मुख्य न्यायाधीश के लिये एक निश्चित कार्यकाल और उसका महत्त्व

भूमिका

न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा को भारत को 45वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ दिलाई जाएगी। लोकतंत्र में, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय तीन सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यालय हैं। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की तुलना में भारत के मुख्य न्यायाधीश का कार्यकाल अत्यंत ही छोटा है। दरअसल, संविधान निर्माताओं के जेहन में शायद यह ख्याल नहीं आया कि देश के मुख्य न्यायाधीश का कार्यकाल कितना होना चाहिये। यही कारण है कि इस वर्ष देश को तीन मुख्य न्यायाधीश मिले हैं।

विदित हो कि कुछ मुख्य न्यायाधीशों का कार्यकाल तो महज 41, 35 और 17 दिन का भी रहा है। देश में आज़ादी के बाद से अब तक कुल 14 राष्ट्रपति रहे हैं, जबकि इतने ही समय में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायधीशों की कुल संख्या 43 रही है। समय-समय पर मुख्य न्यायाधीश के पद के लिये एक निश्चित कार्यकाल तय करने की बात होती रही है, हालाँकि इस विचार को अब तक अमल में नहीं लाया जा सका है।

निश्चित कार्यकाल ज़रूरी क्यों?

  • दरअसल, कई अध्ययनों द्वारा यह प्रमाणित किया जा चुका है कि कार्यकाल की अधिकतम अवधि, उच्च दक्षता और बेहतर प्रदर्शन को सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों की हमेशा से यह शिकायत रही है कि उन्हें न्यायपालिका के लिये सुधारात्मक गतिविधियों को अंजाम तक पहुँचाने का पर्याप्त समय नहीं मिला।
  • तुलनात्मक रूप से कुछ ज़्यादा अवधि के लिये मुख्य न्यायधीश रहे न्यायमूर्ति आर. एम. लोढ़ा के कार्यकाल को न्यायपालिका के कामकाज में महत्त्वपूर्ण सुधार के लिये जाना जाता है, साथ ही यह भी कहा जाता है कि यदि वे कुछ दिन और अपने पद पर बने रहते तो कुछ उल्लेखनीय सुधारों की दिशा तय की जा सकती थी।
  • शीर्ष न्यायालय ने सिविल सेवकों एवं अन्य नौकरशाहों के लिये हमेशा एक निश्चित कार्यकाल सुनिश्चित करने की वकालत की है। दरअसल, सुधारों की एक प्रक्रिया होती है जिन्हें चरणबद्ध तरीके से लागू करना होता है, लेकिन निश्चित कार्यकाल के अभाव में ये सुधार धूल फाँकते रहते हैं।
  • विभिन्न न्यायविदों ने सुझाव दिया है कि मुख्य न्यायाधीश के लिये भी एक लंबा कार्यकाल सुनिश्चित किया जाना चाहिये, ताकि वह न्यायपालिका को समुचित दिशा-निर्देश दे सकें। लेकिन इस विचार के कुछ अपने जोखिम भी हैं।

क्या है समस्या?

  • स्थापित परंपरा के मुताबिक उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जाता है और इस दौरान यह नहीं देखा जाता कि उस न्यायाधीश की सेवानिवृत्ति में कितना समय बाकी है।
  • अगर किसी कनिष्ठ न्यायाधीश का लंबा कार्यकाल बचा हुआ हो और उसे पदोन्नत कर मुख्य न्यायाधीश बना दिया जाए तो उससे वरिष्ठ न्यायाधीश काफी नाखुश हो जाएंगे।
  • इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए मुख्य न्यायाधीश के पद पर नियुक्तियों के मामले में दो बार वरिष्ठता के पैमाने का उल्लंघन किया, जबकि उनका उद्देश्य मुख्य न्यायाधीश के लिये लंबा कार्यकाल तय किया जाना नहीं था।
  • दरअसल, प्रत्येक सरकार यही चाहती है कि उनके हमकदम लोग न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठें, लेकिन इंदिरा सरकार के उन फैसलों के अरुचिकर नतीजों को देखने के बाद फिर किसी सरकार ने सार्थक उद्देश्य से भी इस संबंध में पहल करने की कोशिश नहीं की।

क्या हो आगे का रास्ता

  • विधि आयोग ने हाल ही में यह सुझाव दिया था कि मुख्य न्यायाधीशों का कार्यकाल दो साल के लिये तय कर दिया जाए। विधि आयोग के मुताबिक इस सुझाव को वर्ष 2022 से अमल में लाया जा सकता है, क्योंकि मौजूदा दौर के सबसे कनिष्ठ न्यायाधीश भी उस समय तक मुख्य न्यायाधीश बनकर सेवानिवृत्त हो जाएंगे। इससे मौजूदा न्यायाधीशों के वरिष्ठता पदानुक्रम को भी ठेस नहीं पहुँचेगी।
  • सरकार ने भी एक विचार पेश किया है जिसमें मुख्य न्यायाधीश को कम से कम एक साल का कार्यकाल देने का प्रस्ताव है। अगर यह योजना अमल में लाई जाती है तो सरकार को न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये एक और शर्त मिल जाएगी।
  • दरअसल, किसी न्यायाधीश के नियुक्ति के समय ही कैलेंडर यह बता देगा कि वह न्यायाधीश आगे चलकर मुख्य न्यायाधीश बन पाएगा या नहीं। पहले से ही भाषा,  भूगोल,  धर्म,  जाति और लिंग के आधार पर प्रतिनिधित्व जैसे कारकों के साथ निश्चित कार्यकाल को भी नियुक्ति का एक कारक माना जा सकता है।

इस व्यवस्था की समस्या क्या है?

  • निश्चित कार्यकाल की संभावना को नियुक्ति का एक पैमाना बनाना जहाँ एक ओर निर्णायक साबित हो सकता है, वहीं दूसरी ओर इससे न्यायाधीश की चयन प्रक्रिया के जटिल हो जाने की संभावना भी है, साथ ही कॉलेजियम प्रणाली में भी अंतर्विरोध पैदा हो सकते हैं।
  • दरअसल, पहले कुछ ऐसे न्यायाधीश भी रहे हैं जो लंबा कार्यकाल होते हुए भी कोई बड़ा बदलाव नहीं कर पाए हैं।

निष्कर्ष

  • दरअसल, सरकार की एक नीति है, जो विदेश सचिव,  गृह सचिव, सीबीआई निदेशक के लिये 2 साल का निर्धारित कार्यकाल प्रदान करती है, लेकिन लोकतंत्र में एक सबसे महत्त्वपूर्ण संस्थान के प्रमुख के लिये निश्चित कार्यकाल न होना चिंतित करता है।
  • मुख्य न्यायाधीश केवल उच्चतम न्यायालय का ही नेतृत्व नहीं करता, बल्कि वह संपूर्ण न्यायिक व्यवस्था का प्रमुख भी है। अदालतों में लंबित मामलों की संख्या चिंतनीय स्तर तक बढ़ गई है, अदालतों को डिजिटल करने का लक्ष्य काफी पीछे चल रहा है और अदालतों के भीतर होने वाले भीड़भाड़ और कुव्यवस्था ने अदालत के काम-काज को व्यापक ढंग से प्रभावित किया है।
  • आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 1997 से अब तक बने 17 मुख्य न्यायाधीशों में से केवल तीन का ही कार्यकाल दो साल से अधिक रहा है। इसका मतलब है कि कम समय तक अपने पद पर रहने से उन्हें दीर्घकालिक फैसलों को लागू करने का वक्त ही नहीं मिल पाता है। अतः यह ज़रूरी है कि तमाम जटिलताओं के बावज़ूद इस संबंध में गम्भीरता से विचार करना होगा।