शिकारी पक्षियों की प्रजाति पर संकट

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ, गिद्ध कार्ययोजना 2020-25, रैप्टर प्रजाति

मेन्स के लिये:

शिकारी/रैप्टर प्रजातियों के संकट में होने का कारण एवं इनके संरक्षण हेतु प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल के शोध के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 557 शिकारी प्रजातियों में से लगभग 30% के विलुप्त होने का खतरा है।

प्रमुख बिंदु 

  • रैप्टर प्रजातियाँ
    • रैप्टर प्रजातियों के बारे में: रैप्टर शिकार करने वाले पक्षी हैं। ये मांसाहारी होते हैं तथा स्तनधारियों, सरीसृपों, उभयचरों, कीटों के साथ-साथ अन्य पक्षियों को भी मारकर खाते हैं।
      • सभी रैप्टर/शिकारी पक्षी मुड़ी हुई चोंच, नुकीले पंजे वाले मज़बूत पैर, तीव्र दृष्टि के साथ ही मांसाहारी होते हैं।
    • महत्त्व
      • रैप्टर या शिकारी प्रजाति के पक्षी कशेरुकियों (Vertebrates) की एक विस्तृत शृंखला का शिकार करते हैं और साथ ही ये लंबी दूरी तक बीजों को फैलाने का कार्य करते हैं जो अप्रत्यक्ष रूप से बीज उत्पादन और कीट नियंत्रण को बढ़ावा देता है।
      • रैप्टर पक्षी खाद्य शृंखला के शीर्ष पर स्थित शिकारी पक्षी होते हैं। कीटनाशकों, निवास स्थान की क्षति और जलवायु परिवर्तन जैसे खतरों का इन पर सबसे अधिक नाटकीय प्रभाव पड़ता है, इसलिये इन्हें संकेतक प्रजाति भी कहा जाता है।
    • जनसंख्या: इंडोनेशिया में सबसे अधिक रैप्टर प्रजातियांँ पाई जाती हैं, इसके बाद कोलंबिया, इक्वाडोर और पेरू का स्थान है।
    • उदाहरण: उल्लू, गिद्ध, बाज, फाॅल्कन, चील, काइट्स, ब्यूटियो, एक्सीपिटर्स, हैरियर और ओस्प्रे।
  • संकट का कारण::
    • डाइक्लोफेनाक का उपयोग: डाइक्लोफेनाक (Diclofenac) के व्यापक उपयोग के कारण भारत जैसे एशियाई देशों में कुछ गिद्धों की आबादी में 95% से अधिक की गिरावट आई है।
      • डाइक्लोफेनाक एक गैर-स्टेरॉइडल विरोधी उत्तेजक दवा है।
    • वनों की कटाई: व्यापक स्तर पर वनों की कटाई के कारण पिछले दशकों में विश्व में ईगल की सबसे बड़ी किस्म फिलीपीन ईगल की आबादी में तेज़ी से कमी आई है।
      • फिलीपीन ईगल IUCN रेड लिस्ट के तहत गंभीर रूप से संकटग्रस्त है।
    • शिकार करना और विष देना: अफ्रीका में पिछले 30 वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों में गिद्धों की आबादी में औसतन 95% की कमी आई है, जिसका कारण डाइक्लोफेनाक से उपचारित पशुओं के शवों को खाना, गोली मारना और ज़हर देना है।
    • पर्यावास हानि और क्षरण: एनोबोन स्कॉप्स-उल्लू (Annobon Scops-0wl) पश्चिम अफ्रीका के एनोबोन द्वीप तक सीमित है, जिसे हाल ही में तेज़ी से निवास स्थान के नुकसान और गिरावट के कारण IUCN रेड लिस्ट के तहत 'गंभीर रूप से लुप्तप्राय' की श्रेणी में वर्गीकृत किया गया था।
  • संरक्षण के प्रयास:
    • रैप्टर्स MoU (वैश्विक): इस समझौते को ‘रैप्टर समझौता-ज्ञापन (Raptor MOU)’ के नाम से भी जाना जाता है। यह समझौता अफ्रीका और यूरेशिया क्षेत्र में प्रवासी पक्षियों के शिकार पर प्रतिबंध और उनके संरक्षण को बढ़ावा देता है।
      • CMS संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तहत एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है। इसे बाॅन कन्वेंशन के नाम से भी जाना जाता है। CMS का उद्देश्य स्थलीय, समुद्री तथा उड़ने वाले अप्रवासी जीव जंतुओं का संरक्षण करना है। यह कन्वेंशन अप्रवासी वन्यजीवों तथा उनके प्राकृतिक आवास पर विचार-विमर्श के लिये एक वैश्विक मंच प्रदान करता है।
      • यह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है।
    • भारत के संरक्षण प्रयास:
      • भारत रैप्टर्स MoU का हस्ताक्षरकर्त्ता है।
      • गिद्धों के संरक्षण के लिये भारत ने गिद्ध कार्ययोजना 2020-25 शुरू की है।
        • भारत SAVE (Saving Asia’s Vultures from Extinction) संघ का भी हिस्सा है।
        • पिंजौर (हरियाणा) में जटायु संरक्षण प्रजनन केंद्र (Jatayu Conservation Breeding Centre) भारतीय गिद्ध प्रजातियों के प्रजनन और संरक्षण के लिये राज्य के बीर शिकारगाह वन्यजीव अभयारण्य के भीतर विश्व की सबसे बड़ी अनुकूल जगह है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ