इलेक्ट्रॉनिक एवं प्लास्टिक कचरा एक अभिशाप

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने ज़िनेवा में आयोजित बासेल अभिसमय (Basel Convention)  में एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें यह कहा गया कि विकसित देशों को अपने इलेक्ट्रॉनिक और प्लास्टिक कचरे (Electronic and Plastic Wastes) को विकासशील देशों में निर्यात करने से रोका जाना चाहिये, लेकिन यह प्रस्ताव पास नहीं हो सका।

प्रमुख बिंदु

  • बासेल  की 14वीं बैठक में 187 देशों के सदस्यों ने भाग लिया दो सप्ताह के विचार-विमर्श के बाद यह 10 मई, 2019 को ज़िनेवा में संपन्न हुई। इसका उद्देश्य खतरनाक कचरे के संबंध में  दिशा-निर्देश जारी करना था।
  • बैठक का एक महत्त्वपूर्ण परिणाम बासेल अभिसमय (Basel Convention) का संशोधन था जिसमें प्लास्टिक कचरे को कानूनी रूप से बाध्यकारी ढाँचे में शामिल किये जाने का प्रावधान किया गया। यह प्लास्टिक कचरे के वैश्विक व्यापार को अधिक पारदर्शी बनाने के साथ ही बेहतर ढंग से विनियमित करेगा। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया कि इसका प्रबंधन मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये अधिक सुरक्षित हो।
  • हालाँकि यह देशों द्वारा प्लास्टिक कचरे की विभिन्न श्रेणियों के निर्यात पर रोक नहीं लगा  सकता है।
  • प्लास्टिक कचरे से होने वाला प्रदूषण वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख पर्यावरणीय समस्या है, विश्व भर के समुद्रों में लगभग 100 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा एकत्रित है जिसका 80-90%  भाग भूमि-आधारित स्रोतों का परिणाम है।

नोट- वर्तमान में भारत ने इलेक्ट्रॉनिक और प्लास्टिक कचरे के आयात को प्रतिबंधित कर रखा है।

बासेल अभिसमय  (Basel Convention)

  • 22 मार्च, 1989 का प्लेनिपोटेंटियरीज का सम्मेलन (Conference of Plenipotentiaries) जो बासेल (स्विट्ज़रलैंड)  में आयोजित हुआ था, के अंतर्गत  देशों के मध्य खतरनाक कचरे के आदान-प्रदान को रोकना और इसके निराकरण के प्रयास करना था। इसे बासेल अभिसमय (Basel Convention)  के रूप में जाना जाता है और यह 1992 में लागू हुई।
  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसका लक्ष्य विभिन्न देशों के मध्य खतरनाक कचरे के आदान-प्रदान को रोकना है और इसका मुख्य फोकस (केंद्र-बिंदु)  विकसित देशों और विकासशील देशों के मध्य खतरनाक कचरे के आयात-निर्यात को बाधित करना है।
  • यह संधि देशों के मध्य आपसी सहयोग एवं बासेल अभिसमय (Basel Convention) के निर्देशों के क्रियान्वयन संबंधी जानकारियों को साझा करने का भी आदेश देती है।

इलेक्ट्रॉनिक और प्लास्टिक कचरा क्या है ?

  • जैसे-जैसे देश में डिजिटलाइज़ेशन बढ़ा है, उसी अनुपात में ई-कचरा भी बढ़ा है। इसकी उत्पत्ति के प्रमुख कारकों में तकनीक तथा मनुष्य की जीवन शैली में आने वाले बदलाव शामिल हैं।
  • कंप्यूटर तथा उससे संबंधित अन्य उपकरण और टी.वी., वाशिंग मशीन व फ्रिज़ जैसे घरेलू उपकरण (इन्हें White Goods कहा जाता है) तथा कैमरे, मोबाइल फोन एवं उनसे जुड़े अन्य उत्पाद जब चलन/उपयोग से बाहर हो जाते हैं तो इन्हें संयुक्त रूप से ई-कचरे की संज्ञा दी जाती है।
  • ट्यूबलाइट, बल्ब, सीएफएल जैसी वस्तुएँ जिन्हें हम रोज़मर्रा के इस्तेमाल में लाते हैं, में भी पारे जैसे कई प्रकार के विषैले पदार्थ पाए जाते हैं, जो इनके बेकार हो जाने पर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
  • इस कचरे के साथ स्वास्थ्य और प्रदूषण संबंधी चुनौतियाँ तो जुड़ी हैं ही, साथ ही चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि इसने घरेलू उद्योग का स्वरूप ले लिया है और घरों में इसके निस्तारण का काम बड़े पैमाने पर होने लगा है।

स्रोत- ‘द हिंदू’