एक प्रसिद्ध यात्रा का आधुनिक रूप

संदर्भ
उल्लेखनीय है कि युवाओं के कई समूह वारी (Wari) को सोशल मीडिया में मशहूर बना रहे हैं। दरअसल, वारी महाराष्ट्र के सोलापुर ज़िले में स्थित विटोभा मंदिर तक की रंगीन पदयात्रा है। यह वार्षिक रूप से संपन्न होती है। इस पदयात्रा के लिये ऑनलाइन अवतार का नाम ‘फेसबुक डिंडी : एक आभासी वारी’ (‘Facebook Dindi: A Virtual Wari’) रखा गया है। इस यात्रा को अब तक 10 मिलियन से ज़्यादा ‘हिट’ तथा 5 लाख से अधिक ‘लाइक’ मिल चुके हैं।

प्रमुख बिंदु

  • विदित हो कि फेसबुक डिंडी को मुख्यतः आईटी और आईटीईएस जैसे क्षेत्रों के पेशेवरों, कलाकारों, फोटोग्राफरों और ब्लॉगर्स द्वारा बनाया गया है।
  • इन सभी ने मिलकर आभासी वारी के मिलियन फॉलोवर बनाने में सहायता की है तथा गैर सरकारी संगठनों से इसके लिये धन प्राप्त करने में भी मदद की है।
  • दरअसल, फेसबुक डिंडी ने वर्ष 2016 में बारामती (Baramati) में लगभग 10 लाख पेयजल योजनाएँ चलाने में भारत के पर्यावरणीय फोरम की सहायता की थी।
  • इस वर्ष फेसबुक डिंडी की थीम ‘कन्या शिशुओं की सुरक्षा’ है और इसके लिये “वारी टिची” नामक एक अभियान चलाया गया है।
  • इस अभियान में इसके सदस्य, महिलाओं के साथ समान व्यवहार को दर्शाने वाली वास्तविक सामग्री (जैसे-पोस्टरों ,चित्रों और कविताओं) को एकत्रित करते हैं।
  • यह पहल मुख्यतः ‘बेटी बचाओ,बेटी पढाओ’ अभियान से प्रेरित है, जिसके संदेशों को फेसबुक, ट्विटर, व्ह्ट्सएप, इन्स्टाग्राम ,यू-ट्यूब चैनल और ब्लॉग्स के माध्यम से प्रसारित किया गया था।
  • वारी टिची’ (wari tichi) अभियान के अंतर्गत चित्रों के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या तथा दहेज़ जैसी कुरीतियों को दूर करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है तथा विधवाओं के लिये समान अधिकारों की बात भी की गई है।

‘वारी’ से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • वारी महाराष्ट्र के सोलापुर ज़िले में स्थित विटोभा मंदिर तक की रंगीन पदयात्रा है। यह वार्षिक रूप से संपन्न होती है।
  • वारी आषाढ़ के महीने में की जाने वाली एक विशेष यात्रा है, जो अलान्दी गाँव से शुरू होती है तथा इसकी समाप्ति तीर्थयात्रियों के पंढरपुर तक पहुँचने पर होती है। यह 250 किलोमीटर की पदयात्रा है।
  • वर्ष के इस समय के दौरान आषाढ़ एकादशी को सबसे पवित्र एकादशी माना जाता है और यह 21 दिवसीय यात्रा है, जो आषाढ़ एकादशी को समाप्त होती है।
  • इस यात्रा के दौरान यात्रियों को वारकरी (Warkaris) के नाम से जाना जाता है। ये सभी एक दूसरे को उनके वास्तविक नामों के स्थान पर मौली (Mauli) नाम से पुकारते हैं।
  • यह एक सार्वभौमिक यात्रा है तथा इसमें सभी जातियों और पंथों के लोग शामिल होते हैं।
  • वारी परम्परा कम से कम 7 शताब्दी पुरानी  है तथा इसकी शुरुआत संत द्न्यानेश्वर के महान दादा त्रियम्बक पन्त कुलकर्णी ने की थी।
  • द्न्यानेश्वर ने स्वयं अन्य संतों जैसे-नामदेव, सवता माली और तुकाराम के साथ मिलकर अपने जीवनकाल के दौरान वारी यात्रा में भाग लिया था।
  • वारी यात्रा के दौरान भक्तों द्वारा विभिन्न भजन और भक्ति गीत गाए जाते हैं। ये भजन एवं गीत भगवान के भिन्न-भिन्न अवतारों जैसे श्री राम, श्री कृष्ण और हरि को समर्पित होते हैं।