धारा 375 का अपवाद (2) असंवैधानिक करार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने नाबालिग पत्नी से शारीरिक संबंध के मामले में एक अहम् निर्णय दिया है। देश की सबसे बड़ी अदालत का कहना है कि नाबालिग पत्नी के साथ शारीरिक संबंध को अब बलात्कार माना जाएगा।

मामले की पृष्ठभूमि

  • विदित हो कि एनजीओ ‘इंडिपेंडेंट थॉट’ ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर विभिन्न कानूनों में सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की ‘उचित आयु’ को लेकर दुविधा का सवाल उठाया था।
  • भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के अपवाद (2) को चुनौती देते हुए याचिका में कहा गया था कि इसमें शादी के बाद 15 साल तक की पत्नी के साथ शारीरिक संबंध को बलात्कार नहीं माना गया है, जबकि दूसरे कानूनों में आपसी सहमति से संबंध बनाने की आयु 18 वर्ष है।
  • गौरतलब है कि बाल यौन शोषण संरक्षण अधिनियम 2012 (पॉक्सो एक्ट) में 18 साल तक की लड़की को नाबालिग माना गया है और उसके साथ सभी तरह के यौन कृत्यों को दंडनीय अपराध माना गया है।
  • इस याचिका पर सुनवाई करने के बाद जस्टिस मदन बी. लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने आईपीसी की धारा 375 के अपवाद (2) को मनमाना और भेदभावपूर्ण बताते हुए असंवैधानिक करार दिया है।
  • उल्लेखनीय है कि देश की सबसे बड़ी अदालत ने धारा 375 के इस अपवाद को संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 21 के साथ-साथ बच्चों का यौन शोषण रोकने के लिये बने पॉक्सो एक्ट के भी खिलाफ बताया है।

क्या थे सरकार के तर्क?

  • गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद (2) को बनाए रखने की वकालत करते हुए कहा था कि बाल विवाह मामलों में यह संरक्षण ज़रूरी है।
  • केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया था कि वह इस धारा को रद्द न करे और संसद को इस पर विचार करने और फैसला करने के लिये समय-सीमा तय कर दे।
  • केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में यह दलील भी दी कि  बाल विवाह सामाजिक सच्चाई है और इस पर कानून बनाना संसद का काम है, जबकि उच्चतम न्यायालय ने सती प्रथा का उदाहरण देते हुए कहा कि यह ज़रूरी नहीं कि जो प्रथा सदियों से चली आ रही हो वो सही हो।

क्या है मौजूदा कानून?

  • वर्तमान कानून के अनुसार यदि किसी शादीशुदा महिला की उम्र 15 साल से अधिक है और उसके पति द्वारा जबरन संबंध बनाया जाता है तो पति के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज़ नहीं किया जा सकता।
  • ऐसा इसलिये, क्योंकि आईपीसी की धारा 375 का अपवाद (2) कहता है कि 15 से 18 साल की पत्नी से उसका पति संबंध बनाता है तो उसे दुष्कर्म नहीं माना जाएगा।

निष्कर्ष

  • भारत में ऐज ऑफ कंसेंट यानी सहमति प्रदान करने की उम्र जब 18 वर्ष है तो विवाह के नाम 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों का शोषण उचित नहीं कहा जा सकता। हालाँकि इस मामले में न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार या ऐज ऑफ कंसेंट को घटाने या बढ़ाने के संबंध में  विचार नहीं किया है।
  • बाल विवाह की रोकथाम के लिये कड़े कानून बनाने के बावज़ूद नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि 18 से 29 साल की 46 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो गई थी और इस समय  देश में नाबालिग पत्नियों की संख्या करीब 2.3 करोड़ है। ऐसे में इस शोषणकारी कानून को असंवैधानिक करार देने का न्यायालय का यह फैसला निश्चित ही सराहनीय है।