इंडिया फार्मा एंड इंडिया मेडिकल डिवाइस, 2020 सम्मेलन

प्रीलिम्स के लिये:

इंडिया फार्मा, 2020 सम्मेलन, इंडिया मेडिकल डिवाइस, 2020 सम्मेलन, FICCI

मेन्स के लिये:

फार्मास्यूटिकल उद्योग से जुड़े मुद्दे

चर्चा में क्यों?

रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय का औषध विभाग, भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (The Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry- FICCI) के साथ मिलकर गुजरात के गांधी नगर में 5 मार्च से 7 मार्च, 2020 तक ‘इंडिया फार्मा 2020’ एवं ‘इंडिया मेडिकल डिवाइस 2020’ सम्मेलन और प्रदर्शनी का आयोजन कर रहा है।

मुख्य बिंदु:

  • यह सम्मेलन 5वाँ संस्करण है तथा गुजरात राज्य में इस सम्मेलन का आयोजन पहली बार किया जा रहा है।

फिक्की (FICCI):

  • भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ, फिक्की (Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry- FICCI) भारत के व्यापारिक संगठनों का संघ है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1927 में महात्मा गांधी की सलाह पर घनश्याम दास बिड़ला एवं पुरुषोत्तम ठक्कर द्वारा की गई थी।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

कार्यक्रम की विषय:

  • इस कार्यक्रम का विषय है "इंडिया फार्मा: वहनीय एवं गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तथा भारत में चिकित्सीय उपकरण की चुनौतियाँ: सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिये वहनीय ज़िम्मेदार तथा गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा उपकरणों को बढ़ावा देना है।"

लक्ष्य (Aims):

  • इस सम्मेलन का उद्देश्य भारत में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा की लागत में कमी लाने के लिये नवाचारों को प्रोत्साहित करना तथा चिकित्सा उपकरण क्षेत्र से जुड़े सभी हितधारकों (केंद्र एवं राज्य सरकारें, प्रमुख व्यापारिक नेतृत्वकर्त्ता, उद्योग के शीर्ष अधिकारी, शिक्षाविद, आदि) को साथ लाने के लिये एक मंच प्रदान करना है।

उद्देश्य (Objective):

  • इस सम्मेलन के आयोजन का उद्देश्य मेडिकल इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज़, हेल्थ डायग्नोस्टिक्स, हॉस्पिटल और सर्जिकल उपकरणों आदि के विनिर्माण में उपभोक्ता केंद्रित दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है।
  • इलेक्ट्रॉनिक प्रौद्योगिकी का विकास एवं विनिर्माण क्षेत्र के आधार को सशक्त बनाने वाली पारिस्थितिकी निर्माण की दिशा में विचार-विमर्श करना।

भारतीय फार्मा क्षेत्र:

  • वर्ष 2017 मेंफार्मास्यूटिकल क्षेत्र का मूल्य 33 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
  • जैव फार्मास्यूटिकल्स, जैव सेवा, जैव कृषि, जैव उद्योग और जैव सूचना विज्ञान से युक्त भारत का जैव प्रौद्योगिकी उद्योग प्रति वर्ष लगभग 30% की औसत वृद्धि दर के साथ वर्ष 2025 तक 100 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक पहुँच सकता है।
  • वित्त वर्ष 2018 में भारत का दवा निर्यात 17.27 बिलियन अमेरिकी डॉलर था जो वित्त वर्ष 2019 में बढ़कर 19.14 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।

समस्याएँ और चुनौतियाँ:

  • शोध का अभाव:
    • वर्ष 2018 में भारतीय फार्मा कंपनियों द्वारा अनुसंधान और विकास में निवेश कंपनियों के सकल राजस्व का 8.5% हो गया है जो वित्त वर्ष 2012 में 5.3% के सापेक्ष अधिक है, लेकिन यह अमेरिकी फार्मा कंपनियों की तुलना में अभी भी कम है क्योंकि अमेरिकी फार्मा कंपनियाँ अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में 15–20% तक निवेश करती हैं।
  • नीतिगत समर्थन का अभाव:
    • भारत में सस्ती दरों पर जेनेरिक दवाओं के निर्माण तथा कच्चे माल की उपलब्धता में सुधार करने हेतु देश के सभी राज्यों में छोटे पैमाने पर कच्चे माल की विनिर्माण इकाइयों/इनक्यूबेटरों की स्थापना, इनकी स्थापना को बढ़ावा देने के लिये अवसंरचना और स्वदेशी रूप से उत्पादित अच्छी गुणवत्ता के कच्चे माल का अभाव है।
  • कुशल श्रम का अभाव:
    • फार्मास्यूटिकल कंपनियों में कुशल श्रमशक्ति की कमी है।
  • चीन पर निर्भरता:
    • जेनेरिक दवाओं के उत्पादन के लिये कच्चे माल की आपूर्ति हेतु भारतीय फार्मा उद्योग चीन पर निर्भर है।
  • नैदानिक परीक्षणों में अनैतिकता:
    • भ्रष्टाचार, परीक्षण की अल्प लागत, और दवा कंपनियों व चिकित्सकों की मिली भगत ने भारत में अनैतिक दवा परीक्षणों को अवसर दिया है।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • चिकित्सा उपकरणों के विनिर्माण क्षेत्र में 100% तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने के लिये फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में मौजूदा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नीति में संशोधन को कैबिनेट ने मंज़ूरी प्रदान कर दी है।
  • मार्च 2018 में ‘ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया’ (Drugs Controller General of India- DCGI) ने सहमति, अनुमोदन और अन्य जानकारी प्रदान करने के लिये एकल-खिड़की सुविधा शुरू करने की योजना की घोषणा की थी।

आगे की राह:

  • दवा नियामक प्रणाली को युक्तिसंगत बनाने, औषध क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने जैसी पहलों, उदाहरण के तौर पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 के प्रावधानों, को लागू किया जाना चाहिये।
  • मानकों का उल्लंघन करने वाली फार्मास्यूटिकल कंपनियों पर अर्थदंड लगाने के साथ ही इनका लाइसेंस रद्द कर देना चाहिये तथा विनियमन कानूनों को सुदृढ़ कर विनियामक निकायों को प्रभावी बनाना चाहिये।

स्रोत: पीआईबी