राज्यपाल की क्षमादान शक्ति और CrPC की धारा 433A

प्रिलिम्स के लिये

राज्यपाल की क्षमादान शक्ति, CrPC की धारा 433A

मेन्स के लिये

राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्ति का महत्त्व और उसकी ओवरराइडिंग क्षमता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने माना कि राज्यपाल की क्षमादान की शक्ति, ‘दंड प्रक्रिया संहिता’ (CrPC) की धारा 433A से अधिक है।

  • इससे पहले जनवरी 2021 में दया याचिका के एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल राज्य मंत्रिपरिषद की सिफारिश को अस्वीकार नहीं कर सकता है, हालाँकि निर्णय लेने के लिये कोई समयसीमा निर्धारित नहीं की गई है।

प्रमुख बिंदु

धारा 433A को अतिव्यापन करती है क्षमादान शक्ति:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल 14 वर्ष की जेल होने से पूर्व भी कैदियों को क्षमादान दे  सकता है।
  • इस प्रकार क्षमादान करने की राज्यपाल की शक्ति CrPC की धारा 433A के तहत किये गए  प्रावधान को अतिव्यापन करती है, जिसमें कहा गया है कि कैदी को 14 वर्ष की जेल के बाद ही माफ किया जा सकता है।
    • धारा 433A में कहा गया है कि जहाँ किसी व्यक्ति को अपराध के लिये दोषी ठहराए जाने पर आजीवन कारावास की सज़ा दी जाती है और जिसके लिये मृत्युदंड, कानून द्वारा प्रदान की गई सज़ा में से एक है या जहाँ किसी व्यक्ति को दी गई मौत की सज़ा को धारा 433 के तहत बदल दिया गया है। ऐसे में आजीवन कारावास के तहत व्यक्ति को तब तक जेल से रिहा नहीं किया जाएगा जब तक कि उसने कम-से-कम चौदह वर्ष के कारावास की सज़ा न काट ली हो।
  • धारा 433A किसी भी स्थिति में संविधान के अनुच्छेद 72 या 161 के तहत राष्ट्रपति/राज्यपाल को क्षमादान देने की संवैधानिक शक्ति को प्रभावित नहीं कर सकती है।

राज्य सरकार द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्ति:

  • न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 161 के तहत एक कैदी को क्षमा करने की राज्यपाल की संप्रभु शक्ति वास्तव में राज्य सरकार द्वारा प्रयोग की जाती है।
  • सरकार की सलाह राज्य के उपराज्यपाल के लिये बाध्यकारी होती है।

लघुकरण का क्रम:

  • लघुकरण और रिहाई की कार्रवाई इस प्रकार एक सरकारी निर्णय के अनुसार हो सकती है और राज्यपाल की मंज़ूरी के बिना भी आदेश जारी किया जा सकता है।
    • राज्य सरकार CrPC की धारा 432 या संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत छूट देने की नीति बना सकती है।
    • यदि कोई कैदी 14 वर्ष से अधिक समय तक कारावास में रह चुका है, तो राज्य सरकार समय से पहले रिहाई का आदेश पारित करने में सक्षम है।
    • दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 432 सरकार को सज़ा माफ करने का अधिकार देती है।

क्षमादान की शक्ति:

  • भारत में राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति:
    • संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति को अपराध के लिये दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सज़ा को माफ करने, राहत देने, छूट देने या निलंबित करने, हटाने या कम करने की शक्ति होगी, जहाँ दंड मौत की सज़ा के रूप में है।
  • सीमाएँ:
    • राष्ट्रपति सरकार से स्वतंत्र होकर अपनी क्षमादान की शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता।
    • कई मामलों में SC ने निर्णय सुनाया है कि राष्ट्रपति को दया याचिका पर फैसला करते समय मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना होता है। इन मामलों में वर्ष 1980 का मारू राम बनाम भारत संघ और वर्ष 1994 में धनंजय चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य शामिल हैं।
  • पुनर्विचार:
    • हालाँकि राष्ट्रपति मंत्रिमंडल से सलाह लेने के लिये बाध्य है, अनुच्छेद 74 (1) उसे एक बार पुनर्विचार के लिये इसे वापस करने का अधिकार देता है। यदि मंत्रिपरिषद किसी परिवर्तन के विरुद्ध निर्णय लेती है, तो राष्ट्रपति के पास उसे स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

राज्यपाल की क्षमादान शक्ति:

  • अनुच्छेद 161: 
    • राज्य के राज्यपाल के पास किसी ऐसे मामले से संबंधित किसी भी कानून के खिलाफ किसी भी अपराध के लिये दोषी ठहराए गए व्यक्ति की सज़ा को माफ करने, राहत देने, राहत या छूट देने या निलंबित करने, हटाने या कम करने की शक्ति होगी। 

राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्तियों के बीच अंतर:

  • अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का दायरा अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल की क्षमादान शक्ति से अधिक व्यापक है जो निम्नलिखित दो तरीकों से भिन्न है:
    • कोर्ट मार्शल: कोर्ट मार्शल के तहत राष्ट्रपति सजा प्राप्त व्यक्ति की सजा माफ़ कर सकता है परंतु अनुच्छेद 161 राज्यपाल को ऐसी कोई शक्ति प्रदान नहीं करता है।
    • मौत की सजा: राष्ट्रपति उन सभी मामलों में क्षमादान दे सकता है जहाँ दी गई सजा मौत की सजा है लेकिन राज्यपाल की क्षमादान शक्ति मौत की सजा के मामलों तक विस्तारित नहीं होती है।

शर्तें

  • क्षमा: इसमें दंडादेश और दोषसिद्धि दोनों से मुक्ति देना शामिल है। ध्यातव्य है कि राज्यपाल मृत्युदंड को माफ़ नहीं सकता है, यह शक्ति केवल ‘राष्ट्रपति’ को ही प्राप्त है हालाँकि, राज्यपाल उक्त अपराध के फलस्वरूप अल्प सज़ा का प्रावधान कर सकता है।
  • लघुकरण: इसमें दंड के स्वरुप को बदलकर कम करना शामिल है, उदाहरण के लिये मृत्युदंड को आजीवन कारावास और कठोर कारावास को साधारण कारावास में बदलना।
  • परिहार: इसमें दंड की प्रकृति में परिवर्तन  किया जाना शामिल है, उदाहरण के लिये दो वर्ष के कारावास को एक वर्ष के कारावास में परिवर्तित करना।
  • विराम: इसके अंतर्गत किसी दोषी को प्राप्त मूल सज़ा के प्रावधान को किन्हीं विशेष परिस्थितियों में बदलना शामिल है। उदाहरण के लिये महिला की गर्भावस्था की अवधि के कारण सज़ा को परिवर्तित करना।
  • प्रविलंबन: इसके अंतर्गत क्षमा या लघुकरण की कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान दंड के प्रारंभ की अवधि को आगे बढ़ाना या किसी दंड पर अस्थायी रोक लगाना शामिल है।

स्रोत: द हिंदू