उपेक्षित है आवश्यक पुलिस सुधार

चर्चा में क्यों?

भारत में पुलिस सुधारों की दिशा में ‘प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ मामला (2006)’ मील का पत्थर है लेकिन इसके निर्देशों को लागू करने में अभी भी राज्य सक्रियता नहीं दिखा रहे हैं। दरअसल, देश में पुलिस-सुधार के प्रयासों की भी एक लंबी श्रृंखला है, जिसमें विधि आयोग, मलिमथ समिति, पद्मनाभैया समिति, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, सोली सोराबजी समिति तथा सबसे महत्त्वपूर्ण प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ-2006 मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देशों में पुलिस-सुधारों हेतु कई सिफारिशें शामिल हैं। प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ-2006 मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देशों के लगभग 11 वर्ष बीतने के बावज़ूद हम इन निर्देशों का पुर्णतः अनुपालन नहीं कर पाए हैं।

भारत में पुलिस सुधारों की ज़रूरत क्यों?

  • भारत में पुलिस के पास खुफिया आँकड़ों के एकत्रण एवं उनके विश्लेषण के लिये प्रभावी साधनों का अभाव है।
  • राज्यों के अन्वेषण विभागों की गुणवत्ता में लगातार गिरावट आ रही है।
  • कई शीर्ष अन्वेषण एजेंसियों एवं पुलिस विभागों में पदों की रिक्तियाँ हैं।
  • पुलिस को उपलब्ध हथियार और उपकरण पुराने, निम्न स्तरीय एवं अप्रचलित किस्म के हैं।
  • पुलिस को न तो पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जा रहा है और न ही तकनीकी ज्ञान की पर्याप्त जानकारी प्रदान की जा रही है, अतः वे तकनीकों का प्रभावी इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं।
  • विभिन्न पुलिस विभागों एवं जाँच एजेंसियों के बीच समन्वय का अभाव है और  पुलिस राजनीतिक हस्तक्षेप से पीड़ित है।

विभिन्न समितियों एवं उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देश

  • एक “स्टेट सिक्योरिटी कमीशन” का गठन हो, जिसका दायित्व, पुलिस को बाहरी दबाव से मुक्त रखना होगा।
  • एक “पुलिस स्टेब्लिशमेंट बोर्ड” का भी गठन हो, जिससे कार्मिक मामलों में पुलिस को स्वायत्तता प्राप्त हो।
  • एक “पुलिस शिकायत प्रकोष्ठ” का गठन हो, जो पुलिस के विरुद्ध गंभीर शिकायतों की जाँच कर सके।
  • डी.जी.पी. का कार्यकाल 2 साल सुनिश्चित करने के अलावा आई. जी. व अन्य पुलिस अधिकारियों का कार्यकाल भी सुनिश्चित किया जाए।
  • राज्यों में पुलिस बल की संख्या बढ़ाने तथा पुलिस में महिला-कर्मियों की संख्या में भी वृद्धि की जाए।
  • पुलिस की कार्यशैली को अत्याधुनिक बनाने के लिये उसे आधुनिक हथियारों और उन्नत फॉरेंसिक जाँच तंत्र उपलब्ध करवाना होगा।
  • ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाए गए सन् 1861 के पुलिस एक्ट को समाप्त करके सोली सोराबजी समिति द्वारा प्रारूपित 2006 के एक्ट को लागू किया जाए।

निष्कर्ष

  • प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ-2006 मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देशों के बाद से आज लगभग 11 वर्ष बीत चुके हैं और यह दुर्भाग्यजनक है कि हम इन निर्देशों का पुर्णतः अनुपालन नहीं कर पाए हैं। एक ओर जहाँ हम पुलिस व्यवस्था को लोकोन्मुख बनाने में विफल रहे हैं वहीं सीबीआई की स्वायत्तता को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं।
  • यदि वर्ष 2013 का लोकपाल कानून अमल में लाया गया होता तो आज सीबीआई की कार्यक्षमता और निष्ठा को सवालों के घेरे से बाहर रखा जा सकता था। इस लोकपाल में सीबीआई के कार्यों की निगरानी की शक्ति होती, जिससे कि अदालत के बोझ को कम किया जा सकता था।
  • लोकपाल कानून तो आरंभ से ही विभिन्न बदलावों का शिकार रहा है, लेकिन प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ-2006 मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देश तो पूर्ण रूप में हमारे सामने हैं। अतः वर्तमान आवश्यकताओं को देखते हुए पुलिस सुधार के लिये सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देशों को लागू करना चाहिये ताकि भारतीय पुलिस भी विश्व स्तरीय बन सके।