बाल मृत्यु दर से संबंधित यूनिसेफ की रिपोर्ट

प्रीलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, ‘लेवल्स एंड ट्रेंड्स इन चाइल्ड मोर्टेलिटी’ नामक रिपोर्ट

मेन्स के लिये:

यूनिसेफ द्वारा जारी ‘लेवल्स एंड ट्रेंड्स इन चाइल्ड मोर्टेलिटी’ नामक रिपोर्ट के आधार पर भारत में बाल मृत्यु दर की स्थिति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children's Fund- UNICEF) ने ‘लेवल्स एंड ट्रेंड्स इन चाइल्ड मोर्टेलिटी’ (Levels and Trends in Child Mortality) नामक रिपोर्ट जारी की है।

रिपोर्ट से संबंधित मुख्य बिंदु:

  • संयुक्त राष्ट्र का ‘इंटर-एजेंसी ग्रुप फॉर चाइल्ड मॉर्टेलिटी एस्टीमेशन’ (The United Nations Inter-agency Group for Child Mortality Estimation- UN IGME) बच्चों और किशोर युवाओं की मृत्यु दर से संबंधित वार्षिक आँकड़े तैयार करता है।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 में वैश्विक रुझानों के विपरीत भारत में 5 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों की मृत्यु दर लड़कों की तुलना में अधिक है।
  • लड़कियों की तुलना में लड़कों की औसतन 5 वर्ष की आयु से पहले मृत्यु की संभावना अधिक होती है परंतु भारत में यह प्रवृत्ति प्रतिबिंबित नहीं होती है।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य:

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 में कम देशों में बाल मृत्यु दर के मामलों में लैंगिक असमानता देखी गई है।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण एशिया और पश्चिम एशिया में स्थित देशों में 5 वर्ष से कम आयु की लड़कियों की मृत्यु का खतरा अधिक रहता है।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 में पूरे विश्व में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की कुल मौतों में से आधी मौतें इन पाँच देशों- भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और इथियोपिया में हुई।
  • विश्व में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की कुल मौतों में से लगभग एक-तिहाई बच्चों की मृत्यु भारत और नाइजीरिया में होती है।
  • पिछले दो दशक में बाल उत्तरजीविता में अच्छी प्रगति के बावजूद वर्ष 2018 में हर पाँच सेकंड में एक बच्चे या किशोर की मृत्यु हुई।
  • वैश्विक स्तर पर वर्ष 2018 में बच्चों और किशोरों की कुल मौतों में से 85% (लगभग 5.3 मिलियन) मौतें जीवन के प्रथम पाँच वर्षों के दौरान हुईं। इनमें से 2.5 मिलियन (47%) मौतें जीवन के प्रथम माह के दौरान, 1.5 मिलियन (29%) मौतें जीवन के प्रथम से ग्यारहवें माह के दौरान, 1.3 मिलियन (29%) मौतें एक से चार वर्ष के दौरान और 0.9 मिलियन मौतें पाँच से ग्यारहवें वर्ष के बीच हुईं।
  • वर्तमान परिदृश्य के अनुसार, वर्ष 2019 से 2030 के बीच 5 से 14 वर्ष आयु वर्ग के लगभग 10 मिलियन और 5 वर्ष से कम उम्र के 52 मिलियन बच्चों की मृत्यु हो जाएगी।

भारतीय परिप्रेक्ष्य:

Wide gap

  • भारत में बाल मृत्यु के अधिकांश मामले नवजात मृत्यु से संबंधित हैं।
  • नवजातों की मृत्यु का कारण समय पूर्व जन्म, अंतर्गर्भाशयी संबंधी घटनाएँ और नवजातों में होने वाला संक्रमण है।
  • नवजात अवधि के बाद होने वाली मौतों का प्रत्यक्ष कारण डायरिया (Diarrhoea) और निमोनिया (Pneumonia) है।
  • भारत में प्रति 1,000 बच्चों के जन्म पर 23 नवजातों की मृत्यु होती है।
  • भारत की नमूना पंजीकरण प्रणाली (Sample Registration System- SRS), 2017 के अनुसार, भारत में उच्चतम नवजात मृत्यु दर वाले राज्य क्रमशः मध्य प्रदेश, ओडिशा और उत्तर प्रदेश हैं, जहाँ प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर क्रमशः 32, 33 और 30 नवजातों की मृत्यु होती है।
  • झारखंड, बिहार और उत्तराखंड में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में सर्वाधिक लैंगिक अंतराल देखा गया।
  • ‘बर्डन ऑफ चाइल्ड मोर्टेलिटी’ (The burden of child mortality) के संदर्भ में उत्तर प्रदेश भारत का सर्वाधिक नवजात मृत्यु दर वाला राज्य है क्योंकि उत्तर प्रदेश में प्रत्येक वर्ष सर्वाधिक बच्चे जन्म लेते हैं तथा सर्वाधिक नवजातों की मृत्यु होती है।
  • बर्डन ऑफ चाइल्ड मोर्टेलिटी को किसी राज्य की मृत्यु दर (बाल मृत्यु दर का अनुपात) और अनुमानित जनसंख्या (वार्षिक जन्मों की कुल संख्या) के आधार पर अनुमानित किया जाता है।

भारत में उचित उपायों को अपनाकर बाल मृत्यु को रोकने के लिये तेज़ी से प्रयास की तत्काल आवश्यकता है। नवजात शिशुओं की मृत्यु को उच्च गुणवत्ता वाली प्रसवपूर्व देखभाल, जन्म के समय कुशल देखभाल, माँ और बच्चे के जन्म के बाद उचित देखभाल से रोका जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू