पश्चिमी आंचलिक परिषद

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय गृह मंत्री की अध्यक्षता में होने वाली पश्चिमी आंचलिक परिषद (Western Zonal Council) की 24वीं बैठक 22 अगस्त, 2019 को पंजिम (गोवा) में आयोजित होगी।

प्रमुख बिंदु

  • इस बैठक के एजेंडे में यौन उत्पीड़न के मामलों में तीव्र जाँच, एक व्यापक सुरक्षा योजना और रेलवे स्टेशनों पर बेहतर सुरक्षा व्यवस्था जैसे मुद्दे शामिल हैं।
  • गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) के तत्त्वावधान में कार्य करने वाली अंतर-राज्य परिषद के सचिवालय में गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र और केंद्र शासित प्रदेश दमन एवं दीव तथा दादरा और नगर हवेली शामिल हैं।
  • परिषद की पिछली बैठक अप्रैल, 2018 में गांधीनगर (गुजरात) में तत्कालीन गृह मंत्री की अध्यक्षता में हुई थी।
  • पश्चिमी आंचलिक परिषद की 23वीं बैठक का आयोजन गांधीनगर, गुजरात में किया गया था। 

आंचलि‍क परिषद

  • राज्‍यों के बीच और केंद्र एवं राज्‍यों के बीच मिलकर काम करने की संस्कृति विकसित करने के उद्देश्‍य से राज्‍य पुनर्गठन कानून (States Reorganisation Act), 1956 के अंतर्गत आंचलिक परिषदों का गठन किया गया था।
  • आंचलिक परिषदों को यह अधिकार दिया गया कि वे आर्थिक और सामाजिक योजना के क्षेत्र में आपसी हित से जुड़े किसी भी मसले पर विचार-विमर्श करें और सिफारिशें दें।
  • ये परिषदें आर्थिक और सामाजिक आयोजना, भाषायी अल्‍पसंख्‍यकों, अंतर्राज्‍य परिवहन जैसे साझा हित के मुद्दों के बारे में केंद्र और राज्‍य सरकारों को सलाह दे सकती है।

पाँच आंचलिक परिषदें

राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के भाग-।।। के तहत पाँच आंचलिक परिषदें स्थापित की गई। इन आंचलिक परिषदों का वर्तमान गठन निम्नवत है:

  • उत्तरी आंचलिक परिषद: इसमें हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, राजस्थान राज्य, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और संघ राज्य क्षेत्र चंडीगढ़ शामिल हैं।
  • मध्य आंचलिक परिषद: इसमें छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्य हैं।
  • पूर्वी आंचलिक परिषद: इसमें बिहार, झारखंड, उड़ीसा, सिक्किम और पश्चिम बंगाल राज्य हैं।
  • पश्चिमी आंचलिक परिषद: इसमें गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र राज्य और संघ राज्य क्षेत्र दमन और दीव और दादरा और नगर हवेली है।
  • दक्षिणी आंचलिक परिषद: इसमें आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलाडु, राज्य और संघ राज्य क्षेत्र पुद्दुचेरी शामिल हैं।

पूर्वोत्तर राज्य अर्थात् (i) असम (ii) अरुणाचल प्रदेश (iii) मणिपुर (iv) त्रिपुरा (v) मिज़ोरम (vi) मेघालय और (vii) नगालैंड को आंचलिक परिषदों में शामिल नहीं किया गया है और उनकी विशेष समस्याओं को पूर्वोत्तर परिषद अधिनियम (North Eastern Council Act), 1972 के तहत गठित पूर्वोत्तर परिषद द्वारा हल किया जाता है।

  • सिक्किम राज्य को दिनांक 23 दिसंबर, 2002 में अधिसूचित पूर्वोत्तर परिषद (संशोधन) अधिनियम, 2002 के तहत पूर्वोत्तर परिषद में भी शामिल किया गया है। इसके परिणामस्वरूप सिक्किम को पूर्वी आंचलिक परिषद के सदस्य के रूप में हटाए जाने के लिये गृह मंत्रालय द्वारा कार्रवाई शुरु की गई है।

आंचलिक परिषदों का संगठनात्मक ढाँचा

  • अध्यक्ष- केंद्रीय गृह मंत्री।
  • उपाध्यक्ष– प्रत्येक आंचलिक परिषद में शामिल किये गए राज्यों के मुख्यमंत्री, रोटेशन से एक समय में एक वर्ष की अवधि के लिये उस अंचल के आंचलिक परिषद के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं।
  • सदस्य– मुख्यमंत्री और प्रत्येक राज्य से राज्यपाल द्वारा यथा नामित दो अन्य मंत्री और अंचल में शामिल किये गए संघ राज्य क्षेत्रों से दो सदस्य।
  • सलाहकार- प्रत्येक क्षेत्रीय परिषदों के लिये योजना आयोग द्वारा एक व्यक्ति को नामित किया गया, क्षेत्र में शामिल किये गए प्रत्येक राज्यों द्वारा मुख्य सचिवों एवं अन्य अधिकारी/विकास आयुक्त को नामित किया गया।
  • आवश्यकता पड़ने पर क्षेत्रीय परिषदों की बैठकों में भाग लेने के लिये केंद्रीय मंत्रियों को भी आमंत्रित किया जाता है।

क्षेत्रीय परिषदों की स्थापना का उद्देश्य

  • राष्ट्रीय एकीकरण को साकार करना।
  • तीव्र राज्यक संचेतना, क्षेत्रवाद तथा विशेष प्रकार की प्रवृत्तियों के विकास को रोकना।
  • केंद्र एवं राज्यों को विचारों एवं अनुभवों का आदान-प्रदान करने तथा सहयोग करने के लिये सक्षम बनाना।
  • विकास परियोजनाओं के सफल एवं तीव्र निष्पादन के लिये राज्यों के बीच सहयोग के वातावरण की स्थापना करना।

परिषदों के कार्य

  • प्रत्येक क्षेत्रीय परिषद की एक सलाहकारी निकाय होती है और यह किसी भी मामले पर विचार कर सकती है जिसमें उस परिषद में भागीदारी करने वाले कुछेक अथवा समस्त राज्यों या केंद्र एवं उस परिषद में भागीदारी करने वाले एक अथवा अधिक राज्यों का सामान्य हित होता है। 
  • यह केंद्र सरकार तथा प्रत्येक संबंधित राज्य सरकार को सलाह देती है कि ऐसे प्रत्येक मामले पर क्या कार्रवाई की जानी चाहिये।

विशेष रूप से एक क्षेत्रीय परिषद निम्नलिखित के संबंध में विचार कर सकती है और अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कर सकती है:

  • आर्थिक एवं सामाजिक आयोजना के क्षेत्र में सामान्य हित का कोई मामला।
  • सीमा विवादों, भाषायी अल्पसंख्यकों अथवा अंतर-राज्यीय परिवहन से संबंधित कोई मामला।
  • राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अंतर्गत राज्यों के पुनर्गठन से संबंधित अथवा उसके संबंध में उठने वाला कोई मामला।

स्रोत: द हिंदू