ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये पहल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice and Empowerment) ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये राष्ट्रीय पोर्टल को लॉन्च किया साथ ही ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये गरिमा गृह (ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये आश्रय गृह) का उद्घाटन भी किया।

प्रमुख बिंदु

  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये राष्ट्रीय पोर्टल:
    • इसे ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020  के तहत बनाया गया है।
    • यह पोर्टल देश में कहीं से भी एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को प्रमाण पत्र और पहचान पत्र के लिये डिजिटल रूप से आवेदन करने में मदद करेगा।
    • यह पोर्टल उन्हें आवेदन, अस्वीकृति, शिकायत निवारण आदि की स्थिति को ट्रैक करने में मदद करेगा, जो प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
    • जारी करने वाले अधिकारी भी आवेदनों को संसाधित करने और बिना किसी आवश्यक देरी के प्रमाण पत्र तथा पहचान पत्र जारी करने के लिये सख्त समय-सीमा के तहत आते हैं।
  • गरिमा गृह:
    • गुजरात के वडोदरा में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये एक आश्रय स्थल गरिमा गृह का उद्घाटन किया गया है।
    •  यह लक्ष्या ट्रस्ट के सहयोग से चलाया जाएगा जो पूरी तरह से ट्रांसजेंडरों द्वारा संचालित एक समुदाय आधारित संगठन है।
    • आश्रय स्थल का उद्देश्य ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आश्रय प्रदान करना है, जिसमें आश्रय, भोजन, चिकित्सा देखभाल और मनोरंजन जैसी बुनियादी सुविधाएँ हैं। इसके अलावा, यह समुदाय में व्यक्तियों के क्षमता-निर्माण/कौशल विकास के लिये सहायता प्रदान करेगा जो उन्हें सम्मान का जीवन जीने में सक्षम बनाएगा।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020:
    • ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 (Transgender Persons (Protection of Rights) Act, 2019) को संसद द्वारा वर्ष 2019 में पारित किया गया था।
    • केंद्र सरकार के इस अधिनियम में ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों के लिये सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक सशक्तीकरण की दिशा में एक मज़बूत कार्य प्रणाली उपलब्ध कराने के प्रावधान शामिल किये गए हैं।
    • ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम,2019, ट्रांसजेंडर व्यक्ति को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जिसका लिंग जन्म के समय निर्धारित लिंग से मेल नहीं खाता है।
  • पृष्ठभूमि:
  • वर्ष 2014 में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ के मामले में एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों और उनकी लैंगिक पहचान के बारे में निर्णय लेने के उनके अधिकार को मान्यता दी।।
  • इस निर्णय ने नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में ट्रांसजेंडरों के लिये आरक्षण की सिफारिश की तथा सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी (Sex Reassignment Surgery) के बिना स्वयं के कथित लिंग की पहचान का अधिकार प्रदान किया।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से संबंधित कानून की मुख्य विशेषताएँ:

  • परिभाषा:
    • ट्रांसजेंडर व्यक्ति वह व्यक्ति है जिसका लिंग जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाता। इसमें ट्रांस-मेन (परा-पुरुष) और ट्रांस-वूमेन (परा-स्त्री), इंटरसेक्स भिन्नताओं और जेंडर क्वीर (Queer) आते हैं। इसमें सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति, जैसे किन्नर-हिजड़ा भी शामिल हैं।
  • गैर भेदभाव:
    • इसमें ट्रांसजेंडर व्यक्ति के साथ होने वाले भेदभाव को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया है, जिसमें निम्नलिखित के संबंध में सेवा प्रदान करने से इनकार करना या अनुचित व्यवहार करना शामिल है: (1) शिक्षा (2) रोज़गार (3) स्वास्थ्य सेवा (4) सार्वजनिक स्तर पर उपलब्ध उत्पादों, सुविधाओं और अवसरों तक पहुँच एवं उनका उपभोग (5) कहीं आने-जाने (Movement) का अधिकार (6) किसी मकान में निवास करने, उसे किराये पर लेने और स्वामित्व हासिल करने का अधिकार (7) सार्वजनिक या निजी पद ग्रहण करने का अवसर।
  • पहचान का प्रमाण पत्र:
    • एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति ज़िला मजिस्ट्रेट को आवेदन कर सकता है कि ट्रांसजेंडर के रूप में उसकी पहचान से जुड़ा सर्टिफिकेट जारी किया जाए।
    • यदि ट्रांसजेंडर व्यक्ति लिंग परिवर्तन के लिये एक पुरुष या महिला के रूप में चिकित्सा हस्तक्षेप (सर्जरी) से गुजरता है तब एक संशोधित पहचान प्रमाण पत्र के लिये उसे संबंधित अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक या मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा जारी प्रमाण पत्र के साथ ज़िला मजिस्ट्रेट को आवेदन करना होगा।
  • समान अवसर नीति:
    • प्रत्येक प्रतिष्ठान को कानून के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये समान अवसर नीति तैयार करने के लिये बाध्य किया गया है।
    • इससे समावेशी प्रतिष्ठान बनाने में मदद मिलेगी, जैसे कि समावेशी शिक्षा।
    • समावेश की प्रक्रिया के लिये अस्पतालों और वॉशरूम (यूनिसेक्स शौचालय) में अलग-अलग वार्डों जैसी बुनियादी सुविधाओं के निर्माण की भी आवश्यकता होती है।
  • शिकायत अधिकारी:
    • प्रत्येक प्रतिष्ठान को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की शिकायतों को सुनाने के लिये एक व्यक्ति को शिकायत अधिकारी के रूप में नामित करने के लिये बाध्य किया गया है।
  • ट्रांसजेंडर संरक्षण सेल:
    • प्रत्येक राज्य सरकार को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ अपराध की निगरानी के लिये ज़िला पुलिस महानिदेशक और पुलिस महानिदेशक के तहत एक ट्रांसजेंडर संरक्षण सेल का गठन करना होगा।
  • कल्याणकारी योजनाएँ:
    • सरकार समाज में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के पूर्ण समावेश और भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिये कदम उठाएगी।
    • वह ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के बचाव एवं पुनर्वास तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं स्वरोजगार के लिये कदम उठाएगी, ट्रांसजेंडर संवेदी योजनाओं का सृजन करेगी और सांस्कृतिक क्रियाकलापों में उनकी भागीदारी को बढ़ावा देगी।
  • चिकित्सा देखभाल सुविधाएं:
    • सरकार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिये कदम उठाएगी जिसमें अलग एचआईवी सर्विलांस सेंटर, सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी इत्यादि शामिल है। 
    • सरकार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के स्वास्थ्य से जुड़े मामलों को संबोधित करने के लिये चिकित्सा पाठ्यक्रम की समीक्षा करेगी और उन्हें समग्र चिकित्सा बीमा योजनाएँ प्रदान करेगी।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये राष्ट्रीय परिषद:
    • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के संबंध में नीतियाँ, विधान और योजनाएँ बनाने एवं उनका निरीक्षण करने के लिये राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर परिषद (National Transgender Council) केंद्र सरकार को सलाह प्रदान करेगी।
    •  यह ट्रांसजेंडर लोगों की शिकायतों का निवारण भी करेगी।
  • अपराध और जुर्माना:
    • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से भीख मंगवाना, बलपूर्वक या बंधुआ मज़दूरी करवाना (इसमें सार्वजनिक उद्देश्य के लिये अनिवार्य सरकारी सेवा शामिल नहीं है),  सार्वजनिक स्थान का प्रयोग करने से रोकना, परिवार, गाँव इत्यादि में निवास करने से रोकना, और  उनका शारीरिक, यौन, मौखिक, भावनात्मक तथा आर्थिक उत्पीड़न करने को अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
    • इन अपराधों के लिये छह महीने और दो वर्ष की सजा का प्रावधान है साथ ही जुर्माना भी भरना पड़ सकता है।

स्रोत: पीआईबी