भारत की खराब पर्यटन क्षमता

संदर्भ
गौरतलब है कि पिछले सप्ताह विश्व आर्थिक फोरम (World Economic Forum’s - WEF) द्वारा जारी किये गए यात्रा और पर्यटन प्रतिस्पर्धी सूचकांक (travel and tourism competitiveness index) में भारत की रैंकिंग में 12 अंकों का सुधार हुआ है| वर्तमान में वैश्विक रूप से विश्व के 136 राष्ट्रों में भारत का स्थान 40वाँ है| इस रिपोर्ट में यह भी दर्शाया गया है कि यह किसी भी देश द्वारा उसकी रैंकिंग में किया गया सर्वोत्तम सुधार है| वस्तुतः इस सुधार का मुख्य कारण देश की प्रचुर, विविध सांस्कृतिक धरोहर और प्राकृतिक सुन्दरता है जो कि भारत को एशियाई देशों के यात्रा और पर्यटन का प्रतिनिधित्व करने वाला एक प्रमुख देश बनाती है| 

क्या भारत एशियाई देशों का प्रतिनिधित्व भलीभाँति कर पाएगा?

पर्यटकों के दृष्टिकोण से

  • भारतीय पर्यटन मंत्रालय के अनुसार, भारत में वर्ष 2000 (2.65 मिलियन पर्यटक) की तुलना में पिछले वर्ष 8.89 पर्यटकों का आगमन हुआ|
  • परन्तु, जब इसकी तुलना अन्य देशों के साथ की गई तो भारत का प्रदर्शन काफी निराशाजनक दर्ज किया गया| उदाहरण के लिये, यद्यपि पिछले वर्ष भारत में अत्यधिक पर्यटकों  का आगमन हुआ था तथापि अभी भी यह फ्रांस की बराबरी नहीं कर पाया है| 
  • फ्रांस को विदेशी पर्यटकों के आगमन से सम्बन्धित सूची में 84.5 मिलियन पर्यटकों के साथ प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है| इस सूची में अमेरिका (77.5 मिलियन) को दूसरा तथा स्पेन (68.2 मिलियन), चीन (56.9 मिलियन) और इटली (50.7 मिलियन) को क्रमशः तीसरा, चौथा और पाँचवा स्थान प्राप्त हुआ है|
  • इस सूची में यूरोपीय देश फ्रांस को प्राप्त सफलता का वर्णन शेंगेन समझौते (Schengen agreement) के आधार पर किया जा सकता है| इस समझौते के सदस्य राष्ट्रों के नागरिकों को अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार मुक्त आवागमन की सुविधा प्राप्त है| 
  • इसी तरह अमेरिका पहले से ही यूरोपीय संघ के अधिकतर देशों के साथ वीज़ा छूट समझौता (visa-waiver agreement) के अंतर्गत हस्ताक्षरित है| यही कारण है कि अन्य देशों की अपेक्षा यूरोप में अत्यधिक पर्यटकों का आगमन होता है|
  • परन्तु, यदि गैर-शेंगेन समझौता वाले देशों जैसे- चीन, तुर्की (2015 में 39.4 मिलियन पर्यटक), मेक्सिको (32.1 मिलियन), रूस (31.3 मिलियन) की बात की जाए तो इनमें भी भारत की तुलना में अधिक पर्यटकों का आगमन हुआ है|

पर्यटन से प्राप्त मुद्रा के दृष्टिकोण से

  • उल्लेखनीय है कि पर्यटन के क्षेत्र से भारत को प्राप्त होने वाली विदेशी मुद्रा का स्वरूप भी कुछ इसी प्रकार का है| उदाहरण के लिये, वर्ष 2015 में अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन से भारत को 23 बिलियन डॉलर राजस्व की प्राप्ति हुई है| हालाँकि वर्ष 2000 में अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन से प्राप्त भारत का राजस्व 3.5 बिलियन डॉलर था|
  • हालाँकि अमेरिका और चीन को वर्ष 2015 में अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन से प्राप्त आय क्रमशः 204.5 बिलियन डॉलर एवं 114.1 बिलियन डॉलर थी| स्पष्ट है कि भारत की मात्र 23 मिलियन डॉलर की आय उक्त सन्दर्भ में भारत के निराशाजनक प्रतिनिधित्व का प्रदर्शन करती है|

इसका सकारात्मक पक्ष

  • हालाँकि यहाँ एक और बात पर विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है वह यह कि ये सभी संख्याएँ यह प्रदर्शित करती हैं कि पर्यटकों से भारत को प्राप्त सम्पूर्ण राजस्व बहुत कम है परन्तु फिर भी भारत को प्राप्त प्रति पर्यटक औसत राजस्व अन्य देशों की अपेक्षा काफी अधिक है|
  • उदाहरण के लिये, जहाँ एक ओर एक औसत पर्यटक अमेरिका में 2,639 डॉलर खर्च करता है वहीं दूसरी ओर इसकी तुलना में वह भारत में 2,610 डॉलर खर्च करता है| इसी भाँति चीन में यही राशि 2,005 डॉलर है, वही फ्रांस में प्रति पर्यटक 543 डॉलर खर्च होता है| यही स्थिति अन्य यूरोपीय देशों की भी है|
  • इसका तात्पर्य यह है कि फ्रांस में शेंगेन समझौते के कारण बड़ी संख्या में पर्यटकों की आवाजाही तो अवश्य होती है परन्तु, वे वहाँ आकर अपेक्षाकृत कम ही व्यय करते हैं| 
  • इसके विपरीत, जब कोई भी जर्मन या फ्रेंच पर्यटक अवकाश पर भारत आता है तो वह अन्य देशों की अपेक्षा यहाँ अधिक लम्बे समय तक रुकता है और अधिक व्यय भी करता है|

नकारात्मक पक्ष

  • हालाँकि यदि इस संबंध में गहराई से विचार किये जाए तो हम पाएँगे कि भारत के लिये यह कोई सफलता नहीं है बल्कि यह एक खोये हुए अवसर का संकेत है| यह सच है कि जब विदेशी पर्यटक भारत में होते हैं तो वे व्यय करते हैं परन्तु यह भी उतना ही सच है  कि वे यहाँ पर्याप्त संख्या में आते ही नहीं हैं|
  • वस्तुतः ऐसा होने के बहुत से कारण है जिनके संबंध में गंभीर चिंतन करने के उपरांत कुछ प्रश्न इस समस्या के केंद्र में खड़े नज़र आते है| यथा; क्या भारत की बुनियादी समस्याओं (जैसे बोझिल वीज़ा नियमों, खराब यात्रा अवसंरचना, जगह-जगह फैली गन्दगी, कानूनी प्रवर्तन प्रणाली का बिखरता स्वरूप, महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित चिंताएँ) के कारण ही यहाँ विदेशी पर्यटकों का आवागमन कम होता है?
  • कहीं ऐसा तो नहीं कि इन सभी मामलों के मद्देनज़र ही भारत को विश्व आर्थिक फोरम सूचकांक में एक खराब रैंकिंग प्राप्त हुई है| कहना मुश्किल है|
  • फाइव स्टार रूपी विलासितापूर्ण जगह (जहाँ एक पर्यटक से ही उच्च राजस्व प्राप्त होता है) का चुनाव पर्यटक इसी आधार पर करते हैं ताकि वे भारत की इन सभी समस्याओं से अपना बचाव कर सकें परन्तु, इसके बावजूद भी वे इन समस्याओं से पूर्णतः छुटकारा नहीं पा सकते हैं| इत्यादि ऐसे बहुत से प्रश्न है जो इस संबंध में सोचने एवं अपनी नीतियों का पुर्नवलोकन करने को मज़बूर करते है|
  • वास्तव में भारत के लिये एक चुनौती यह भी है कि इसे अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों के बदलते व्यवहार के लिये स्वयं को तैयार करना होगा|

वर्तमान परिदृश्य

  • विश्व आर्थिक फोरम के अनुसार, विदेश यात्रा अब कोई ऐसी विलासिता की बात नहीं रह गई है कि जिसका आनंद केवल पश्चिमी लोग ही उठा सकते हैं|
  • वस्तुतः एक देश से दूसरे देश के मध्य होने वाले व्यापारिक प्रबंधों की घटती दरों एवं विश्व में तेज़ी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के कारण मध्यम वर्ग में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई हैं|
  • इसका सीधा सा अर्थ यह है कि उत्तरी अमेरिका और यूरोप (जो कि अभी तक यात्रा बाज़ारों पर हावी थे) ने अफ्रीका, एशिया और मध्य पूर्व में भी अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन को बढ़ावा दिया है, इसका बेहतर ढंग से प्रसार किया है|
  • वर्तमान में भारत में आने वाले पर्यटकों में सर्वाधिक संख्या अमेरिकी पर्यटकों की है| इसके पश्चात् इस सूची में दूसरा स्थान बांग्लादेश का है| 
  • यदि क्षेत्रीय स्तर पर देखा जाए तो भारत में आने वाले विदेशों पर्यटकों का एक बड़ा हिस्सा (वर्ष 2015 में क्रमशः 23.42% एवं 18.62%) पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका से है| इसमें भी 24.25% के साथ दक्षिण एशिया शीर्ष स्थान पर है|
  • इस सबमें सबसे चिंताजनक बात यह है कि वैसे न्य क्षेत्र जिनसे भविष्य में पर्यटकों के आने की सम्भावना सबसे अधिक है वे भारत को कोई विशेष तवज्जो ही नहीं देते है|
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2015 में भारत के केवल 8.72% विदेशी पर्यटक ही दक्षिण-पूर्व एशिया से थे जबकि इसमें पूर्वी एशिया, पश्चिमी एशिया, पूर्वी यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और मध्य एवं दक्षिण अमेरिका का योगदान क्रमशः 6.92%, 5.20%, 4.12%, 3.89%, 3.66% तथा 0.88% था|

निष्कर्ष
स्पष्ट है कि यदि तेज़ी से बदलते इस परिदृश्य में भारत अपना एक मुख्य स्थान सुनिश्चित करना चाहता है तो उसे विदेशी पर्यटकों को लुभाने वाली नीतियों का अनुपालन करना होगा| साथ ही भारत को अपनी वीज़ा नीतियों को सरल बनाने के साथ-साथ देश की बुनियादी समस्याओं के संबंध में भी गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है ताकि इस संबंध में विशेष कदम उठाए जा सकें और देश के विकास एवं आय में उल्लेखनीय वृद्धि की राह भी सुनिश्चित की जा सकें|