फ्लोराइड और लौह संदूषण

प्रिलिम्स के लिये:

लौह संदूषण, जल प्रदूषण   

मेन्स के लिये:

जल प्रदूषण का स्वास्थ्य पर प्रभाव, जल प्रदूषण की समस्या से निपटने हेतु सरकार के प्रयास    

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘सीएसआईआर-केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान’ (CSIR- Central Mechanical Engineering Research Institute or CSIR-CMERI) द्वारा अपनी ‘हाई फ्लो रेट फ्लोराइड एंड आयरन टेक्नोलॉजी’’ (High Flow Rate Fluoride & Iron Removal technology) को हावड़ा (पश्चिम बंगाल) की एक निजी कंपनी को हस्तांतरित किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह सामुदायिक स्तर पर  जल शोधन प्रणाली है, जिसकी प्रवाह-दर क्षमता 10,000 लीटर प्रति घंटा है।
  • CSIR-CMER द्वारा इस तकनीकी को हावड़ा  (पश्चिम बंगाल) की मैसर्स ‘कैप्रिकैंस एक्वा प्राइवेट लिमिटेड’ (Capricans Aqua Private Limited) को हस्तांतरित किया गया है।

संरचना और कार्यप्रणाली:

  • इस प्रणाली में आसानी से उपलब्ध होने वाले कच्चे माल जैसे- रेत, बजरी और सोखने वाली सामग्रियों आदि का प्रयोग किया जाता है।
  • इसके तहत शुद्धीकरण के लिये तीन चरणों वाली प्रक्रिया को अपनाया गया है, जिसके माध्यम से पानी को अनुमेय सीमा (फ्लोराइड और आयरन के लिये क्रमशः 1.5 पीपीएम और 0.3 पीपीएम) के भीतर शुद्ध किया जाता है।
  • इसमें जल के शुद्धीकरण के लिये ऑक्सीकरण (Oxidation), गुरुत्वीय स्थायीकरण (Gravitational Settling) और रसोवशोषण (Chemisorption) प्रक्रिया के संयोजन का उपयोग किया जाता है।

लाभ:

  • इस तकनीक के माध्यम से CSIR-CMERI ने राष्ट्र के सबसे कमज़ोर वर्गों की सेवा के लिये एक किफायती और लागत प्रभावी समाधान प्रदान किया है।
  • प्रभावित स्थानों पर सामुदायिक स्तर की इस प्रणाली की स्थापना से देशभर में लौह संदूषण और फ्लोरोसिस के खतरे को कम करने में सहायता प्राप्त होगी।
  • इसकी सफलता के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत अभियान को आगे ले जाने में सहायता प्राप्त होगी
  • इस तकनीक के प्रसार से देश के युवाओं के लिये रोज़गार सृजन के अवसरों को बढ़ाने में सहायता प्राप्त होगी।
  • कैप्रिकैंस द्वारा इस तकनीक को झारखंड, उत्तर प्रदेश और असम के फ्लोराइड एवं लौह संदूषण की समस्या से प्रभावित क्षेत्रों स्थापित करने पर विचार किया जा रहा है। 

फ्लोराइड संदूषण और इसके दुष्प्रभाव:

  • फ्लोराइड (F⁻), फ्लोरीन का आयनिक रूप है, यह पृथ्वी की ऊपरी परत में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
  • फ्लोराइड के सेवन के लाभकारी और नकारात्मक दोनों ही प्रभाव हो सकते है।
    • उदाहरण के लिये उचित मात्रा में फ्लोराइड का सेवन दंत क्षय को कम करता है परंतु अधिक मात्रा में  फ्लोराइड के सेवन से यह प्रोटियोलिटिक और ग्लाइकोलाइटिक एंजाइम की गतिविधि में हस्तक्षेप से विषाक्त प्रभाव पैदा कर सकता है।
  • अत्यधिक सांद्रता युक्त फ्लोराइड के कारण पेट में दर्द, अत्यधिक लार,  उल्टी, दौरे और मांसपेशियों में ऐंठन भी हो सकती है, साथ ही इससे श्वसन पक्षाघात के कारण मृत्यु भी हो सकती है।
  • वर्ष 2016-17 के एक आँकड़े के अनुसार, देश के 19 राज्यों के 230 ज़िलों में फ्लोराइड संदूषण के मामले देखने को मिले थे।

फ्लोराइड संदूषण के स्रोत:

  • प्राकृतिक गतिविधियाँ जैसे-  ज्वालामुखी उत्सर्जन, खनिजों का अपक्षय और विघटन (विशेष रूप से भूजल और समुद्री एरोसोल में) आदि।   
  • मानवीय गतिविधियाँ जैसे- फॉस्फेट उर्वरकों का उत्पादन और उपयोग, हाइड्रोफ्लोरिक एसिड का निर्माण और उपयोग,एल्युमीनियम, स्टील और तेल का उत्पादन और फ्लोराइड युक्त कोयले का दहन (विशेष रूप से घर के अंदर) आदि।
  • दुनिया के कुछ हिस्सों में  भूजल में प्राकृतिक रूप से उच्च स्तर पर फ्लोराइड पाया जाता है, विश्व के कम-से-कम 25 देशों में पानी में उच्च स्तर पर फ्लोराइड की मात्रा देखी गई है।

Rural-Habitations

भारत में लौह संदूषण:

  • केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा वर्ष 2019 में संसद में प्रस्तुत किये गए आँकड़ों के अनुसार, देश की लगभग 3.73% आबादी को उपलब्ध जल की गुणवत्ता संतोषजनक नहीं थी।
  • भारत में पेयजल में पाया जाने वाला सबसे आम संदूषक लोहा (18,000 से अधिक ग्रामीण बस्तियों में), लवणता (13,000 ग्रामीण बस्तियों में), आर्सेनिक (12,000 ग्रामीण बस्तियों में), फ्लोराइड (लगभग 8,000  ग्रामीण बस्तियों में) और भारी धातु है।
  • राजस्थान में सबसे अधिक ग्रामीण आबादी जल संदूषण से प्रभावित है। 
  • आर्सेनिक और लौह प्रदूषण के मामले में पश्चिम बंगाल और असम सबसे अधिक प्रभावित राज्य हैं। देश में आर्सेनिक तथा लौह प्रदूषण से प्रभावित कुल बस्तियों में से दो-तिहाई पश्चिम बंगाल और असम में हैं। 
  • लौह संदूषण की अधिकता से लीवर कैंसर, मधुमेह, हृदय और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से संबंधित बीमारियाँ, बांझपन आदि हो सकती हैं। 

सरकार के प्रयास:

  • देश में फ्लोरोसिस की समस्या से निपटने के लिये केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2008-09 में 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान‘राष्ट्रीय फ्लोरोसिस निवारण एवं नियंत्रण कार्यक्रम’ की शुरुआत की गई थी।
  • 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान इस कार्यक्रम के अंतर्गत पेयजल में फ्लोरिसिस की उच्‍च मात्रा वाले 100 ज़िलों को चरणबद्ध ढंग से शामिल किया गया था।

उद्देश्य: 

  • समुदाय और स्‍कूली बच्‍चों में फ्लोरोसिस की निगरानी करना।
  • फ्लोरोसिस मामलों की रोकथाम, निदान और प्रबंधन के लिये क्षमता निर्माण।
  • चुने गए इलाकों में फ्लोरिसिस का व्यापक प्रबंधन आदि।

केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान

(Central Mechanical Engineering Research Institute- CMERI):

  • केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान की स्थापना फरवरी 1958 में पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में की गई थी।
  • CMERI वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR)  के तत्त्वावधान में संचालित मैकेनिकल इंजीनियरिंग के लिये शीर्ष अनुसंधान और विकास संस्थान है।

स्रोत: पीआईबी