व्यापक अंतर्राष्ट्रीय समर्थन के बावज़ूद मसूद अज़हर पर क्यों नहीं लगते प्रतिबंध?

चर्चा में क्यों

हाल ही चीन ने संकेत दिया है कि वह पाकिस्तान में मौजूद जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख और पठानकोट आतंकी हमले के मास्टरमाइंड मसूद अज़हर को अन्तर्राष्ट्रीय आतंकी के तौर पर सूचीबद्ध करने के प्रयास को बाधित कर करेगा।

पृष्ठभूमि

  • विदित हो कि मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकी के तौर पर सूचीबद्ध करने के प्रस्ताव पर अपनी तकनीकी रोक को चीन ने अगस्त में तीन महीने के लिये बढ़ा दिया था। दरअसल फरवरी, 2017 में संयुक्त राष्ट्र में इस आशय के प्रस्ताव पर रोक लगाई गई थी।
  • गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 समिति द्वारा हाल ही में इस मुद्दे पर चर्चा होनी है और चीन ने संकेत दिया है कि यहाँ भी वह अपना पुराना राग अलापता नज़र आएगा। इससे पहले भी चीन भारत के इस प्रस्ताव को उल्लेखनीय सहमति मिलने के बावज़ूद भी वीटो करता आया है।

क्या है संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 समिति?

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद 1267 समिति का गठन वर्ष 1999  के प्रस्ताव-1267 (resolution 1267) के अनुसार किया गया था।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद 1267 समिति को अलकायदा और तालिबान प्रतिबंध समिति के तौर पर भी जाना जाता है।
  • आरंभ में इस समिति का गठन तालिबान द्वारा नियंत्रित अफगानिस्तान पर लगाए गए प्रतिबंधों की देख-रेख हेतु किया गया था।
  • हालाँकि, बाद में इसे शक्तिशाली बनाते हुए प्रतिबंधात्मक गतिविधियों के संचालन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बना दिया गया।
  • यदि किसी व्यक्ति या आतंकवादी संगठन को इस सूची में शामिल किया गया है, तो यह उनके गतिविधियों को रोकने, वित्तीय दंड आरोपित करने और परिसंपत्तियों को ज़ब्त करने में मदद करता है।

अकेले चीन कैसे नहीं होने देता अज़हर को प्रतिबंधित?

  • उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद 1267 समिति, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी 15 सदस्यों से मिलकर बनी है और सर्व-सम्मति से निर्णय लेती है। यदि किसी आशय या निर्णय का एक भी सदस्य द्वारा विरोध किया जाता है तो फिर वह प्रस्ताव पारित नहीं होता।
  • यही कारण है कि चीन द्वारा विरोध दर्ज़ करने पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद मसूद अज़हर को एक अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवादी के तौर पर निर्दिष्ट नहीं कर पा रही है और न ही उसकी संपत्ति और यात्राओं पर प्रतिबंध लगा पा रही है।
  • हाल के कुछ वर्षों में समिति को पारदर्शी नहीं होने के लिये आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है और इसकी प्रक्रियात्मक कमियों को दूर करने की बात की जा रही है।