कोरोनावायरस का सामुदायिक प्रसारण

प्रीलिम्स के लिये:

वायरस के सामुदायिक प्रसारण का अर्थ 

मेन्स के लिये:

वायरस परीक्षण में निजी क्षेत्र की भूमिका, वायरस से लड़ने में विभिन्न देशों के मॉडल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (Indian Council of Medical Research-ICMR) ने घोषणा की है कि वह ऐसे लोगों का परीक्षण भी करेगा जिनका किसी भी देश में कोई यात्रा इतिहास नहीं है अथवा जो प्रत्यक्ष रूप से कोरोनवायरस (COVID-19) से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में नहीं आया।

प्रमुख बिंदु

  • ICMR के अनुसार, इस घोषणा का प्रमुख उद्देश्य देश में कोरोनावायरस के सामुदायिक प्रसारण (Community Transmission) को रोकना है।
  • ध्यातव्य है कि विभिन्न देशों ने सामुदायिक प्रसारण को संबोधित करने अथवा इसे रोकने के लिये विभिन्न मॉडल अपनाए हैं। 
  • विद्वानों का मत है कि भारत अभी वायरस के प्रसार के दूसरे चरण में है और सामुदायिक प्रसारण (Community Transmission) इसका तीसरा चरण है, इस संदर्भ में ICMR का निर्णय काफी तर्कसंगत लगता है।

सामुदायिक प्रसारण क्या है?

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) के अनुसार, सामुदायिक प्रसारण (Community Transmission) किसी भी रोग या वायरस के प्रसारण का एक चरण होता है।
  • सरल शब्दों में कहें तो सामुदायिक प्रसारण का अर्थ उस स्थिति से होता है जब वायरस समस्त समुदाय के स्तर पर पहुँच जाता है और इसके कारण वे लोग भी प्रभावित होते हैं जिन्होंने न तो इस अवधि में कोई यात्रा की है और न ही किसी ऐसे व्यक्ति के प्रत्यक्ष संपर्क में आए हैं जो कोरोनावायरस से संक्रमित हैं।
  • इसके अलावा देश में सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) पर भी काफी अधिक ज़ोर दिया जा रहा है, ताकि सामुदायिक प्रसारण (Community Transmission) के खतरे को कम किया जा सके।
  • विद्वानों के अनुसार, यदि एक बार सामुदायिक प्रसारण (Community Transmission) की शुरुआत होती है, तो संपर्कों को ट्रेस करना अधिक कठिन हो जाएगा। उदाहरण के लिये पूर्व में दक्षिण कोरिया की एक महिला, जिसने परीक्षण करने से इनकार कर दिया था, के कारण 160 से अधिक लोग संक्रमित हो गए।

देश में सामुदायिक प्रसारण की मौजूदा स्थिति

  • अब तक भारत में पाए गए अधिकांश मामलों में कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों का कोई-न-कोई यात्रा इतिहास था या फिर वे किसी ऐसे व्यक्ति के प्रत्यक्ष संपर्क में थे जो इस वायरस से संक्रमित था।
    • उदाहरण के लिये जयपुर में इटली के पर्यटक जिन्होंने भारतीय ड्राइवर सहित समूह के 17 लोगों को संक्रमित किया था।
  • वहीं दूसरी ओर आगरा में कुछ मामलों में न तो विदेश यात्रा का कोई इतिहास था और न ही वे किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए थे।
  • बीते सप्ताह स्वास्थ्य मंत्रालय ने जानकारी दी कि ‘चूँकि यात्रा से संबंधित मामलों के अलावा कुछ मामले देखे गए हैं, इसलिये इस वायरस से निपटने के लिये इस कार्य में ज़िला कलेक्टरों और राज्यों को शामिल करने का निर्णय लिया गया है।”

निजी क्षेत्र की भूमिका

  • हालाँकि सरकार निजी अस्पतालों के साथ मिलकर कार्य कर रही है, ताकि मरीज़ों के इलाज और अलगाव के लिये मानक संचालन प्रक्रिया विकसित की जा सके, किंतु निजी क्षेत्र के लिये परीक्षण प्रक्रिया को खोलने हेतु अभी तक कोई स्पष्ट कदम नहीं उठाया गया है।
  • इस संदर्भ में मुनाफाखोरी का विषय एक बड़ी चिंता है। विशेषज्ञों के अनुसार, निजी अस्पतालों के लिये परीक्षण प्रक्रिया को खोलना प्रौद्योगिकी का प्रश्न नहीं है; निजी क्षेत्र को इस विषय में अनुमति देने का अर्थ होगा बड़ी संख्या में मरीज़ों को ऐसे स्थान पर भेजना जहाँ संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिये संक्रमण नियंत्रण मानदंडों का पालन नहीं किया जा रहा है।
  • ध्यातव्य है कि कोरोनावायरस का परीक्षण करने के लिये सरकार को 5000 रुपए का खर्च उठाना पड़ रहा है और देश में यह परीक्षण सभी मरीज़ों के लिये मुफ्त है। 
  • इस प्रकार यदि सरकार निजी क्षेत्र को वायरस के परीक्षण का अधिकार देती है तो इसका अर्थ होगा कि देश के सभी नागरिक यह परीक्षण करवाने में समर्थ नहीं होंगे।

वायरस से लड़ने में भारत के मॉडल की क्षमता

  • चीन (80,000 से अधिक मामले), इटली (21,000 से अधिक) और दक्षिण कोरिया (8,000) जैसे देशों में सामुदायिक प्रसारण का चरण देखा जा रहा है।
  • कुछ समय के लिये भारत ने नि:शुल्क परीक्षण वाले दक्षिण कोरियाई मॉडल के स्थान पर लॉकडाउन के इटली मॉडल को लागू किया है।
  • यूरोप में प्रकोप के केंद्र इटली ने देश में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन का मॉडल अपनाया है। इटली में स्टोर और रेस्त्रां बंद कर दिये गए हैं और लोगों के आने-जाने पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया गया है।
    • विदित है कि स्पेन ने भी देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की है, जबकि फ्रांँस ने देश के कई स्थानों को बंद कर दिया है। 
  • इसके विपरीत दक्षिण कोरिया ने अपने देश में लाखों लोगों के निशुल्क परीक्षण और उपचार का मॉडल अपनाया है। उल्लेखनीय है कि दक्षिण कोरिया के इस मॉडल के कारण वहाँ दर्ज होने वाले मामलों की संख्या में काफी कमी आई है।
  • हालाँकि भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में एक साथ सभी लोगों का परीक्षण करने के मार्ग में संसाधनों की कमी बाधा बन सकती है। 
  • भारत के पास वर्तमान में तकरीबन 1 लाख परीक्षण करने की क्षमता है और लगभग 6000 परीक्षण किये जा चुके हैं। इस प्रकार यदि बड़े पैमाने पर परीक्षण किया जाता है तो हमें काफी अधिक संसाधनों की आवश्यकता होगी।

निष्कर्ष

निजी क्षेत्र को परीक्षण करने का अधिकार प्रदान करने के स्थान पर भारत ने सरकारी सहायता पर परीक्षण की सुविधा उपलब्ध कराने का विकल्प चुना है। भारत में व्याप्त गरीबी को देखते हुए भारत सरकार का यह निर्णय काफी तर्कसंगत है, हालाँकि इस संदर्भ में सरकार को अपनी क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस