नोमा: एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग

प्रिलिम्स के लिये:

उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग, कैंक्रम ऑरिस, गैंग्रीनस स्टामाटाइटिस, नोमा

मेन्स के लिये:

उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग, NTD के प्रभाव, NTD के लिये पहल

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने नोमा (Noma) संबंधी स्वास्थ्य चुनौती का समाधान करने तथा इसके रोकथाम एवं उपचार के लिये संसाधन आवंटित करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हुए इसे अपनी उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों (NTD) की सूची में जोड़ा है।

  • नोमा, जिसे कैंक्रम ऑरिस अथवा गैंग्रीनस स्टामाटाइटिस के रूप में भी जाना जाता है, एक गंभीर गैंग्रीनस बीमारी है जो गरीब समुदायों में 3-10 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रभावित करती है।
    • गैंग्रीन एक खतरनाक तथा संभावित रूप से घातक स्थिति को दर्शाता है जो ऊतक के एक बड़े क्षेत्र में रक्त के प्रवाह बंद होने से होता है।

नोमा क्या है?

  • परिचय:
    • नोमा, ग्रीक शब्द "नोमे" (Nomē) से लिया गया है जिसका अर्थ "भक्षण करना" है तथा यह मुँह एवं मुख के गंभीर गैंग्रीन के रूप में प्रकट होता है।
    • साक्ष्यों के अनुसार नोमा मुँह में पाए जाने वाले बैक्टीरिया के कारण होता है।
    • यह गैर-संक्रामक रोग, लगभग 90% की मृत्यु दर के साथ कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण होती है तथा अत्यधिक गरीबी एवं कुपोषण में हाशिए पर रहने वाले बच्चों के लिये एक गंभीर खतरा पैदा करती है।
    • इसके जोखिम कारकों में अपर्याप्त मौखिक स्वच्छता, कुपोषण, कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली तथा गरीबी शामिल हैं।
  • भौगोलिक वितरण तथा ऐतिहासिक संदर्भ:
    • नोमा विकासशील देशों, विशेषकर उप-सहारा अफ्रीका में प्रचलित है, जो 3-10 वर्ष की आयु के गरीब बच्चों को प्रभावित करता है।
    • विगत डेटा से पता चलता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एकाग्रता शिविरों में नोमा रोग के मामलों की सूचना दी गई थी तथा आर्थिक प्रगति के साथ पश्चिमी विश्व में यह समाप्त हो गई, जो इसकी गरीबी के साथ इसके संबंध को दर्शाती है।
  • परिणाम और उपचार चुनौतियाँ:
    • जीवित बचे लोगों को मुख की विकृति, जबड़े की माँसपेशियों में ऐंठन, मौखिक असंयम तथा वाक् समस्याओं जैसे गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ता है।
    • रोग का शीघ्र पता लगाना आवश्यक है तथा इस रोग के प्रारंभिक चरण में उपचार सबसे प्रभावी होता है।

उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारियाँ (NTDs) क्या हैं?

  • NTD उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में संक्रामक रोग हैं, जो गरीबी और खराब स्वास्थ्य देखभाल की स्थिति में पनपते हैं।
  • वे विभिन्न प्रकार के रोगजनकों, जैसे– वायरस, बैक्टीरिया, प्रोटोज़ोआ और परजीवी कीड़े के कारण होते हैं।
  • "उपेक्षित" शब्द कमज़ोर समुदायों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव के बावजूद ध्यान और संसाधनों की कमी को दर्शाता है।
  • तपेदिक, एचआईवी-एड्स और मलेरिया जैसी बीमारियों की तुलना में इन बीमारियों पर आमतौर पर अनुसंधान तथा उपचार के लिये कम वित्तपोषण मिलता है।

एनटीडी का प्रभाव:

  • वैश्विक परिदृश्यः
    • एनटीडी वैश्विक स्तर पर एक अरब से अधिक लोगों को प्रभावित करता है। वे रोकथाम और उपचार योग्य हैं।
    • 20 एनटीडी हैं जो विश्व भर में 1.7 अरब से अधिक लोगों को प्रभावित करते हैं।
  • भारतीय परिदृश्य
    • इनमें से कम-से-कम 11 बीमारियों का सबसे बड़ा बोझ भारत पर है, जिनमें काला अज़ार और लिम्फैटिक फाइलेरिया जैसी परजीवी बीमारियाँ शामिल हैं, जो पूरे देश में लाखों लोगों को प्रभावित करती हैं, जो अक्सर सबसे गरीब और सबसे कमज़ोर लोग होते हैं।
    • भारत काला-अज़ार को ख़त्म करने के कगार पर है, 99% काला-अज़ार स्थानिक ब्लॉकों ने उन्मूलन लक्ष्य हासिल कर लिया है।

एनटीडी के लिये पहल क्या हैं?

  • वैश्विक पहल:
    • 2021-2030 के लिये WHO का नया रोडमैप:
      • यह संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों के संदर्भ में एनटीडी के खिलाफ लड़ाई में वैश्विक प्रयासों को गति देने के लिये WHO का ब्लूप्रिंट है।
      • ब्लूप्रिंट प्रभाव को मापने और रोग-विशिष्ट योजना तथा प्रोग्रामिंग को बढ़ावा देने की सिफारिश करता है।
    • NTDs पर लंदन उद्घोषणा: इसे NTDs के वैश्विक भार को वहन करने के लिये 30 जनवरी, 2012 को अपनाया गया था।
  • भारतीय पहल:
    • NDTs के उन्मूलन की दिशा में गहन प्रयासों के हिस्से के रूप में वर्ष 2018 में ‘लिम्फेटिक फाइलेरिया रोग के तीव्र उन्मूलन की कार्य-योजना’ (APELF) शुरू की गई थी।
    • वर्ष 2005 में भारत, बांग्लादेश और नेपाल की सरकारों द्वारा सबसे संवेदनशील आबादी के शीघ्र निदान तथा उपचार में तेज़ी लाने एवं रोग निगरानी में सुधार व कालाज़ार को नियंत्रित करने के लिये WHO-समर्थित एक क्षेत्रीय गठबंधन का गठन किया गया है।
      • भारत पहले ही कई अन्य NDTs को समाप्त कर चुका है, जिसमें गिनी वर्म, ट्रेकोमा और यॉज़ शामिल हैं।
    • मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (Mass Drug Administration- MDA) जैसे निवारक तरीकों का उपयोग समय-समय पर स्थानिक क्षेत्रों में किया जाता है, जिसमें जोखिम वाले समुदायों को फाइलेरिया रोधी (Anti-Filaria) दवाएँ मुफ्त प्रदान की जाती हैं।
    • सैंडफ्लाई प्रजनन को रोकने के लिये स्थानिक क्षेत्रों में घरेलू स्तर पर अवशिष्ट छिड़काव जैसे वेक्टर जनित रोकथाम उपाय किये जाते हैं।
    • केंद्र और राज्य सरकारों ने कालाज़ार (Kala-Azar) तथा इसकी अगली कड़ी (ऐसी स्थिति जो पिछली बीमारी या चोट का परिणाम है) से पीड़ित लोगों के लिये वेतन मुआवज़ा योजनाएँ (Wage Compensation Schemes) शुरू की हैं, जिन्हें पोस्ट-कालाज़ार डर्मल लीशमैनियासिस (Post-Kala Azar Dermal Leishmaniasis) के रूप में भी जाना जाता है।