पॉक्सो नए नियम

संदर्भ

हाल ही में केंद्र सरकार ने बाल यौन शोषण अपराध संबंधी कानून को कठोर बनाते हुए बाल यौन अपराध संरक्षण नियम- पॉक्सो (Protection of Children from Sexual Offences Rules- POCSO), 2020 को अधिसूचित किया है। इसमें किये गए नए संशोधनों के तहत बाल उत्पीड़न से संबंधित प्रावधानों को अधिक कठोर बनाया गया है। नए संशोधनों के तहत स्कूल, केयर होम और ऐसे अन्य संस्थानों में कर्मचारियों की नियुक्ति हेतु पुलिस सत्यापन को अनिवार्य करने के साथ कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये गए हैं। 

 

मुख्य बिंदु:

  • वर्ष 2012 में पॉक्सो के लागू होने के बाद भी बाल उत्पीड़न संबंधी अपराधों के मामलों में वृद्धि को देखते हुए वर्ष 2019 में पॉक्सो अधिनियम में कई अन्य संशोधनों के साथ ऐसे अपराधों में मृत्युदंड की सजा का प्रावधान किया गया था।
  • इस अधिनियम में किये गए हालिया संशोधनों के तहत कठोर सजा प्रावधानों के साथ अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों (Preventive Measures) पर विशेष ध्यान दिया गया है।
  • इस संशोधन के माध्यम से बाल उत्पीड़न के मामलों को रोकने के लिये सरकार और अन्य हितधारकों के सहयोग से बच्चों को व्यक्तिगत सुरक्षा, मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में अवगत कराना तथा इन अपराधों से संबंधित शिकायत एवं कानूनी प्रक्रिया के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना है।         

पृष्‍ठभूमि:

  • POCSO, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act– POCSO) का संक्षिप्त नाम है।
  • POCSO अधिनियम, 2012 को बच्चों के हित और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए बच्चों को यौन अपराध, यौन उत्‍पीड़न तथा पोर्नोग्राफी से संरक्षण प्रदान करने के लिये लागू किया गया था।
  • इस अधिनियम में ‘बालक’ को 18 वर्ष से कम आयु के व्‍यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है और यह बच्‍चे का शारीरिक, भावनात्‍मक, बौद्धिक और सामाजिक विकास सुनिश्चित करने के लिये हर चरण को ज़्यादा महत्त्व देते हुए बच्‍चे के श्रेष्‍ठ हितों और कल्‍याण का सम्‍मान करता है। इस अधिनियम में लैंगिक भेदभाव (Gender Discrimination) नहीं है।

“ज्ञातव्य है कि पिछले वर्ष मद्रास उच्च न्यायालय ने सुझाव दिया था कि 16 वर्ष की आयु के बाद सहमति से यौनिक, शारीरिक संबंध या इस प्रकार के अन्य कृत्यों को POCSO अधिनियम के दायरे से बाहर कर देना चाहिये।”

बाल यौन अपराध संरक्षण नियम, 2020:

जागरूकता और क्षमता निर्माण

(Awareness generation and capacity building):

  • केंद्र और राज्य सरकारों को बच्चों के लिये आयु-उपयुक्त (Age-Appropriate) शैक्षिक सामग्री और पाठ्यक्रम तैयार करने के लिये कहा गया है, जिससे उन्हें व्यक्तिगत सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं के बारे में जागरूक किया जा सके।
  • इस संशोधन के तहत शैक्षिक सामग्री के माध्यम से बच्चों के साथ होने वाले लैंगिक अपराधों की रोकथाम और सुरक्षा तथा ऐसे मामलों की शिकायत के लिये चाइल्ड हेल्पलाइन नंबर 1098 जैसे माध्यमों से भी अवगत कराना है।
  • व्यक्तिगत सुरक्षा में बच्चों की शारीरिक सुरक्षा के साथ ही ऑनलाइन मंचों पर उनकी पहचान से संबंधित सुरक्षा के उपायों, भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य को भी शामिल किया गया है।

अश्लील सामग्री की रिपोर्टिंग

(Reporting of pornographic material)

  • इस संशोधन में चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े प्रावधानों को भी कठोर किया गया है। 
  • नए नियमों के अनुसार, यदि कोई भी व्यक्ति चाइल्ड पोर्नोग्राफी से संबंधित कोई फाइल प्राप्त करता है या ऐसे किसी अन्य व्यक्ति के बारे में जानता है जिसके पास ऐसी फाइल हो या वह इन्हें अन्य लोगों को भेज रहा हो या भेज सकता है, उसके संबंध में विशेष किशोर पुलिस इकाई या साइबर क्राइम यूनिट (cybercrime.gov.in) को सूचित करना चाहिये। 
  • नियम के अनुसार, ऐसे मामलों में जिस उपकरण (मोबाइल, कम्प्यूटर आदि) में पोर्नोग्राफिक फाइल रखी हो, जिस उपकरण से प्राप्त की गई हो और जिस ऑनलाइन प्लेटफार्म पर प्रदर्शित की गई हो सबकी विस्तृत जानकारी दी जाएगी।

‘बाल संरक्षण नीति’

(Child Protection Policy):

  • नए नियमों के तहत राज्य सरकारों को बाल उत्पीड़न के खिलाफ "शून्य-सहिष्णुता” के सिद्धांत पर आधारित एक ‘बाल संरक्षण नीति’ (Child Protection Policy) तैयार करने के निर्देश दिये गए हैं। 
  • राज्य के ऐसे सभी संस्थानों, संगठनों या अन्य कोई भी एजेंसी जो बच्चों के साथ काम करती हो, उनके द्वारा सरकार की इन नीतियों का अनुसरण किया जाएगा।

विभिन्न अधिनियमों के अंतर्गत निर्धारित आयु वर्ग के तहत चाइल्ड/बालक की परिभाषा

  • POCSO अधिनियम: 18 वर्ष से कम
  • बाल मज़दूर (निषेध एवं विनियमन)अधिनियम 1986: 14 वर्ष से कम
  • किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015: 14 वर्ष से कम
  • कंपनी अधिनियम, 1948: 15 वर्ष से कम

आयु की सहमति प्रदान करने पर वैश्विक कानून

  • बहुत से देशों में 16 साल या उससे कम आयु वर्ग को चाइल्ड/बालक की श्रेणी में रखा गया है।
  • अमेरिका के बहुत से देश, यूरोप, जापान, कनाडा ऑस्ट्रेलिया चीन और रूस भी इस श्रेणी में शामिल है।

हितधारकों के लिये जागरुकता कार्यक्रम:

  • संशोधनों के अनुसार, केंद्र और राज्य सरकारें नियमित रूप से समय-समय पर बच्चों के साथ काम करने वाले सभी लोगों (शिक्षक, बस ड्राइवर, सहायक आदि, चाहे वे नियमित हों या अनुबंधित) को बाल सुरक्षा तथा संरक्षण के प्रति जागरूक करने एवं उन्हें उनकी ज़िम्मेदारी के प्रति शिक्षित करने के लिये प्रशिक्षण प्रदान करेंगी।
  • संशोधन में बाल उत्पीड़न के मामलों पर कार्य कर रहे पुलिस कर्मियों और फाॅरेंसिक विशेषज्ञों के लिये भी समय-समय पर क्षमता विकास संबंधी अभिविन्यास तथा प्रशिक्षण कार्यक्रमों के आयोजन का भी सुझाव दिया गया है।
  • संशोधनों के अनुसार, ऐसा कोई भी संस्थान जहाँ बच्चे रहते हों या आते-जाते हों जैसे-स्कूल, शिशु गृह, खेल अकादमी आदि, को अपने सभी कर्मचारियों के बारे में पुलिस सत्यापन और उनकी पृष्ठभूमि की जाँच नियमित रूप से करनी होगी।

मुआवज़ा:

  • नियम के अनुसार, यौन उत्पीड़न के मामले में प्राथमिकी दर्ज़ होने के बाद विशेष अदालत मामले में किसी भी समय पीड़ित की अपील या अपने विवेक से पीड़ित को राहत या पुनर्वास के लिये अंतरिम मुआवज़े का आदेश दे सकती है।
  • ऐसे आदेश  के पारित होने के 30 दिनों के अंदर राज्य सरकार द्वारा पीड़ित को मुआवज़े का भुगतान किया जाएगा।

विशेष सहायता:

  • इस संशोधन के तहत बाल कल्याण समिति को यह अधिकार दिया गया है कि समिति अपने विवेक के अनुसार भोजन, कपड़े, परिवहन या पीड़ित की अन्य आकस्मिक ज़रूरतों के लिये उसे विशेष सहायता प्रदान करने के आदेश दे सकती है।
  • इस तरह की आकस्मिक राशि का भुगतान आदेश की प्राप्ति के एक सप्ताह के अंदर पीड़ित को किया जाएगा।  
    • ‘बाल यौन अपराध संरक्षण नियम, 2020’ देशभर में 9 मार्च, 2020 से लागू हो गया है।

बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम के माध्यम से पहली बार ‘पेनीट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट’ (Penetrative Sexual Assault), यौन हमला (Sexual Assault) और यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) को परिभाषित किया गया था। 

  • इस अधिनियम में अपराधों को ऐसी स्थितियों में अधिक गंभीर माना गया है यदि अपराध किसी प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस, सेना आदि के द्वारा किया गया हो।
  • अधिनियम के तहत बच्चों से जुड़े यौन अपराध के मामलों की रोकथाम के साथ ऐसे मामलों में न्यायिक प्रक्रिया में हर स्तर पर विशेष सहयोग प्रदान करने की व्यवस्था की गई है।  
  • साथ ही इस अधिनियम में पीड़ित को चिकित्सीय सहायता और पुनर्वास के लिये मुआवजा प्रदान करने की व्यवस्था भी की गई है।
  • यह अधिनियम लिंग के आधार पर भेदभाव (Gender Discrimination) नहीं करता है।     
  • वर्ष 2019 में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) विधेयक , 2019 के माध्यम से ‘गंभीर पेनेट्रेटिव यौन प्रताड़ना’ (Aggravated penetrative sexual assault) के मामले में मृत्युदंड का प्रावधान किया गया।