिये केंद्रीय कैबिनेट ने मंज़ूरी प्रदान की थी। असम समझौते पर 15 अगस्त, 1985 को हस्ताक्षर किये गए थे।

  • समझौते की धारा 6 कहती है कि असमी लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक और भाषायी पहचान के संरक्षण के लिये उपयुक्त संवैधानिक, विधायी तथा प्रशासनिक उपाय किये जाएंगे।
  • गुवाहाटी उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस (सेवानिवृत्त) बिप्लव कुमार शर्मा की अध्यक्षता में समिति में 13 सदस्य होंगे।
  • समिति के संदर्भ की शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) समझौते की धारा 6 को लागू करने के लिये उठाए गए कदमों के असर की जाँच करना, (ii) असमी लोगों के लिये असम विधानसभा तथा स्थानीय निकायों में सीटों के आरक्षण के उपयुक्त स्तर का विश्लेषण करना और (iii) असमी तथा असम की अन्य भाषाओं के संरक्षण के उपाय सुझाना।
  • समिति छह महीने की अवधि में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।

जम्मू और कश्मीर आरक्षण (दूसरा संशोधन) बिल, 2019

Jammu and Kashmir Reservation (Second Amendment) Bill, 2019

केंद्रीय कैबिनेट ने जम्मू और कश्मीर आरक्षण (दूसरा संशोधन) बिल, 2019 को मंज़ूर किया। बिल शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमज़ोर तबकों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रयास करता है। बिल की कॉपी पब्लिक डोमेन में उपलब्ध नहीं है। उल्लेखनीय है कि संविधान (103 संशोधन) एक्ट के ज़रिये आर्थिक रूप से कमज़ोर तबकों के लिये 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव किया गया था।


स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण

इंडियन मेडिकल काउंसिल (संशोधन) बिल, 2019

Indian Medical Council (Amendment) Bill, 2019

इंडियन मेडिकल काउंसिल (संशोधन) बिल, 2019 संसद में पारित किया गया। यह बिल इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट, 1956 में संशोधन करता है और इंडियन मेडिकल काउंसिल (संशोधन) दूसरा अध्यादेश (Indian Medical Council (Amendment) Second Ordinance), 2019 का स्थान लेता है। एक्ट मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (Medical Council of India-MCI) की स्थापना करता है। यह संस्था मेडिकल शिक्षा और प्रैक्टिस को रेगुलेट करती है। बिल के प्रावधान 26 सितंबर, 2018 से प्रभावी होंगे।

राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन बिल, 2019

National Medical Commission Bill, 2019

राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन बिल, 2019 लोकसभा में पेश और पारित हो गया। बिल भारतीय मेडिकल काउंसिल एक्ट, 1956 को निरस्त करने और ऐसी मेडिकल शिक्षा प्रणाली प्रदान करने का प्रयास करता है, जो निम्नलिखित सुविधाएँ सुनिश्चित करती हों : (i) पर्याप्त संख्या में उच्च क्वालिटी वाले मेडिकल प्रोफेशनल्स की उपलब्धता, (ii) मेडिकल प्रोफेशनल्स द्वारा नवीनतम मेडिकल अनुसंधानों का उपयोग, (iii) मेडिकल संस्थानों का नियत समय पर आकलन और (iv) एक प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली।

सेरोगेसी (रेगुलेशन) बिल, 2019

Surrogacy (Regulation) Bill, 2019

सेरोगेसी (रेगुलेशन) बिल, 2019 लोकसभा में पेश किया गया। बिल सेरोगेसी को ऐसे कार्य के रूप में पारिभाषित करता है जिसमें कोई महिला किसी इच्छुक दंपत्ति के लिये बच्चे को जन्म देती है और जन्म के बाद उस इच्छुक दंपत्ति को बच्चा सौंप देती है।

होम्योपैथी सेंट्रल काउंसिल (संशोधन) बिल, 2019

Homoeopathy Central Council (Amendment) Bill, 2019

होम्योपैथी सेंट्रल काउंसिल (संशोधन) बिल, 2019 को संसद में पारित कर दिया गया। बिल होम्योपैथी सेंट्रल काउंसिल एक्ट,1973 में संशोधन करता है और होम्योपेथी सेंट्रल काउंसिल (संशोधन) अध्यादेश, 2019 का स्थान लेता है जिसे 2 मार्च, 2019 को जारी किया गया था। एक्ट के अंतर्गत सेंट्रल काउंसिल ऑफ होम्योपैथी की स्थापना की गई थी।

डेंटिस्ट (संशोधन) बिल, 2019

Dentists (Amendment) Bill, 2019

डेंटिस्ट (संशोधन) बिल, 2019 संसद में पारित किया गया। बिल डेंटिस्ट एक्ट, 1948 में संशोधन करता है। एक्ट डेंटिस्ट्री (दंत चिकित्सा) के पेशे को रेगुलेट करता है और निम्नलिखित का गठन करता है: (i) डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया (Dental Council of India), (ii) स्टेट डेंटल काउंसिल्स (State Dental Councils) और (iii) ज्वाइंट स्टेट डेंटल काउंसिल्स (Joint State Dental Councils)।

  • एक्ट के दो भागों- भाग ए और भाग बी के अंतर्गत डेंटिस्ट्स को पंजीकृत किया जाता है। भाग ए में मान्यता प्राप्त डेंटल क्वालिफिकेशन वाले व्यक्तियों को पंजीकृत किया जाता है और जिन लोगों के पास ऐसी क्वालिफिकेशन नहीं है, उन्हें भाग बी में पंजीकृत किया जाता है। भाग बी में पंजीकृत व्यक्ति ऐसे भारतीय नागरिक हैं जो राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित पंजीकरण तिथि से कम-से-कम पाँच वर्ष पहले से डेंटिस्ट्स के रूप में प्रैक्टिस कर रहे हैं।
  • डेंटल काउंसिल्स की संरचना: एक्ट के अंतर्गत डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया, स्टेट डेंटल काउंसिल्स और ज्वाइंट स्टेट डेंटल काउंसिल्स में भाग बी में पंजीकृत डेंटिस्ट्स के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। बिल एक्ट की इस अनिवार्य शर्त को हटाता है कि भाग बी में पंजीकृत डेंटिस्ट्स को इन काउंसिल्स में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिये।

वित्त

अनरेगुलेटेड डिपॉज़िट स्कीम्स पर प्रतिबंध बिल, 2019

Banning of Unregulated Deposit Schemes Bill, 2019

अनरेगुलेटेड डिपॉज़िट स्कीम्स पर प्रतिबंध बिल, 2019 को संसद में पारित कर दिया गया। बिल अनरेगुलेटेड डिपॉज़िट स्कीम्स पर प्रतिबंध लगाने और डिपॉज़िटर्स के हितों की रक्षा करने का मैकेनिज़्म प्रदान करता है। यह बिल भारतीय रिज़र्व बैंक एक्ट,1934, सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) एक्ट (Securities and Exchange Board of India Act), 1992 और मल्टी-स्टेट को-ऑपरेटिव सोसायटीज़ एक्ट (Multi-State Cooperative Societies Act), 2002 में संशोधन करने का भी प्रयास करता है। बिल की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • अनरेगुलेटेड डिपॉज़िट स्कीम (Unregulated deposit scheme): बिल के अनुसार डिपॉज़िट उस धनराशि को कहा जाता है जिसे एडवांस, लोन या किसी दूसरे रूप में प्राप्त किया जाता है, साथ ही यह वादा किया जाता है कि उसे ब्याज या बिना ब्याज के लौटा दिया जाएगा। ऐसे डिपॉज़िट को नकद या किसी सेवा के तौर पर लौटाया जा सकता है और उसे लौटाने की अवधि निर्दिष्ट हो सकती है या निर्दिष्ट नहीं भी हो सकती है। इसके अतिरिक्त बिल स्पष्ट करता है कि कुछ निश्चित धनराशि को डिपॉज़िट की परिभाषा में शामिल नहीं किया जा सकता, जैसे संबंधियों से मिलने वाले लोन की राशि और किसी पार्टनरशिप फर्म में पार्टनरों द्वारा पूंजी हेतु दिये गए योगदान।
  • बिल आरबीआई और सेबी सहित नौ रेगुलेटरों को सूचीबद्ध करता है जो कि विभिन्न डिपॉज़िट स्कीमों की निगरानी और रेगुलशन करते हैं। सभी डिपॉज़िट टेकिंग स्कीम्स को संबंधित रेगुलेटर के पास रजिस्टर किया जाता है। एक डिपॉज़िट टेकिंग स्कीम अनरेगुलेटेड हो सकती है अगर उसे कारोबार के उद्देश्य के लिये चलाया जा रहा है और वह बिल में लिस्टेड रेगुलेटरों के पास रजिस्टर नहीं है।
  • अपराध और सज़ा: बिल तीन प्रकार के अपराधों और उनकी सज़ा को स्पष्ट करता है। इन अपराधों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) अनरेगुलेटेड डिपॉज़िट स्कीम्स को चलाना (विज्ञापन देना, प्रमोट और ऑपरेट करना या उसके लिये धनराशि लेना), (ii) रेगुलेटेड डिपॉज़िट स्कीम्स में धोखे से डिफॉल्ट करना और (iii) जान-बूझकर झूठे तथ्य देकर अनरेगुलेटेड डिपॉज़िट स्कीम्स में निवेश करने के लिये डिपॉज़िटर्स को गलत तरीके से उकसाना। उदाहरण के लिये अनरेगुलेटेड डिपॉज़िट प्राप्त करने पर दो से लेकर सात साल तक के कारावास की सज़ा भुगतनी होगी और तीन से 10 लाख रुपए तक का जुर्माना भरना होगा।

15वें वित्त आयोग के संदर्भ की शर्तों में संशोधन

कैबिनेट समिति ने 15वें वित्त आयोग के संदर्भ की शर्तों में संशोधन को मंज़ूर किया। केंद्र-राज्यों के वित्तीय संबंधों पर सुझाव देने के लिये हर पाँच वर्ष में वित्त आयोग का गठन किया जाता है। 2020-21 से 2024-25 की अवधि के लिये निम्नलिखित विषयों पर सुझाव देने के लिये नवंबर 2017 में 15वें वित्त आयोग (अध्यक्ष एन. के. सिंह) का गठन किया गया था: (i) राज्यों के साथ केंद्रीय करों की साझेदारी, (ii) राज्यों के साथ केंद्रीय करों के वितरण को प्रबंधित करने वाले सिद्धांत और (iii) राज्यों की वित्तीय स्थिति में सुधार करने वाले उपाय, ताकि पंचायतों और नगर निगमों को संसाधनों की पूर्ति की जा सके।

  • संशोधन में 15वें वित्त आयोग से यह जाँच करने की अपेक्षा की गई है कि क्या रक्षा और आंतरिक सुरक्षा को वित्तपोषित करने के लिये अलग से व्यवस्था की जाए और अगर ऐसा है तो इस व्यवस्था को कैसे संचालित किया जाए।
  • केंद्रीय कैबिनेट ने 15वें वित्त आयोग की अवधि को एक महीने के लिये बढ़ाया है। आयोग से 30 नवंबर, 2019 तक रिपोर्ट सौंपने की अपेक्षा की जाती है।

वर्चुअल करेंसी पर रिपोर्ट

Report on Virtual Currencies

वर्चुअल करेंसी से जुड़े विषयों को समझने और इस संबंध में उपाय सुझाने के लिये नवंबर 2017 में उच्च स्तरीय अंतर मंत्रालयी समिति का गठन किया गया था। समिति ने अपनी रिपोर्ट दे दी है। समिति को वर्चुअल करेंसीज के रेगुलेशन के लिये नीतिगत एवं कानूनी संरचना की जाँच करने का कार्य मिला था। समिति के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्न हैं:

  • वर्चुअल करेंसीज (Virtual Currencies): वर्चुअल करेंसी किसी वैल्यू का कारोबार करने योग्य डिजिटल प्रारूप है जिसे एक्सचेंज के माध्यम या स्टोर्ड वैल्यू के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे लीगल टेंडर का दर्जा नहीं दिया जाता। क्रिप्टोकरेंसी एक ऐसी ही विशिष्ट प्रकार की वर्चुअल करेंसी है जिसे क्रिप्टोग्राफिक एन्क्रिप्शन तकनीकों से संरक्षित रखा जाता है।
  • समिति ने क्रिप्टोकरेंसीज़ के साथ अनेक प्रकार की समस्याओं को चिह्नित किया, जैसे दामों में उतार-चढ़ाव, केंद्रीयकृत अथॉरिटी का अभाव, अधिक एनर्जी और कंप्यूटेशन की ज़रूरत, मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद को वित्तपोषित किये जाने की आशंका। समिति ने सुझाव दिया कि राज्य द्वारा जारी की गई क्रिप्टोकरेंसीज़ को छोड़कर बाकी सभी निजी क्रिप्टोकरेंसीज़ को भारत में प्रतिबंधित किया जाए।
  • आधिकारिक डिजिटल करंसी (Official Digital Currency): समिति ने गौर किया कि मौजूदा भुगतान प्रणालियों के मुकाबले आधिकारिक डिजिटल करेंसी के कई लाभ हैं। इसमें सभी लेन-देन की रिकॉर्डिंग, करेंसी के वितरण का सुरक्षित तथा सस्ता तरीका और सीमापारीय भुगतानों के लिये सस्ती भुगतान प्रणाली शामिल है। समिति ने सुझाव दिया कि भारत में आधिकारिक डिजिटल करेंसी को शुरू करने के लिये खुले मस्तिष्क से सोचे जाने की ज़रूरत है। अगर ऐसी डिजिटल करेंसी जारी की जाती है तो आरबीआई उपयुक्त रेगुलेटर होना चाहिये।
  • क्रिप्टोकरेंसीज़ पर प्रतिबंध और आधिकारिक डिजिटल करेंसी का रेगुलेशन मसौदा बिल, 2019 (Draft Banning of Cryptocurrency and Regulation of Official Digital Currency Bill, 2019) : अंतर-मंत्रालयी समिति ने एक मसौदा बिल प्रस्तावित किया जो कि क्रिप्टोकरेंसीज़ को प्रतिबंधित करता है, भारत में क्रिप्टोकरेंसीज़ से संबंधित गतिविधियों को अपराध घोषित करता है और आधिकारिक डिजिटल करेंसी के रेगुलेशन का प्रावधान करता है। बिल देश में क्रिप्टोकरेंसी को जनरेट करने, बेचने, ट्रांसफर, जारी, निस्तारण या प्रयोग करने पर प्रतिबंध लगाता है। वह एक्सचेंज के माध्यम से, स्टोर वैल्यू या यूनिट ऑफ एकाउंट के तौर पर क्रिप्टोकरेंसी के इस्तेमाल को प्रतिबंधित करता है। बिल में प्रावधान है कि क्रिप्टोकरेंसी भारत में लीगल टेंडर या करेंसी के तौर पर इस्तेमाल नहीं की जा सकती। बिल कहता है कि केंद्र सरकार आरबीआई के सेंट्रल बोर्ड की सलाह से लीगल टेंडर के तौर पर करेंसी के डिजिटल प्रारूप को मंज़ूर कर सकती है।

वर्ष 2017-18 के लिये GST के अनुपालन ऑडिट पर CAG की रिपोर्ट

CAG submits report on compliance audit of GST for the year 2017-18

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने वर्ष 2017-18 के लिये वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के अनुपालन ऑडिट पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। जीएसटी 1 जुलाई, 2017 से लागू हुआ था। इसमें अधिकतर वस्तुओं और सेवाओं पर केंद्र तथा राज्यों द्वारा वसूले जाने वाले विभिन्न अप्रत्यक्ष कर समाहित हैं। कैग के मुख्य निष्कर्ष और सुझावों में निम्न शामिल हैं:

  • इनवॉयस मैचिंग (Invoice Matching): कैग ने कहा कि रिटर्न की जटिल प्रणाली और तकनीकी खामियों के कारण इनवॉयस मैचिंग प्रणाली, जो कि सप्लायर्स और प्राप्तकर्त्ताओं के जीएसटी रिटर्न्स को मैच करती है, को खत्म कर दिया गया। इनवॉयस मैचिंग प्रणाली को इसलिये तैयार किया गया था ताकि यह वैरिफाई किया जा सके कि टैक्सपेयर जिस इनपुट टैक्स क्रेडिट (Input Tax Credit-ITC) का दावा करते हैं, उसे उनके सप्लायर ने चुका दिया है। ऐसी प्रणाली के अभाव में टैक्सपेयर बिना क्रॉस वैरिफिकेशन के खुद आकलन करके आईटीसी का दावा करता है। कैग ने कहा कि मौजूदा प्रणाली में टैक्सपेयर अनियमित दावे करते हैं जिनकी जाँच नहीं की जा सकती और फ्रॉड की आशंका बनती है। इसलिये यह ज़रूरी है कि एसेसेज़ और टैक्स अधिकारियों के बीच एक फिजिकल इंटरफेस बना रहे। कैग ने सुझाव दिया कि इनवॉयस मैचिंग और सरलीकृत रिटर्न्स को शुरू करके अनुपालन को आसान बनाया जाना चाहिये।
  • IGST सेटलमेंट का असर: टैक्सपेयर आईटीसी का इस्तेमाल केंद्रीय जीएसटी, एकीकृत जीएसटी (आईजीएसटी) और राज्य जीएसटी जैसे करों के भुगतान के लिये कर सकते हैं। कैग ने कहा कि इनवॉयस मैचिंग प्रणाली के अभाव में टैक्सपेयर्स के अनियमित या त्रुटिपूर्ण दावों से राज्यों के साथ आईजीएसटी के सेटलमेंट की प्रक्रिया पर असर पड़ेगा। केंद्र सरकार वस्तुओं और सेवाओं की अंतर-राज्यीय आपूर्ति पर आईजीएसटी वसूलती है। सेटलमेंट की प्रक्रिया में केंद्र सरकार राज्यों को आईजीएसटी में उनका हिस्सा सौंपती है।
  • आईजीएसटी सेटलमेंट्स में समस्याएँ: कैग ने गौर किया कि 2017-18 के अंत में सेटलमेंट प्रक्रिया के बाद आईजीएसटी एकाउंट में 2.1 लाख करोड़ रुपए का अनसेटेल्ड बैलेंस जमा था। कैग ने कहा कि इस जमा राशि का एक कारण यह था कि बहुत से लेन देन के सेटलमेंट में समस्याएँ थीं। यह कहा गया कि जीएसटी पोर्टल के सेटलमेंट एल्गोरिदम में टैक्सपेयर्स के रिटर्न्स के कारण त्रुटियाँ थीं। इसके अतिरिक्त यह भी कहा गया कि यह एल्गोरिदम अधूरे डेटासेट्स पर चल रही थी जिसमें डेटा उपलब्ध नहीं था। आयात एवं अपील और इनवॉयस मैचिंग प्रणाली जैसे प्रावधानों के लागू न होने के कारण डेटा उपलब्ध नहीं था। कैग ने सुझाव दिया कि वित्त मंत्रालय को अब तक के जीएसटी सेटलमेंट्स की व्यापक समीक्षा करनी चाहिये, चूँकि इसका असर केंद्र और राज्य सरकारों के वित्त पर पड़ता है।
  • जीएसटी राजस्व: कैग ने कहा कि वर्ष 2018-19 में जीएसटी से 5,81,563 करोड़ रुपए के राजस्व की उम्मीद है (महालेखा परीक्षक के अनंतिम आँकड़ों के अनुसार)। यह वर्ष के 7,43,900 करोड़ रुपए के बजटीय अनुमान से 22% कम है।

चिट फंड्स (संशोधन) बिल, 2019

Chit Funds (Amendment) Bill, 2019

केंद्रीय कैबिनेट ने चिट फंड्स (संशोधन) बिल, 2019 को मंज़ूरी दे दी है। यह बिल चिट फंड्स (संशोधन) बिल, 2018 के बाद आया है जिसे मार्च 2018 को संसद में पेश किया गया था और 16वीं लोकसभा के भंग होने के साथ ही यह बिल लैप्स हो गया था। उल्लेखनीय है कि बिल की कॉपी अभी पब्लिक डोमेन में नहीं है।

नए कर कानून का मसौदा तैयार करने वाले कार्यबल की अवधि बढ़ाई

Ministry of Finance extends term of the task force drafting new direct tax law

  • वित्त मंत्रालय ने नए कर कानून का मसौदा तैयार करने वाले कार्यबल की अवधि 16 दिन बढ़ा दी है। आयकर एक्ट, 1961 की समीक्षा करने के लिये टास्क फोर्स का गठन नवंबर 2017 में किया गया था। इसका लक्ष्य निम्नलिखित के मद्देनज़र नए कर कानून का मसौदा तैयार करना था: (i) विभिन्न देशों में लागू प्रत्यक्ष कर प्रणाली, (ii) उत्तम अंतर्राष्ट्रीय पद्धतियाँ, (iii) भारत की आर्थिक ज़रूरतें और (iv) कोई अन्य संबंधित मामला।
  • जून 2019 में मंत्रालय ने टास्क फोर्स के संदर्भ की शर्तों को बढ़ाया था ताकि निम्नलिखित को उसमें शामिल किया जा सके: (i) अनाम वैरिफिकेशन और जाँच, (ii) मुकदमेबाज़ी में कमी और अपीलों का जल्द-से-जल्द निपटान, (iii) प्रक्रियाओं को सरल बनाकर अनुपालन के दबाव को कम करना, (iv) वित्तीय लेन देन के सिस्टम आधारित क्रॉस वैरिफिकेशन की प्रणाली और (v) विभिन्न विभागों के बीच सूचनाओं को साझा करना।
  • टास्क फोर्स को 31 जुलाई, 2019 तक अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी। अब इसे 16 अगस्त, 2019 तक बढ़ा दिया गया है।

श्रम और रोज़गार

कोड ऑन वेजेज़, 2019

Code on Wages, 2019

कोड ऑन वेजेज़, 2019 को लोकसभा में पारित कर दिया गया। यह कोड उन सभी रोज़गारों में वेतन और बोनस भुगतान को रेगुलेट करता है जहाँ कोई उद्योग चलाया जाता है, व्यापार किया जाता है या मैन्युफैक्चरिंग की जाती है। कोड निम्नलिखित चार कानूनों का स्थान लेता है: (i) वेतन का भुगतान एक्ट (Payment of Wages Act), 1936, (ii) न्यूनतम वेतन एक्ट (Minimum Wages Act), 1948, (iii) बोनस का भुगतान एक्ट (Payment of Bonus Act),1965 और (iv) समान पारिश्रमिक एक्ट (Equal Remuneration Act), 1976।

व्यवसायगत सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थितियाँ संहिता, 2019

Code on Occupational, Safety, Health and Working Conditions, 2019

व्यवसायगत सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थितियाँ संहिता, 2019 को लोकसभा में पेश किया गया। संहिता न्यूनतम 10 श्रमिकों वाले इस्टैब्लिशमेंट्स और सभी खानों एवं डॉक्स पर लागू होती है। संहिता 13 श्रम कानूनों का स्थान लेती है जिनमें यह कारखाना एक्ट, 1948; खान एक्ट, 1952 और अनुबंध श्रमिक (रेगुलेशन और उन्मूलन) एक्ट [Contract Labour (Regulation and Abolition) Act], 1970 शामिल हैं। संहिता की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • नियोक्ताओं के कर्त्तव्य: संहिता नियोक्ताओं के कर्त्तव्यों को विनिर्दिष्ट करती है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) ऐसे कार्यस्थल प्रदान करना, जो चोट या बीमारी की आशंका वाले जोखिमों से मुक्त हों और (ii) कर्मचारियों को निशुल्क वार्षिक स्वास्थ्य जाँच प्रदान करना।
  • काम के घंटे: इस्टैब्लिशमेंट्स और कर्मचारियों के विभिन्न वर्गों के लिये काम के घंटे केंद्र या राज्य सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट नियमों के अनुसार तय किये जाएंगे। महिला श्रमिक अपनी मर्जी से शाम सात बजे के बाद और सुबह छह बजे से पहले तभी काम कर सकती है, जब केंद्र या राज्य सरकार द्वारा इसकी मंज़ूरी हो।
  • अवकाश: कोई कर्मचारी हफ्ते में छह दिन से ज़्यादा काम नहीं करेगा। श्रमिकों की वैतनिक वार्षिक छुट्टी का कैलकुलेशन कम-से-कम हर 20 दिन के काम पर एक छुट्टी का होगा।
  • कार्य स्थितियाँ और सुविधाएँ: नियोक्ता से यह अपेक्षा की जाती है कि वह स्वच्छ कार्य परिवेश प्रदान करेगा जो हवादार, आरामदेह, तापमान और आर्द्रता वाला, खुला हुआ हो, वहाँ पीने के लिये साफ पानी मिले। इन सुविधाओं में पुरुष, महिलाओं और ट्रांसजेंडर कर्मचारियों के लिये अलग-अलग स्नानागार और लॉकर रूम, कैंटीन, प्राथमिक चिकित्सा की सुविधा और क्रेश शामिल हैं।
  • सलाहकार संस्थाएँ: केंद्र और राज्य सरकारें राष्ट्रीय और राज्य स्तरों पर व्यवसायगत सुरक्षा एवं स्वास्थ्य सलाहकार बोर्ड्स (Occupational Safety and Health Advisory Boards) बनाएंगी। संहिता के अंतर्गत मानदंड, नियम और रेगुलेशन बनाने के लिये ये बोर्ड्स केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह देंगे।
  • अपराध और दंड: संहिता के अंतर्गत ऐसे अपराध, जिसमें किसी कर्मचारी की मृत्यु हो जाए, करने पर दो वर्ष तक के कारावास की सज़ा भुगतनी पड़ सकती है या पाँच लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है, अथवा दोनों सज़ा भुगतनी पड़ सकती है। इसके अतिरिक्त अदालत यह निर्देश भी दे सकती है कि पीड़ित के उत्तराधिकारियों को जुर्माने की कम-से-कम आधी राशि मुआवज़े के तौर पर दी जाए। जिन उल्लंघनों में सजा विनिर्दिष्ट नहीं की गई है, उनमें नियोक्ता को दो से तीन लाख रुपए के बीच जुर्माना भरना पड़ेगा।

व्यापारियों और दुकानदारों के लिये स्वैच्छिक पेंशन योजना अधिसूचित

Voluntary pension scheme for traders and shopkeepers notified

श्रम और रोज़गार मंत्रालय ने प्रधानमंत्री लघु व्यापारी मान-धन योजना, 2019 नामक स्वैच्छिक पेंशन योजना को अधिसूचित किया। इसका उद्देश्य स्व-रोज़गार वाले व्यक्तियों को न्यूनतम आश्वस्त पेंशन प्रदान करना है। योजना की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • पात्रता: यह योजना 1.5 करोड़ रुपए से कम वार्षिक टर्नओवनर वाले 18-40 वर्ष के दुकानदारों, फुटकर व्यापारियों और दूसरे स्व-रोज़गार प्राप्त व्यक्तियों पर लागू होगी। एनरोल करने के लिये सबस्क्राइबर का बैंक खाता और आधार नंबर होना चाहिये। इच्छुक व्यक्ति देश में कॉमन सर्विस सेंटर के ज़रिये जीवन बीमा निगम के पेंशन फंड में खुद को एनरोल कर सकते हैं। कॉमन सर्विस सेंटर ज़रूरी पब्लिक यूटिलिटी सेवाओं की डिलिवरी का एक्सेस प्वाइंट है।
  • न्यूनतम आश्वस्त पेंशन (Minimum Assured Pension): योजना के अंतर्गत प्रत्येक सबस्क्राइबर को 60 वर्ष की उम्र होने पर 3000 रुपए प्रतिमाह की न्यूनतम आश्वस्त पेंशन प्राप्त होगी। केंद्र सरकार भी लाभार्थी के अंशदान के बराबर अंशदान देगी। सरकार ने योजना में शामिल होने की उम्र के आधार पर भिन्न-भिन्न मासिक अंशदान की राशि को अधिसूचित किया है। उदाहरण के लिये 29 वर्ष की उम्र में योजना में शामिल होने वाले व्यक्ति से प्रतिमाह 100 रुपए का अंशदान देने की अपेक्षा की जाएगी।
  • परिवार पेंशन: अगर पेंशन प्राप्त करने के दौरान सबस्क्राइबर की मृत्यु हो जाती है तो उसका जीवनसाथी परिवार पेंशन की राशि के रूप में आधी पेंशन राशि प्राप्त करने के लिये अधिकृत होगा। अगर पेंशन मिलने से पहले ही उसकी मृत्यु हो जाती है (यानी 60 वर्ष से पूर्व) तो उसका जीवनसाथी अंशदान देते हुए पेंशन योजना जारी रख सकता है या उसे छोड़ भी सकता है। अगर वह पेंशन योजना को छोड़ना चाहे तो उसे लाभार्थी का अंशदान मिल जाएगा और उसमें फंड द्वारा अर्जित ब्याज या बैंक के बचत खाते की ब्याज दर से मिलने वाला ब्याज (इनमें से जो भी अधिक होगा) भी जुड़ा होगा। अगर सबस्क्राइबर और उसके जीवनसाथी, दोनों की मृत्यु हो जाती है तो पूरा कॉरपस फंड में वापस जमा हो जाएगा।
  • अगर लाभार्थी 60 वर्ष का होने से पहले विकलांग हो जाता है तो उसका जीवनसाथी पेंशन योजना जारी रख सकता है या उसे छोड़ भी सकता है। अगर वह पेंशन योजना को छोड़ना चाहे तो उसे लाभार्थी का अंशदान मिल जाएगा और उसमें फंड द्वारा अर्जित ब्याज या बैंक के बचत खाते की ब्याज दर से मिलने वाला ब्याज (इनमें से जो भी अधिक होगा) भी जुड़ा होगा।
  • पेंशन योजना को छोड़ना और वापसी: किसी व्यक्ति द्वारा योजना छोड़ने पर मिलने वाली राशि का निर्धारण: (i) अगर वह 10 वर्ष के अंदर योजना को छोड़ देता है तो उसके हिस्से के अंशदान को उसे बचत खाते के ब्याज सहित लौटा दिया जाएगा और (ii)अगर वह 10 वर्ष के बाद लेकिन 60 वर्ष की उम्र पूरी होने से पहले योजना को छोड़ता है तो उसे उसका अंशदान वापस मिल जाएगा और उसमें फंड द्वारा अर्जित ब्याज या बैंक के बचत खाते की ब्याज दर से मिलने वाला ब्याज (इनमें से जो भी अधिक होगा) भी जुड़ा होगा।

कॉरपोरेट मामले

कंपनी (संशोधन) बिल, 2019

Companies (Amendment) Bill, 2019

कंपनी (संशोधन) बिल, 2019 को संसद में पारित किया गया। बिल कंपनी एक्ट, 2013 में संशोधन करता है।

इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (संशोधन) बिल, 2019

Insolvency and Bankruptcy Code (Amendment) Bill, 2019

इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (संशोधन) बिल, 2019 राज्यसभा में पारित किया गया। बिल इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता, 2016 में संशोधन करता है। यह संहिता कंपनियों और व्यक्तियों के बीच इनसॉल्वेंसी को रिज़ॉल्व करने के लिये एक समयबद्ध प्रक्रिया प्रदान करती है।


सड़क परिवहन और राजमार्ग

मोटर वाहन (संशोधन) बिल, 2019

Motor Vehicles (Amendment) Bill, 2019

मोटर वाहन (संशोधन) बिल, 2019 राज्यसभा में पारित किया गया। यह बिल सड़क सुरक्षा प्रदान करने के लिये मोटर वाहन एक्ट, 1988 में संशोधन का प्रस्ताव करता है। यह एक्ट मोटर वाहनों से संबंधित लाइसेंस और परमिट देने, मोटर वाहनों के लिये मानक और इन प्रावधानों का उल्लंघन करने के लिये दंड का प्रावधान करता है।


महिला एवं बाल विकास

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) बिल, 2019

Protection of Children from Sexual Offences (Amendment) Bill, 2019

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) बिल, 2019 राज्यसभा में पेश और पारित किया गया। बिल यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण एक्ट, 2012 में संशोधन करता है। यह एक्ट यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से बच्चों के संरक्षण का प्रयास करता है।


शिक्षा

केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान (शिक्षकों के कैडर में आरक्षण) बिल, 2019

Central Educational Institutions (Reservation in Teacher’s Cadre) Bill, 2019

केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान (शिक्षकों के कैडर में आरक्षण) बिल, 2019 संसद में पारित हो गया। यह बिल 7 मार्च, 2019 को जारी अध्यादेश का स्थान लेता है। बिल (i) अनुसूचित जातियों, (ii) अनुसूचित जनजातियों, (iii) सामाजिक एवं शैक्षणिक स्तर पर पिछड़े वर्गों और (iv) आर्थिक रूप से कमज़ोर तबकों के लिये केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षकों के पदों पर आरक्षण का प्रावधान करता है। बिल की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं :

  • पदों पर आरक्षण: बिल केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षकों की सीधी भर्ती वाले पदों पर (कुल स्वीकृत संख्या में से) आरक्षण का प्रावधान करता है। इस आरक्षण के लिये केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों को एक यूनिट माना जाएगा। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक विभाग के सामान्य पदों (जैसे असिस्टेंट प्रोफेसर) को एक यूनिट मानकर आरक्षित श्रेणियों के अभ्यर्थियों को पद आवंटित किये जाएंगे। उल्लेखनीय है कि मौजूदा दिशा-निर्देशों में आरक्षण देने के लिये प्रत्येक विभाग को एक यूनिट माना जाता था।
  • कवरेज और अपवाद: बिल सभी ‘केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों’ पर लागू होगा जिनमें संसदीय कानूनों के अंतर्गत स्थापित विश्वविद्यालय, विश्वविद्यालय माने जाने वाले (डीम्ड) संस्थान, राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान और केंद्र सरकार की सहायता प्राप्त संस्थान शामिल हैं।
  • हालाँकि बिल में कुछ इंस्टीट्यूट्स ऑफ एक्सिलेंस, शोध संस्थान और राष्ट्रीय एवं कूटनीतिक महत्त्व के संस्थानों को अपवाद माना गया है तथा बिल की अनुसूची में उनके संबंध में विनिर्देश दिये गए हैं। बिल में अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को अपवाद बताया गया है।

केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) बिल, 2019

Central Universities (Amendment) Bill, 2019

केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) बिल, 2019 संसद में पारित हो गया। यह बिल केंद्रीय विश्वविद्यालय एक्ट, 2009 में संशोधन का प्रयास करता है। 2009 का एक्ट विभिन्न राज्यों में शिक्षण और अनुसंधान के लिये विश्वविद्यालयों की स्थापना करता है।

  • बिल आंध्र प्रदेश में दो केंद्रीय विश्वविद्यालयों- आंध्र प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय और आंध्र प्रदेश केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रावधान करता है। केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय विशेष रूप से देश के जनजातीय लोगों के लिये जनजातीय कला, संस्कृति और परंपराओं से संबंधित उच्च शिक्षा और अनुसंधान सुविधाएँ प्रदान करने के लिये अतिरिक्त उपाय करेगा।
  • उल्लेखनीय है कि आंध्र प्रदेश पुनर्गठन एक्ट, 2014 के अंतर्गत राज्य में केंद्रीय विश्वविद्यालय और केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की स्थापना बाध्यकारी है।

आवास और शहरी मामले

सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्ज़ा करने वालों की बेदखली) संशोधन, बिल, 2019

Public Premises (Eviction of Unauthorised Occupants) Amendment Bill, 2019

सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्ज़ा करने वालों की बेदखली) संशोधन बिल, 2019 लोकसभा में पेश और पारित किया गया। बिल सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्ज़ा करने वालों की बेदखली) एक्ट, 1971 में संशोधन करता है। इस एक्ट में कुछ मामलों में सार्वजनिक परिसरों पर अनधिकृत कब्ज़ा करने वालों की बेदखली का प्रावधान है।

  • निवास स्थान: बिल ‘निवास स्थान पर कब्ज़ा’ को इस प्रकार पारिभाषित करता है कि इसका अर्थ किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा सार्वजनिक स्थान पर कब्ज़ा किया जाना है जिसे उस कब्जे के लिये अधिकृत किया गया (लाइसेंस दिया गया) हो। यह लाइसेंस किसी निश्चित अवधि के लिये होना चाहिये या उस अवधि के लिये जब तक कि वह व्यक्ति पद पर बना हुआ है। इसके अतिरिक्त केंद्र, राज्य या केंद्रशासित प्रदेश की सरकार या किसी संवैधानिक अथॉरिटी (जैसे संसदीय सचिवालय या केंद्र सरकार की कोई संस्था या राज्य सरकार) द्वारा बनाए गए नियम के तहत इस कब्ज़े की अनुमति होनी चाहिये।
  • बेदखली का नोटिस: बिल निवास स्थान से बेदखली के लिये एक प्रक्रिया बनाने की बात कहता है। बिल में यह अपेक्षा की गई है कि अगर किसी व्यक्ति ने किसी निवास स्थान पर अनधिकृत कब्ज़ा किया है तो एस्टेट ऑफिसर (केंद्र सरकार का एक अधिकारी) उसे लिखित नोटिस जारी करेगा। नोटिस में उस व्यक्ति से तीन कार्य दिनों के भीतर कारण बताने की अपेक्षा की जाएगी कि उसे बेदखली का आदेश क्यों न दिया जाए। इस लिखित नोटिस को निवास स्थान के विशिष्ट हिस्से पर लगाया जाना चाहिये।
  • बेदखली का आदेश: कारण बताओ नोटिस पर विचार करने और दूसरी जाँच के बाद एस्टेट ऑफिसर बेदखली का आदेश देगा। अगर कोई व्यक्ति आदेश नहीं मानता तो एस्टेट ऑफिसर उसे निवास स्थान से बेदखल कर सकता है और उस स्थान को अपने कब्ज़े में ले सकता है। इसके लिये एस्टेट ऑफिसर उतनी ताकत का प्रयोग कर सकता है, जितनी ज़रूरी हो।
  • नुकसान की भरपाई: अगर निवास स्थान में अनधिकृत कब्ज़ा करने वाला व्यक्ति अदालत की बेदखली के आदेश को चुनौती देता है, तो उसे कब्ज़े की वजह से हर महीने होने वाले नुकसान की भरपाई करनी होगी।

मसौदा मॉडल टेनेन्सी एक्ट, 2019

Draft Model Tenancy Act, 2019

आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने मसौदा मॉडल टेनेन्सी एक्ट, 2019 जारी किया। मसौदा एक्ट रेंटल हाउसिंग से संबंधित मामलों के रेगुलेशन और उन पर शीघ्र निर्णय का प्रावधान करता है। यह मौजूदा राज्य/केंद्रशासित प्रदेश रेंट कंट्रोल एक्ट्स को रद्द करने का प्रयास भी करता है। अंतिम मसौदा मॉडल टेनेन्सी एक्ट को राज्यों में सर्कुलेट किया जाएगा। राज्य इस मॉडल एक्ट के प्रावधानों से तालमेल बैठाने के लिये नए टेनेन्सी को लागू कर सकते हैं या मौजूदा कानूनों में संशोधन कर सकते हैं। मसौदा एक्ट की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • टेनेन्सी एग्रीमेंट (Tenancy Agreement): ड्राफ्ट एक्ट में प्रावधान है कि भूस्वामी और किरायेदार (पक्ष) के बीच एग्रीमेंट पर दस्तखत किये जाएँ। किरायेदारी की अवधि, देय किराये और किराए के संशोधनों पर दोनों पक्ष सहमत होंगे और यह एग्रीमेंट में विनिर्दिष्ट होगा। इस एग्रीमेंट के बिना किसी परिसर को किराये पर नहीं दिया जा सकता। इसके अतिरिक्त यह एग्रीमेंट एक्ट की अनुसूची में निर्दिष्ट रूप में रेंट अथॉरिटी में रजिस्टर होना चाहिये। इसमें भूस्वामी तथा किरायेदार का नाम, पता, पैन और आधार नंबर जैसे विवरण, परिसर का ब्योरा और देय किराये का जिक्र होना चाहिये।
  • रेंट अथॉरिटी (Rent Authority): राज्य/केन्द्रशासित प्रदेश सरकार की पूर्व सहमति से ज़िला कलेक्टर रेंट अथॉरिटी (डिप्टी कलेक्टर के पद का) को नियुक्त करेगा। टेनेन्सी एग्रीमेंट की सूचना प्राप्त होने पर रेंट अथॉरिटी को अपनी वेबसाइट पर उस एग्रीमेंट का विवरण अपलोड करना होगा। अथॉरिटी भूस्वामी या किरायेदार के आवेदन पर किराये को तय या संशोधित कर सकती है। वह उस तारीख में भी संशोधन कर सकती है, जब से संशोधित किराया लागू होगा। अथॉरिटी के आदेश के खिलाफ रेंट कोर्ट में अपील की जा सकती है और यह आदेश की तारीख के 30 दिनों के अंदर की जानी चाहिये।
  • रेंट कोर्ट्स (Rent Courts): राज्य सरकार जितने ज़रूरी हों, उतने रेंट कोर्ट्स बना सकती है। किसी क्षेत्र में दो या उससे अधिक अदालतें हो सकती हैं। ऐसी स्थितियों में राज्य/केन्द्रशासित प्रदेश सरकार मामलों का वितरण कर सकती है। रेंट कोर्ट में राज्य/केन्द्रशासित प्रदेश सरकार उच्च न्यायालय की सलाह से दो सदस्यों को नियुक्त कर सकती है। रेंट कोर्ट के आदेश के खिलाफ रेंट ट्रिब्यूनल में अपील की जाएगी और उसे आदेश के 30 दिनों के अंदर दायर किया जाना चाहिये।
  • रेंट ट्रिब्यूनल (Rent Tribunal): राज्य सरकार जितने ज़रूरी हों, उतने रेंट ट्रिब्यूनल बना सकती है। एक क्षेत्र में अनेक ट्रिब्यूनल होने की स्थिति में राज्य/केन्द्रशासित प्रदेश सरकार उनमें से एक को प्रिंसिपल रेंट ट्रिब्यूनल अधिसूचित कर सकती है। रेंट ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता प्रिंसिपल अपीलीय सदस्य (उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के स्तर के) द्वारा की जाएगी और उसमें दो सदस्य होंगे। रेंट कोर्ट और ट्रिब्यूनल 60 दिनों के अंदर मामले के निपटारे का प्रयास करेंगी।

शहरी जल संरक्षण के लिये दिशा-निर्देश

Guidelines for urban water conservation

भारत के सामने विश्व के 4% मीठे जल स्रोतों से विश्व की 17% जनसंख्या की प्यास बुझाने की चुनौती है। वर्तमान में देश के एक बटा 10 हिस्से से भी वार्षिक वर्षाजल को संचित किया जाता है। नीति आयोग के अनुसार भारत की लगभग 50% जनसंख्या पानी की ज़बरदस्त कमी से जूझ रही है। इसके मद्देनज़र आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने जल शक्ति अभियान के अंतर्गत शहरी जल संरक्षण के लिये दिशानिर्देश जारी किये हैं। 61 दिशा निर्देशों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • महत्त्वपूर्ण क्षेत्र: दिशा निर्देशों में चार महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों का प्रावधान है: (i) वर्षा जल संचयन (Rain Water Harvesting), (ii) उपचारित अपशिष्ट जल (ट्रीटेड वेस्ट वॉटर) का पुनः उपयोग (Reuse of Treated Waste Water), (iii) शहरी जल स्रोतों का जीर्णोद्धार (Rejuvenation of Urban Water Bodies) और (iv) पौधरोपण (Plantation of Ttrees)।
  • कवरेज और समय-सीमा: जल शक्ति मंत्रालय ने देश में 255 जिलों और 1,597 ब्लॉक्स को वॉटर स्ट्रेस्ड चिह्नित किया है। इनमें 756 शहरी स्थानीय निकायों (Urban Local Bodies-ULBs) को वॉटर स्ट्रेस्ड चिह्नित किया गया है। ULBs इन गतिविधियों को दो चरणों में संचालित कर सकती हैं: (i) 1 जुलाई, 2019 से 15 सितंबर, 2019 और (ii) 1 अक्तूबर, 2019 से 30 नवंबर, 2019।
  • फंडिंग: अमृत योजना के अंतर्गत आने वाले शहर इस फंड का इस्तेमाल कर सकते हैं। अमृत के अंतर्गत न आने वाले शहर निम्नलिखित का प्रयोग कर सकते हैं: (i) राज्य फंड्स, (ii) 14वें वित्त आयोग द्वारा उपलब्ध कराए गए अनुदान या (iii) CSR और भूमि मुद्रीकरण, इत्यादि के ज़रिये उपलब्ध फंड्स।
  • वर्षा जल संचयन का अर्थ है, छत, सड़क किनारे या खुले इलाकों में वर्षा जल को जमा और स्टोर करना, जिसे बाद में इस्तेमाल किया जा सके अथवा जल स्रोतों में वृद्धि के लिये भूजल में पुनर्भरण किया जा सके। ULBs निम्नलिखित तरीकों से वर्षा जल संचयन कर सकते हैं: (i) भवन निर्माण के नियमों में ऐसी व्यवस्था को लागू करना, और (ii) वर्षा जल संचयन इकाई को स्थापित करना जो कि शहर में ऐसे संचयन की निगरानी करेगी।
  • उपचारित अपशिष्ट जल के दोबारा उपयोग को बढ़ावा देने के लिये ULBs यह सुनिश्चित करेंगी कि सभी सार्वजनिक और कमर्शियल इमारतों में दोहरी पाइपिंग प्रणाली हो। अगर शहर में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हो तो उस प्लांट के अपशिष्ट जल को खेती और औद्योगिक उद्देश्य, फायर हाइड्रेंट्स और बड़े स्तर के निर्माण कार्यों के लिये इस्तेमाल किया जाना चाहिये।
  • ULBs निम्नलिखित प्रकार से शहरी जल स्रोतों का जीर्णोद्धार कर सकती हैं: (i) डी-सिल्टिंग के ज़रिये जल स्रोतों की सफाई, (ii) जल स्रोतों के किनारों को अतिक्रमण से बचाना और (iii) जल स्रोत में घरेलू और औद्योगिक सीवेज को बहने से रोकना।

नागरिक उड्डयन

भारतीय एयरपोर्ट्स इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी (संशोधन) बिल, 2019

Airports Economic Regulatory Authority of India (Amendment) Bill, 2019

राज्यसभा में भारतीय एयरपोर्ट्स इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी (संशोधन) बिल, 2019 पेश और पारित किया गया। यह बिल भारतीय एयरपोर्ट्स इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी एक्ट, 2008 में संशोधन करता है। यह एक्ट भारतीय एयरपोर्ट्स इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी (Airports Economic Regulatory Authority of India-AERA) की स्थापना करता है। AERA उन सिविलियन एयरपोर्ट्स की एयरोनॉटिकल सेवाओं के लिये टैरिफ और दूसरे शुल्क को रेगुलेट करती है जिनका वार्षिक ट्रैफिक 15 लाख यात्रियों से अधिक होता है। यह अथॉरिटी इन एयरपोर्ट्स में सेवाओं के प्रदर्शन मानकों का भी निरीक्षण करती है।

  • मुख्य एयरपोर्ट्स की परिभाषा: एक्ट के अंतर्गत मुख्य एयरपोर्ट्स में ऐसे एयरपोर्ट्स आते हैं जिनका वार्षिक यात्री ट्रैफिक 15 लाख से अधिक होता है या ऐसे एयरपोर्ट्स जिन्हें केंद्र सरकार ने अधिसूचित किया हो। बिल वार्षिक यात्री ट्रैफिक की सीमा को बढ़ाकर 35 लाख से अधिक करता है।
  • AERA द्वारा टैरिफ तय करना: एक्ट के अंतर्गत AERA निम्नलिखित का निर्धारण करता है : (i) हर पाँच वर्षों में विभिन्न एयरपोर्ट्स की एयरोनॉटिकल सेवाओं का टैरिफ, (ii) मुख्य एयरपोर्ट्स की डेवलपमेंट फीस और (iii) पैसेंजर्स की सर्विस फीस। अथॉरिटी टैरिफ तय करने और टैरिफ संबंधी दूसरे कार्य करने, जिसमें बीच की अवधि में टैरिफ में संशोधन करना शामिल है, के लिये ज़रूरी सूचनाओं की मांग भी कर सकती है।
  • बिल कहता है कि AERA निम्नलिखित का निर्धारण नहीं करेगी : (i) टैरिफ, (ii) टैरिफ का स्ट्रक्चर और (iii) कुछ मामलों में डेवलपमेंट फीस। जैसे-जब टैरिफ की राशि बिड डॉक्यूमेंट (बोली लगाने वाले दस्तावेज़) का हिस्सा हो जिसके आधार पर एयरपोर्ट ऑपरेशन का काम सौंपा गया हो। इन दस्तावेज़ों में टैरिफ को शामिल करने से पहले कनसेशनिंग अथॉरिटी को AERA से सलाह लेनी होगी और उस टैरिफ को अधिसूचित करना होगा।

जल शक्ति

अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) बिल, 2019

Inter-State River Water Disputes (Amendment) Bill, 2019

अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) बिल, 2019 लोकसभा में पेश और पारित किया गया। बिल अंत-रराज्यीय नदी जल विवाद एक्ट, 1956 में संशोधन करता है। यह एक्ट राज्यों के बीच नदियों और नदी घाटियों से संबंधित विवादों में अधिनिर्णय का प्रावधान करता है।

  • एक्ट के अंतर्गत राज्य सरकार केंद्र सरकार से आग्रह कर सकती है कि वह अंतरराज्यीय नदी जल विवाद को अधिनिर्णय के लिये ट्रिब्यूनल को सौंपे। अगर केंद्र सरकार को ऐसा लगता है कि बातचीत से विवाद का निवारण नहीं हो सकता तो वह शिकायत प्राप्त करने के एक साल के अंदर जल विवाद ट्रिब्यूनल स्थापित कर सकती है। बिल इस व्यवस्था को बदलने का प्रयास करता है।
  • विवाद निवारण समिति: बिल के अंतर्गत अगर राज्य किसी जल विवाद के संबंध में अनुरोध करता है तो केंद्र सरकार उस विवाद को सौहार्द्पूर्ण तरीके से हल करने के लिये विवाद निवारण समिति (Disputes Resolution Committee-DRC) की स्थापना कर सकती है। DRC में एक अध्यक्ष और विशेषज्ञ होगा। विशेषज्ञों को संबंधित क्षेत्रों में कम-से-कम 15 वर्षों का अनुभव प्राप्त होना चाहिये और उन्हें केंद्र सरकार द्वारा नामित किया जाएगा। समिति में उन राज्यों का एक-एक सदस्य होगा (संयुक्त सचिव स्तर का) जो विवाद के पक्ष हैं। इन सदस्यों को भी केंद्र सरकार द्वारा नामित किया जाएगा।
  • DRC एक साल के अंदर बातचीत के ज़रिये विवादों को हल करने का प्रयास करेगी (इस अवधि को छह महीने तक और बढ़ाया जा सकता है) तथा केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। अगर DRC द्वारा विवाद का निपटारा नहीं होता तो केंद्र सरकार इस मामले को अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद ट्रिब्यूनल को भेज सकती है। ऐसा DRC की रिपोर्ट के प्राप्त होने के तीन महीने के अंदर होना चाहिये।
  • ट्रिब्यूनल: केंद्र सरकार जल विवादों पर फैसला देने के लिये अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद ट्रिब्यूनल की स्थापना करेगी। इस ट्रिब्यूनल की अनेक खंडपीठ हो सकती हैं। सभी मौजूदा ट्रिब्यूनलों को भंग कर दिया जाएगा और निर्णय लेने के लिये जो मामले उन ट्रिब्यूनलों में लंबित पड़े होंगे, उन्हें नए ट्रिब्यूनल में स्थानांतरित कर दिया जाएगा।
  • ट्रिब्यूनल की संरचना: ट्रिब्यूनल में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन न्यायिक सदस्य तथा तीन विशेषज्ञ होंगे। उन्हें सलेक्शन समिति की सलाह से केंद्र सरकार द्वारा नामित किया जाएगा। ट्रिब्यूनल की खंडपीठ में एक अध्यक्ष या उपाध्यक्ष, एक न्यायिक सदस्य और एक विशेषज्ञ होगा। केंद्र सरकार सेंट्रल वाटर इंजीनियरिंग सर्विस में काम करने वाले दो विशेषज्ञों को एसेसर्स के तौर पर नियुक्त कर सकती है जो खंडपीठ की कार्यवाही के संबंध में उसे सलाह दे सकते हैं। यह एसेसर उस राज्य से नहीं होना चाहिये जो कि विवाद का पक्ष है।

बांध सुरक्षा बिल, 2019

Dam Safety Bill, 2019

बांध सुरक्षा बिल, 2019 लोकसभा में पेश किया गया। बिल देश भर में निर्दिष्ट बांधों की चौकसी, निरीक्षण, परिचालन और रखरखाव संबंधी प्रावधान करता है। बिल इन बांधों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये संस्थागत प्रणाली का भी प्रावधान करता है।


संस्कृति

जलियाँवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) बिल, 2019

Jallianwala Bagh National Memorial (Amendment) Bill, 2019

जलियाँवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक (संशोधन) बिल, 2019 लोकसभा में पेश किया गया। बिल जलियाँवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक एक्ट, 1951 में संशोधन करता है।


कृषि

कृषि का कायापलट और किसानों की आय बढ़ाने के उपायों पर चर्चा करने के लिये मुख्यमंत्रियों की समिति बनाई गई

प्रधानमंत्री ने कृषि के कायाकल्प तथा किसानों की आय बढ़ाने के उपाय करने के लिये मुख्यमंत्रियों की हाई पावर्ड समिति का गठन किया है। इस समिति में निम्नलिखित राज्यों के मुख्यमंत्री होंगे: (i) महाराष्ट्र (समिति का कन्वीनर), (ii) अरुणाचल प्रदेश, (iii) गुजरात, (iv) हरियाणा, (v) कर्नाटक, (vi) मध्य प्रदेश और (vii) उत्तर प्रदेश। इसमें कृषि एवं किसान कल्याण केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद शामिल हैं।

समिति के संदर्भ की शर्तें निम्नलिखित हैं:

  • कृषि के कायाकल्प तथा किसानों की आय बढ़ाने के उपायों पर चर्चा करना।
  • कृषि मार्केटिंग और कॉन्ट्रैक्ट खेती से संबंधित केंद्र सरकार द्वारा तैयार किये गए मॉडल कानूनों को अपनाने और समयबद्ध कार्यान्वयन के लिये राज्यों को तौर-तरीके सुझाना,।
  • आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण और व्यापार के नियंत्रण के लिये अनिवार्य वस्तु एक्ट, 1955 के प्रावधानों की जाँच करना।
  • कृषि मार्केटिंग और बुनियादी ढाँचे में निजी निवेश को आकर्षित करने के लिये एक्ट में बदलाव का सुझाव देना।
  • राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (ई-नाम) और ग्रामीण कृषि बाज़ार जैसे केंद्र प्रायोजित योजनाओं के साथ बाज़ार सुधारों को जोड़ने वाली व्यवस्था का सुझाव देना।
  • निम्नलिखित के लिये नीतिगत उपाय सुझाना: (i) कृषि निर्यात को बढ़ावा देना, (ii) खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की बढ़ती हुई वृद्धि,और (iii) आधुनिक बाज़ार का बुनियादी ढाँचा, मूल्य श्रृंखलाओं और लॉजिस्टिक्स में निवेश को आकर्षित करना।
  • कृषि-प्रौद्योगिकी को वैश्विक मानकों के अनुरूप अपग्रेड करने के उपाय सुझाना और किसानों को कृषि क्षेत्र में उन्नत देशों से अच्छे बीज, पौधे और मशीनरी उपलब्ध कराना।

चीनी का 40 लाख मीट्रिक टन का बफर स्टॉक

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने चीनी मिलों के लिये 40 लाख मीट्रिक टन का बफर स्टॉक बनाने की एक योजना को मंज़ूरी दी। योजना में यह अपेक्षा की गई है कि चीनी मिलें अगस्त 2019 से शुरू होने वाली एक वर्ष की अवधि के लिये इस बफर स्टॉक को बनाएँ। इस योजना में निम्नलिखित प्रयास किये गए हैं: (i) चीनी मिलों की लिक्विडिटी में सुधार और गन्ना किसानों का बकाया चुकाने की कोशिश, (ii) चीनी इन्वेंटरीज़ को कम करना और (iii) घरेलू बाज़ार में चीनी की कीमत को स्थिर करना।

सल्फर आधारित उर्वरकों के लिये सब्सिडी में बढ़ोतरी को मंज़ूरी

Sulphur-based Fertilisers

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2019-20 के लिये सल्फर आधारित उर्वरकों के लिये सब्सिडी में बढ़ोतरी को मंज़ूरी दी। यह सब्सिडी पोषण आधारित सब्सिडी योजना के अंतर्गत प्रदान की जाती है। इस योजना के अंतर्गत उर्वरक निर्माताओं और आयातकों को फॉस्फेटिक एवं पोटासिक (Phosphatic and Potassic-P&K)) उर्वरकों की बिक्री के लिये प्रदान किया जाता है जो उनमें मौजूद पोषक तत्त्वों पर आधारित होते हैं।

  • सल्फर आधारित उर्वरकों की सब्सिडी दर 2018-19 के लिये 2.72 रुपए प्रति किलोग्राम से बढ़कर 2019-20 के लिये 3.56 रुपए प्रति किलोग्राम कर दी गई है।
  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2019-20 के लिये अन्य पोषक तत्त्वों (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश) के लिये सब्सिडी दरों को भी मंज़ूरी दी।
  • इन पोषक तत्त्वों की सब्सिडी दर पिछले वर्ष से अपरिवर्तित बनी हुई है और निम्नानुसार हैं: (i) नाइट्रोजन के लिये 18.90 रुपए प्रति किलोग्राम, (ii) फॉस्फोरस के लिये 15.22 रुपए प्रति किलोग्राम और (iii) पोटाश के लिये 11.12 रुपए प्रति किलोग्राम। वर्ष 2019-20 के लिये मंज़ूर दरें अधिसूचना की तारीख से प्रभावी होंगी।
  • P & K उर्वरकों पर सब्सिडी प्रदान करने की लागत 2019-20 में 22,876 करोड़ रुपए होने का अनुमान है।

वाणिज्य और उद्योग

राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान (संशोधन) बिल, 2019

Draft National Resource Efficiency Policy, 2019

राज्यसभा में राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान (संशोधन) बिल, 2019 पेश किया गया। यह बिल राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान एक्ट, 2014 में संशोधन करता है जो कि अहमदाबाद स्थित राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान को राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान घोषित करता है।

  • बिल आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, असम और हरियाणा में चार अन्य राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थानों को राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान घोषित करने का प्रयास करता है।
  • वर्तमान में ये चारों संस्थान सोसायटी पंजीकरण एक्ट, 1860 के अंतर्गत सोसायटी के रूप में पंजीकृत हैं और इन्हें डिग्री या डिप्लोमा देने का अधिकार नहीं है। राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान घोषित होने के बाद चारों संस्थानों को डिग्री और डिप्लोमा देने की शक्ति मिल जाएगी।

पर्यावरण

पब्लिक फीडबैक के लिये नेशनल रिसोर्स एफिशिएंसी पॉलिसी

Draft National Resource Efficiency Policy released for public feedback

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सार्वजनिक टिप्पणियों के लिये मसौदा नेशनल रिसोर्स एफिशिएंसी पॉलिसी जारी की। इस नीति में कहा गया है कि भारत में मैटीरियल उपभोग वर्ष 1970 में 1.2 बिलियन टन से छह गुना बढ़कर वर्ष 2015 में 7 बिलियन हो गया। तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण, जनसंख्या और आर्थिक विकास के मद्देनजर वर्ष 2030 में इसके दोगुने होने की उम्मीद है। इससे संसाधनों के गंभीर रूप से समाप्त होने और पर्यावरणीय दुर्दशा की भी आशंका है। यह नीति प्राकृतिक संसाधनों के प्रभावी उपयोग और अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में अपशिष्ट के पुनर्चक्रण (अपसाइकिलिंग) को बढ़ावा देने के प्रयास करेगी। इस नीति की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • विस्तार क्षेत्र: नीति का उद्देश्य सभी संसाधनों (जैसे वायु, जल) और सामग्रियों का हर चरण जैसे-कच्चा माल, निकासी, प्रसंस्करण और उत्पादन में कारगर उपयोग करना है।
  • मार्गदर्शन सिद्धांत: यह नीति निम्नलिखित सिद्धांतों से निर्देशित है: (i) संसाधनों की खपत में सतत् कमी, (ii) रिसोर्स एफिशिएंट दृष्टिकोण से उच्च मूल्य का सृजन, (iii) अपशिष्ट को कम-से-कम करना, (iv) मैटीरियल सप्लाई की सुरक्षा सुनिश्चित करना और (v) पर्यावरण के लिये लाभप्रद रोज़गार अवसरों और कारोबारी मॉडल का सृजन।
  • अथॉरिटीज़: नीति में नेशनल रिसोर्स एफिशिएंसी अथॉरिटी (National Resource Efficiency Authority-NREA) की स्थापना का प्रावधान है जो कि नीति के कार्यान्वयन की निगरानी, प्रबंधन और समीक्षा करेगी। संबंधित राज्य सरकारें और मंत्रालय रिसोर्स एफिशिएंट रणनीतियों के विकास और कार्यान्वयन के लिये ज़िम्मेदार होंगे। कार्यान्वयन के महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर मार्गदर्शन प्रदान करने के लिये एक अंतर-मंत्रालयी नेशनल रिसोर्स एफिशिएंसी बोर्ड ( National Resource Efficiency Board) की स्थापना की जाएगी।
  • लक्ष्य और कार्य योजनाएँ: नीति का उद्देश्य वर्ष 2030 तक संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals-SDGs) के अंतर्गत भारत की प्रतिबद्धताओं को पूरा करना है। एसडीजी में वर्ष 2030 तक एनर्जी एफिशिएंसी में सुधार की विश्वव्यापी दर को दोगुना करने और सतत् खाद्य उत्पादन प्रणालियों को सुनिश्चित करने सहित 12 लक्ष्य शामिल हैं।
  • नीति में कहा गया है कि NREA संबंधित मंत्रालयों, राज्य सरकारों और हितधारकों के परामर्श से तीन वर्षीय कार्ययोजना तैयार करेगी। रिसोर्स एफीशिएंसी की रणनीतियाँ विकसित की जाएंगी जो क्षेत्र विशेष के विस्तार, लक्ष्य, समय और कार्य योजनाएँ तैयार करेंगी। NREA इन रणनीतियों के कार्यान्वयन के लिये तीन वर्षीय कार्ययोजनाओं को अपनाएगी। पहली कार्ययोजना वर्ष 2019-22 के लिये तैयार की गई है।

रक्षा

रक्षा क्षेत्र में MSMEs को बढ़ावा देने के लिये योजना

रक्षा मंत्रालय ने रक्षा क्षेत्र में MSMEs को बढ़ावा देने के लिये एक योजना की शुरुआत की। इस योजना का उद्देश्य देश भर के टियर II और टियर III शहरों के MSMEs को रक्षा क्षेत्र की ज़रूरतों और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिये सरकार के प्रयासों के संबंध में शिक्षित करना है।

  • इसके लिये अनेक कार्यक्रम संचालित किये जाएंगे, जैसे कनक्लेव और वर्कशॉप्स। इन कार्यक्रमों में रक्षा उत्पादन विभाग तथा उद्योग एवं MSMEs के प्रतिनिधि भी मौजूद होंगे। इन कार्यक्रमों के निम्नलिखित उद्देश्य हैं: (i) MSMEs को सरकार के 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम के बारे में प्रासंगिक जानकारी देना, (ii) घरेलू ज़रूरतों और मैत्रीपूर्ण देशों को निर्यात करने के लिये देश में रक्षा उत्पादन को प्रोत्साहन देना और (iii) गैर-रक्षा क्षेत्र में सक्रिय MSMEs को जानकारी उपलब्ध कराना, ताकि वे रक्षा क्षेत्र में प्रवेश कर सकें।
  • इस योजना का वित्तपोषण केंद्र सरकार निम्नलिखित प्रकार से करेगी: (i) राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों के लिये 2 लाख रुपए प्रति कार्यक्रम की अधिकतम स्पॉन्सरशिप और (ii) राज्य स्तर के कार्यक्रमों के लिये 1 लाख रुपए प्रति कार्यक्रम की अधिकतम स्पॉन्सरशिप। योजना के अंतर्गत प्रस्तावों की समीक्षा के लिये तीन सदस्यों वाली एक एम्पावर्ड समिति बनाई जाएगी।

ग्रामीण विकास

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना –III की शुरुआत

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तीसरे चरण को मंज़ूरी दी। योजना का उद्देश्य वर्ष 2019-20 से 2024-25 के दौरान 1.25 लाख किलोमीटर ग्रामीण सड़कों को अपग्रेड करना है। योजना की अनुमानित लागत 80,250 करोड़ रुपए है। इन सड़कों का चयन विभिन्न मापदंडों पर आधारित होगा, जैसे कि आबादी, बाज़ार तक पहुँच और शैक्षिक एवं चिकित्सा सुविधाएँ।

  • वर्ष 2000 में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की शुरुआत की गई थी। इसका लक्ष्य विनिर्दिष्ट जनसंख्या समूह (मैदानी क्षेत्रों में 500 से अधिक और उत्तर-पूर्व, पहाड़ी, आदिवासी या रेगिस्तानी क्षेत्रों में 250 से अधिक-2001 की जनगणना) की उन बसाहटों को बारहमासी सड़कों से जोड़ना था जो बाकी क्षेत्रों से जुड़ी हुई नहीं थीं।