अफगानिस्तान में संयुक्त कार्रवाई: चीन-पाकिस्तान

प्रिलिम्स के लिये: 

अफगानिस्तान की अवस्थिति 

मेन्स के लिये: 

अफगानिस्तान का भू-राजनीति में महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन और पाकिस्तान ने युद्धग्रस्त देश को आतंकवाद का केंद्र बनने से रोकने के लिये अफगानिस्तान में संयुक्त कार्रवाई शुरू करने का फैसला किया है।

प्रमुख बिंदु

  • संयुक्त कार्रवाई: इसे पाँच क्षेत्रों में रेखांकित किया गया है:
    • युद्ध के विस्तार से बचने और अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर गृहयुद्ध की स्थिति को रोकने के लिये।
    • सरकार और तालिबान के बीच अंतर-अफगान वार्ता को बढ़ावा देना तथा "एक व्यापक एवं समावेशी राजनीतिक संरचना" स्थापित करना।
    • आतंकवादी ताकतों का डटकर मुकाबला करना और अफगानिस्तान में सभी प्रमुख ताकतों को आतंकवाद के खिलाफ एक स्पष्ट रेखा खींचने के लिये प्रेरित करना।
    • अफगानिस्तान के पड़ोसियों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना और उनके बीच सहयोग के लिये एक मंच के निर्माण का पता लगाना।
    • अफगान मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मिलकर काम करना।

आवश्यकता:

  • पाकिस्तान में आतंकवाद:
    • पाकिस्तान, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को लेकर चिंतित है, जो कई सालों से देश के खिलाफ विद्रोह कर रहा है।
  • उइगर उग्रवादियों में वृद्धि:
    • चीन शिनजियांग प्रांत के उइगर उग्रवादियों के फिर से संगठित होने से चिंतित है, जो पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) के तत्वावधान में काम करते हैं, इसे लेकर बीजिंग का आरोप है कि उसके अल-कायदा के साथ संबंध हैं।
      • संयुक्त राष्ट्र की एनालिटिकल सपोर्ट एंड सेंक्शन मॉनीटरिंग टीम की हाल ही में जारी 12वीं रिपोर्ट ने अफगानिस्तान में ईटीआईएम आतंकवादियों की मौजूदगी की पुष्टि की है।
  • आर्थिक हित:
    • अगर अफगानिस्तान में हालात और बिगड़ते हैं तो पाकिस्तान के साथ-साथ चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) भी खतरे में पड़ जाएगा। साथ ही अफगानिस्तान और पाकिस्तान में कई अन्य चीनी परियोजनाओं को भी खतरा होगा।
      • पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के ऊपरी कोहिस्तान ज़िले के दसू इलाके में चीनी इंजीनियरों को ले जा रही एक शटल बस पर हाल ही में एक बम हमला हुआ था, यहाँ एक चीनी कंपनी सिंधु नदी पर 4320 मेगावाट क्षमता का बाँध बना रही है।
      • भारत ने सीपीईसी का विरोध किया है, जो पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर (पीओके) से होकर गुज़रता है, हालाँकि चीन ने परियोजनाओं को आगे बढ़ाया है और पीओके में अपना निवेश बढ़ाया है।
  • अफगानिस्तानी स्थिति की पृष्ठभूमि:
    • 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका में हुए आतंकवादी हमलों (9/11) में लगभग 3,000 लोग मारे गए थे।
      • इस्लामिक आतंकवादी समूह अल-कायदा के प्रमुख ओसामा बिन लादेन को इसके लिये दोषी माना गया।
    • तालिबान, कट्टरपंथी इस्लामवादी, जो उस समय अफगानिस्तान में सक्रिय थे, ने बिन लादेन की रक्षा की और उसे सौंपने से इनकार कर दिया। इसलिये  9/11 के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान (ऑपरेशन एंड्योरिंग फ्रीडम) के खिलाफ हवाई हमले शुरू किये।
    • हमलों के बाद उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) गठबंधन सैनिकों ने अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ युद्ध की घोषणा की।
    • अमेरिका ने तालिबान शासन को उखाड़ फेंका और अफगानिस्तान में एक संक्रमणकालीन सरकार की स्थापना की।
    • जुलाई 2021 में अमेरिकी सैनिकों ने 20 साल के लंबे युद्ध के बाद अफगानिस्तान के सबसे बड़े एयरबेस से देश में अपने सैन्य अभियानों को प्रभावी ढंग से समाप्त करने की घोषणा की।
    • अमेरिका की वापसी ने तालिबान के पक्ष में युद्ध के मैदान में शक्ति संतुलन को बदल दिया है।
  • भारत के हित:
    • निवेश:
      • अफगानिस्तान में अपने अरबों के निवेश की रक्षा करना।
    • तालिबान:
      • भविष्य के तालिबान शासन को पाकिस्तान का मोहरा बनने से रोकना।
    • पाकिस्तान के आतंकी केंद्र:
      • यह सुनिश्चित करना कि पाकिस्तान समर्थित भारत विरोधी आतंकवादी समूहों को तालिबान का समर्थन न मिले।

आगे की राह:

  • भारत की अफगान नीति एक ऐसी स्थिति में हैं; अफगानिस्तान में और उसके आसपास हो रहे 'ग्रेट गेम' में अपनी संपत्ति की सुरक्षा के साथ-साथ प्रासंगिक बने रहने के लिये भारत को अपनी अफगानिस्तान नीति को मौलिक रूप से पुनर्परिभाषित करना होगा।
  • भारत को अपने फैसलों का पुनर्मूल्यांकन करने की ज़रूरत है और अफगानिस्तान के भविष्य के लिये सभी केंद्रीय ताकतों से निपटने हेतु अपने दृष्टिकोण को अधिक सर्वव्यापी बनाना होगा।
  • इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, भारत को अपने राष्ट्रीय हित के मद्देनज़र तालिबान के साथ 'खुली बातचीत' शुरू करनी चाहिये क्योंकि असामंजस्य वाले आधे-अधूरे बैकचैनल परिचर्चाओं का समय समाप्त हो गया है।
  • बदलती राजनीतिक व सुरक्षा स्थिति के लिये भारत को अपनी अधिकतमवादी स्थिति को अपनाने तथा तालिबान के साथ बातचीत शुरू करने के लिये और अधिक खुलेपन की नीति पर विचार करना होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस