ऊर्जा सुरक्षा एवं नवीकरणीय ऊर्जा का महत्व

किसी देश के ऊर्जा उपभोग और उसके मानव विकास सूचकांक (HDI), मानव रहन-सहन का समेकित संकेतक, के मध्य महत्वपूर्ण संबंध होते है। प्रति व्यक्ति कम ऊर्जा खपत वाले देशों का मानव विकास सूचकांक में निम्न स्थान होता है। अर्थात् मानव विकास सूचकांक एवं ऊर्जा उपभोग एक दूसरे के पूरक हैं।

  • अपने ऊर्जा उपभोग में कमी किये बिना कोई भी देश मानव विकास सूचकांक में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकता। वर्तमान में भारत की प्रति व्यक्ति ऊर्जा उत्पादन दर विकसित देशों की तुलना में काफी कम है, जिसे बढ़ान की आवश्यकता है। 
  • भारत इसके लिये प्रयासरत है। हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा UN में अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता को वर्ष 2022 तक 450Gw तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। भारत ने नवीकरणीय गैर-परंपरागत ईंधन/ऊर्जा के उत्पादन में हिस्सेदारी बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई है।

क्या है ऊर्जा सुरक्षा?

  • ऊर्जा सुरक्षा को 3A, अवेलेबिलिटी (उपलब्धता), एक्सेस (पहुँच) तथा अफाॅर्डेबिलिटी (वहनीयता) के तौर पर परिभाषित किया जाता है।
  • वस्तुतः सस्ती कीमतों पर ऊर्जा की निर्बाध उपलब्धता ही ऊर्जा सुरक्षा है। यानी सस्ती एवं वहनीय दर पर बिना किसी रुकावट के सभी तक ऊर्जा की उपलब्धता ही ऊर्जा सुरक्षा है।
  • ऊर्जा सुरक्षा के दो आयाम हैं, पहला दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा (Long Term Energy Security) तथा दूसरा लघुकालिक ऊर्जा सुरक्षा (Short Term Energy Security)।
    • दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा का संबंध आर्थिक विकास और पर्यावरणीय जरूरतों के अनुरूप ऊर्जा की आपूर्ति के दीर्घकालिक निवेश से है।
    • लघुकालिक ऊर्जा सुरक्षा का संबंध ऊर्जा आपूर्ति एवं मांग संतुलन में अचानक किसी परिवर्तन का यथाशीघ्र समाधान करने की ऊर्जा प्रणाली क्षमता से है।

क्यों आवश्यक है ऊर्जा सुरक्षा?

  • जैसा कि हम प्रारंभ में चर्चा कर चुके हैं कि किसी भी देश के मानव विकास सूचकांक एवं ऊर्जा उपभोग में पूरक संबंध होता है। वस्तुतः ऊर्जा ही किसी भी देश के आर्थिक सामाजिक विकास की धुरी है।
  • ऊर्जा संसाधनों के आधार पर ही किसी राष्ट्र का आर्थिक विकास संभव है। अतः ऊर्जा सुरक्षा का मजबूत होना अत्यधिक आवश्यक है।
  • जनांकिकीय लाभांश को प्रतिफल में बदलने तथा वैश्विक महाशक्ति बनने हेतु भारत को ‘ऊर्जा सुरक्षा’ के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता है।
  • इसके अलावा बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ऊर्जा सुरक्षा आवश्यक है।
  • आधारभूत ढांचे की मज़बूती के लिये भी ‘ऊर्जा सुरक्षा’ आवश्यक है।
  • कौशल विकास सृजन एवं विनिर्माण क्षमता के विकास के लिये ऊर्जा सुरक्षा महत्त्वपूर्ण है।

भारत में ऊर्जा संसाधन एवं इनके प्रकार:

    • ऐसे उत्पादन जिनका इस्तेमाल ऊर्जा उत्पन्न करने के लिये किया जाता है, ऊर्जा संसाधन कहलाते है।
    • ऊर्जा स्रोत मुख्यतः दो प्रकार के होते है। 
    • पहला पारंपरिक अथवा अनवीकरणीय ऊर्जा संसाधन-
      • वस्तुतः अनवीकरणीय ऊर्जा संसाधन समाप्त होने योग्य होते है तथा इन्हें पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता। ये जीवाश्म ईंधन आधारित होते हैं। जैसे-पेट्रोलियम, कोयला, प्राकृतिक गैस आदि।
    • दूसरा प्रकार नवीकरणीय अथवा गैर-पारंपरिक ऊर्जा संसाधनों का होता है-
      • इन्हें पुनः प्राप्त किया जा सकता है।

    नवीकरणीय ऊर्जा एवं उसका महत्व:

    • नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों से प्राप्त ऊर्जा को नवीकरणीय ऊर्जा कहते है।
      • गौरतलब है कि नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन कभी समाप्त न होने वाले संसाधान होते हैं, जिन्हें पुनः प्राप्त किया जा सकता है।
    • वस्तुतः पृथ्वी इनका प्राकृतिक रूप से पुनर्भरण करती रहती है। इसमें सौर ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, जल ऊर्जा, बायोमास ऊर्जा आदि शामिल है।
    • ये पृथ्वी पर असीमित मात्र में उपलब्ध हैं तथा प्रदूषण रहित होने के कारण पर्यावरण हितैषी हैं। वस्तुतः पारंपरिक जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से अत्यधिक जल, वायु व मृदा प्रदूषण होता है जो भूमंडलीय ऊष्मन का कारण है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन  पारंपरिक ऊर्जा संसाधनों की अपेक्षा सस्ते एवं अधिक वहनीय हैं।
    • नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत ही भविष्य के ऊर्जा संसाधन है जो किसी भी राष्ट्र के धारणीय विकास को सुनिश्चित करेंगे।
    • यह धारणीय विकास लक्ष्य (SDG)-7 ‘स्वच्छ एवं वहनीय ऊर्जा’ के अनुकूल है।
    • चूँकि भारत कर्क रेखा पर अवस्थित है अतः भारत के अधिकांश भागों में वर्षभर सौर प्रकाश उपलब्ध रहता है, जिससे अत्यधिक मात्रा में सौर ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है।
    • इसी प्रकार पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा आदि की उपलब्धता भी भारत में है।

    ऊर्जा सुरक्षा हेतु भारत सरकार के प्रयास:

    • SDG-7 का उद्देश्य सभी के लिये सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और वहनीय ऊर्जा तक पहुँच सुनिश्चित करता है।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में एलपीजी कनेक्शन एवं बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु ‘प्रधानमंत्री उज्जव्वला योजना’ तथा प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर येाजना की शुरुआत की गई।
    • इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या बढ़ाने, बायोफ्यूल का अनुपात बढ़ाने और कंप्रेस्ड बायोगैस के इस्तेमाल को प्राथमिकता दी जा रही है।
    • वर्ष 2018 में राष्ट्रीय पवन सौर हाइब्रिड नीति की घोषणा की गई।
    • शैल गैस, कोल बेड मीथेन जैसे गैर-पारंपरिक हाइडोकार्बन की खोज व दोहन के लिये ‘हाइड्रोकार्ब एक्सप्लोरेशन एंड लाइसेंसिंग पॉलिसी’ (HELP) की घोषणा की गई।
    • राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन, प्रयास (Prayas), कुसुम (Kusum), सोलर पार्क, सोलर रुफ टॉप योजना, सौर रक्षा जैसी कई योजनाओं का संचालन कर रहा है।
    • नीति आयोग द्वारा ‘इंडिया एनर्जी सिक्योरिटी सेनेरियो-2047 की शुरुआत की गई है।
    • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की स्थापना की गई।
    • भारत ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधनों पर आधारित ऊर्जा संसाधनों से 40 प्रतिशत संचयी विद्युत क्षमता प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है।

    भारत के समक्ष ऊर्जा सुरक्षा की चुनौतियाँ:

    • पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर भारत की अधिक निर्भरता है जो कि महँगे होने के साथ कार्बन उत्सर्जन के कारक भी हैं।
    • आयात निर्भरता अधिक होने के कारण चालू खाता घाटे में वृद्धि होती है।
    • ऊर्जा संसाधनों के विकास हेतु कुशल मानव शक्ति तथा अवसंचरना का अभाव है।
    • अंतर्राष्ट्रीय तेल बाज़ारों में जारी अनिश्चितता, तेल बाज़ारों पर एकाधिकार, ट्रेड वार (Trade war), करेंसी वार, तेल निर्यातक देशों का आपसी तनाव आदि।
    • अभी भी बड़ी आबादी का भोजन पकाने हेतु कार्बन उत्सर्जक ईंधनों पर निर्भर होना।

    आगे की राह

    • संभावित गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की खोज तथा उन्हें किफायती एवं सुलभ बनाने के लिये अनुसंधान की आवश्यकता है।
    • ऊर्जा अवसंरचना का विकास करने के साथ-साथ स्ट्रैटेजिक पेट्रोलियम भंडारण को और अधिक बढ़ाने की आवश्यकता है।
    • सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयान मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2017-18 में प्रति व्यक्ति ऊर्जा उपलब्धता (भारत में) को 23355 मेगाजूल बढ़ाने की आवश्यकता है।