हाथ से मैला ढोने (मैनुअल स्कैवेंजिंग) की प्रथा का उन्मूलन

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में देश में हाथ से मैला ढोने की प्रथा या मैनुअल स्कैवेंजिंग की चुनौतियों और इसके उन्मूलन हेतु सरकार के प्रयासों के साथ इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ:

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा ‘हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013’ में कुछ संशोधन किये जाने का प्रस्ताव किया गया है। गौरतलब है कि केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट को देखने के बाद इस संशोधन को लाने का निर्णय लिया गया । इस रिपोर्ट में शामिल आँकड़ों के अनुसार, पिछले पाँच वर्षों में देश में ‘मैनुअल स्कैवेंजिंग’ (Manual scavenging) के कारण 376 लोगों की मृत्यु हो गई जबकि इसमें से 110 मौतें वर्ष 2019 में ही हुई थी। प्रस्तावित संशोधन के तहत सीवरों और सेप्टिक टैंकों की मशीनीकृत सफाई को अनिवार्य करने का प्रावधान किया गया है, साथ ही इसके उल्लंघन की शिकायत दर्ज कराने के लिये एक 24x7 हेल्पलाइन की स्थापना भी की जाएगी।

हालाँकि एक ऐसी समस्या जिसकी पैठ सामाजिक पदानुक्रम में अत्यधिक गहराई तक बनी हो, उसे समाप्त करने के लिये तकनीकी या कानूनी समाधान पर्याप्त नहीं होंगे।  

‘मैनुअल स्कैवेंजिंग’ (Manual scavenging):

  • मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual scavenging) से आशय किसी व्यक्ति द्वारा बिना किसी विशेष सुरक्षा उपकरण के अपने हाथों से ही मानवीय अपशिष्टों (human excreta) की सफाई करने या ऐसे अपशिष्टों को सर पर ढोने की प्रथा से है। 
  • पूर्व में इसके तहत शुष्क शौचालय से मल मूत्र को हटाने की प्रथा को शामिल किया जाता था।
  • हालाँकि समय के साथ मैनुअल स्कैवेंजिंग का दायरा और भी बढ़ा है, इसके तहत नालियों, सीवर लाइनों, सेप्टिक टैंकों और लैटरीन गड्ढों/ की मैनुअल और असुरक्षित सफाई शामिल है।

मैनुअल स्कैवेंजिंग के विरुद्ध कानूनी प्रावधान और अन्य प्रयास : 

  • वर्ष 1955 के ‘नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955’ (The Protection of Civil Rights Act, 1955) के तहत अस्पृश्यता पर आधारित मैला ढोने या झाड़ू लगाने जैसी  कुप्रथाओं के उन्मूलन की बात कही गई थी।
  • वर्ष 1956 में काका कालेलकर आयोग ने शौचालयों की सफाई के मशीनीकरण की आवश्यकता को रेखांकित किया था।
  • इसके बाद, मलकानी समिति (1957) और पंड्या समिति (1968) दोनों ने भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग की सेवा शर्तों को विनियमित किया गया ।
  • “मैनुअल स्कैवेंजर्स का रोज़गार और शुष्क शौचालय का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993” के तहत  देश में हाथ से मैला ढोने की प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया गया है तथा इसे संज्ञेय अपराध मानते हुए ऐसे मामलों में एक वर्ष तक के कारावास और जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
    • यह अधिनियम देश में शुष्क शौचालयों के निर्माण को भी प्रतिबंधित करता है।
  • मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013के तहत मैनुअल स्कैवेंजिंग को पूरी तरह प्रतिबंधित किया गया है।
    • इसके साथ ही इस अधिनियम के तहत नालियों, सीवर टैंकों, सेप्टिक टैंकों को बिना किसी सुरक्षा उपकरण के मैन्युअल रूप से साफ करने के लिये लोगों को रोज़गार देना या उन्हें इससे जोड़ना एक दंडनीय (कारावास और/या जुर्माना) अपराध है 
    • इस अधिनियम में राज्य सरकारों और नगरपालिका निकायों को हाथ से मैला ढोने वाले लोगों की पहचान कर परिवार सहित उनके पुनर्वास का प्रबंध करने की बात कही गई है।  
    • इस अधिनियम के तहत मैनुअल स्कैवेंजर्स को प्रशिक्षण प्रदान करने, ऋण देने और आवास प्रदान करने की भी व्यवस्था की गई है।
    • इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सीवर की सफाई के दौरान मौत के प्रत्येक मामले में पीड़ित परिवार को मुआवजे के रूप में 10 लाख रुपए की आर्थिक सहायता प्रदान करने का प्रावधान किया गया था। 

भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग की स्थिति :

  • इन कानूनों के लागू होने के बाद भी देश में मैनुअल स्कैवेंजिंग के कारण होने वाली मौतों में कोई कमी नहीं आई है। 
  • वर्ष 2002 में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जारी एक अनुमान के अनुसार, देश में लगभग 79 मिलियन लोग इस कुप्रथा से जुड़े हुए थे।
  • भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा वर्ष 2003 में जारी एक रिपोर्ट में वर्ष 1993 के अधिनियम की असफलताओं को रेखांकित किया गया था। 
  • वर्ष 2018 में मैनुअल स्कैवेंजिंग से जुड़ी मौतों के 68 मामले सामने आए थे जबकि वर्ष 2019 में 61% की वृद्धि के साथ ऐसे मामलों की संख्या बढ़कर 110 तक पहुँच गई।
  • राष्ट्रीय स्तर पर किये गए एक सर्वेक्षण के तहत 31 जनवरी, 2020 तक देश के 18 राज्यों में मैनुअल स्कैवेंजिंग से जुड़े लगभग 48,000 लोगों की पहचान की गई थी
  • वर्ष 2018 के एक सर्वेक्षण के अनुसार, उत्तर प्रदेश राज्य में मैनुअल स्कैवेंजिंग से जुड़े 29,923 लोगों की पहचान की गई थी, जो देश के किसी भी राज्य से अधिक है।   

मैनुअल स्कैवेंजिंग की व्यापकता के कारण:  

  • सामाजिक मुद्दे: 
    • मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा भारत की जाति व्यवस्था से जुड़ी हुई है, जहाँ तथाकथित निचली जातियों से ही इस काम को करने की उम्मीद की जाती है।   

    • हालाँकि कानूनों के माध्यम से रोज़गार के रूप में मैनुअल स्कैवेंजिंग को प्रतिबंधित किया गया है परंतु इसके साथ जुड़ा कलंक और भेदभाव अभी भी जारी है।
    • यह सामाजिक भेदभाव मैनुअल स्कैवेंजिंग को छोड़ चुके श्रमिकों के लिये आजीविका के नए या वैकल्पिक माध्यम प्राप्त करना कठिन बना देता है। ऐसे में लोगों को अपने परिवार के भरण-पोषण के लिये अन्य अवसरों की अनुपस्थिति में एक बार पुनः मैनुअल स्कैवेंजिंग की ओर ही लौटना पड़ता है।
  • सुरक्षा उपकरणों का अभाव: 
    • मैनुअल स्कैवेंजिंग के दौरान मृत्यु के मामलों में वृद्धि का सबसे बड़ा कारण यह है कि अधिकांशतः मैनहोल को साफ कर रहे लोगों के पास पर्याप्त उपकरण और सुरक्षात्मक समान नहीं होते हैं।    
      • इस कार्य में लगे लोग अक्सर बाल्टी, झाड़ू और टोकरी जैसे बुनियादी उपकरणों का ही प्रयोग करते हैं। 
  • उदासीन रवैया: 
    • कई अध्ययनों में राज्य सरकारों द्वारा इस कुप्रथा को समाप्त कर पाने की असफलता को स्वीकार न करना और इसमें सुधार के प्रयासों की कमी को एक बड़ी समस्या बताया है।

    • मैनुअल स्कैवेंजिंग को समाप्त करने हेतु नवीन तकनीकों में निवेश करने और इससे जुड़े श्रमिकों के पुनर्वास की बजाय अधिकांश नगरपालिकाओं द्वारा इस कुप्रथा के वर्तमान में भी जारी रहने से इनकार किया जाता है।      

    • इसके अतिरिक्त समाचारों में अक्सर मैनुअल स्कैवेंजिंग के कारण होने वाली मौतों की खबरें होने के बावजूद भी राज्यों से मैनुअल स्कैवेंजर्स को नियोजित करने के लिये दोषी पाए जाने वाले लोगों पर कार्रवाई की कोई रिपोर्ट नहीं देखने को मिली है।  

  • अनुबंध और आउटसोर्स की समस्या:   
    • कई स्थानीय निकायों द्वारा सीवर सफाई जैसे कार्यों के लिये निजी ठेकेदारों से अनुबंध किया जाता है परंतु इनमें से कई ठेकेदारों या कंपनियों द्वारा महत्त्वपूर्ण नियमों का उल्लंघन किया जाता है और अपने कर्मचारियों की जानकारी को व्यवस्थित रूप से दर्ज नहीं किया जाता।         
      • ऐसे में सफाई के दौरान किसी कर्मचारी की मृत्यु होने पर इन कंपनियों या ठेकेदारों द्वारा मृतक से किसी भी प्रकार का संबंध होने से इनकार कर दिया जाता है।      

आगे की राह: 

  • पहचान और प्रत्यक्ष हस्तक्षेप: केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा ठेकेदारों या नगरपालिकाओं को पैसा देने के बजाय सफाई मशीनों की खरीद के लिये सीधे श्रमिकों को धन मुहैया कराने का फैसला किया है, जो इस चुनौती से निपटने के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
    • इस पहल की सफलता के लिये राज्य सरकारों को जहरीले कीचड़ से भरे गंदे नालों आदि की सफाई में लगे श्रमिकों की सटीक गणना करने की आवश्यकता है।
  • स्थानीय प्रशासन का सशक्तीकरण: 15वें वित्त आयोग द्वारा स्वच्छ भारत मिशन को सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में चिन्हित किये जाने और स्मार्ट सिटीज़ तथा शहरी विकास के लिये उपलब्ध धन मैनुअल स्कैवेंजिंग की समस्या को हल करने के लिये एक मज़बूत अवसर प्रदान करता है।  
    • हालाँकि इसके लिये स्थानीय प्रशासन को सशक्त बनाना बहुत ही आवश्यक होगा, जिससे मशीनीकृत सफाई के लिये धन की कमी एक बाधा न बने।
    • गौरतलब है कि सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधन के माध्यम से अगस्त 2021 तक देश में मैनुअल स्कैवेंजिंग को पूरी तरह समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया है, साथ ही सरकार ने सभी राज्यों को अप्रैल 2021 तक सीवर-सफाई को मशीनीकृत करने के लिये एक ‘चैलेंज’ (Challenge) की शुरुआत की है, इसके तहत विभिन्न श्रेणियों में कुल 52 करोड़ के पुरस्कार वितरित किये जाएंगे।
  • सामाजिक जागरूकता: मैनुअल स्कैवेंजिंग से जुड़े सामाजिक पहलुओं से निपटने से पहले यह स्वीकार किया जाना चाहिये कि आज भी यह कुप्रथा जाति और वर्ण व्यवस्था से जुड़ी हुई है, साथ ही इसके पीछे के कारकों को समझाना भी आवश्यक है।
    • इस कुप्रथा के अंत के लिये लोगों को मैनुअल स्कैवेंजिंग के दौरान मानव अधिकार के घोर उल्लंघन के बारे में लोगों को जागरूक करना बहुत ही आवश्यक है।  
  • सख्त कानूनी प्रावधान:  मैनुअल स्कैवेंजिंग को समाप्त करने से जुड़े पूर्व के प्रयासों से इसके मामलों में कमी आई है परंतु देश के अधिकांश हिस्सों में यह प्रथा अभी भी जारी है, ऐसे में इस समस्या के समाधान हेतु तकनीकी विकल्पों को बढ़ावा दिये जाने के साथ  मैनुअल स्कैवेंजिंग से जुड़े कानूनों को और सख्त किया जाना चाहिये।     

निष्कर्ष:  वर्तमान में मैनुअल स्कैवेंजिंग से जुड़े लोग देश के सबसे गरीब और सबसे वंचित समुदायों में से आते हैं। साथ ही यह कुप्रथा जाति और आर्थिक असमानता  से भी बहुत गहराई तक जुड़ी हुई है जिससे इस समस्या को रोक पाना बहुत कठिन हो गया है। मैनुअल स्कैवेंजिंग को समाप्त करने के लिये तकनीकी विकल्पों को बढ़ावा देने के साथ, सामाजिक जागरूकता और इस पेशे से जुड़े लोगों के पुनर्वास पर विशेष ध्यान देना होगा।

अभ्यास प्रश्न:  मैनुअल स्कैवेंजिंग या मैला ढोने की कुप्रथा एक ऐसी समस्या जिसकी पैठ सामाजिक पदानुक्रम में अत्यधिक गहराई तक बनी हुई है और इसे समाप्त करने के लिये तकनीकी या कानूनी समाधान पर्याप्त नहीं होंगे। चर्चा कीजिये।