क्या मृत्यु दंड : दुष्कर्म की समस्या का हल है?

संदर्भ
दुष्कर्म केवल दंडनीय अपराध ही नहीं होता है बल्कि समाज एवं पीड़ित के लिये पीड़ादायक भी होता है। यह किसी राष्ट्र, उसकी व्यवस्था तथा उस व्यवस्था में आस्था रखने वाली आवाम के लिये लज्जा और गहन व्यथा का भी विषय होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिपरिषद द्वारा ‘क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अध्यादेश’ 2018 को मंज़ूरी प्रदान की। इस अध्यादेश को राष्ट्रपति द्वारा भी स्वीकृति दे दी गई, अब इस अध्यादेश को गजट में अधिसूचना जारी कराकर कानून के तौर लागू किया जा सकता है।

  • हाल में जम्मू कश्मीर के कठुआ में 8 साल की एक बच्ची और गुजरात के सूरत में एक बच्ची की दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई। उत्तर प्रदेश के उन्नाव में भी एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म का मामला सामने आया था। 
  • इसके बाद से देश भर में बहुत से प्रदर्शनों और आंदोलनों का आयोजन किया गया तथा इस संदर्भ में चिंता प्रकट करते हुए गंभीर कार्रवाई की मांग की गई। 

अध्यादेश के क्या-क्या प्रावधान हैं?

  • इस अध्यादेश के मुताबिक, 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने वालों को मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है।
  • दुष्कर्म के मामलों में सात वर्ष के सश्रम कारावास की न्यूनतम सज़ा को बढ़ाकर 10 किया गया है। इसे बढ़ाकर आजीवान कारावास में तब्दील किया जा सकता है। 
  • 16 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ दुष्कर्म के मामलों में न्यूनतम सज़ा को 10 वर्ष से बढ़ाकर 20 वर्ष कर दिया गया है। इसे बढ़ाकर आजीवन कारावास किया जा सकता है।
  • 16 साल से कम उम्र की लड़की से दुष्कर्म के आरोपित या सामूहिक दुष्कर्म के आरोपितों को अग्रिम ज़मानत नहीं दी जाएगी।
  • इतना ही नहीं इनकी ज़मानत पर निर्णय देने से पूर्व न्यायालय को 15 दिन पहले लोक अभियोजक या पीडिता के प्रतिनिधि को नोटिस भेजना होगा।
  • इसके अतिरिक्त अध्यादेश के अंतर्गत दुष्कर्म के मामले में जल्द से जल्द सुनवाई पूरी करने के संबंध में भी व्यवस्था की गई है। ऐसे मामलों में दो महीने के अंदर ट्रायल को पूरा करना होगा।
  • एक तरफ जहाँ दुष्कर्म की फारेंसिक जाँच के लिये सभी पुलिस स्टेशनों और अस्पतालों को विशेष किट उपलब्ध कराई जाएगी, वहीं दूसरी ओर नए फास्ट ट्रैक कोर्ट भी स्थापित किये जाएंगे। इन मामलों में समयबद्ध जाँच के लिये विशेष कर्मचारियों की भी नियुक्ति की जाएगी।
  • साथ ही पीडिता की सहायता के लिये चलाए जा रहे वन स्टाप सेंटरों को देश के सभी ज़िलों में स्थापित किया जाएगा।
  • आपराधिक कानून में संशोधन संबंधी इस अध्यादेश के माध्यम से भारतीय दंड संहिता, साक्ष्य क़ानून, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और लैंगिक अपराधों से बालकों से संरक्षण कानून (यानी पोक्सो एक्ट) में नए प्रावधान लाए जाएंगे, ताकि ऐसे मामलों में दोष साबित होने पर मौत की सज़ा सुनाई जा सके। 

पोक्सो क्या है? 

  • पोक्सो, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act – POCSO) का संक्षिप्त नाम है| 
  • संभवतः मानसिक आयु के आधार पर इस अधिनियम का वयस्क पीड़ितों तक विस्तार करने के लिये उनकी मानसिक क्षमता के निर्धारण की आवश्यकता होगी| 
  • इसके लिये सांविधिक प्रावधानों और नियमों की भी आवश्यकता होगी, जिन्हें विधायिका अकेले ही लागू करने में सक्षम है|

पोक्सो अधिनियम की विशेषताएँ

  • यौन अपराधों से बालकों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम, 2012 अठारह साल से कम आयु के व्यक्तियों, जिनको बालक के रूप में समझा जाता है, के विरूद्ध यौन अपराधों से निपटता है। इस अधिनियम में पहली बार ‘यौन प्रहार’ एवं ‘यौन हमला’ को परिभाषित किया है।
  • यदि किसी पुलिस अधिकारी, लोक सेवक, रिमांड गृह, संरक्षण या प्रेक्षण गृह, जेल, अस्पताल या शैक्षिक संस्था में स्टाफ के किसी सदस्य द्वारा या सशस्त्र अथवा सुरक्षाबलों के किसी सदस्य द्वारा यह अपराध किया जाता है तो उसे और गंभीर माना जाता है।
  • यह अधिनियम यौन हमला, यौन उत्पीड़न एवं अश्लील साहित्य के अपराधों से बच्चों की रक्षा का प्रावधान करने के लिये एक व्यापक कानून है, जबकि लोक अभियोजकों तथा नामोदिष्ट विशेष न्यायालयों की नियुक्ति के माध्यम से अपराधों की रिपोर्टिंग, साक्ष्य की रिकार्डिंग, अन्वेषण एवं त्वरित सनुवाई के लिये बच्चों के अनुकूल तंत्रों को शामिल करके हर चरण पर न्यायिक प्रक्रिया में बच्चों के हितों की रक्षा की गई है।
  • अधिनियम में अपराधों की रिपोर्टिंग, रिकार्डिंग, अन्वेषण एवं सुनवाई के लिये बालोनुकूल प्रक्रियाएं शामिल की गई हैं। अधिनियम में ऐसे अपराधों के लिये कठोर दंड का प्रावधान है जिन्हें अपराध की गंभीरता के अनुसार श्रेणीबद्द किया गया है।
  • पोक्सो अधिनियम की धारा 39 के तहत राज्य सरकारों से बच्चों की मदद के लिये सुनवाई पूर्व एवं सुनवाई चरण के साथ संबद्ध करने के लिये गैर-सरकारी, संगठनों, पेशेवरों एवं विशेषज्ञों या व्यक्तियों के प्रयोग के लिये दिशा-निर्देश तैयार करने की अपेक्षा है।

अधिनियम के उद्देश्य

  • यौन उत्पीड़न से सुरक्षा और बचाव संबंधी बच्चों के अधिकार को सुनिश्चित करना।
  • यौन गतिविधि के लिये लालच या दबाव के प्रति बच्चों की सुरक्षा।
  • बच्चों को वेश्यावृत्ति और अश्लील चित्रण के लिये उत्पीडि़त करने से बचाना।
  • बच्चों के हितों को ऐसे मामलों में गवाही को दर्ज़ करने, मामले की जाँच करने, मुकदमा चलाने और उसकी रिकॉर्डिंग के दौरान कानूनी सुरक्षा प्रदान करना।
  • संवेदनशील और मुकदमे जल्द तय करने के लिये विशेष न्यायालयों का गठन।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • जहाँ तक बच्चों के विरूद्ध यौन हिंसा का प्रश्न है, यह कानून लिंग आधारित नहीं है। उल्लेखनीय है कि पोक्सो अधिनियम में 'बलात्कार' की जगह 'यौन आक्रमण' शब्द का इस्तेमाल किया गया है। 
  • इसकी परिभाषा बहुत विस्तृत है और इसके तहत गैर शीलभंग क्रिया सहित मुख और गुदा यौन तथा योनि, गुदा और शरीर के अन्य छिद्रों में किसी वस्तु के जबरन प्रवेश संबंधी अपराधों को भी रखा गया है। 
  • यदि पीड़ित को गंभीर चोट पहुँचे या अपराध किसी अधिकार सम्पन्न व्यक्ति द्वारा किया गया है तब इन अपराधों को 'गंभीर' अपराध की श्रेणी में रखा गया है।

इस संबंध में देश के किन-किन राज्यों ने बनाए हैं कानून?
मध्य प्रदेश

  • पिछले वर्ष बच्चियों से दुष्कर्म के मामलों में सबसे पहले मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दुष्कर्म के मामलों में दोषियों के खिलाफ बेहद कड़ी सज़ा की पहल की गई। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 12 साल तक की बच्चियों से रेप के मामले में दोषियों के खिलाफ फाँसी की सज़ा का प्रस्ताव पारित किया गया। 
  • इसके साथ ही केबिनेट द्वारा सामूहिक दुष्कर्म के मामले में दोषियों को मौत की सज़ा देने के एक प्रस्ताव को भी पास किया गया।
  • दुष्कर्म के दोषियों के खिलाफ जुर्माने और सज़ा को बढ़ाने के लिये दंड संहिता में संशोधन के प्रस्ताव को भी मंज़ूरी दी गई। 

राजस्थान

  • इसी वर्ष मार्च में नाबालिग से दुष्कर्म के दोषियों को मृत्युदंड देने संबंधी विधेयक को राजस्थान विधानसभा में पारित किया गया। इसके तहत 12 साल तक की उम्र की बालिकाओं के साथ दुष्कर्म के दोषियों के लिये मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है।
  • पारित विधेयक में आईपीसी में 376 क और 376 घघ दो नई धाराएं जोड़ी गई। 376 घ में सामूहिक दुष्कर्म को शामिल किया गया है। अब सामूहिक दुष्कर्म में शामिल हर व्यक्ति को मृत्युदंड देने का प्रावधान निहित किया गया है। 
  • यह विधेयक पारित करने वाला राजस्थान मध्य प्रदेश के बाद दूसरा राज्य बन गया है।

हरियाणा

  • इस वर्ष मार्च में ही हरियाणा में भी ऐसा ही एक बड़ा फैसला लेते हुए 12 साल से कम उम्र की लड़की से दुष्कर्म के दोषी को फाँसी की सज़ा के प्रावधान वाले विधेयक को हरियाणा विधानसभा द्वारा पास कर दिया गया। 
  • इस विधेयक के अनुसार, न्यायालय द्वारा किसी भी आरोपित को 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ दुष्कर्म का दोषी पाने पर मौत की सज़ा सुनाए जाने की व्यवस्था की गई है।
  • सरकार द्वारा महिला अपराधों से संबद्ध भारतीय दंड संहिता के कानून की धारा 376, 376 डी, 354, 354 की धारा 2 में कुछ नई धाराएं भी जोड़ी गई हैं। 

उत्तर प्रदेश

  • नाबालिग से बलात्कार के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भी कठोर कदम उठाए गए हैं। सरकार द्वारा ऐसे मामलों में फाँसी की सज़ा का प्रावधान किया है। 
  • इस बाबत कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा पर अलग-अलग ज़िलों में हुई समीक्षा के बाद यह फैसला लिया गया। 
  • जल्द ही उत्तर प्रदेश में भी नाबालिग से दुष्कर्म पर फाँसी की सज़ा होगी।
  • सरकार विधानसभा में 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से दुष्कर्म के संबंध में फाँसी की सज़ा का प्रस्ताव पास कर इसे स्वीकृति हेतु केंद्र को भेजेगी, मंज़री मिलने के बाद यह कानून के रूप में लागू हो जाएगा।

विश्व के अन्य देशों में बच्चियों के साथ दुष्कर्म की सज़ा क्या है?
विश्व कई देशों में दुष्कर्म के मामलों में अलग-अलग सज़ा का प्रावधान है। ज़्यादातर देशों में इसके लिये मौत की सज़ा की व्यवस्था की गई है। दुनिया में दो तरह के देश हैं। एक वो जहाँ फाँसी की सज़ा का प्रावधान है पर बच्चों के साथ रेप के लिये नहीं। दूसरे वो जहाँ किसी भी अपराध के लिये मौत की सज़ा का प्रावधान नहीं है। जिन देशों में अपराध के लिये मौत की सज़ा का प्रावधान होता है उन देशों को रिटेशनिस्ट देश कहा जाता है। कई रिटेशनिस्ट देशों में भी बच्चों से रेप के लिये फाँसी की सज़ा का प्रावधान नहीं है। हालाँकि, यहाँ बच्चों से यौन हिंसा के लिये कड़ी सज़ा तय की गई है। 

  • सऊदी अरब में किसी भी महिला के साथ दुष्कर्म करने वाले को बड़ी दर्दनाक सज़ा दी जाती है। यहाँ गुनाहार को तब तक पत्थर मारे जाते हैं, जब तक उसकी मृत्यु न हो जाए। 
  • ईरान में बलात्कार पीड़ित महिला को न्याय दिलाने के लिये दोषियों को मौत की सज़ा दिये जाने का प्रावधान है। यहाँ दी जाने वाली मौत की सज़ा में 15 फीसदी मामले बलात्कार के ही होते हैं। हालाँकि ईरान में महिला को मुआवज़े के लिये राजी करने का भी प्रावधान है। 
  • मिस्र में भी दुष्कर्म के दोषियों को मौत की सज़ा देने का प्रावधान है। यहाँ बलात्कार करने वाले दोषियों को फाँसी पर लटका दिया जाता है। 
  • संयुक्त अरब अमीरात में बलात्कार के दोषी को सीधे मौत की सज़ा दी जाती है। ऐसे अपराधियों को महज 7 दिनों के भीतर फाँसी पर लटका दिया जाता है। 
  • उत्तर कोरिया में बलात्कार के अपराधियों के प्रति किसी भी प्रकार की दया या सहानुभूति नहीं दिखाई जाती। यहाँ बलात्कार के लिये मौत की सज़ा का प्रावधान है। दुष्कर्मी के सिर में गोली मारकर उसको मौत दी जाती है। 
  • अफगानिस्तान में इस्लामी कानून का पालन किया जाता है, जिसके अनुसार दुष्कर्मी को महज चार दिनों के अंदर गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया जाता है। 
  • चीन में बलात्कार की सज़ा के तौर पर मौत की सज़ा दी जाती है। यहाँ बलात्कार के दोषियों को सज़ा देने में देरी नहीं की जाती है। 
  • ग्रीस में किसी भी प्रकार के शारीरिक शोषण, यौन उत्पीड़न, जान से मारने की धमकी देकर शारीरिक संबंध बनाने को बलात्कार की श्रेणी में रखा गया है। दोषियों को जेल में बेड़ियों में बाँधकर रखा जाता है।
  • नीदरलैंड में किसी भी प्रकार के यौन उत्पीड़न अथवा जबरन यौन संबंध बनाने को दुष्कर्म माना जाता है। इसके अलावा जबरन चुंबन को भी इसी श्रेणी में रखा गया है। यहाँ इस अपराध के दोषियों को 4 से 15 साल तक की कैद की सज़ा का प्रावधान है।
  • फ्राँस में बलात्कार के आरोपियों को 15 साल की सज़ा का प्रावधान है। अगर पीड़िता की उम्र 15 साल या उससे कम होती है तो आरोपी को 20 साल की सज़ा दिये जाने का प्रावधान है। इसके अलावा किसी भी प्रकार का शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न करने पर आरोपी को आजीवन सज़ा दी जाती है।
  • पोलैंड में बलात्कार के आरोपी को सुअरों से कटवाया जाता है। हालाँकि अब एक नया कानून आ चुका है जिसमें आरोपी को नपुंसक बना दिया जाता है।
  • इंडोनेशिया में बलात्कार के दोषियों को नपुंसक बनाने के साथ उनमें महिलाओं के हॉर्मोन्स डाल दिये जाने का प्रावधान है।
  • पाकिस्तान में पिछले ही साल एक बिल पास किया गया था जिसके तहत दुष्कर्म के दोषी को 25 साल की कैद की सज़ा का प्रावधान किया गया।
  • इसके अलावा नाबालिग बच्चों और मानसिक रूप से विक्षिप्त से दुष्कर्म करने पर दोषी को मौत की सज़ा दिये जाने का प्रावधान है।
  • मलेशिया में बच्चों के साथ होने वाली यौन हिंसा के लिये सबसे ज़्यादा 30 साल जेल और कोड़े मारने की सज़ा का प्रावधान है। 
  • सिंगापुर में चौदह साल के बच्चे के साथ रेप होने पर अपराधी को 20 साल जेल, कोड़े मारने और जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है।
  • अमरीका में बच्चों के साथ रेप के लिये पहले मौत की सज़ा का प्रावधान था, लेकिन कैनेडी बनाम लुइसियाना (2008) मामले में मौत की सज़ा को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया। न्यायालय के अनुसार जिस मामले में मौत नहीं हुई है उसमें मौत की सज़ा देना अनुपाती नहीं है यानी सज़ा जुर्म से ज़्यादा बड़ी है। इसलिये अब उन राज्यों में मौत की सज़ा नहीं है। हालाँकि, अमरीका में बच्चों के साथ रेप के मामले में राज्यों के अनुसार प्रावधान भी अलग-अलग हैं।
  • फ़िलीपींस में बच्चों के साथ रेप पर सबसे सख़्त क़ानून है। यहाँ बच्चों के साथ रेप साबित होने पर दोषी को बिना पैरोल के 40 साल जेल तक की सज़ा हो सकती है।
  • ऑस्ट्रेलिया में बच्चों के बलात्कारी को 15 साल से 25 साल तक की जेल हो सकती है।
  • कनाडा में बच्चों के साथ रेप पर अधिकतम 14 साल जेल की सज़ा हो सकती है। 
  • इंग्लैंड और वेल्स में बच्चों के साथ रेप पर 6 साल से 19 साल की जेल से लेकर आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान है।
  • जर्मनी में बच्चों के साथ दुष्कर्म के बाद मौत पर उम्र कैद की सज़ा है। लेकिन, सिर्फ दुष्कर्म के लिये 10 साल की अधिकतम सज़ा तय की गई है।
  • दक्षिण अफ्रीका में रेप का दोषी पाए जाने पर पहली बार में 15 साल जेल की सज़ा का प्रावधान है। दूसरी बार दोषी पाए जाने पर 20 साल की कैद और तीसरी बार में 25 साल की कैद का प्रावधान है। 
  • न्यूज़ीलैंड में इस तरह के अपराध पर सज़ा 20 साल तक की है। 

बाल अपराधियों को सज़ा

  • एमनेस्टी इंटरनेशनल की 2013 की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में सिर्फ़ आठ देशों में बाल अपराधियों के लिये फाँसी की सज़ा का प्रावधान है। ये देश हैं चीन, नाइज़ीरिया, कांगो, पाकिस्तान, ईरान, सऊदी अरब, यमन और सूडान। 

क्या कड़ी सज़ा से दुष्कर्म के मामले कम होंगे?
पिछले कुछ दिनों में सूरत, कठुआ, उन्नाव, दिल्ली इन शहरों में एक बात आम है, वो ये कि समय, दिन और जगह भले ही अलग हों लेकिन हर जगह कम उम्र की बच्ची के साथ ही दुष्कर्म के मामले सामने आए हैं। हर घटना पिछली घटना से ज़्यादा दर्दनाक और वीभत्स थी। यही कारण है कि भारत में बच्चियों के साथ दुष्कर्म के मामले में फाँसी की सज़ा की मांग तेज़ होती गई, जिसका सार्थक परिणाम भी सामने आया।

  • इसके बावजूद दुष्कर्म के मामलों में फाँसी दिये जाने के संबंध में विचार बँटे हुए हैं। कोई इससे अपराध में कमी होने का तर्क रखता है तो कोई पहले से ही मौजूद क़ानूनों को पर्याप्त बताता है। 
  • समाज को यह संदेश देना आवश्यक है कि इस तरह के कृत्य सभ्य समाज में बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं हैं। 
  • बलात्कार के लिये कारावास और बलात्कार के बाद हत्या के लिये भी आजीवन कारावास का प्रावधान यह संभावना बढ़ा देगा कि अपराधी दोनों ही अपराधों को अंजाम दे दे और ऐसे में यह भी संभावना रहेगी कि उसका अपराध कभी सामने ही न आए। 
  • आधी से अधिक दुनिया इसका समर्थन करती है।

इस निर्णय के पक्ष में तर्क

  • राष्ट्रीय महिला आयोग ने बच्चों के साथ दुष्कर्म के दोषियों के लिये मौत की सज़ा के प्रस्ताव का स्वागत किया है। ये बहुत ज़रूरी है कि लोग इस बात से डरें कि अगर वे ऐसा करते हैं तो उन्हें इसकी कड़ी सज़ा, यहाँ तक कि फाँसी भी मिल सकती है। हालाँकि इसके लिये अधिक आवश्यक यह है कि इन कानूनों को कड़ाई से लागू किया जाना चाहिये।
  • जहाँ तक बात है पोक्सो एक्ट में बदलाव की तो इसके अंतर्गत 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' मामले में ही फाँसी की सज़ा हो सकती है। बच्चों के साथ दुष्कर्म के मामले पोक्सो एक्ट के तहत ही दर्ज़ किये जाते हैं।
  • इस क़ानून में फ़िलहाल बच्चों के साथ दुष्कर्म के दोषियों के लिये 10 साल से लेकर आजीवन उम्रक़ैद तक की सज़ा का प्रावधान है।

मृत्युदंड के विपक्ष में तर्क

  • ऐसे कोई भी प्रमाण नहीं हैं जिनसे ये निर्धारित किया जा सके कि मृत्युदंड से बलात्कार और हत्या जैसे अपराधों की संख्या में कमी आई है। 
  • विश्व के ज़्यादातर राष्ट्रों ने मृत्युदंड का प्रावधान अपनी न्यायिक व्यवस्था से हटा दिया है।
  • मृत्युदंड, प्रतिशोध का एक कृत्य मात्र है, जबकि सभ्य समाजों में दंड का उद्देश्य सुधार या अपराध का निवारण होता है।
  • “प्राण के बदले प्राण”, गांधीजी के उस कथन की भाँति ही है जिसमे वे कहते हैं कि “ आँख के बदले आँख की नीति सारे संसार को अंधा बना देगी”।

इस निर्णय के विपक्ष में तर्क

  • इस संबंध में विशेषज्ञों का मानना यह है कि ऐसे मामलों में जहाँ दोष साबित कर पाना कठिन होता है, में सज़ा की व्यवस्था करना काफी मुश्किल साबित होगा। 
  • आँकड़ों के अनुसार, बच्चों के साथ यौन हिंसा के अधिकतर मामलों में उनके अपने लोग ही शामिल होते हैं, इस कारण उनके ख़िलाफ़ शिकायत करने में हिचक होती है। मौत की सज़ा का प्रावधान होने पर और कम लोग सामने आएंगे।
  • ऐसे में पोक्सो में प्रस्तावित संशोधन के बाद संभव है कि परिवार वाले अथवा स्वयं पीड़िता ऐसे मामलों में सामने न आए। 
  • साथ ही बच्चियों के साथ दुष्कर्म के मामले में फाँसी की सज़ा होने पर हर दोषी घटना के बाद बच्ची की हत्या करने का प्रयास करेगा, ताकि न तो सबूत रहे और न ही अपराध सिद्ध हो पाए। 
  • स्पष्ट रूप से दुष्कर्म रोकने के लिये सबसे ज़रूरी यह है कि समाज के पितृसत्तात्मक ढाँचे में परिवर्तन किया जाए।
  • यदि किसी व्यक्ति ने बलात्कार और हत्या का जघन्य अपराध किया है, परंतु क्या उसे फाँसी दे देना न्याय को सुनिश्चित करता है? क्या यह उचित होगा कि मानसिक कुंठा और विकृति में किये गए अपराध के बदले एक सभ्य समाज अपराधी के साथ भी वही व्यवहार करे जो उस अपराधी ने पीड़ित के साथ किया?

जे. एस. वर्मा समिति की सिफारिशें

  • 16 दिसंबर, 2013 को हुए गैंगरेप के बाद केंद्र ने यौन अपराधियों के लिये सख्त सज़ा का प्रवाधान करते हुए देश में बलात्कार कानूनों में व्यापक बदलाव किये। लेकिन इस घटना के पाँच साल बाद भी यौन अपराध एक बड़ी समस्या बने हुए हैं, इस संबंध में अधिक जानकारी के लिये एनसीआरबी द्वारा प्रदत्त आँकड़ों का अवलोकन करना बेहद ज़रूरी हो गया है।
  • 2013 में, संसद ने आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम [Criminal Law (Amendment) Act] पारित किया, जिसके अंतर्गत बलात्कार की परिभाषा को और अधिक विस्तृत कर दिया गया और कड़ी सज़ा की व्यवस्था की गई।
  • यह अधिनियम 2 अप्रैल, 2013 को लागू हुआ, इसके अंतर्गत न केवल यौन अपराधिक मामलों में जेल की अवधि में वृद्धि की गई बल्कि बलात्कार के मामलों में मृत्युदंड की भी व्यवस्था की गई।
  • न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति की सिफारिशों पर इन सुधारों को शामिल किया गया, आपराधिक कानून में संभावित संशोधनों के लिये तीन प्रख्यात न्यायविदों की समिति का गठन किया गया था ताकि अपराधियों, महिलाओं के खिलाफ जघन्य यौन उत्पीड़ण जैसे अपराधों के अभियुक्तों की सज़ा को बढ़ाया जा सके और इन मामलों में मुकदमों की शीघ्र सुनवाई की जा सके। 
  • इस समिति की अध्यक्षता भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे.एस. वर्मा द्वारा की गई।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत बहुत से अपराधों को शामिल किया गया जैसे कि एसिड हमले, यौन उत्पीड़न, किसी महिला को निवस्त्र करने की इच्छा से उसके साथ मार-पीट करना अथवा आपराधिक बल का उपयोग करना, ताक-झाँक करना और स्टाकिंग अर्थात् पीछा करना।
  • इसके तहत गैंगरेप के मामले में 20 वर्ष की सज़ा का प्रवधान किया गया, जिसे बढ़ाकर आजीवन कारावास किया जा सकता है।
  • इससे पहले  अपराधों के लिये कानून में कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं था जैसे अवांछित शारीरिक संपर्क, शब्दों या इशारों, यौन पक्षों के लिये अनुरोध या मांग करने, किसी महिला की इच्छा के खिलाफ अश्लील साहित्य दिखाने अथवा यौन टिप्पणी करने आदि को विशिष्ट अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं किया गया था।

’मनोधैर्य योजना’’

  • महाराष्ट्र सरकार ने बलात्कार और तेजाब हमलों की शिकार महिलाओं के लिये ‘’मनोधैर्य योजना’’ शुरू की है जिसके तहत प्राथमिकी दर्ज होने के कुछ ही सप्ताह के भीतर मुआवज़ा दे दिया जाता है। 
  • इस योजना के तहत सुनवाई के दौरान कानूनी मदद भी उपलब्ध कराई जाती है।
  • लेकिन इस कानून में इन अपराधों और इनके लिये आवंटित सज़ा को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया।
  • इसी तरह स्टाकिंग को भी एक दंडनीय अपराध मानते हुए तीन साल की सज़ा की व्यवस्था की गई। इसी प्रकार एसिड हमले के लिये 10 साल की सज़ा के दी गई।

एनसीआरबी (National Crime Records Bureau - NCRB)  द्वारा प्रद्दत आँकड़ों का अवलोकन
हालाँकि इन कड़े कानूनों को अपराधों के संबंध में एक निवारक के रूप में कार्य करना चाहिये था, लेकिन राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के नवीनतम आँकड़े एक अलग ही कहानी बयाँ करते हैं।

सभी यौन आपराधिक मामलों में उच्च निर्दोष दर


यदि इन सभी रक्षात्मक उपायों का कड़ाई से पालन किया जाता है तो पीड़ित या पीड़िता के लिये जाँच और सुनवाई एक डरावना अनुभव नहीं होगी और इससे पीड़ित या पीड़िता की गरिमा को भी कायम रखा जा सकता है।

प्रश्न: दिनोंदिन बढ़ती दुष्कर्म की घटनाओं ने जहाँ एक ओर महिलाओं की सुरक्षा केप्रति चिंता को बढ़ावा दिया है वहीं दूसरी ओर शासन व्यवस्था को भी संदेह के दायरे में ला खड़ा किया है। इस संदर्भ में न्यायालय का यह कदम कितना उचित एवं प्रभावी सिद्ध होगा, विवेचना कीजिये। साथ ही इस मुद्दे के नैतिक पक्षों का भी संक्षेप में विवरण प्रस्तुत करें।

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⇒ प्रश्न : कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा के संदर्भ में विशाखा दिशा-निर्देशों को मील का पत्थर माना जाता है| इस कथन के आलोक में विशाखा दिशा-निर्देशों एवं उनके महत्त्व को स्पष्ट कीजिये|

⇒ प्रश्न : हमें देश में महिलाओं के प्रति यौन-उत्पीड़न के बढ़ते हुए दृष्टांत दिखाई दे रहे हैं। इस कुकृत्य के विरुद्ध विद्यमान विधिक उपबंधों के होते हुए भी,ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस संकट से निपटने के लिये कुछ नवाचारी उपाय सुझाइये।

⇒ कार्यस्थल पर यौन शोषण संबंधी शिकायतों को दर्ज़ करने हेतु लाया गया - शी-बॉक्स